KING, FARMER AND TOWN: NCERT NOTES WITH SOLUTIONS
राजा , किसान और नगर
आरम्भिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएं
(लगभग 600 ई० पू० से 600 ई० )
महत्वपूर्ण तथ्य :* सिन्धु घाटी सभ्यता ( हडप्पा सभ्यता ) 2600 ई० पू० से 1900 ई० पू० तक मानी जाती है |
* हडप्पा सभ्यता के डेढ़ हजार वर्षों के लम्बे अंतराल में उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास हुए |
* इसी काल के दौरान सिन्धु और उसके उपनदियों के किनारे रहने वाले लोगों के द्वारा ऋग्वेद का लेखन हुआ |
* वेद चार है - ऋग्वेद , सामवेद , यर्जुवेद , अथर्ववेद |
* उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र और कर्नाटक जैसे उपमहाद्वीप के कई क्षेत्रों में कृषक बस्तियां अस्तित्व में आई |
* इस काल में दक्कन और दक्षिण भारत के क्षेत्रों में चरवाहा बस्तियों के प्रमाण मिलते है |
* ई० पू० पहली सदी के दौरान मध्य और दक्षिण भारत में शवों के अंतिम संस्कार के नए तरीके के प्रमाण मिले है जिसमें शवों के उपर बड़े -बड़े पत्थर रखे जाते थे , इसे " महापाषाण " की संज्ञा दी गयी है |
* इसी दौरान राज्य , साम्राज्य और राजवाडों तथा नये नगरों का विकास हुआ |
* प्राचीन इतिहास को जानने के लिए अभिलेखों , ग्रन्थों , सिक्कों तथा सिक्कों जैसे विभिन्न स्रोतों का अध्ययन करते है |
अभिलेख :
* अभिलेखों के अध्ययन को अभिलेखाशास्त्र कहते है |
* अभिलेख उन्हें कहते है जो पत्थर , धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते है | इन अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियां , क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते है जो उन्हें बनवाते है |
* इन अभिलेखों में राजाओं के क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरूषों द्वारा धार्निक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्योरा होता है
* कई अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि अंकित होती है जिन पर तिथि नही मिलती है , उनका निर्धारण लेखन शैली के आधार पर किया जा सकता है |
* प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे मिले है |
प्रिसेंप और पियदस्सी :
* 1837 ई० में ईस्ट इंडिया कम्पनी का एक अधिकारी जेम्स प्रिन्सेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला |
* इन लिपियों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला की पियदस्सी नाम का कोई राजा का उल्लेख है | कुछ अभिलेखों ( मास्की , गुर्जरा अभिलेख ) में राजा का नाम " अशोक " मिलता है |
* इन अभिलेखों , सिक्कों और तत्कालीन ग्रन्थों के अध्ययन से राजनीतिक परिवर्तनों और आर्थिक और सामाजिक विकासों के बीच सम्बन्ध स्थापित किया |
प्रारम्भिक राज्य :
सोलह महाजनपद :
* छठी शताब्दी ई० पू० भारतवर्ष में एक नये परिवर्तन काल माना जाता है |
- महाजनपदों का उदय
- लोहे के बढ़ते प्रयोग
- आहत सिक्कों का प्रयोग
* जैन धर्म और बौद्व धर्म एवं अन्य दार्शनिक विचारधाराओं का विकास:
- जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर (भगवान महावीर के बारे में जानने के लिए क्लिक करें भाग -1),भगवान महावीर को जानने के लिए क्लिक करें भाग -2)
- बौद्व धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्व (गौतम बुद्व की जीवनी भाग -1), गौतम बुद्व की शिक्षाएं भाग -2)
