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Tuesday, 2 January 2024

Video Lecture for Principal Preparation

Video Lecture for NVS/KVS PRINCIPAL/VP Preparation












1. LINK : LTC RULES (06 VIDEOS)


2. LINK:  TA RULES (13 VIDEOS)


3. LINK:  GFR RULES (10 VIDEOS)


4. LINK: CCS CCA RULES ( 17 VIDEOS)


5. LINK:  FR& SR RULES (23 VIDEOS)


6. LINK:  DFPR SERIES (9 VIDEOS)


7. LINK:  PENSION RULES (17 VIDEOS)


8. LINK:. LEAVE RULES (12 VIDEOS)


9. LINK: CCS CONDUCT RULES ( 12 VIDEOS)



10. Link: Google page 



Ref. Pariksha Pro

Wednesday, 31 May 2023

बिहार में शिक्षकों की बहाली हेतु भर्तियां

बिहार में 1,70,461 शिक्षक पदों की बहाली 




विज्ञापन संख्या -26/2023 , शिक्षा विभाग , बिहार के अंतर्गत विद्यालय अध्यापक के कुल 1,70,461 (एक लाख सत्तर हजार चार सौ इकसठ) पदों पर नियुक्ति हेतु सुयोग्य भारतीय नागरिक तथा बिहार राज्य के स्थायी निवासी उम्मीदवारों से विहित प्रपत्र ऑनलाइन आमंत्रित किये जाते है।

ऑनलाइन आवेदन पत्र भरने से सम्बंधित तिथि एवं अन्य निर्देश निम्नांकित है।

1. ऑनलाइन आवेदन प्रारम्भ करने की तिथि - 15.06.2023

2. ऑनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि - 12.07.2023

आवेदन करने के लिए लिंक

1. लिंक- Click Here 

2. Prospectus Link -


3. District Wise Vacancy-

Tuesday, 28 February 2023

अमेजॉन से ऑनलाइन सस्ती दर पर खरीदारी

अमेज़न से ऑनलाइन सस्ती दर पर खरीदारी 


यदि आप अमेजॉन से ऑनलाइन खरीदारी सस्ते दर पर करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर खरीदारी कर सकते हैं। नीचे लिखित हास्य कविता को पढ़ना ना भूले। 



होली का हुड़दंग : हंसना मना है 

मृत्यु शैया पर पड़ी मेरी पत्नी ने मुझसे कहा
 अब तक तो  मैंने तुम्हें बहुत सहा
 अब मेरा अंतिम समय आ गया है
 दिल दुनिया से उकता गया है
 सच बताओ, मुझसे कितना करते हो प्यार 
मरने के बाद मेरे , बहाओगे ना आंसू जार-जार 
मैंने एक क्षण सोचा फिर ईमानदारी से कहा 
ठीक है कि अब तक तुमने मुझे बहुत सहा 
मगर जरा ये तो सोचो यार
 पति होकर और पत्नी से प्यार 
यह सब पुराने जमाने की बातें हैं 
अब दिन मोबाइल के , कंप्यूटर की रातें हैं 
पहले शादी होती थी , फेरे  होते थे सात 
उतने में ही हो जाता था , सात जन्मों का साथ
 अब तो हर फेरा एक घेरा है 
मंडप में ही चिल्लाते हैं दोस्त 
नया माल तेरा नहीं मेरा है 
इसलिए मेरी भावी स्वर्गीय डार्लिंग 
अंतिम वक्त है तुम्हारा ,  सच से नहीं डोलूंगा 
गीता तुम्हारे लिए लाया था
 मगर मैं भी झूठ नहीं बोलूंगा 
सच यह है कि बीवी तो एक धोखा है
 पड़ोसी की पत्नी ही खुशबू का झोंका है 
बदले हैं मैंने भी जिंदगी में दस मकान 
हर बार मिली पड़ोस में जवां दिल की दुकान
 दुकान का मालिक चाहे जहां सोता था 
लेकिन उसके गले का हिसाब मेरे पास होता था 
अब गठबंधन सरकारों से भी कड़वा सच सुनो
 फिर शाम से मरने का ताना-बाना बुनो
 अभी दो महीने पहले जो पड़ोसी
 हमारे साथ हैं जुड़े 
डेढ़ माह हो चुके उसकी बीवी से मेरा टांका भिड़े
 तुम तो तुम , उसके मियां को भी नहीं पता
 कि हम दोनों कर चुके हैं कोर्ट मैरिज की खाता
 एक हफ्ते बाद है हमारी हनीमून की योजना
 मरना कैंसिल करो तो अपने लिए नया वर खोजना उम्मीद है मेरी बातों को तुम अन्यथा नहीं लोगी
 और , एक सच्ची पतिव्रता की तरह 
सुहागन ही मरोगी 
मैंने सोचा,  इतना सुनते ही 
उसका दम निकल जाएगा 
और मेरे  ग्यारहवें हनीमून का रास्ता 
साफ हो जाएगा
 लेकिन शायद उसकी चमड़ी की तरह
 ही मोटी थी आत्मा 
वह मरती ना दिखी तो मुझको याद आए परमात्मा फिर भी मैंने कहा स्वागत योग्य है 
तुम्हारी मरने की इच्छा
 फिलहाल एडवांस में पकड़ो 
यह बासी फूलों का ताजा गुच्छा
 इन्हें चाहो तो मेरी शुभकामना समझना
 मगर खुदा के लिए मरने से न मुकरना 
लेकिन पत्नी भी थी चिकनी घड़ी 
मृत्यु शैया पर वैसे ही रही पड़ी 
ना उसे आई हिचकी, न ली अंतिम सांस 
पहले मुस्कुराई,  फिर बुलाया मुझे पास 
इशारा करके अपना मुंह मेरे कान के पास लाई 
फिर  डेढ़ सौ डिसएबल की तीव्रता से चिल्लाई 
अरे शेखचिल्ली के नए संस्करण 
इतना आसान समझ रखा है मेरा मरण
 अपना कह चुके , अब मेरी भी तो सुनते जाओ
 फिर मनाओ हनीमून या गंगा में बह जाओ

 तेरे लक्षण तो मैं अच्छी तरह जान गई थी निगोड़े 
फेरों के बाद से ही तुझे पहचान गई थी
 इसलिए मैंने भी कर रखा था अपना अल्टरनेटिव इंतजाम 
उनमें एक इंजीनियर था एक बाबू और एक हज्जाम इंजीनियर ने तो तुम्हारी समाधि की डिजाइन तैयार कर रखी थी 
बाबू ने भी हनीमून की रट लगा रखी थी 
रहा हजजाम तो शुक्र मनाओ 
अगर मैंने उसे इशारा कर दिया होता तो 
 कब का तेरी गर्दन पर फिर गय गया होता 
उसकी बात सुनते ही मेरा माथा ठनका 
जितने नाम लिए उसने मैं मित्र था उनका 
वह फिर कुटिलता पूर्वक मुस्कुराए 
उसका एक उल्टा रूप देख मेरी बुद्धि चकराई
 दिल धड़का कि अब कौन सा गुल खिलने वाला है ऐसा लगा यमदूत उसे नहीं मुझे लेने वाला है
 तभी उसके मुंह से तहलका जैसा टेप हुआ चालू
 मैं समझ गया बंद मुट्ठी से सरक चुकी है बालू 
वह बोली अब अंतिम सच भी सुनो 
उसके बाद आराम से अपना सर धुनों 
यह जो तीनों बच्चे तुम्हारे खासम खास हैं
 तुम्हारी दुआ से इनके भी अलग-अलग इतिहास है तुम्हारा बड़का यानी जो तुम्हारे भाई का भतीजा है दरअसल वह मेरे पहले शौक का नतीजा है
 तुम समझते हो जिसे अपने लिए फौलाद है 
वह मेरी पहले पड़ोसी की तीसरी औलाद है 
सच मानना तब तक भी थी मैं पतिव्रता 50% 
लेकिन तुमसे जब उपेक्षा मिली हंड्रेड परसेंट 
तब मैंने अपने कदमों को इन राहों से जुड़ा
 जहां आदमी कभी होता है खच्चर कभी घोड़ा 
खैर मेरी बात सुन अपना दिल न करो छोटा 
अभी तो मेरी कथा में बाकी है तुम्हारा मित्र मोटा 
उस शरीर और बुद्धि के मोटे को मैंने खूब छकाया तभी पांचवा पड़ोसी बन बहुत जिंदगी में आया 
2 साल उससे सिर्फ इशारा करवाया 
तीसरी होली में जाकर वह मुझे भाया 
बो था मोटा और मेरी कोमल काया 
कभी मैं परेशान कभी वह पछताया
 पूछो ना हमने क्या-क्या जतन लगाया तब कहीं जाकर मझला पेट में आया अब 
रहा छुटके का सवाल तो उसका भी दूर करो मलाल तुम्हारी पड़ोस बदलने की आदत ना होती
 तो शायद कभी ना होता यह धमाल 
 मित्रों दांपत्य का यथार्थ जानकर मैंने पा लिया फोकट में ज्ञान 
दिल हुआ धरती से पूछूं तुम मेरे लिए कुछ नहीं कर सकती 
एक बार सीता के लिए फटी थी दोबारा मेरे लिए नहीं फट सकती



हंसना मना है, 
फिर भी हंसी आये तो 
कमेंट जरूर करना है।
 
होली का हुड़दंग 
बुरा ना मानो होली है। 😃😃😃
😀😀😀😀😀🌷🌷🌷🌷🌷🌷 
बच्चे के खिलौने

Tuesday, 5 July 2022

10 वीं या 12 वीं के बाद किस क्षेत्र में करियर चुनें, सभी समस्याओं का हल यहां है

10वीं और 12वीं के बाद किस क्षेत्र में करियर बनाये ??



