Sunday 13 December 2020

Mahatma gandhi and National Movement (3)-history class 12

Mahatma gandhi and National Movement

परिचय
* भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कारण :
* महात्मा गांधी
* चंपारण सत्याग्रह
* खिलाफत और असहयोग आन्दोलन
* सविनय अवज्ञा आन्दोलन
* भारत छोड़ो आन्दोलन


* click here for Mahatma Gandhi & National Movement part 1
* click here for Mahatma Gandhi & National Movement part4

गोलमेज सम्मेलन
:सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ही कांग्रेस को नजरअंदाज करते हुए गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लन्दन में आरम्भ किया गया |

प्रथम गोलमेज सम्मलेन प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन 12नबम्बर 1930 को हुआ| इस सम्मेलन की अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मेक्डोनाल्ड ने की| इसमें 16ब्रिटिश संसद सदस्य और ब्रिटिश भारत के 57 प्रतिनिधि जिन्हें वायसराय ने नियुक्त किया था तथा देशी रियासतों के 16 सदस्य सम्मिलित थे| कांग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया| परिणामत: इस सम्मेलन का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला और 19जनवरी 1931 को बिना किसी नतीजे के समाप्त कर दिया गया|

गांधी-इरविन समझौता: वायसराय ने देश में सार्थक माहौल बनाने के लिए कांग्रेस पर से प्रतिबंध हटा दिया, गांधीजी तथा अन्य नेताओं को छोड़ दिया| अंतत: 5मार्च 1931को गान्धीजी और इरविन में समझौता हो गया| प्रमुख बिंदु :- गांधीजी के निम्न मांगों को स्वीकार किया गया|

1. हिंसा के आरोपियों को छोड़कर राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाए

2. भारतीयों को समुद्र से नमक बनाने का अधिकार दिया गया |

3.आन्दोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को बहाल किया जाए |

4. भारतीय अब शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना देने के लिए स्वतंत्र थे|

गांधीजी द्वारा मानी गयी बातें : सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया और कांग्रेस दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया कर लिया |

दूसरा गोलमेज सम्मलेन : दूसरा गोलमेज सम्मलेन 7सितम्बर 1931 से 1दिसंबर 1931 तक चला| कांग्रेस की और से एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी ने भाग लिया| यह सम्मेलन भी असफल रहा|

महात्मा गांधी के ब्रिटेन से लौटने के उपरान्त सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुन: आरम्भ किया किया| साल भर तक यह आन्दोलन चलता रहा लेकिन 1934 तक आते-आते इसकी गति मंद पड़ने लगी|


तीसरा गोलमेज सम्मलेन: यह सम्मलेन 17 नवम्बर 1932 से 24 दिसंबर 1932 तक चला| कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया और यह भी असफल रहा|

लोगों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को कैसे लिया?

किसान वर्ग : गाँव के संपन्न किसानों प्रमुख रूप से भाग लिया| व्यावसायिक फसलों की खेती करने के कारण व्यापार में मंदी और गिरती कीमतों से वे बहुत परेशान थे| जब उनकी नकद आय खत्म होने लगी तो उनके लिए सरकारी लगान चुकाना नामुमकिन हो गया| उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई था| जब 1931 लगानों के घटे बिना आन्दोलन वापस ले लिया गया तो निराशा हुई | जब 1932आन्दोलन दुबारा शुरू हुआ तो बहुतों ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया |

गरीब किसान जमींदारों से पट्टे पर जमीन लेकर खेती कर रहे थे| महामंदी लम्बी खींची और नकद आमदनी गिराने लगी तो छोटे पट्टेदारों के लिए जमीन का किराया चुकाना भी मुश्किल हो गया| उन्होंने रेडिकल आन्दोलनों में हिस्सा लिया जिनका नेतृत्व अकसर समाजवादियों और कम्युनिष्टों के हाथों में होता था| अमीर किसानों और जमींदारों की नाराजगी के भय से कांग्रेस "भाड़ा विरोधी" आंदोलनों को समर्थन देने में हिचकिचाती थी | इसी कारण गरीब किसानों और कांग्रेस के बीच सम्बन्ध अनिश्चित बने रहे |


व्यवसायी वर्ग की स्थिति : पहले विश्वयुद्व के दौरान भारतीय व्यापारियों और उद्योगपतियों ने भारी मुनाफ़ा कमाया| अपने कारोबार को फैलाने के लिए उन्होंने ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का विरोध किया जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी| वे विदेशी वस्तुओं के आयात से सुरक्षा चाहते थे और रुपया-स्टर्लिंग विदेशी विनिमय अनुपात में बदलाव चाहते थे| व्यावसायिक हितों को संगठित करने के लिए 1920 में भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस (Indian Industrial and commercial congress) और 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (Federation of Indian Chamber of Commerce and Industry-FICCI) का गठन किया| उद्योगपतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर औपनिवेशिक नियंत्रण का विरोध किया और सिविल नाफ़रमानी आन्दोलन का समर्थन किया| उन्होंने आन्दोलन को आर्थिक सहायता दी और आयतित वस्तुओं को खरीदने या बेचने से इंकार कर दिया| ज्यादातर व्यवसायिकों का लगता था कि औपनिवेशिक शासन समाप्त होने से कारोबार निर्बाध रूप से ढंग से फल-फूल सकेंगें|