* बौद्वग्रन्थ अंगुत्तर निकाय और जैनग्रन्थ भगवतीसूत्र नामक ग्रंथों में सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है |
सोलह महाजनपद :
क्र सं | महाजनपद | राजधानी | आधुनिक स्थान |
1 | मगध | राजगृह / पाटलीपुत्र | गया , पटना |
2 | अंग | चम्पा | मुगेंर ,भागलपुर |
3 | काशी | वाराणसी | वाराणसी का क्षेत्र |
4 | वज्जी | वैशाली | मुजफ्फरपुर के आसपास का क्षेत्र |
5 | कोसल | श्रावस्ती | अयोध्या का क्षेत्र |
6 | अवन्ती | उज्जैन | मालवा का क्षेत्र |
7 | मल्ल | कुशीनगर | गोरखपुर |
8 | पंचाल | अहिच्छत्र / काम्पिल्य | बरेली का आसपास का क्षेत्र |
9 | चेदी | शक्तिमती | बुन्देलखण्ड |
10 | कुरु | इन्द्रप्रस्थ | दिल्ली , हरियाणा का क्षेत्र |
11 | वत्स | कौशम्बी | इलाहाबाद के आसपास का क्षेत्र |
12 | गंधार | तक्षशिला | पेशावर (पाकिस्तान ) |
13 | मत्स्य | विराटनगर | जयपुर का क्षेत्र |
14 | कम्बोज | हाटक | राजोरी और हजारा (उत्तर प्रदेश |
15 | शूरसेन | मथुरा | मथुरा के आसपास का क्षेत्र |
16 | अश्मक | पोतन | गोदावरी नदी का क्षेत्र |
* प्रत्येक महाजनपदों की राजधानियां प्राय: किले से घिरे होती थी|
* जनपद : जनपद का अर्थ ऐसा भूखंड है जहां कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है|
* महाजनपदों के शासक राजा होते थे परन्तु कुछ महाजनपद जैसे मल्ल, वज्जी गणराज्य थे जहां गण/संघ शासन करते थे|
* गण/संघ : कई लोगो के समूह के द्वारा शासन, इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था|
* भगवान महावर वज्जी संघ से और भगवान "बुद्व" लिच्छवी गणराज्य से सम्बन्धित थे |
* शासन व्यवस्था को चलने के लिए आर्थिक कर लिए जाते थे | ये कर अनाज के रूप में होता था |
* क्षत्रिय वर्ग शासक एवं सैनिक के रूप में कार्य करते और व्यापारी , शिल्पकार और कृषक से कर एवं भेंट लिया जाता था |
* समूहशासन (ओलिगार्की): जहां सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है |
* 600 ई० पू० से 600 ई० तक कई धार्मिक एवं धर्मेत्तर ग्रन्थों की रचना भी हुई |
सोलह महाजनपदों में प्रथम : मगध महाजनपद
* छठी से चौथी शताब्दी ई० पू० में मगध ( आधुनिक बिहार ) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया |
इसके कारण :
1. मगध क्षेत्र में खेती की उपज अच्छी होती थी |
2. लोहे के खदानें ( आधुनिक झारखंड ) आसानी से उपलब्ध होने के कारण कृषि उपकरण एवं हथियार का निर्माण करना आसान था |
3. जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे जो सेना के मुख्य अंग थे |
4. गंगा एवं इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था |
5. इस समय मगध में महत्वाकांक्षी एवं पराक्रमी शासक हुए - बिम्बीसार , अजातशत्रु, उदयन , महापद्मनंद आदि |
6. मगध की राजधानी राजगृह और पाटलीपुत्रा क्रमश: पहाड़ियों और नदियों से घिरे होने के कारण सुरक्षित थी |
एक आरम्भिक साम्राज्य:
* मगध महाजनपद को एक साम्राज्य में परिवर्तन करने का श्रेय हर्यक वंश (* हर्यक वंश के बारे में जानने के लिए क्लिक करे) और नन्द वंश (*शिशुनाग वंश और नन्द वंश को जानने के लिए क्लिक करे) को जाता है |
परन्तु भारत को एकसूत्र बद्व करने का सफल प्रयास मौर्य शासको ने किया |
* मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने 321 ई० पू० में चाणक्य की सहायता से किया |