Cbse 10वीं और 12वीं का परीक्षाफल आने वाला है। ऐसे में अभिभावकों और छात्रों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है कि किस क्षेत्र में करियर बनाया जाए। जो विषय चुनने जा रहे है, क्या उस विषय में भविष्य उज्ज्वल है या नही। 

आइये समस्या का सामाधान खोजते है।  


वर्तमान समय में जैसे ही छात्र -छात्राएं  10 वीं वर्ग उत्तीर्ण करते है | विद्यार्थी के साथ -साथ  उसके माता -पिता भी  अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए चिंतित रहते  है | आज प्रत्यके क्षेत्र में प्रतियोगिता कायम है | ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां प्रतियोगिता नहीं है | ऐसे में एक बेहतर करियर चुनना एक चुनौती बन जाती है| बच्चों के रुचि को देखते हुए  अच्छे कालेज और विश्वविद्यालय  ढूंढना मुश्किल हो जाता है | विश्वविद्यालय एवं  शिक्ष्ण संस्थाओं को पता लगने पर भी उसके अन्य प्रोसेस को जानना भी जरुरी हो जाता है |


At the present time, as students pass the 10th class. Along with the student, his parents also remain concerned about the good future of their children. Today there is competition in every field. There is no area where there is no competition. In such a situation it becomes a challenge to choose a better career. Seeing the interest of children, it becomes difficult to find good colleges and universities. Even after finding out the university and educational institutions, it is also necessary to know its other processes.

    आज इन समस्याओं  और चुनौतियों  को दूर करने का प्रयास करेंगे | आज आपके सामने एक career complete guide पेश कर रहे है जिसके माध्यम आप अपनी रुचि के विषय , शिक्षण संस्थान ,  पाठ्यक्रम एवं चयन प्रक्रिया, शिक्षण संस्थान की रैंकिंग के बारे में जान पाएंगें|  

     यह CAREER COMPLETE GUIDE सिर्फ  नए छात्रों के लिए ही नहीं है बल्कि उन लोगों के लिए भी है जो वर्तमान में कहीं कार्यरत है और आगे की शिक्षा ग्रहण करना चाहते है | इस गाइड बुक में 10 वीं पास  के बाद   HIGHER EDUCATION  के लिए अपनी रुचि के अनुसार पाठ्यक्रम चुना सकते है और अपना सुनहरा करियर बना सकते है |

This CAREER COMPLETE GUIDE is not just for new students but also for those who are currently working somewhere and want to pursue further education. After the 10th pass in this guide book, you can choose the course for HIGHER EDUCATION according to your interest and make your golden career.

    निचे दिए गए लिंक  पर जाकर करियर बुक डाउनलोड कर सकते है |



CLICK HERE : TO DOWNLOAD A COMPLETE CAREER GUIDE PDF


यदि यह Article-  Complete Career Guide  पसंद आये तो Comment  जरुर करें |

Monday, 4 July 2022

सीबीएसई 10th और 12th परिणाम : 10th का रिजल्ट आज जारी हो सकता है,

CBSE 10th and 12th Result 2022 



सीबीएसई कक्षा 10 के परिणाम की तारीख और समय पर आधिकारिक सूचना अभी तक जारी नहीं की गई है? लेकिन सीबीएसई रिजल्ट 2022 से जुड़े हर अपडेट व फैक्ट के लिए इस पेज पर बने रहें, क्योंकि यहां लगातार रिजल्ट को ट्रैक किया जा रहा है। पिछले रुझानों के आधार पर हम बता रहे हैं, कि यदि आज सीबीएसई टर्म 2 रिजल्ट जारी किया जाता है, तो बोर्ड सुबह 11 बजे के आसपास परिणाम जारी कर सकता है।

CBSE 10th Result 2022 Direct Link|


CBSE 12th Result 2022 Direct Link

सीबीएसई के छात्र इन परिणामों को आधिकारिक वेबसाइट cbseresults.nic.in, cbse.gov.in और results.gov.in पर ऑनलाइन देख सकेंगे। इनके अलावा, छात्र CBSE Class 10th Result 2022 को डिजिलॉकर वेबसाइट, ऐप या एसएमएस के माध्यम से या फिर उमंग ऐप से भी देख सकते हैं।

CBSE 10th Result 2022 Marksheet Download Link


* वेबसाइट - parikshasangam.cbse.gov.in पर जाएं।
 
* 'स्कूल' लिंक पर क्लिक करें।
 
* नया पेज खुलने पर 'परीक्षा गतिविधि' पर क्लिक करें।
 
* उसके बाद थ्योरी मार्क्स अपलोड पर क्लिक करें।
 
* रिजल्ट जारी होने के बाद आपके मार्क्स नजर आएंगे।









Saturday, 5 March 2022

महात्मा गांधी की जीवनी और राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान

महात्मा गांधी की जीवनी और राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान

नाम : मोहनदास करमचंद गांधी।

जन्म : 2 अक्तुंबर 1869 पोरबंदर। (गुजरात)

पिता : करमचंद गांधी

माता : पूतलीबाई।

पत्नी : कस्तूरबा गांधी

        मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले। विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे। महात्मा गांधी का जन्म पोरबंदर इस शहर गुजरात राज्य में हुआ था। गांधीजीने ने शुरुआत में काठियावाड़ में शिक्षा ली बाद में लंदन में विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की।


        इसके बाद वह भारत में आकर अपनी वकालत की अभ्यास करने लगे। लेकिन सफल नहीं हुए। उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला। वहा महात्मा गांधीजी लगभग 20 साल तक रहे। वहा भारतीयों के मुलभुत अधिकारों के लिए लड़ते हुए कई बार जेल भी गए। अफ्रीका में उस समय बहुत ज्यादा नस्लवाद हो रहा था। उसके बारे में एक किस्सा भी है। जब गांधीजी अग्रेजों के स्पेशल कंपार्टमेंट में चढ़े उन्हें गांधीजी को बहुत बेईजत कर के ढकेल दिया।


गांधीजी के पिता करमचंद गांधी राजकोट के दीवान थे। आपकी माता का नाम पुतलीबाई था। वह धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। आपने स्वतंत्रता के लिए सदैव सत्य और अहिंसा का मार्ग चुना और आंदोलन किए। गांधीजी ने वकालत की शिक्षा इंग्लैंड में ली थी। वहां से लौटने के बाद आपने बंबई में वकालत शुरू की। महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे।


आरंभिक जीवन :


        मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म  2 अक्तुबर 1869 को गुजरात में स्थित काठियावाड़ के पोरबंदर नामक गाँव में हुआ था | उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था तथा आप में से बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि ब्रिटिशों के समय में वे काठियावाड़ की एक छोटी से रियासत के दीवान थे | उनकी माता पुतलीबाई, करमचंद जी की चौथी पत्नी थी तथा वह धार्मिक स्वभाव की थीं | अपनी माता के साथ रहते हुए उनमें दया, प्रेम, तथा ईश्वर के प्रति निस्वार्थ श्रद्धा के भाव बचपन में ही जागृत हो चुके थे जिनकी छवि महात्मा गाँधी में अंत तक दिखती रही | बालपन में ही उनका विवाह 14 वर्ष की कस्तूरबा माखनजी से हो गया | क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी अपनी पत्नी से आयु में 1 वर्ष छोटे थे |


        जब वे 19 वर्ष के हुए तो वह उच्च शिक्षा की प्राप्ति हेतु लंदन चले गए जहां से उन्होंने कानून में स्नातक प्राप्त की | विदेश में गांधीजी ने कुछ अंग्रेजी रीति रिवाज़ों का अनुसरण तो किया पर वहाँ के मांसाहारी खाने को नहीं अपनाया | अपनी माता की बात मानकर तथा बौद्धिकता के अनुसार उन्होंने आजीवन शाकाहारी रहने का निर्णय लिया तथा वहीँ स्थित शाकाहारी समाज की सदस्यता भी ली | कुछ समय पश्चात वे भारत लौटे तथा मुंबई में वकालत का कार्य आरम्भ किया जिसमें वह पूर्णत: सफल नहीं हो सके | इसके पश्चात उन्होंने राजकोट को अपना कार्यस्थल चुना जहां वे जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए वकालत की अर्जियां लिखा करते थे |


        गांधी जी ने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किये थे। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। इस घटना से गांधी जी के जीवन में एक गहरा मोड आया और गांधी जी वर्ष 1915 में भारत वापस आये इस समय तक गांधी जी राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। भारत आकर गांधी जी ने बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों ने गाँधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। इसके बाद गांधी ने असहयोग आन्दोलन की शुरूआत की असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी।


        जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ गई। लेकिन फरवरी 1922 में हुऐ चौरी-चौरा कांड के कारण गांधी जी ने असहाेेयग आन्दोलन वापस ले लिया था। इसके बाद गांधी जी पर राजद्रोह का मुकदृमा चलाया गया था और उन्हें छह वर्ष की सजा सुनाई गयी थी ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फरवरी 1924 में सरकार ने रिहा कर दिया। गांधी जी ने मार्च 1930 में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नया सत्याग्रह चलाया जिसके तहत 12 मार्च से 6 अप्रेल तक 248 मील का सफर अहमदाबाद से दांडी तक गांधी जी ने पैदल चकलकर तय किया ताकि स्वयं नमक उत्पन्न किया जा सके। भारत छोडो आंदोलन केे तहत गांधी जी को मुंबई में 9 अगस्त1942 को गिरफ्तार कर लिया गया गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल में दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया।


राजनीतिक  जीवन :


        गांधी की पहली बड़ी उपलब्धि 1917 में चम्पारण  और खेड़ा सत्याग्रह (1918), अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918)  आंदोलन में मिली| गांधी जी ने रालेट एक्ट (मार्च 1919)  का विरोध किये | जामीन्दारों  (अधिकांश अंग्रेज) की ताकत से दमन हुए भारतीयों को नाममात्र भरपाई भत्ता दिया गया जिससे वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। गांधी जी 1922 के बाद सामाजिक सुधार कार्यक्रम चलाए  जहां गांवों को बुरी तरह गंदा और अस्वास्थ्यकर  और शराब, अस्पृश्यता और पर्दा से बांध दिया गया था। अब एक विनाशकारी अकाल के कारण शाही कोष की भरपाई के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया।


        यह स्थिति निराशजनक थी। खेड़ा, गुजरात में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम बनाया जहाँ उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया। उन्होंने गांवों का एक विस्तृत अध्ययन और सर्वेक्षण किया जिसमें प्राणियों पर हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा गया और इसमें लोगों की अनुत्पादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिल किया गया था। ग्रामीणों में विश्वास पैदा करते हुए उन्होंने अपना कार्य गांवों की सफाई करने से आरंभ किया जिसके अंतर्गत स्कूल और अस्पताल बनाए गए और उपरोक्त वर्णित बहुत सी सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने के लिए ग्रामीण नेतृत्व प्रेरित किया।


        गांधी जी नेहरू प्रेजीडेन्सी और कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के साथ ही 1936 में भारत लौट आए। हालांकि गांधी की पूर्ण इच्छा थी कि वे आजादी प्राप्त करने पर अपना संपूर्ण ध्यान केंद्रित करें न कि भारत के भविष्य के बारे में अटकलों पर। उसने कांग्रेस को समाजवाद को अपने उद्देश्य के रूप में अपनाने से नहीं रोका। 1938 में राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए सुभाष बोस के साथ गांधी जी के मतभेद थे। बोस के साथ मतभेदों में गांधी के मुख्य बिंदु बोस की लोकतंत्र में प्रतिबद्धता की कमी तथा अहिंसा में विश्वास की कमी थी। बोस ने गांधी जी की आलोचना के बावजूद भी दूसरी बार जीत हासिल की किंतु कांग्रेस को उस समय छोड़ दिया जब सभी भारतीय नेताओं ने गांधी जी द्वारा लागू किए गए सभी सिद्धातों का परित्याग कर दिया गया।


        1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक कार्यक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे निचले स्तर से’ राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया। उन्होंने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।


        असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ़्तारी के बाद गांधी जी फरवरी 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे।


        ‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई। इस संघर्ष में हजारों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार भी कर लिए गए। गांधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा। उनका मानना था की देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ " करो या मरो (Do or Die)"  के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा।


विचार :


• अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर मिटने वाले लड़ाके मिलेंगे तो वे करोड़ो की लाज रखेंगे और उनमे प्राण फूकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी यह मेरे लिए मधुर है।

• विश्व इतिहास में आजादी के लिए लोकतान्त्रिक संघर्ष हमसे ज्यादा वास्तविक किसी का नहीं रहा है। मैने जिस लोकतंत्र की कल्पना की है, उसकी स्थापना अहिंसा से होगी। उसमे सभी को समान स्वतंत्रता मिलेगी। हर व्यक्ति खुद का मालिक होगा।

• लम्बे-लम्बे भाषणों से कही अधिक मूल्यवान है इंच भर कदम बढ़ाना।

• भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छुपाने में उससे भी बड़ा पाप है।

• जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।

• अपनी बुद्धिमता को लेकर बेहद निश्चित होना बुद्धिमानी नहीं है। यह याद रखना चाहिए की ताकतवर भी कमजोर हो सकता है और बुद्धिमान से भी बुद्धिमान गलती कर सकता है।

• काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है।

• कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं।

• अपने ज्ञान के प्रति ज़रुरत से अधिक यकीन करना मूर्खता है। यह याद दिलाना ठीक होगा कि सबसे मजबूत कमजोर हो सकता है और सबसे बुद्धिमान गलती कर सकता है।

• किसी भी देश की संस्कृति उसके लोगों के ह्रदय और आत्मा में बसती है।

• समाज में से धर्म को निकाल फेंकने का प्रयत्न बांझ के पुत्र करने जितना ही निष्फल है और अगर कहीं सफल हो जाय तो समाज का उसमे नाश होता है।

• आँख के बदले में आँख, पूरे विश्व को अँधा बना देगी।

• जो समय की बचत करते हैं, वे धन की बचत करते हैं और बचाया हुआ धन, कमाएं हुए धन के बराबर है।

• आचरण रहित विचार, कितने भी अच्छे क्यों न हो, उन्हें खोटे-मोती की तरह समझना चाहिए।

• हमें सदा यह ध्यान रखना चाहिए कि शक्तिशाली से शक्तिशाली मनुष्य भी एक दिन कमजोर होता है।

• क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है।

• क्षणभर भी काम के बिना रहना चोरी समझो। मैं दूसरा कोई रास्ता भीतरी या बाहरी आनन्द का नहीं जानता।

• प्रार्थना, नम्रता की पुकार है, आत्म शुद्धि का, और आत्म-अवलोकन का आवाहन है।

• अधभूखे राष्ट्र के पास न तो कोई धर्म हो सकता है, न कोई कला हो सकती है और न ही कोई संगठन हो सकता है।

• ख़ुशी तब मिलेगी जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, ये तीनो ही सामंजस्य में हों।


महात्मा गांधी का राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान 

सत्याग्रह का विचार :
गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से  जनवरी 1915 ई. में भारत लौटे |  भारत में सत्याग्रह का विचार महात्मा गांधी ने  प्रतिपादित किया था | इस अस्त्र का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में कर चुके थे |  
सत्याग्रह : 
* सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर देना |
* सत्याग्रह शुद्व आत्मबल है | सत्य ही आत्मा का आधार होता है| आत्मा ज्ञान से हमेशा लैस होती है | सत्याग्रह अहिंसक प्रतिकार है | अहिंसा सर्वोच्य धर्म है |
* प्रतिशोध की भावना का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे अपने संघर्ष में सफल हो सकता है |
* गांधी जी का विचार था की अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है |
चम्पारण सत्याग्रह :



19वीं सदी जे प्रारम्भ में गोरे बगान मालिकों ने चंपारण जिले के किसानों से एक अनुबंध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के 3/20वें भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य था| इसे "तिनकठिया पद्वति " कहा जाता था| किसान इस अनुबंध से मुक्त होना चाहते थे |
* 1916 ई. में राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर गांधीजी चम्पारण पहुंचे |
* चंपारण पहुंचकर गांधीजी ने समस्याओं को सूना व् सही पाया|
* गांधीजी के प्रयासों से सरकार ने चंपारण के किसानों की जांच हेतु एक आयोग नियुक्त हुआ |
* आयोग के सिफारिस पर  तिनकठिया पद्वति समाप्त कर दिया और अंग्रेजों को अवैध वसूली का 25% वापस करना पडा |
    गांधी जी का भारत में पहला सत्याग्रह आन्दोलन था जो सफल रहा |

खेड़ा सत्याग्रह :

* खेड़ा (गुजरात) में वर्षा न होने से किसानों की फसल बर्बाद हो गयी 
* प्लेग और हैजा ने जनता को बेकार कर दिया 
* खेड़ा की जनता अंगरेजी हुकूमत से लगान में ढील देने की मांग कर रही थी 
* 1917 ई. में महात्मा गांधी , सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ गाँव का दौरा किया और खेड़ा के किसानों की मांग का समर्थन किया 
* गांधी जी के सत्याग्रह से अंग्रेजों ने लगान माफ कर दिया 

अहमदाबाद कपड़ा मिल आन्दोलन : 
* मार्च 1918 में अहमदाबाद कपड़ा मिल मालिक और मजदूरों के बीच "प्लेग बोनस " को लेकर विवाद हो गया |
* मिल मजदूर 35% बोनस की मांग कर रहे थे परन्तु मिल मालिक बोनस देने को तैयार नहीं थे |
* गांधीजी ने मिल मालिकों से बोनस देने का  आग्रह किया और अनशन पर बैठ गए |
* अंतत: मिल मालिकों ने 35% बोनस देने को तैयार हो गए |