औद्योगिक श्रमिक वर्ग की स्थिति: औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में नागपुर के अलावा कहीं और भी बड़ी संख्या में हिस्सा नहीं लिया| जैसे-जैसे उद्योगपति कांग्रेस के नजदीक आ रहे थे, मजदूर कांग्रेस से छिटकने लगे थे| फिर भी मजदूरों ने कम वेतन व खराब कार्यपरिस्थियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया था| 1930 में रेलवे कामगारों की और 1932 में गोदी कामगारों की हड़ताल हुई| कांग्रेस को लगता था कि इससे उद्योगपति आन्दोलन से दूर चले जाएंगे|

सविनय अवज्ञा आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका: महिलाओं ने भी सविनय अवज्ञा आन्दोलन में बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया| महिलाएं जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की| बहुत सारी महिलाएं जेल भी गई| शहरी इलाकों में ज्यादातर ऊँची जातियों की महिलाएं सक्रीय थी जबकि ग्रामीण इलाकों में संपन्न किसान परिवारों की महिलाएं आन्दोलन में हिस्सा ले रही थी|

महिलाओं के प्रति गांधीजी के विचार: गांधीजी का मानना था कि घर चलाना, चूल्हा-चौका संभालना, अच्छी माँ व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का निर्वाह करना ही औरत का असली कर्तव्य है| फिर भी गांधीजी के आह्वान पर महिलाएं आन्दोलन में भाग लिया|

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाएं :

कांग्रेस रूढ़िवादी सवर्ण हिन्दू सनातनापंथियों के डर से दलितों पर ध्यान नहीं दिया| लेकिन गांधीजी ने ऐलान किया कि अस्पृश्यता (छुआछूत) को खत्म किए बिना सौ साल तक भी स्वराज की स्थापना नहीं की जा सकती| अछूतों को हरिजन यानि ईश्वर की सन्तान बताया| उन्होंने मंदिरों, सार्वजनिक तालाबों, सड़कों, और कुओं पर समान अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह किया|

कई दलित नेता अपने समुदाय की समस्याओं का अलग राजनीतिक हल ढूंढना चाहते थे| उन्होंने शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के लिए आवाज उठाई और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही ताकि वहां से विधायी परिषदों के लिए केवल दलितों को ही चुनकर भेजा जा सके| क्योकि इनकी भागदारी काफी सीमित थी|

डॉक्टर अम्बेडकर ने 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन (Depressed Classes Association) संगठित किया| दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की जिसपर गांधीजी के साथ विवाद हुआ | गांधी जी नहीं चाहते थे कि हिंदूओं की एकता का विभाजन हो| जब ब्रिटिश सरकार ने आंबेडकर की मांग मान ली तो गांधीजी आमरण अनशन पर बैठ गए|

साम्प्रदायिक पंचाट (Communal Award):
ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 को साम्प्रदायिक पंचाट की घोषणा की| इस घोषणा में मुसलमानों, सिक्खों, भारतीय ईसाई और हिन्दू दलितों को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया| साम्प्रदायिक पंचाट के विरूद्व गांधीजी ने यरवदा जेल में ही 20 सितम्बर 1932 को आमरण अनशन शुरू कर दिया|

पूना पैक्ट (1932): मदन मोहन मालवीय , राजगोपालचारी और राजेन्द्र प्रसाद के प्रयासों से गांधीजी और आंबेडकर के बीच दलितों के निर्वाचन व्यवस्था पर 26सितम्बर 1932 पूना में समझौता हुआ|

इस समझौते के अनुसार :
1. दलित वर्गों के लिए पृथक निर्व्वाचं वयवस्था समाप्त कर दिया गया |
2. यह निश्चित हुआ कि दलितों के लिए स्थान तो सुरक्षित किये जाएंगे , किन्तु उनका निर्वाचन संयुक्त प्रणाली के आधार पर किया जाएगा |
3. दलों में दलितों के लिए 71 की जगह 147 सीटें आरक्षित की गई और केन्द्रीय विधानमंडल में दलित वर्ग के लिए 18% सीटें आरक्षित की गई |
4. हरिजनों के लिए शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए शर्ते रखी गई|



मुसलमानों की भागीदारी : असहयोग आन्दोलन के बाद मुसलमानों का एक बड़ा तबका कांग्रेस को भी हिन्दू संगठन मानने लगा | हिन्दू संगठनों के स्थापना से हिन्दू-मुस्लिम खाई बढ़ती गयी | मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलामानों के लिए केन्द्रीय सभा में आरक्षित सीटें और मुस्लिम बहुल प्रान्तों (बंगाल और पंजाब) में आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व की मांग की| तभी पृथक निर्वाचन की मांग छोड़ेगा | परन्तु हिन्दू महासभा के एम.आर.जयकर ने इसका विरोध किया | मुसलामानों को भय था कि हिन्दू बहुसंख्या के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान खो जाएगी|

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्व: 
1. 14 जूलाई 1933 ई. को जन आन्दोलन रोक दिया परन्तु व्यक्तिगत आन्दोलन चलता रहा |
2. 7 अप्रैल 1934 ई. को गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को बिलकुल बंद कर दिया |
3. यह आन्दोलन अपने वास्तविक उद्वेश्य को पाने में असफल हुआ तथापि जनमानस में राष्ट्रीय भावना की चेतना को उत्पन्न करने में सफल रहा |
4. भारतीयों में यह साहस पैदा कर दिया कि ब्रिटिश शासन को समाप्त किया जा सकता है |
5. ब्रिटिश सामाज्य को अहिंसक साधनों से उखाड़ फेंका जा सकता है |

                                                                                    क्रमश:.............

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M. PRASAD
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