* मौर्य साम्राज्य का शासन पश्चिमोतर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था |
* सम्राट अशोक ने 261 ई० पू० कलिंग (आधुनिक उड़ीसा ) पर विजय प्राप्त की |
मौर्य वंश के बारे में जानकारी के स्रोत :
पुरातत्विक स्रोत :
अशोक कालीन अभिलेख
शिलालेखीय साक्ष्य
चौदह वृहद शिलालेख
आठ अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुए है
1. शाहबाजगढ़ी शिलालेख- खरोष्ठी लिपि
पाकिस्तान (पेशावर,यूसुफ जाई ) - 1836 ई0 में
खोजकर्ता - जनरल कोर्ट
2. मनसेहरा शिलालेख - खरोष्ठी लिपि
पाकिस्तान ( हजारा )- 1889 ई0
खोजकर्ता - जनरल कनिंघम
3. कालसी शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
उत्तरप्रदेश ( देहरादून) - 1860
खोजकर्ता - फोरेस्ट
4. गिरनार शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
गुजरात , काठियावाड़, जूनागढ़ - 1822 ई0
खोजकर्ता - कर्नल टॉड
5. धौली शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
उड़ीसा , पुरी - 1837 ई0
खोजकर्ता - कीटो
6. जौगड शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
उड़ीसा , गंजाम - 1850 ई0
खोजकर्ता- वाल्टर इलियट
7. एररगुडी शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
आंध्रप्रदेश , करनूल - 1929 ई0
खोजकर्ता - अनुघोष
8. सोपारा शिलालेख- ब्राह्मी लिपि
महाराष्ट्र, थाना जिला- 1882 ई0
खोजकर्ता - ?
लघु शिलालेख
1.रुपनाथ - मध्यप्रदेश, जबलपुर
1.रुपनाथ - मध्यप्रदेश, जबलपुर
2. गुजर्रा - मध्यप्रदेश, दतिया
3. सासाराम - बिहार , शाहाबाद
4. भब्रु (वैराट) - राजस्थान , जयपुर
5. मास्की - कर्नाटक, रायचूर
6. ब्रह्मगिरि - कर्नाटक, चित्तल्दुर्ग
7. सिद्वपुर - कर्नाटक , चित्तल्दुर्ग
8. जतिंरामेश्वर - कर्नाटक , चित्तल्दुर्ग
9. एररगुडी - आंध्रप्रदेश, कुरनूल
10. गोविमठ- कर्नाटक, मैसूर ,हासपेट
11. पालकिगुंड - कर्नाटक , मैसूर , हासपेट
12. राजुल मन्दगिरी- आंध्रप्रदेश, कुरनुल
13. अहरौरा - उत्तरप्रदेश, मिर्जापुर
14. सारोमारो- मध्यप्रदेश, शहडोल
15. पंगुडरिया - मध्यप्रदेश, सीहोर
16. नेतुर - कर्नाटक, बेलाड़ी
17. उड़गोलम- कर्नाटक, बेलाड़ी
स्तम्भ लेख
1. दिल्ली-टोपरा स्तम्भलेख
2. दिल्ली- मेरठ स्तम्भलेख
3. लौरिया अरराज स्तम्भलेख- बिहार, चम्पारण
4. लौरिया नन्दनगढ़ स्तम्भलेख- बिहार, चम्पारण
5. रामपुरवा स्तम्भलेख- बिहार, चम्पारण
6. प्रयाग स्तम्भलेख- उत्तरप्रदेश , कौशाम्बी
नोट: कौशाम्बी अभिलेख " रानी अभिलेख" कहा जाता है ।
गुफा अभिलेख - बिहार के गया में बराबर की पहाड़ियों में तीन गुफा लेख
साहित्यिक स्रोत :-
पुस्तक - लेखक
* अर्थशास्त्र - चाणक्य
* मुद्राराक्षस- विशाखदत्त
* कल्पसूत्र - भद्रबाहु
* परिशिष्टपर्वन- हेमचन्द्र
* कथासरित्सागर- सोमदेव
* वृहत्कथामन्जरी- क्षेमेन्द्र
* इंडिका - मेगास्थनीज
* इसके अतिरिक्त विष्णु पुराण , दीपवंश , महावंश, महाबोधि वंश , दिव्यादान , अशोकावदान, मंजूश्रीमूलकल्प , ग्रँथों में मौर्य वंश की जानकारी मिलती है ।
धम्म : सम्राट अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से धम्म का प्रचार किया | इनमें बड़ों के प्रति आदर , सन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता , सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर शामिल है |
साम्राज्य का प्रशासन :
* मौर्य साम्राज्य के पांच राजनीतिक केंद्र थे ,
