बोधिसत्त एक चांडाल के रूप में
क्या चांडालों ने अपने को समाज की सबसे निचली श्रेणी में रखे जाने का प्रतिरोध किया ? यह कहानी पढ़िए जो पाली में लिखी " मातंग " जातक से ली गई है | इस कथा में बोधिसत्त ( पूर्वजन्म में बुद्व ) एक चांडाल के रूप में चित्रित है |
एक बार बोधिसत्त ने बनारस नगर के बाहर एक चांडाल के पुत्र के रूप में जन्म लिया , उनका नाम मातंग था | एक दिन वे किसी कार्यवश नगर में गए और वहां उनकी मुलाक़ात दिथ्थ मांगलिक नामक एक व्यापारी की पुत्री से हुई | उन्हें देखकर वह चिल्लाई " मैंने कुछ अशुभ देख लिया है " यह कहकर उसने अपनी आँखें धोई | उसके क्रोधित सेवकों ने मातंग की पिटाई की | विरोध में मातंग व्यापारी के घर के दरवाजे के बाहर जाकर लेट गए | सातवें रोज घर के लोगों ने बाहर आकर दिथ्थ को उन्हें सौंप दिया | दिथ्थ उपवास से क्षीण हुए मातंग को लेकर चांडाल बस्ती में आई | घर लौटने पर मातंग ने संसार त्यागने का निर्णय लिया | अलौकिक शक्ति हासिल करने के उपरान्त वह बनारस लौटे और उन्होंने दिथ्थ से विवाह कर लिया | माण्डव्य कुमार नामक उनका एक पुत्र हुआ | बड़े होने पर उसने ( माण्डव्य कुमार ) तीनों वेदों का अध्ययन किया तथा प्रत्येक दिन वह 16000 ब्राह्मणों को भोजन कराता था |
एक दिन फटे वस्त्र पहने तथा मिट्टी का भिक्षा पात्र हाथ में लिए मातंग अपने पुत्र ( माण्डव्य कुमार ) के दरवाजे पर आए और उन्होंने भोजन माँगा | माण्डव्य ने कहा वे एक पतित आदमी प्रतीत होते है अत: भिक्षा के योग्य नहीं ,भोजन ब्राह्मणों के लिए है | मातंग ने उतर दिया , " जिन्हें अपने जन्म पर गर्व है पर अज्ञानी है वे भेंट के पात्र नही है "| इसके विपरीत जो लोग दोषमुक्त है वे भेंट के योग्य है | माण्डव्य कुमार ने क्रोधित होकर अपने सेवकों से मातंग को घर से बाहर निकालने को कहा | मातंग आकाश में जाकर अदृश्य हो गये | जब दिथ्थ मांगलिक को इस प्रसंग के बारे में पता चला तो वह उनसे माफी मांगने के लिए उनके पीछे आई | मातंग ने उससे कहा की वह उनके भिक्षा पात्र में बचे हुए भोजन का कुछ अंश माण्डव्य कुमार तथा ब्राह्मणों को दे दें ...........................
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