सामाजिक असमानताएं :
वर्ण व्यवस्था :-
ऋग्वेद के पुरूष सूक्त में चार वर्णों की उत्पति विराट पुरूष के चार अंगों से मानी गयी है |
वर्ण व्यवस्था :-
ऋग्वेद के पुरूष सूक्त में चार वर्णों की उत्पति विराट पुरूष के चार अंगों से मानी गयी है |
मनुस्मृति पुरूष सूक्त में कहा गया है -
ब्राह्मणोस्य मुख मासीद बाहू राजन्य: कृत:
उरूतदस्य यदवैश्य: पदथयां शूद्रोअजायातं |
अर्थात विराट पुरूष (ईश्वर ) के मुख से ब्राह्मण , बाहु से क्षत्रिय , जंघा से वैश्य एवं पैरों से शूद्र वर्ण की उत्पति हुई है |
महाभारत के शांतिपर्व के 188 वें अध्याय के 10 वें श्लोक में वनों की उत्पति ब्रह्मा से इस प्रकार बताई |
ब्रह्मणां तू सीनो क्षत्रियाणाम तू लोहित: |
वैश्यानां पीत को वर्ण शूद्राणामसितास्तथा ||
अर्थात ब्रह्मा ने ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शुद्र वर्ण की उत्पति की जिनके रंग क्रमश: श्वेत , लोहित , पीला एवं काला था |
ब्राह्मणोस्य मुख मासीद बाहू राजन्य: कृत:
उरूतदस्य यदवैश्य: पदथयां शूद्रोअजायातं |
अर्थात विराट पुरूष (ईश्वर ) के मुख से ब्राह्मण , बाहु से क्षत्रिय , जंघा से वैश्य एवं पैरों से शूद्र वर्ण की उत्पति हुई है |
महाभारत के शांतिपर्व के 188 वें अध्याय के 10 वें श्लोक में वनों की उत्पति ब्रह्मा से इस प्रकार बताई |
ब्रह्मणां तू सीनो क्षत्रियाणाम तू लोहित: |
वैश्यानां पीत को वर्ण शूद्राणामसितास्तथा ||
अर्थात ब्रह्मा ने ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शुद्र वर्ण की उत्पति की जिनके रंग क्रमश: श्वेत , लोहित , पीला एवं काला था |
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* पूर्व वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर निर्धारित थी | जो व्यक्ति जैसा कर्म करेगा उसका वर्ण वही होगा | अर्थात एक ब्राह्मण सैनिक का कार्य करता था तो उसका वर्ण क्षत्रिय वर्ण में गिना जाता था | यदि एक शुद्र वेदों का अध्ययन करता था और पूजा अनुष्ठान सम्पन्न कराता था तो उसे ब्राह्मण वर्ण की श्रेणी में गिना जाता |
* परन्तु उत्तर वैदिक काल में यह व्यवस्था बदल गयी और वर्ण जन्म के आधार पर निर्धारित होने लगी | इस धारणा को पुष्ट करने के लिए धर्म सूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया जिसमें स्वयं उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है |
* धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में चार वर्गों के लिए आदर्श "जीविका " से जुड़े कई नियम बनाये |
1. ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन , वेदों की शिक्षा , यज्ञ सम्पन्न करना और कराना , दान देना और लेना था |
2. क्षत्रियों का कार्य युद्व करना , लोगों की सुरक्षा करना , न्याय करना , वेद पढ़ना , यज्ञ करना और दान-दक्षिणा देना था |
3. वैश्य का कार्य - वैश्यों के लिए कृषि , गौ-पालन , व्यापार का कर्म अपेक्षित था |
4. शूद्र का कार्य - शूद्रों के मात्र एक जीविका थी - तीनों - "उच्च " वर्णों की सेवा करना |
इन नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने दो-तीन नीतियाँ अपनाई |
1. वर्ण व्यवस्था की उत्पति एक दैवीय व्यवस्था है |
2. वे शासकों को यह उपदेश देते थे की वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में अनुसरण करे |
3. लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया की उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है |
किन्तु ऐसा करना आसान नही था | अत: इन मानदंडों को बहुधा महाभारत जैसे अनेक ग्रन्थों में वर्णित कहानियों के द्वारा बल प्रदान किया जाता था |
उदाहरण स्वरूप एकलव्य ( जो एक आदिवासी भील जाति का था ) की कहानी | जिसमें द्रोणाचार्य अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज साबित करने के लिए एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसका दायाँ हाथ का अंगूठा मांग लिया था |
राजा कौन ?
* शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे | परन्तु इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण है जो यह प्रमाणित करता है की जो समर्थन और संसाधान जुटा सके वह राजनीतिक सत्ता का उपभोग कर सकता है |
* महाभारत में कर्ण सूत पुत्र होते हुए भी दुर्योधन ने उसे " अंग" राज्य का राजा बनाया था |
* मौर्य वंश के शासक के क्षत्रिय होने पर भी बहस होती रही है | बौद्व ग्रन्थों में इस वंश के शासकों को क्षत्रिय कहा गया है जबकि ब्राह्मण ग्रन्थ उन्हें " निम्न कुल " का मानते है |
* नन्द वंश के शासक " निम्न कुल " के होने पर भी "मगध महाजनपद" पर शासन किया |
* शक जो मध्य एशिया से भारत आए , ब्राह्मण मलेच्छ , बर्बर मानते थे | परन्तु शक राजा रूद्रदामन पश्चिमोतर भारत पर शासन किया साथ ही उसके परिवार के सदस्य के साथ सातवाहन वंश के शासक ( जो स्वयं को अनूठा ब्राह्मण और क्षत्रिय को दर्प करने वाला बताया ) वैवाहिक सम्बन्ध भी बनाए |
सवाल ?:
1. शास्त्र कहता है की राजा सिर्फ क्षत्रिय बन सकता है , ऐसे में शुंग वंश , कंव वंश , सातवाहन वंश ( जो ब्राह्मण थे ) शासन किया |
2. सातवाहन शासकों ने उन लोगों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये जो वर्ण व्यवस्था से ही बाहर थे |
3. सातवाहन शासकों ने अन्तर्विवाह पद्वति का पालन करते थे , जबकि ब्राह्मणीय ग्रन्थों में बहिर्विवाह प्रणाली प्रस्तावित है |
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* परन्तु उत्तर वैदिक काल में यह व्यवस्था बदल गयी और वर्ण जन्म के आधार पर निर्धारित होने लगी | इस धारणा को पुष्ट करने के लिए धर्म सूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया जिसमें स्वयं उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है |
* धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में चार वर्गों के लिए आदर्श "जीविका " से जुड़े कई नियम बनाये |
1. ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन , वेदों की शिक्षा , यज्ञ सम्पन्न करना और कराना , दान देना और लेना था |
2. क्षत्रियों का कार्य युद्व करना , लोगों की सुरक्षा करना , न्याय करना , वेद पढ़ना , यज्ञ करना और दान-दक्षिणा देना था |
3. वैश्य का कार्य - वैश्यों के लिए कृषि , गौ-पालन , व्यापार का कर्म अपेक्षित था |
4. शूद्र का कार्य - शूद्रों के मात्र एक जीविका थी - तीनों - "उच्च " वर्णों की सेवा करना |
इन नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने दो-तीन नीतियाँ अपनाई |
1. वर्ण व्यवस्था की उत्पति एक दैवीय व्यवस्था है |
2. वे शासकों को यह उपदेश देते थे की वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में अनुसरण करे |
3. लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया की उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है |
किन्तु ऐसा करना आसान नही था | अत: इन मानदंडों को बहुधा महाभारत जैसे अनेक ग्रन्थों में वर्णित कहानियों के द्वारा बल प्रदान किया जाता था |
उदाहरण स्वरूप एकलव्य ( जो एक आदिवासी भील जाति का था ) की कहानी | जिसमें द्रोणाचार्य अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज साबित करने के लिए एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसका दायाँ हाथ का अंगूठा मांग लिया था |
राजा कौन ?
* शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे | परन्तु इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण है जो यह प्रमाणित करता है की जो समर्थन और संसाधान जुटा सके वह राजनीतिक सत्ता का उपभोग कर सकता है |
* महाभारत में कर्ण सूत पुत्र होते हुए भी दुर्योधन ने उसे " अंग" राज्य का राजा बनाया था |
* मौर्य वंश के शासक के क्षत्रिय होने पर भी बहस होती रही है | बौद्व ग्रन्थों में इस वंश के शासकों को क्षत्रिय कहा गया है जबकि ब्राह्मण ग्रन्थ उन्हें " निम्न कुल " का मानते है |
* नन्द वंश के शासक " निम्न कुल " के होने पर भी "मगध महाजनपद" पर शासन किया |
* शक जो मध्य एशिया से भारत आए , ब्राह्मण मलेच्छ , बर्बर मानते थे | परन्तु शक राजा रूद्रदामन पश्चिमोतर भारत पर शासन किया साथ ही उसके परिवार के सदस्य के साथ सातवाहन वंश के शासक ( जो स्वयं को अनूठा ब्राह्मण और क्षत्रिय को दर्प करने वाला बताया ) वैवाहिक सम्बन्ध भी बनाए |
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1. शास्त्र कहता है की राजा सिर्फ क्षत्रिय बन सकता है , ऐसे में शुंग वंश , कंव वंश , सातवाहन वंश ( जो ब्राह्मण थे ) शासन किया |
2. सातवाहन शासकों ने उन लोगों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये जो वर्ण व्यवस्था से ही बाहर थे |
3. सातवाहन शासकों ने अन्तर्विवाह पद्वति का पालन करते थे , जबकि ब्राह्मणीय ग्रन्थों में बहिर्विवाह प्रणाली प्रस्तावित है |
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M. PRASAD
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