मौर्य प्रांत - राजधानी
उत्तरापथ - तक्षशिला
अवन्ती - उज्जयिनी
कलिंग - तोसली
दक्षिणापथ - सुवर्णागिरी
* इतिहासकार आश्चर्य करते है की इतनी विशाल साम्राज्य की प्रशासन चलाना आसान नही रहा होगा |
* तक्षशिला और उज्जयिनी दोनों व्यापार मार्ग पर स्थित थे जबकि सुवर्णगिरी (कर्नाटक ) सोने की खदान के लिए उपयोगी था |
* इतनी विशाल साम्राज्य को अखंड बनाए रखने के लिए एक विशाल सेना रखी गयी |
* मेगास्थनीज लिखता है की सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति और छह उपसमितियां होती थी |
- पहली समिति - नौ सेना का संचालन
- दूसरी समिति - यातायात और खान पान का संचालन करती
- तीसरी समिति - पैदल सैनिकों का संचालन
- चतुर्थ समिति - अश्व्रोहियों का संचालन
- पाचंवी समिति - रथारोहियों का संचालन
- छठी समिति - हाथियों का संचालन
दूसरी उपसमिति का दायित्व : उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था , सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिको की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना |
* धम्म का प्रचार : साम्राज्य को अखंड बनाए रखने के लिए सम्राट अशोक ने धम्म के प्रचार के द्वारा भी प्रयास किया |
* धम्म के प्रचार हेतु धम्म महमात्य नाम से विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गयी |
सम्राट अशोक का धम्म जानने के लिए क्लिक करे भाग -6
सम्राट के अधिकारी के कार्य : दिए गए इस लिंक पर जाए |
मौर्य वंश के शासन व्यवस्था में अधिकारीगण
सम्राट के अधिकारी के कार्य : दिए गए इस लिंक पर जाए |
मौर्य वंश के शासन व्यवस्था में अधिकारीगण
राजधर्म के नवीन सिद्वांत :
दक्षिण के राजा और सरदार :
सरदार और सरदारी : सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता है जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता है और नहीं भी | उसके समर्थक उसके खानदान के लोग होते है |
सरदार के कार्य :
1. विशेष अनुष्ठान का संचालन
2. युद्व के समय नेतृत्व करना
3. विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाना
4. वह अपने अधीन लोगों से भेंट लेता है और अपने समर्थकों में उस भेंट का वितरण करता है |
सरदारी में सामान्यतया कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते है |
सरदार और सरदारियों का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्र में स्थित तमिलकम ( तमिलनाडू , आंध्रप्रदेश और केरल के कुछ हिस्से ) में हुआ जहां चोल , चेर और पांड्य का शासन शामिल था |
दक्षिण के सरदार और सरदारियों के जानकारी स्रोत :
* तमिल संगम ग्रन्थ, सिल्प्पादिकारम ( महाकाव्य)
दैविक राजा :
* पहली सदी ईसा पू0 राजाओं के लिए उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए अपने आपको देवी-देवताओं के साथ जुड़ना आरम्भ किया जिसका प्रमुख उदहारण कुषाण वंश के शासकों का था |
* कुषाण शासको ने अपने अभिलेखों और सिक्कों तथा मूर्तियों के माध्यम से इसे जोड़ने का प्रयास किया था |
* कुषाण शासको के विशालकाय मूर्ती मथुरा के माट नामक देवस्थान से तथा अफगानिस्तान के एक देवस्थान से मिला है जिसमें अपने नाम के आगे " देवपुत्र " की उपाधि लगाईं थी |
* चौथी शताब्दी ई० में गुप्त साम्राज्य के साक्ष्य इतिहास , सिक्कों, और अभिलेखों से मिलती है |
