जाति और सामाजिक गतिशीलता :
* समाज में वर्ण चार थे वहीं जातियों की कोई संख्या निश्चित नही थी |
* निषाद या स्वर्णकार जो चार वर्ण व्यवस्था में समाहित करना सम्भव नही था , उनका जाति में वर्गीकृत कर दिया गया |
* वे जातियां जो एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से जुडी थी उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में संगठित किया जाता था |
* ऐसा ही उदाहरण मदसौर अभिलेख से मिला है जिसमें एक रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है | सामूहिक रूप से शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य देवता के सम्मान में मन्दिर बनवाने पर खर्च किया | यह सामाजिक गतिशीलता का प्रतीक है |
* संस्कृत साहित्य में कुछ ऐसे समुदायों का भी उल्लेख आता है जिसे विचित्र , असभ्य , पशुवत, मलेच्छ कहकर
चित्रित किया गया है | किन्तु इन लोगों के बीच विचारों एवं मतों का आदान प्रदान होता था |
* उदाहरण स्वरूप :
1. महाभारत में भीष्म पितामह के पिता राजा शांतनु ने निषाद कन्या सत्यवती से विवाह किया था |
क्या यह ब्राह्मणीय वैवाहिक नियमों के तहत था ?
2. महाभारत में पांडव पुत्र भीम ने हिडिम्बा राक्षसी से विवाह किया |
क्या यह ब्राह्मणीय वैवाहिक नियमों के तहत था ?
3. सातवाहन नरेश पुलुमावी वशिष्ठ ने शक राजा रूद्रदामन की कन्या से विवाह किया |
क्या यह ब्राह्मणीय वैवाहिक नियमों के तहत था ?
चूँकि ये लोग समर्थ थे | अत: किसी ने प्रश्न चिन्ह नही लगाया |
गुप्तोतर काल में विभिन्न वर्णों के बीच विवाह सम्बन्ध होने लगे | इससे कई जातियां और उपजातियां अस्तित्व में आई |
* ब्राह्मण कुछ लोगों को वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे | ऐसे वर्गों को " अस्पृश्य " कहा गया | इनलोगों में ही जो लोग शवों की अंत्येष्टि और मृत पशुओं को छूने वाले को " चांडाल " कहा जाता था |
* मनुस्मृति में चांडालों के कर्तव्यों की सूची मिलती है | उन्हें गाँव के बाहर रहना होता था | फेके हुए वर्तन का इस्तेमाल करते थे , मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे |
* ये लोग सडक पर चलते समय करताल बजाकर अपने होने की सूचना देते जिससे अन्य लोग उन्हें देखने के दोष से बच जाए | चीन से आए बौद्व भिक्षु फाह्यान ने भी इसका वर्णन किया है |
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* समाज में वर्ण चार थे वहीं जातियों की कोई संख्या निश्चित नही थी |
* निषाद या स्वर्णकार जो चार वर्ण व्यवस्था में समाहित करना सम्भव नही था , उनका जाति में वर्गीकृत कर दिया गया |
* वे जातियां जो एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से जुडी थी उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में संगठित किया जाता था |
* ऐसा ही उदाहरण मदसौर अभिलेख से मिला है जिसमें एक रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है | सामूहिक रूप से शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य देवता के सम्मान में मन्दिर बनवाने पर खर्च किया | यह सामाजिक गतिशीलता का प्रतीक है |
* संस्कृत साहित्य में कुछ ऐसे समुदायों का भी उल्लेख आता है जिसे विचित्र , असभ्य , पशुवत, मलेच्छ कहकर
चित्रित किया गया है | किन्तु इन लोगों के बीच विचारों एवं मतों का आदान प्रदान होता था |
* उदाहरण स्वरूप :
1. महाभारत में भीष्म पितामह के पिता राजा शांतनु ने निषाद कन्या सत्यवती से विवाह किया था |
क्या यह ब्राह्मणीय वैवाहिक नियमों के तहत था ?
2. महाभारत में पांडव पुत्र भीम ने हिडिम्बा राक्षसी से विवाह किया |
क्या यह ब्राह्मणीय वैवाहिक नियमों के तहत था ?
3. सातवाहन नरेश पुलुमावी वशिष्ठ ने शक राजा रूद्रदामन की कन्या से विवाह किया |
क्या यह ब्राह्मणीय वैवाहिक नियमों के तहत था ?
चूँकि ये लोग समर्थ थे | अत: किसी ने प्रश्न चिन्ह नही लगाया |
गुप्तोतर काल में विभिन्न वर्णों के बीच विवाह सम्बन्ध होने लगे | इससे कई जातियां और उपजातियां अस्तित्व में आई |
* ब्राह्मण कुछ लोगों को वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे | ऐसे वर्गों को " अस्पृश्य " कहा गया | इनलोगों में ही जो लोग शवों की अंत्येष्टि और मृत पशुओं को छूने वाले को " चांडाल " कहा जाता था |
* मनुस्मृति में चांडालों के कर्तव्यों की सूची मिलती है | उन्हें गाँव के बाहर रहना होता था | फेके हुए वर्तन का इस्तेमाल करते थे , मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे |
* ये लोग सडक पर चलते समय करताल बजाकर अपने होने की सूचना देते जिससे अन्य लोग उन्हें देखने के दोष से बच जाए | चीन से आए बौद्व भिक्षु फाह्यान ने भी इसका वर्णन किया है |
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