रालेट एक्ट (1919):
* 1917 की रूसी क्रांति और भारतीय क्रांतिकारियों की राजनीतिक गतिविधियों से आशंकित अंगरेजी सरकार ने न्यायाधीश सिडनी रालेट की अध्यक्षता में एक राजद्रोह समिति (सेडीशन समिति) का गठन किया |
सेडीशन समिति के अनुशंसा पर 2 मार्च 1919 को रालेट कानून (क्रान्तिकारी एवं अराजकता अधिनियम ) बना |
* इसके अनुसार, संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था, और उसपर बिना मुकदमा चलाए दो वर्षों तक जेल में बंद किया जा सकता था |

रालेट एक्ट का विरोध :
* भारतीयों ने इस क़ानून को "काला क़ानून" कहा |
* इस क़ानून को "न वकील, न अपील और न दलील" का क़ानून कहा गया |
* गांधीजी ने इस क़ानून के विरोध में 6अप्रैल से सत्याग्रह करने का आह्वान किया |
* विभिन्न  शहरों में रैली निकाली गयी, रेलवे वर्कशाप के मजदूरों ने हड़ताल की, दूकाने बंद रखी गयी,  संचार सेवाएं बाधित की गयी |
* अंगरेजी सरकार ने भी आन्दोलन को दमन करने हेतु अमृतसर के  स्थानीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, गांधी जी को दिल्ली प्रवेश पर पाबंदी लगा दी 
* अमृतसर में 10 अप्रैल को  पुलिस ने शातिपूर्ण जुलूस पर गोलियां चलायी और  शहर में मार्शल लाँ लागू कर दिया | 

जालियावाला बाग़ हत्याकांड (1919):


कारण :
* रालेट एक्ट के विरूद्व लोगों में असंतोष 
* गांधीजी तथा कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबन्ध 
* पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डा.सतपाल और डा.सैफुदीन किचलू को गिरफ्तार कर जिलाबदर कर दिया गया |
* अमृतसर में 10अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण जुलूस पर पुलिस द्वारा गोलियां बरसाई गयी , परिणामत: स्थिति बिगड़ गयी और मार्शल लाँ लगा दिया गया |

घटना :
*13अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन अमृतसर  में लगभग शाम 4 बजे जलियावाला बागा में एक सभा का आयोजन किया गया और उस सभा में  लगभग 20000 व्यक्ति एकत्रीत हुए | 
* उस सभा में  प्रवेश के लिए एकमात्र संकीर्ण रास्ता था, चारो तरफ, मकान बने हुए थे और बीच में एक कुआं व् कुछ पेड़ थे | 
* जिस समय सभा चल रही थी, उसी वक्त संध्याकाल जनरल डायर सैनिकों और बख्तरबंद गाडी के साथ सभास्थल पर पहुंचा और बिना चेतावनी के उसने गोलियां चलवा दी |
* इस घटना में लगभग (सरकारी आंकड़ा)  379 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए |

घटना का प्रभाव :
* इस घटना की जाँच के लिए "हंटर कमीशन" का गठन किया गया जिसमें 5 अंग्रेज और 3 भारतीय सदस्य थे |
* रवीन्द्रनाथ टैगोर ने "सर"   और गांधीजी ने  "केशर-ए-हिन्द " की उपाधि लौटा दी |
* शंकरन नायर ने वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् से इस्तीफा दे दिया | 

खिलाफत आन्दोलन(1919-1924:
* प्रथम विश्व युद्व के बाद ब्रिटेन और तुर्की के बीच "सेवर्स की संधि" हुई जिसमें तुर्की का सुलतान (जो मुसलमानों का धर्मगुरु भी था ) खलीफा का 
पद छीन लिया | 
* भारतीय मुसलमानों में खलीफा का पद छिनने से नाराजगी थी |
खलीफा का पद बरक़रार रखने के लिए अली बंधुओं (शौकत अली और महम्मद अली)  के नेतृत्व में मार्च  1919 में बंबई में खिलाफत समिति का गठन किया गया |
* गांधीजी ने इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के रूप में देखा और खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया 
* सितम्बर 1920 में क्रांग्रेस के कलकाता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि खिलाफत आन्दोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन शुरू किया जाना चाहिए |

असहयोग आन्दोलन (1920-21) :


महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक "हिन्द स्वराज "(1909) में कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था| यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी 
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम :
* सरकार द्वारा दी गई  पदवियां लौटा देनी चाहिए |
* सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र और बहिष्कार करना 
* सेना,पुलिस और अदालतों का बहिष्कार 
* स्कूलों और कालेजों का बहिष्कार 
* विधायी परिषदों का बहिष्कार 
* विदेशी वस्तुओं का त्याग 
* शराब की पिकेटिंग 
दिसम्बर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौता हुआ और असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मोहर लग गयी| असहयोग-खिलाफत  आन्दोलन जनवरी 1921में शुरू हुआ| इस आन्दोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया लेकिन हरेक की अपनी-अपनी आकांक्षाएं थी| सभी के लिए स्वराज के मायने अलग-अलग थे |

शहरों में आन्दोलन:
* आन्दोलन की शुरुआत  शहरी मध्यम वर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई |
* हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज  छोड़ दिए |
* हेडमास्टरों और शिक्षकों ने इस्तीफे सौंप दिए |
* वकीलों ने मुकदमें लड़ना बंद कर दिया |
* मद्रास के अलावा ज्यादातर प्रान्तों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया |
* विदेशी सामानों का बहिष्कार किया गया
* शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई |
* विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी |
* व्यापारियों ने विदेशी सामानों का व्यापार करने और निवेश करने से इनकार कर दिया |
* लोग भारतीय कपडे पहनने लगे , भारतीय कपड़ा और हथकरघों का उत्पादन भी बढ़ने लगा|

आन्दोलन धीमा पड़ने के कारण:
* खादी का कपड़ा मिलों में बनने वाले कपड़ों के मुकाबले मंहगी होती थी और गरीब उसे खरीद नहीं सकते थे |
* आन्दोलन की कामयाबी के लिए वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना जरुरी था , जो उस समय नहीं थे |
* देशी शिक्षण संस्थान पर्याप्त नहीं होने के कारण  विद्यार्थी और शिक्षक सरकारी स्कूलों में लौटने लगे |
* वकील दोबारा सरकारी अदालतों में आने लगे |
नोट:
जस्टिस पार्टी : मद्रास में गैर-ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई जस्टिस पार्टी का मानना था कि काउंसिल में प्रवेश के जरिये उन्हें वे अधिकार मिल सकते है जो सामान्य रूप से केवल ब्राह्माणों को मिल पाते है इसलिए इस पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार नहीं किया |
पिकेटिंग : प्रदर्शन या विरोध का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोग किसी दूकान, फैक्ट्री या दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते है |

ग्रामीण इलाकों में असहयोग आन्दोलन :
असहयोग आन्दोलन देश के ग्रामीण इलाकों में भी फैल गए | इस आन्दोलन में किसानों व आदिवासियों ने भी भाग लिया |
असहयोग आन्दोलन में  किसानों की भूमिका  -
* अवध में सन्यासी बाबा रामचन्द्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे | उनका आन्दोलन तालुक्क्दारों और जमींदारों के खिलाफ था जो किसानों से भारी- भरकम लगान और तरह-तरह के कर वसूल रहे थे |
* किसानों को बेगार करनी पड़ती थी| पट्टेदार के तौर पर उनके पट्टे निश्चित नहीं थे | उन्हें बार-बार पट्टे की समीन से हटा दिया जाता था ताकि जमीन पर उनका अधिकार स्थापित न हो सके |
* किसानों की मांग थी कि लगान कम किया जाय, बेगार खत्म हो और दमनकारी जमींदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाय|
* 1920 में जवाहर लाल नेहरु , बाबा रामचंद्र और कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में "अवध किसान सभा" का गठन कर लिया गया | असहयोग आन्दोलन आरम्भ होने पर तालुक्क्दारों , जमींदारों के मकानों पर हमला होने लगे,बाजारों में लूटपाट होने लगी, आनाज के गोदामों पर कब्जा कर लिया गया , लगान देना बंद कर दिया गया |

असहयोग आन्दोलन मे आदिवासियों की भूमिका  :
*आदिवासी किसानों ने गांधीजी की संदेश का और ही मतलब निकाला |
* आंध्रप्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में 1920 के दशक की शुरुआत में उग्र गुरिल्ला आन्दोलन फैल गया |
* अंगरेजी सरकार का आदिवासियों के जीवन में हस्तक्षेप से उनमें असंतोष पहले से भरा था | गांधीजी के आह्वान पर लोगों ने बगावत कर दिया| उनका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया |


* अल्लूरी ने खुद में विशेष शक्तियों का दावा किया| लोगों को खादी पहनने और शराब छोड़ने के लिए प्रेरित किया|
* गूडेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले किये, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने की कोशिश  की |
* अल्लूरी को 1924 में फांसी दे दी गई |
नोट: 
* बेगार :बिना किसी पारिश्रमिक के काम करवाना 
गिरमिटिया मजदूर : औपनिवेशिक शासन के दौरान बहुत सारे लोगों को काम करने के लिए फ़िज, गुयाना, वेस्टईंडीज आदि स्थानों पर ले जाया गया था जिन्हें बाद में गिरमिटिया कहा जाने लगा| उन्हें एक एग्रीमेंट(अनुबंध) के तहत ले जाया  जाता था| बाद में इसी एग्रीमेंट को ये मजदूर गिरमिट खाने लगे जिससे आगे चलकर इन मजदूरों को गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा| अंगरेजी में इन्हें Indentured Labour कहा जाता है | 