* इस वंश के प्रतापी सम्राटों में चन्द्रगुप्त प्रथम , समुद्रगुप्त , चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य , कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त था |
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* गुप्त वंश की प्रमुख जानकारी हरिषेण द्वारा संस्कृत में लिखित प्रयाग प्रशस्ति है |
बदलता हुआ देहात :
जनता में राजा की छवि :
* इतिहासकारों ने विभिन्न अभिलेखों के अध्ययन के आधार पर यह मालुम करने का प्रयास किया की राजाओं के बारे में प्रजा क्या सोचती है , परन्तु अभिलेखों से जबाब नही मिलते है |
* परन्तु जातक ( पहली सहस्राब्दी ई० के मध्य में पाली भाषा में लिखित ) और पंचतंत्र कथाओं के माध्यम से पता लगाया |
* इन कथाओं से यह पता चलता है की राजा और प्रजा के सम्बन्ध तनावपूर्ण थे | क्योंकि राजा अपने राजकोष भरने के लिए बड़े -बड़े कर लगाते जिससे किसान त्रस्त थे |
उपज बढाने के तरीके :
* 6ठीशताब्दी ई० पू० लोहे का फाल का प्रयोग होने से गंगा और कावेरी घाटियों में उर्वर भूमि पर खेती का विस्तार होने लगा |
* उपज बढाने के लिए उपाय
- भारी वर्षा ,
- उर्वर भूमि ,
- लोहे के फाल का प्रयोग
- सिचाईं के लिए कुओं , तालाबों , नहरों का प्रयोग
- कठिन मेहनत से फसलों की पैदावार बढाने में मदद मिली |
* सिचाईं के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था | जूनागढ अभिलेख से पता चलता है |
* पंजाब और राजस्थान जैसे अर्धशुष्क जमीन वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग 20वीं सदी से शुरू हुआ |
*उपमहाद्वीप और पर्वतीय और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के लिए कुदाल का प्रयोग करते थे |
ग्रामीण समाज में विभिन्नताएं:
* समाज में खेती से जुड़े लोगों में उत्तरोतर भेद बढ़ रहा था |
* बौद्व कथाओं से यह जानकारी मिलती है की भूमिहीन , खेतिहर श्रमिकों , छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का वर्ग बन चूका था |
* पाली भाषा में गह्पति का प्रयोग छोटे किसानों और जमींदारों के लिए किया जाता था |
* गह्पति : गहपति घर का मुखिया होता था और घर में रहने वाली महिलाओं , बच्चों, नौकरों और दासों पर नियन्त्रण करता था | घर से जुड़े भूमि , जानवर या अन्य सभी वस्तुओं का वह मालिक होता था | कभी -कभी इस शब्द का प्रयोग नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता था |
* बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान किसानो पर नियन्त्रण रखते थे |
* ग्राम प्रधान का पद प्राय: वंशानुगत होता था |
* तमिल संगम साहित्य में भी ग्रामीण समाज के विभिन्न वर्गों का उल्लेख मिलाता है |
* बड़े जमींदार - वेल्लालर , हलवाहा - उल्वर , दास - अनिमई
भूमिदान और नए संभ्रात ग्रामीण :
* भूमिदान की नई प्रथा का पहला साक्ष्य सातवाहन शासन काल में मिलता है | शासकों ने इन भूमिदान का उल्लेख अपने अभिलेख और ताम्र पत्रों में किये है | अधिकाँश अभिलेख संस्कृत और कुछ तमिल और तेलुगु में है |
* भूमिदान के जो प्रमाण मिले है वे साधारण तौर पर धार्मिक संस्थाओं या ब्राह्मणों को दिए गए है |
* ऐसा ही एक दान का उल्लेख चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ( लगभग 375-415 ई० ) की पुत्री प्रभावती गुप्त ( उसका विवाह दक्कन पठार वाकाटक परिवार में हुआ था ) का मिलता है |
