Monday 25 May 2020

भारतीय इतिहास के कुछ विषय : वर्ग 12 पाठ तीन – बन्धुत्व , जाति तथा वर्ग (भाग-2)

बंधुता और विवाह : अनेक नियम और व्यवहार की विभिन्नता :

* परिवार : प्राचीन भारतीय सामाजिक जीवन संरचना  में परिवार का महत्वपूर्ण स्थान था |
* वैदिक युग( 1500-1000 ई० पू.) में समाज में  पितृसत्तात्मक परिवार का प्रचलन था |
* इस परिवार में माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन ,पति-पत्नी के लिए  पृथक-पृथक संज्ञाएँ थी |
* वे एक साथ रहते , संसाधनों का आपस में मिल-बांटकर इस्तेमाल करते , काम करते और धार्मिक अनुष्ठानों को साथ ही इस्तेमाल करते थे |
* परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते थे जिन्हें " सम्बन्धी " कहते है | तकनीकी तौर पे सम्बन्धियों को जाति समूह कह सकते है | पारिवारिक रिश्ते नैसर्गिक और रक्त सम्बन्ध होते थे |

नोट : संस्कृत ग्रन्थों में " कुल " शब्द का प्रयोग परिवार के लिए और "जाति" का बांधवों के बड़े समूह के लिए होता है | पीढी -दर -पीढी किसी भी कुल के पूर्वज इकट्ठे रूप में एक ही वंश के माने जाते है |
* महाभारत में भी दो परिवार कौरव और पांडव की कहानी है जिसमें भूमि और सत्ता को लेकर संघर्ष का चित्रण करती है | ये दोनों परिवार एक ही कुल कुरु वंश से सम्बन्धित थे जिनका एक जनपद ' कुरु पर शासन था |

* महाभारत में यह पता चलता है की सत्ता का उत्तराधिकारी ज्येष्ठ पुत्र होता था | इसलिए दुर्योधन को यह चिंता हुई की कहीं पांडू के पुत्रों को उतराधिकार न मिल जाए |
* समाज पितृसत्तात्मक होने के कारण पुत्र पिता की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी होता है |
* कभी पुत्र के ना होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था (जैसे पांडू के अचानक मृत्यु होने पर उनके अंधे भाई धृतराष्ट्र कुरु जनपद का राजा बने ) तो कभी बन्धु-बांधव सिंहासन पर अपना अधिकार जमाते थे |
* कुछ विशेष परिस्थितियों में महिलाएं भी सता का उपभोग थी ( जैसे प्रभावती गुप्त )
* आज भी भारतीय समाज में पितृवंशिकता के प्रति झुकाव है | इसका अनुभव इस बात से कर सकते है की आज भी अनेक हिन्दू विवाह संस्कारों में पुत्र प्राप्ति के लिए मन्त्र पढ़े जाते है | ऋग्वेद से एक मन्त्र उद्वृत है -
" मैं इसे यहाँ से मुक्त करता हूँ किन्तु वहां से नहीं | मैंने इसे वहां मजबूती से स्थापित किया है जिससे इंद्र के अनुग्रह से इसके उत्तम पुत्र हों और पति के प्रेम का सौभाग्य से इसे प्राप्त हो |
 इंद्र शौर्य , युद्व और वर्षा के एक प्रमुख देवता है | " यहाँ " और "वहां " से तात्पर्य  पिता और पति गृह से है |
 विवाह के नियम :
विवाह शब्द "व" उपसर्ग-वह धातु से बना है जिसका अर्थ होता है - वधु को वर के घर ले जाना या पहुचाना | 
* नए  नगरों के उदय और सामाजिक जीवन की जटिलता के कारण ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार किया | ब्राह्मणों को  इन संहिताओं का विशेष पालन करना होता था और शेष समाज को इसका अनुसरण करना होता था |
* 500 ई. पू. से इन मानदंडो का संकलन धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र नामक संस्कृत ग्रन्थों में किया गया |
* परन्तु भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैली  में क्षेत्रीय विभिन्नता और संचार की बाधाओं से सार्वभौमिक प्रभाव नही हुआ |
* मनु द्वारा रचित "मनुस्मृति"( 200 ई. पू.-200 ई.) में 8 प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है | * महाभारत के आदिपर्व में 102वें अध्याय में श्लोक 11 और 17 में भीष्म पितामह ने भी इन्ही 8 प्रकार के विवाहों का वर्णन किया है |
विवाह के प्रकार :
मनुस्मृति में विवाह के आठ प्रकारो का उल्लेख है।इसमें प्रथम चार प्रशंसित और अंतिम चार निंदनीय है ।
1.ब्रह्म विवाह - वेदज्ञ व शीलवान वर को आमंत्रित कर उपहार आदि के साथ कन्या प्रदान करना ।
2.देव विवाह- सफलता पूर्वक आनुष्ठानिक यज्ञ पूर्ण करनेवाले पुरोहित के साथ कन्या का विवाह।
3.आर्ष विवाह - कन्या के पिता द्वारा वर से यज्ञीय कार्य हेतु एक जोड़ी गाय-बैल के बदले कन्या प्रदान करना ।
4.प्रजापत्य विवाह - कन्या और वर दोनों  संयुक्त रूप से  सामाजिक आर्थिक कर्तव्य निर्वाह की वचनबद्वता, वर्तमान में भी प्रचलित।
5.गंधर्व विवाह-(प्रेम विवाह)-माता पिता की अनुमति के बिना वर कन्या का एक दूसरे पर आसक्त होकर विवाह करना ।
6.आसुर विवाह : कन्या के पिता द्वारा धन के बदले में कन्या की बिक्री ।
7.राक्षस विवाह-कन्या का अपहरण कर बलपूर्वक किया गया विवाह ।
8.पैशाच विवाह-कन्या के साथ छ्ल-छ्द्म द्वारा शारीरिक सम्बंध स्थापित कर विवाह करना ।
अन्य विवाह :
*अनुलोम विवाह:उच्च वर्ण का व्यक्ति अपने से नीचे वर्ण की कन्या के साथ विवाह करता हो ।
*प्रतिलोम विवाह:उच्च वर्ण की कन्या का अपने से निम्न वर्ण के पुरुष के साथ किया गया विवाह ।

नोट:
* अन्तर्विवाह : इसमें वैवाहिक सम्बन्ध समूह के मध्य ही होते है | यह समूह एक गोत्र कुल अथवा एक जाती या फिर एक ही स्थान पर बसने वालों का हो सकता है |
*  बहिर्विवाह - इसमें गोत्र से बाहर विवाह करने को कहते है |
* बहुपत्नी विवाह - इस प्रथा में एक पुरुष की अनेक पत्नियां होने की सामाजिक परिपाटी है |
* बहुपति विवाह : इस प्रथा में एक स्त्री के अनेक पति होने की पद्वति है |
भातीय इतिहास के कुछ विषय : बन्धुत्व , जाति और वर्ग 
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