बागानों में स्वराज 
* 1859 के Inland Emigration Act के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत के बाहर जाने की छुट नहीं थी |
* जब बगान मजदूरों ने असहयोग आन्दोलन के बारे में सुना तो उन्होंने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे| उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए |
* रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रस्ते में ही फंस रह गए | उन्हें पुलिस ने पकड लिया और उनकी बुरी तह पिटाई हुई |

असहयोग आन्दोलन का अंत :
5 फरवरी 1922 को गोरखपुर स्थित चौरी-चौरा में बाजार से गुजर रहा एक शांतिपूर्ण जुलूस पुलिस के साथ हिंसक टकराव में बदल गया| जुलूस ने आक्रोशित होकर थाने में आग लगा दी जिसमें 22 पुलिसकर्मी ज़िंदा जल गए | जब यह घटना गांधी जी को पता चला तो उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आन्दोलन बंद करने का ऐलान कर दिया |

असहयोग आन्दोलन का महत्व और प्रभाव :
गांधीजी ने देश में पहली बार एक जन-आन्दोलन खड़ा किया और राष्ट्रवाद का उत्साह का संचार किया |
* इस आन्दोलन का प्रभाव उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक रहा |
* स्वदेशी आन्दोलन ने जनता में आत्म-विश्वास की भावना का विकास किया 
* ब्रिटिश सरकार का भय अब जनता के मन से निकल चुका था |
* पहली बार महिलाओं ने भी आन्दोलन में भाग लिया |
* राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना हुई |



Mahatma Gandhi & National Movement


1922 से 1930 तक की राजनैतिक गतिविधियाँ 
स्वराज दल :
महात्मा गांधी द्वारा अचानक असहयोग आन्दोलन स्थगित कर देने के कारण एक राजनीतिक शून्यता आ गयी | निराशा के ऐसे वातावरण में मोती लाल नेहरू और चितरंजन दास ने स्वराज दल की स्थापना की |
* संस्थापक - मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास 
* स्थापना वर्ष - 1जनवरी 1923
* स्थान : इलाहाबाद 
* पार्टी अध्यक्ष : चितरंजन दास 
* उद्देश्य : स्वराज प्राप्त करना, प्रांतीय परिषदों के चुनाव में भाग लेकर ब्रिटिश नीतियों का विरोध करना, सुधारों की वकालत करना, अंगरेजी सरकार के कामों में अड़ंगा डालना |
स्वराज दल के कार्य :
* मान्तेग्यु-चेम्सफोर्ड अधिनियम(1919) के सुधारों की पुन: व्याख्या करना 
* नवीन संविधान बनाने के लिए भारतीय प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुलाना |
* राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग की गई 
* सरकारी समारोह  व उत्सवों का बहिष्कार करना 

क्रांतिकारी आन्दोलन (नौजवान भारत सभा )
असहयोग आन्दोलन के अचानक स्थगित होने से और स्वराज दल के द्वारा भी कोई हल नही निकलने पर युवा वर्ग ने हिंसात्मक तरीकों से आजादी प्राप्त करने की कोशिश की | इन युवा वर्ग ने सशस्त्र तरीकों को अपनाया |
* 9अगस्त 1925 को कुछ युवकों ने लखनऊ के पास काकोरी में 8 डाउन ट्रेन को रोक लिया और रेल का सरकारी खजाना लूट लिया | इस घटना को "काकोरी काण्ड " कहा जाता है | क्रुद्व अंगरेजी सरकार ने  अशफाक उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी दे दी | चंद्रशेखर आजाद फरार हो गए |
* 30अकूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज किया और बाद में उनकी मृत्यु हो गयी | लाठी बरसाने वाले पुलिस अधिकारी सांडर्स को 17दिसंबर 1928 को भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद ने ह्त्या कर दी |
* भगत सिंह ने 1926 में "नौजवान भारत सभा" की स्थापना की | 
* भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने " पब्लिक सेफ्टी बिल " पास होने के विरोध में 8अप्रैल 1929को केन्द्रीय लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंका | भगत सिंह, राजगुरु और बटुकेश्वर दत को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गयी |भगत सिंह एवं उनके अन्य साथियों की शहादत ने युवाओं में नवीन जोश भर दिया |

साइमन कमीशन :
* 1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम में यह व्यवस्था थी कि 10 वर्ष के बाद एक आयोग का गठन किया जाएगा जो यह देखेगा कि इस अधिनियम में क्या सुधार किया जा सकता है |
* ब्रिटिश सरकार ने 2 वर्ष पूर्व 1927में ही सर जान  साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया जिसमें सभी सदस्य अंग्रेज थे | इसे "गोरे कमीशन " भी कहा जाता है |
* 3 फरवरी 1928 को कमीशन बंबई पहुँचा | साइमन कमीशन जहाँ भी गया उसका विरोध किया गया | "साइमन गो बैक " का नारा दिया गया |

साइमन कमीशन की रिपोर्ट :
* द्वैधशासन  समाप्त कर दिया जाय 
* प्रांतीय स्वायतत्ता की स्थापना की जाय 
* प्रांतीय विधान परिषदों का विस्तार किया जाय 
* बर्मा को भारत से तथा सिंध को बंबई से पृथक कर दिया जाए 
* मताधिकार का विस्तार किया जाय परन्तु साम्प्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था समाप्त नही किया जाय 
साइमन कमीशन के इस सुझाव को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विरोध किया| इसे रद्दी का कागज़ बताया |

नेहरू रिपोर्ट (1928)
साइमन कमीशन  के विरोध करने से क्षुब्ध भारत मंत्री लार्ड बरकेन हेड ने  भारतीयों को चुनौती दी कि उनमें आपसी मतभेद इतने है कि एक सर्वमान्य संविधान का निर्माण नहीं कर सकते | भारतीय राजनीतिज्ञों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और मोतीलाल नेहरु के नेतृत्व में रिपोर्ट तैयार किया गया |

प्रमुख सिफारिशों :
* भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान  किया जाय |
* प्रान्तों में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए 
* केन्द्रीय सरकार पूर्णरूप से उत्तरदायी हो, गर्वनर जनरल वैधानिक प्रमुख हो और संसदीय प्रणाली हो |
* संविधान की व्याख्या के लिए एक उच्चतम न्यायालय स्थापित हो |
ब्रिटिश सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया |

डोमिनियन स्टेट्स :
* कांग्रेस और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने साइमन कमीशन का विरोध कर रहा था |
* इस विरोध को शांत करने के लिए वायसराय लार्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत के लिए "डोमिनियन स्टेट्स" का गोलमाल सा ऐलान किया और भावी संविधान के बारे में चर्चा के करने के लिए गोलमेज सम्मलेन का आयोजन करने का आश्वासन दिया |
* "डोमिनियन स्टेट्स " का तात्पर्य था की भारतीयों को  आंतरिक शासन का उत्तरदायित्व दिया जाएगा | अर्थात औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान किया जाएगा|
* कांग्रेस ने इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया| 

पूर्ण स्वराज्य की मांग 
* दिसंबर 1929 में जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में रावी नदी के तट पर कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में "पूर्ण स्वराज " की मांग को स्वीकार किया गया | 


* यह भी तय किया गया कि 26 जनवरी 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा और उस दिन पूर्ण स्वराज के लिए संघर्ष की शपथ लेंगे |

नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आन्दोलन :
11 सूत्री मांग :
गांधीजी नमक यात्रा आरम्भ करने से पहले 31 जनवरी 1930 को वायसराय लार्ड इरविन को एक खत लिखा जिसमें 11 मांगों का उल्लेख किया था तथा समझौता करने का प्रयास किया |
*  पूर्णरूपेन मदिरा प्रतिबंध हो 
* भूमि कर आधा किया जाय |
* विनिमय दर एक शिलिंग चार पेंस किया जाय 
* नमक कर समाप्त हो 
* सेना पर व्यय में  50% की कमी की जाय 
* बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियों का वेतन आधा किया जाय 
* विदेशी वस्त्रों के आयात पर रोक हो 
* भारतीय समुद्री तट केवल भारतीय जहाज़ों के लिए सुरक्षित रहे 
* राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाय 
* गुप्तचर पुलिस हटाया जाय या जनता का नियंत्रण हो 
* भारतीयों को भी आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने की अनुमति हो 
लार्ड इरविन ने इन मांगों को अस्वीकार कर दिया |

नमक यात्रा :
* गांधी जी ने आह्वान किया कि लोग अंग्रेजों की शांतिपूर्वक अवज्ञा करे| 
* 6 अप्रैल को समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया| यह क़ानून का उल्लंघन था और यहीं से सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू होता है|


सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम :
1. हर स्थान पर नमक क़ानून तोड़ना |
2. शराब की पिकेटिंग करना |
3. सरकारी संस्थाओं का त्याग करना 
4. सरकार को कर नही देना 
5. विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाये|

घटनाएं :
* लोगों को औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करने का आह्वान किया जाने लगा|
* देश के विभिन्न भागों में लोगों ने नमक क़ानून तोड़ा 
* सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किए|
* विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जाने लगा|
* शराब की दुकानों की पिकेटिंग होने लगी|
* गावों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे|
* जंगलों में रहनेवाले वन कानूनों का उल्लंघन करने लगे , वे लकड़ी बीनने और मवेशियों को चराने के लिए आरक्षित वनों में घुसने लगे|

    ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने लगी| 4मई 1930 को गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया| इसके विरोध में श्लापुर के औद्योगिक मजदूरों ने पुलिस चौकियों, नगरपालिका भवनों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए|  सरकार ने दमन नीति अपनाई| शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर हमले किए गए, औरतों व बच्चों को मारा-पिटा गया और लगभग एक लाख लोग गिरफ्तार किए गए|
     

Mahatma gandhi and National Movement
* click here for Mahatma Gandhi & National Movement part4

गोलमेज सम्मेलन 
:सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ही कांग्रेस को नजरअंदाज करते हुए गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लन्दन में आरम्भ किया गया |

प्रथम गोलमेज सम्मलेन प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन 12नबम्बर 1930 को हुआ| इस सम्मेलन की अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मेक्डोनाल्ड ने की| इसमें 16ब्रिटिश संसद सदस्य और ब्रिटिश भारत के 57 प्रतिनिधि जिन्हें वायसराय ने नियुक्त किया था तथा देशी रियासतों के 16 सदस्य सम्मिलित थे| कांग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया| परिणामत: इस सम्मेलन का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला और 19जनवरी 1931 को बिना किसी नतीजे के समाप्त कर दिया गया|

गांधी-इरविन समझौता: वायसराय ने देश में सार्थक माहौल बनाने के लिए कांग्रेस पर से प्रतिबंध हटा दिया, गांधीजी तथा अन्य नेताओं को छोड़ दिया| अंतत: 5मार्च 1931को गान्धीजी और इरविन में समझौता हो गया| प्रमुख बिंदु :- गांधीजी के निम्न मांगों को स्वीकार किया गया|

1. हिंसा के आरोपियों को छोड़कर राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाए

2. भारतीयों को समुद्र से नमक बनाने का अधिकार दिया गया |

3.आन्दोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को बहाल किया जाए |

4. भारतीय अब शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना देने के लिए स्वतंत्र थे|

गांधीजी द्वारा मानी गयी बातें : सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया और कांग्रेस दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया कर लिया |

दूसरा गोलमेज सम्मलेन : दूसरा गोलमेज सम्मलेन 7सितम्बर 1931 से 1दिसंबर 1931 तक चला| कांग्रेस की और से एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी ने भाग लिया| यह सम्मेलन भी असफल रहा|

महात्मा गांधी के ब्रिटेन से लौटने के उपरान्त सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुन: आरम्भ किया किया| साल भर तक यह आन्दोलन चलता रहा लेकिन 1934 तक आते-आते इसकी गति मंद पड़ने लगी|


तीसरा गोलमेज सम्मलेन: यह सम्मलेन 17 नवम्बर 1932 से 24 दिसंबर 1932 तक चला| कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया और यह भी असफल रहा|

लोगों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को कैसे लिया?

किसान वर्ग : गाँव के संपन्न किसानों प्रमुख रूप से भाग लिया| व्यावसायिक फसलों की खेती करने के कारण व्यापार में मंदी और गिरती कीमतों से वे बहुत परेशान थे| जब उनकी नकद आय खत्म होने लगी तो उनके लिए सरकारी लगान चुकाना नामुमकिन हो गया| उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई था| जब 1931 लगानों के घटे बिना आन्दोलन वापस ले लिया गया तो निराशा हुई | जब 1932आन्दोलन दुबारा शुरू हुआ तो बहुतों ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया |

गरीब किसान जमींदारों से पट्टे पर जमीन लेकर खेती कर रहे थे| महामंदी लम्बी खींची और नकद आमदनी गिराने लगी तो छोटे पट्टेदारों के लिए जमीन का किराया चुकाना भी मुश्किल हो गया| उन्होंने रेडिकल आन्दोलनों में हिस्सा लिया जिनका नेतृत्व अकसर समाजवादियों और कम्युनिष्टों के हाथों में होता था| अमीर किसानों और जमींदारों की नाराजगी के भय से कांग्रेस "भाड़ा विरोधी" आंदोलनों को समर्थन देने में हिचकिचाती थी | इसी कारण गरीब किसानों और कांग्रेस के बीच सम्बन्ध अनिश्चित बने रहे |


व्यवसायी वर्ग की स्थिति : पहले विश्वयुद्व के दौरान भारतीय व्यापारियों और उद्योगपतियों ने भारी मुनाफ़ा कमाया| अपने कारोबार को फैलाने के लिए उन्होंने ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का विरोध किया जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी| वे विदेशी वस्तुओं के आयात से सुरक्षा चाहते थे और रुपया-स्टर्लिंग विदेशी विनिमय अनुपात में बदलाव चाहते थे| व्यावसायिक हितों को संगठित करने के लिए 1920 में भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस (Indian Industrial and commercial congress) और 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (Federation of Indian Chamber of Commerce and Industry-FICCI) का गठन किया| उद्योगपतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर औपनिवेशिक नियंत्रण का विरोध किया और सिविल नाफ़रमानी आन्दोलन का समर्थन किया| उन्होंने आन्दोलन को आर्थिक सहायता दी और आयतित वस्तुओं को खरीदने या बेचने से इंकार कर दिया| ज्यादातर व्यवसायिकों का लगता था कि औपनिवेशिक शासन समाप्त होने से कारोबार निर्बाध रूप से ढंग से फल-फूल सकेंगें|

औद्योगिक श्रमिक वर्ग की स्थिति: औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में नागपुर के अलावा कहीं और भी बड़ी संख्या में हिस्सा नहीं लिया| जैसे-जैसे उद्योगपति कांग्रेस के नजदीक आ रहे थे, मजदूर कांग्रेस से छिटकने लगे थे| फिर भी मजदूरों ने कम वेतन व खराब कार्यपरिस्थियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया था| 1930 में रेलवे कामगारों की और 1932 में गोदी कामगारों की हड़ताल हुई| कांग्रेस को लगता था कि इससे उद्योगपति आन्दोलन से दूर चले जाएंगे|

सविनय अवज्ञा आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका: महिलाओं ने भी सविनय अवज्ञा आन्दोलन में बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया| महिलाएं जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की| बहुत सारी महिलाएं जेल भी गई| शहरी इलाकों में ज्यादातर ऊँची जातियों की महिलाएं सक्रीय थी जबकि ग्रामीण इलाकों में संपन्न किसान परिवारों की महिलाएं आन्दोलन में हिस्सा ले रही थी|

महिलाओं के प्रति गांधीजी के विचार: गांधीजी का मानना था कि घर चलाना, चूल्हा-चौका संभालना, अच्छी माँ व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का निर्वाह करना ही औरत का असली कर्तव्य है| फिर भी गांधीजी के आह्वान पर महिलाएं आन्दोलन में भाग लिया|

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाएं :

कांग्रेस रूढ़िवादी सवर्ण हिन्दू सनातनापंथियों के डर से दलितों पर ध्यान नहीं दिया| लेकिन गांधीजी ने ऐलान किया कि अस्पृश्यता (छुआछूत) को खत्म किए बिना सौ साल तक भी स्वराज की स्थापना नहीं की जा सकती| अछूतों को हरिजन यानि ईश्वर की सन्तान बताया| उन्होंने मंदिरों, सार्वजनिक तालाबों, सड़कों, और कुओं पर समान अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह किया|

कई दलित नेता अपने समुदाय की समस्याओं का अलग राजनीतिक हल ढूंढना चाहते थे| उन्होंने शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के लिए आवाज उठाई और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही ताकि वहां से विधायी परिषदों के लिए केवल दलितों को ही चुनकर भेजा जा सके| क्योकि इनकी भागदारी काफी सीमित थी|

डॉक्टर अम्बेडकर ने 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन (Depressed Classes Association) संगठित किया| दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की जिसपर गांधीजी के साथ विवाद हुआ | गांधी जी नहीं चाहते थे कि हिंदूओं की एकता का विभाजन हो| जब ब्रिटिश सरकार ने आंबेडकर की मांग मान ली तो गांधीजी आमरण अनशन पर बैठ गए|

साम्प्रदायिक पंचाट (Communal Award):
 ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 को साम्प्रदायिक पंचाट की घोषणा की| इस घोषणा में मुसलमानों, सिक्खों, भारतीय ईसाई और हिन्दू दलितों को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया| साम्प्रदायिक पंचाट के विरूद्व गांधीजी ने यरवदा जेल में ही 20 सितम्बर 1932 को आमरण अनशन शुरू कर दिया|

पूना पैक्ट (1932): मदन मोहन मालवीय , राजगोपालचारी और राजेन्द्र प्रसाद के प्रयासों से गांधीजी और आंबेडकर के बीच दलितों के निर्वाचन व्यवस्था पर 26सितम्बर 1932 पूना में समझौता हुआ|

इस समझौते के अनुसार :

1. दलित वर्गों के लिए पृथक निर्व्वाचं वयवस्था समाप्त कर दिया गया |
2. यह निश्चित हुआ कि दलितों के लिए स्थान तो सुरक्षित किये जाएंगे , किन्तु उनका निर्वाचन संयुक्त प्रणाली के आधार पर किया जाएगा |
3. दलों में दलितों के लिए 71 की जगह 147 सीटें आरक्षित की गई और केन्द्रीय विधानमंडल में दलित वर्ग के लिए 18% सीटें आरक्षित की गई |
4. हरिजनों के लिए शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए शर्ते रखी गई|



मुसलमानों की भागीदारी : असहयोग आन्दोलन के बाद मुसलमानों का एक बड़ा तबका कांग्रेस को भी हिन्दू संगठन मानने लगा | हिन्दू संगठनों के स्थापना से हिन्दू-मुस्लिम खाई बढ़ती गयी | मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलामानों के लिए केन्द्रीय सभा में आरक्षित सीटें और मुस्लिम बहुल प्रान्तों (बंगाल और पंजाब) में आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व की मांग की| तभी पृथक निर्वाचन की मांग छोड़ेगा | परन्तु हिन्दू महासभा के एम.आर.जयकर ने इसका विरोध किया | मुसलामानों को भय था कि हिन्दू बहुसंख्या के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान खो जाएगी|

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्व: 
1. 14 जूलाई 1933 ई. को जन आन्दोलन रोक दिया परन्तु व्यक्तिगत आन्दोलन चलता रहा |
2. 7 अप्रैल 1934 ई. को गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को बिलकुल बंद कर दिया |
3. यह आन्दोलन अपने वास्तविक उद्वेश्य को पाने में असफल हुआ तथापि जनमानस में राष्ट्रीय भावना की चेतना को उत्पन्न करने में सफल रहा |
4. भारतीयों में यह साहस पैदा कर दिया कि ब्रिटिश शासन को समाप्त किया जा सकता है |
5. ब्रिटिश सामाज्य को अहिंसक साधनों से उखाड़ फेंका जा सकता है |

  Mahatma Gandhi and National Movement 


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1935 ई. का  भारत सरकार अधिनियम :  विशेषताएं 

1. 1935 ई. के अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय या प्रांतीय विधानसभा किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर सकती थी | ये संशोधन का प्रस्ताव ला सकती थी लेकिन संशोधन का अधिकार पार्लियामेंट को ही था |

2. इस अधिनियम के अनुसार इंडिया काउन्सिल (भारतीय परिषद) का अंत कर दिया गया |

3. इस अधिनियम के अनुसार भारत में ब्रिटिश प्रान्तों तथा देशी राज्यों के लिए संघ शासन स्थापित करने की व्यवस्था की गई |

4. भारतीय संघ में संघ  तथा प्रान्तों के विषय बाँट दिए गए | इस  विभाजन में  तीन सूचियाँ बनाई गई थी - संघ सूची (59 विषय ) , राज्य सूची(54 विषय ) तथा संवारती सूची (23विषय )| 

5. केंद्र में दो सदन की व्यवस्था की गई - केन्द्रीय विधानसभा और राज्य परिषद 

6. इस अधिनियम के अनुसार एक संघीय न्यायालय की स्थापना की व्यवस्था थी |

7. इस अधिनियम के अनुसार चार प्रकार के प्रान्त थे - 1. ब्रिटिश प्रांत  2. देशी राज्य  3. केन्द्रीय सरकार द्वारा शासित प्रदेश  4. अंडमान और निकोबार द्वीप  

8. प्रत्येक राज्य में विधानसभा होती थी | कुछ राज्यों में दो सदन होते थे - विधानसभा और विधान परिषद् |

प्रांतीय चुनाव और मंत्रिमंडल का गठन (1937):

* 1935 के अधिनियम के अंतर्गत 1937 में प्रांतीय चुनाव हुए |

* कांगेस जिसका चुनाव चिन्ह पीला बक्सा था को पांच प्रान्तों में पूर्ण  बहुमत मिला -बिहार , उड़ीसा , मद्रास , मध्य प्रांत और संयुक्त प्रांत |

* कांग्रेस बंबई , असम और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में सबसे बड़े दल के रूप में आयी |

* केवल पंजाब , सिंध और बंगाल में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिल पाया |

* 28माह के शासन के बाद अक्टूबर 1939 को द्वितीय विश्व युद्व के कारण कांग्रेस मंत्रिमंडलों द्वारा त्यागपत्र दे दिया गया | 

* कांग्रेस मंत्रिमंडलों के त्यागपत्र के बाद मुस्लिम लीग ने 22 दिसम्बर 1939 को मुक्ति दिवस मनाया |

अगस्त प्रस्ताव (1940)

* भारती राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1940 के रामगढ़ अधिवेशन में प्रस्ताव पारित किया कि यदि भारत सरकार एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार का गठन करे तो कांग्रेस द्वितीय विश्व युद्व में ब्रिटिश को सहयोग करेगी |

* इस प्रस्ताव के जबाब में तत्कालीन वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने 8 अगस्त 1940 को अगस्त प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसमें भारत को डोमिनियन स्टेट का दर्जा  देने की बात कही  गयी |

मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग :

* पृथक पाकिस्तान राज्य की परिकल्पना कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक मुस्लिम  छात्र चौधरी रहमत अली ने 28 जनवरी 1933 को  " नाऊ आर नेवर (Now or Never)" नामक  पत्रिका के में किया था |

* मुस्लिम लीग ने लाहौर अधिवेशन में मार्च 1940 में पहली बार अलग पाकिस्तान के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया |इस सम्मलेन की अध्यक्षता मुहम्मद अली जिन्ना ने किया था |

व्यक्तिगत सत्याग्रह :

* व्यक्तिगत सत्याग्रह 17 अक्टूबर 1940 को महाराष्ट्र के पवनार आश्रम से शुरू हुआ | 

* गांधीजी ने विनोबा भावे को पहला सत्याग्रही के रूप में मनोनीत किया | 

* जवाहर लाल नेहरू दूसरे सत्याग्रही थे |

*  इस सत्याग्रह का उद्वेश्य ब्रिटिश शासन पर दबाब डालना था | 

* यह सत्याग्रह अक्टूबर , 1940 से जनवरी , 1942 तक चलता रहा |

क्रिप्स मिशन : 

* दूसरे विश्व युद्व की स्थिति भयावह होती जा रही थी | ब्रिटेन के अमरीका और चीन जैसे मित्र राष्ट्र उस पर भारतीयों की स्वाधीनता की मांग स्वीकार कर लेने का दबाब डाल रहे थे |

* तत्कालीन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विस्टन चर्चील भारत को आजाद करना नही चाहता था | विस्टन चर्चिल कहा करता था " मैं ब्रिटेन का प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बना हूँ की ब्रिटिश साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े  कर दें "|

* फिर भी मित्र राष्ट्रों के दबाब में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए मार्च ,1942 में हाउस आफ कामन्स के नेता सर स्टेफोर्ड  क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा |

प्रमुख बिंदु :

* भारत को डोमिनियन सटेट्स का दर्जा दिया जाएगा तथा भारतीय संघ की स्थापना की स्थापना की जाएगी जो की राष्ट्रमंडल के साथ सम्बन्धों को तय करने के लिए स्वतंत्र होगा |

* युद्व समाप्ति के बाद संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा की बैठक बुलाई जाएगी |

* जो भी  प्रान्त संघ में शामिल नहीं होना चाहता वह अपना अलग संघ और अलग संविधान बना सकता है|

* गर्वनर जनरल का पद यथावत रहेगा तथा भारत की रक्षा का दायित्व ब्रिटिश हाथों में बना रहेगा | 

* कांग्रेस ने क्रिप्स के साथ वार्ता में इस बात पर बल दिया कि यदि ब्रिटिश शासन धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए कांग्रेस का समर्थन चाहता है, तो वायसराय को सबसे पहले अपनी कार्यकारी परिषद में रक्षा सदस्य के रोप में किसी भारतीय को नियुक्त करना चाहिए |

                            कांग्रेस के इस मांग पर वार्ता विफल हो गई | गांधी जी ने क्रिप्स प्रस्तावों को " असफल हो रहे बैंक का एक उत्तर तिथि चेक " कहा |

भारत छोडो आन्दोलन :(QUIT INDIA MOVEMENT-1942)

द्वितीय विश्व युद्व की भयावह स्थिति , भारत पर जापानी आक्रमण और क्रिप्स मिशन प्रस्ताव की असफलता ने कांग्रेस को फिर से एक बड़ा आन्दोलन करने को विवश किया | अंग्रेजों को भगाने के लिए अंतिम प्रयास था - भारत छोडो आन्दोलन |

कारण: 

* क्रिप्स मिशन प्रस्तावों (मार्च , 1942) की असफलता 

* द्वितीय विश्व युद्व  की भयावह स्थिति  (1939-1945)

* भारत पर जापानी आक्रमण 

* गांधीजी का अंग्रेजों का व्यवस्थित रूप से भारत छोड़ देने का अनुरोध को ठुकराना 

भारत छोड़ों आन्दोलन का सूत्रपात :

* 14 जूलाई 1942 को अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में भारत छोड़ो आन्दोलन पर एक प्रस्ताव पारित किया |

* 8 अगस्त 1942 को बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में कांग्रेस कमेटी की वार्षिक बैठक हुई जिसमें नेहरू द्वारा प्रस्तुत वर्धा प्रस्ताव की पुष्टि की गई |

* इस आन्दोलन के विषय पर महात्मा गांधी ने 70 मिनट तक भाषण दिया तथा "करो या मरो " का नारा दिया |

नेताओं की गिरफ्तारी : 

* यह आन्दोलन 8-9 अगस्त, 1942 से आरम्भ होना था , लेकिन 9 अगस्त को सूर्योदय के पहले ही गांधीजी , नेहरू,पटेल,मौलाना आजाद , सरोजनी नायडू आदि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया |  

* गांधीजी को कस्तूरबा गांधी और सरोजनी नायडू के साथ आगा खां पैलेस में रखा गया|

* जवाहरलाल नेहरू को अल्मोड़ा जेल , राजेन्द्र प्रसाद को बांकीपुर जेल और जयप्रकाश नारायण को हजारीबाग जेल में रखा गया |

घटना :

* नेताओं को गिरफ्तार कर आन्दोलन नेतृत्व विहीन बनाने की कोशिश की गई |

* सरकार -विरोधी प्रदर्शन हुए , हड़तालें हुई, सभाएं हुई और जुलूस निकाले गए |

* रेल की पटरियां उखाड़ दी गई और अग्निकांड , हत्या , तोड़फोड़ होने लगी |

*टेलीग्राम और टेलीग्राफ की लाइनें काट दी गई , स्कूल ,कालेज बंद हो गए 

* बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलुक में , बलिया में चितु पांडे ने , सतारा (महाराष्ट्र ) में वाई . बी. चव्हान और नाना पाटिल ने समानान्तर सरकार की स्थापना की |

दमन :  ब्रिटिश सरकार ने क्रांती  के दमन के दमन के लिए पाशविक नीति अपनाई |

* लोगों को गोली मारना , नंगा कर पेड़ों से उलटा टांग देना , कोड़े मारना , औरतों के साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया |

* पटना सचिवालय पर राष्ट्रीय झंडा फहराते समय सात छात्र गोली के शिकार हुए |

भारत छोड़ों आन्दोलन के धीमा पड़ जाने के कारण :

* क्रांतिकारियों के बीच समन्वय का अभाव 

* संगठन का अभाव 

* योग्य नेतृत्व का अभाव 

समृद्व व्यक्तियों और पूजीपतियों का असहयोग 

* सरकार की तीव्र दमनकारी नीति 

भारत छोड़ों आन्दोलन के परिणाम : यह क्रान्ति असफल रही | परन्तु , 1942 की क्रान्ति ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए समुचित पृष्ठभूमि तैयार कर दी | यह स्पष्ट हो गया कि राष्ट्रीयता की भावना अपनी पराकाष्ठा पर है और अब लम्बे समय तक उपनिवेश बनाकर रखना असंभव था |

महात्मा गांधी का अनशन : ब्रिटिश सरकार के अमानुषिक व्यवहार तथा जनता के हिंसात्मक कार्यों से आहत गांधी जी ने 10 फरवरी 1943 को 21 दिनों का अनशन शुरू किया | 2 मार्च 1943 को गांधीजी का अनशन सकुशल समाप्त हुआ | 6 मई 1944 को गान्धीजी को जेल से छोड़ दिया गया |

वेवल  योजना  तथा शिमला सम्मलेन : 

14 जून 1945 को गवर्नर लार्ड वेवल (जो अक्टूबर 1943 में भारत आए ) ने भारत के संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए एक योजना प्रस्तुत की, जिसे "वेवल योजना " के नाम से जाना जाता है | इस योजना के प्रमुख सुझाव थे -

* वायसराय की कार्यकारिणी परिषद का पुनर्निर्माण  किया जाएगा, जिसमें वायसराय और प्रधान सेनापति के अतिरिक्त सभी सदस्य भारतीय होंगे|

* विदेशी विषयों का विभाग (रक्षा विभाग के अतिरिक्त परिषद के एक भारतीय सदस्य को सौंपदिया जाएगा |

* युद्व की समाप्ति पर भारतीय अपने  संविधान का निर्माण स्वयं करेंगे |

शिमला सम्मलेन -29 जून 1945

वेवल योजना (14 जून 1945) की घोषणा के उपरान्त लार्ड वेवल ने 29 जून 1945 को शिमला सम्मलेन का आयोजन किया, जिसमें कांग्रेस,मुस्लिम लीग और अन्य दलों के कुल 21 प्रतिनिधियों ने भाग लिया | इस सम्मलेन का उद्वेश्य देश के सभी दलों की सहमती से वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्यों की सूची तैयार करना था| किन्तु मुहम्मद अली जिन्ना की अड़ियल नीति के कारण शिमला सम्मलेन असफल हो गया |

कैबिनेट मिशन योजना -24 मार्च, 1946

ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारतीय गतिरोध को हल करने के लिए 24 मार्च, 1946 को भारत आया | इस मिशन में सर स्टेफर्ड क्रिप्स, अलेक्जेंडर  और पेथिक लॉरेंस इसके सदस्य थे |मिशन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर सहमत करने का प्रयास किया, जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रान्तों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी | गांधी जी ने कैबिनेट मिशन योजना का समर्थन किया था| परन्तु यह अपने प्रयास में सफल नही रही |

प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस - 27 जूलाई 1946

27 जूलाई , 1946 को मुस्लिम लीग की काउन्सिल ने  बंबई बैठक में पाकिस्तान की प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष संघर्ष का रास्ता अपनाने का निश्चय किया| 16, अगस्त 1946 को लीग ने "प्रत्यक्ष कार्यवाही " दिवस मनाया जिसके परिणामस्वरूप बंगाल , बिहार , पंजाब , उत्तर प्रदेश , सिंध व् उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त में भयंकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो गए| 

अंतरिम सरकार की स्थापना - 2,सितम्बर 1946

कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 2, सितम्बर 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया | सरकार में सम्मिलित होकर भी लीग ने कांग्रेस के प्रति असहयोग का दृष्टिकोण अपनाया | उसने नेहरू का नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया और प्राय: मंत्रिमंडल की नीतियों का विरोध करती  रही |

लार्ड एटली की घोषणा - 20,फरवरी 1947

मुस्लिम लीग के साम्प्रदायिक दृष्टीकोण के भारत की राजनैतिक स्थिति बिगड़ने लगी | पूरे देश में गृह युद्व जैसा वातावरण  बन गया था | अत: ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने 20, फरवरी 1947 को एक महत्वपूर्ण घोषणा की जिसमें कहा कि ब्रिटिश सरकार जून, 1948 तक सत्ता भारतीयों को सौंप देगी |

लार्ड माउंटबेटन योजना :3 जून 1947

24 मार्च , 1947 को लार्ड वेवल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटन भारत का वायसराय बनकर आया | विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं से विचार-विमर्श करने के पश्चात् वायसराय इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि लीग तथा कांग्रेस के मध्य समझौता असंभव था और देश का विभाजन ही समस्या का एकमात्र हल था | हालांकि गांधी जी स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा कर चुके थे कि देश का विभाजन उनके मृत शरीर पर होगा |

3 जून 1947 वायसराय ने भारत-विभाजन की योजना की घोषणा कर दी, जिसे भारत के सभी दलों ने स्वीकार कर लिया| माउंटबेटन ने 15 अगस्त, 1947 को भारतीयों को सत्ता सौंपने का दिन निर्धारित किया और देश का विभाजन भारत और पाकिस्तान इन दो भागों में कर दिया जाएगा |

भारत स्वतंत्रता अधिनियम -1947

* ब्रिटिश संसद ने 18 जूलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम -1947 पारित किया |

* 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त 1947 को भारत अस्तित्व में आया |

* पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्ना बने तथा लियाकत अली पहले प्रधानमंत्री |

* माउंटबेटन स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बना और जवाहरलाल नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री बने 

* स्वतंत्र भारत  के पहले भारतीय और अंतिम गवर्नर जनरल सी. राजगोपालचारी बने |  

महात्मा गांधी और उनका बलिदान :

* 15 अगस्त 1947 को देश की स्वतंत्रता का जश्न मनाया जा रहा था , किन्तु महात्मा गांधी राजधानी में उपस्थित नहीं थे |

* गांधी जी उस समय कलकता में 24 घंटे के उपवास पर थे | उन्होंने वहां भी न तो किसी कार्यक्रम में भाग लिया और न ही कहीं झंडा फहराया |

* बंगाल , बिहार और पंजाब में भयंकर हिन्दू - मुस्लिम दंगे हो रहे थे | बंगाल और बिहार के दंगों को शांत कराने के लिए गाँव -गाँव की यात्रा की और दंगे को शांत कराया |

* सितम्बर 1947 में गांधी जी दिल्ली आये |दिल्ली से गांधीजी पंजाब के दंगाग्रस्त क्षेत्रों में जाना चाहते थे परन्तु राजधानी में ही शरणार्थियों के विरोध के कारण उनकी सभाएं अस्त-व्यस्त होने लगी थी |

* गांधी जी का पाकिस्तान के प्रति विचार कुछ भारतीयों को पसंद नही आया | गांधी जी के नीतियों से क्षुब्ध एक ब्राह्मण युवक नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 की संध्या को  दिल्ली के बिरला मंदिर में ह्त्या कर दी |

* गांधीजी को देशभर में और विश्व के अनेक भागों में भी भावभीनी श्रद्वांजलि दे गई |

* अमरीका की टाइम पत्रिका ने गांधी जी के बलिदान की तुलना अब्राहम लिंकन के बलिदान से की |

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