* अभिलेख से ग्रामीण प्रजा का भी पता चलता है | इनमें ब्राह्मण , किसान एवं अन्य जो शासकों या उनके प्रतिनिधियों को भेंट / उपहार प्रदान करते थे |
* अभिलेख में यह भी ज्ञात होता है की ग्रामीण प्रधान के आदेश का पालन करना पड़ता था और कर भी देना होता था |
भूमिदान का प्रभाव :इतिहासकारों में विवाद का विषय
1. भूमिदान शासक वंश द्वारा कृषि को नए क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी |
2. भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व को अपने समर्थक जुटाने का प्रयास था |
3. राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहता था |
* अग्रहार : अग्रहार उस भूमि को कहते थे जो ब्राह्मणों को दान किया जाता था | ब्राह्मणों से भूमिकर या अन्य प्रकार के कर नही वसूले जाते थे | ब्राह्मणों को स्वयं स्थानीय लोगों से कर वसूलने का अधिकार था |
* पशुपालक , संग्राहक , शिकारी , मछुआरे , शिल्पकार (घुमक्कड़ तथा एक हे स्थान पर रहने वाले ) और झूम की खेती करने वाले लोगों पर अधिकारियों या सामंतों का नियन्त्रण नही था |
नगर एवं व्यापार :
नए नगर :
* छठी शताब्दी ई० पू० उपमहाद्वीप के महाजनपदों के राजधानियां संचार मार्गों के किनारे बसे थे | पाटलीपुत्रा , बनारस जैसे शहर नदीमार्ग के किनारे तथा पुहार , भरूकच्छ जैसे नगर समुद्रतट के किनारे |
नए नगर :
* छठी शताब्दी ई० पू० उपमहाद्वीप के महाजनपदों के राजधानियां संचार मार्गों के किनारे बसे थे | पाटलीपुत्रा , बनारस जैसे शहर नदीमार्ग के किनारे तथा पुहार , भरूकच्छ जैसे नगर समुद्रतट के किनारे |
* पाटलीपुत्रा का विकास पाटलीग्राम नाम के एक गाँव से हुआ|
* 5वीं सदी ई० पू० मगध के शासको ने अपनी राजधानी राजगृह से हटाकर पाटलीग्राम लाया |
* 4थी सदी ई० पू० तक आते आते मौर्य साम्राज्य की राजधानी और एशिया के बड़े नगरों में से एक बन गया |
* 7 वीं सदी में चीनी यात्री श्वैन त्सांग को पाटलीपुत्रा खंडहर के रूप में मिला और इसकी जनसंख्या भी कम थी |
* महाजनपद काल में राजा और शासक वर्ग किलेबंद नगरों में रहते थे , यहाँ आंशिक रूप से खुदाई हुई है जहां से उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली है जिन पर चमकदार कलई चढी है ,और इसे उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र कहा जाता है |
* द्वितीय शताब्दी ई० पू० कई नगरों में छोटे दानात्म्क अभिलेख प्राप्त हुए जिनपर दाता का नाम और उसके व्यवसाय का भी उल्लेख है |
* नगरों में रहनेवाले धोबी , बुनकर, लिपिक , बढाई, कुम्हार , स्वर्णकार , लौहकार , अधिकारी धार्मिक गुरु ,व्यापारी और राजाओं के बारे में विवरण लिखे जाते थे |
* उत्पादकों और व्यापारियों के संघ का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें " श्रेणी " कहा गया है |
* श्रेणियां पहले कचे माल को खरीदती थी ;फिर उनसे सामान तैयार कर बाजार में बेच देती थी |
* छठी सदी ई० पू० से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्गों एवं भूमार्गों का जाल बिछ गया था | व्यापार नदी मार्ग , भूमार्ग एवं समुद्री मार्ग द्वारा होता था |
इन मार्गों की सुरक्षा के बदले राजा व्यापारियों से कर वसूलते थे |
* तमिल भाषा में मसत्थुवन और प्राकृत में सत्थावाह और सेठी के नाम से प्रसिद्व बड़े व्यापारी थे |
* नमक , अनाज, कपड़ा , धातु , और उससे निर्मित उत्पाद , पत्थर , लकड़ी, जड़ी-बूटी जैसे अनेक प्रकार के सामानों का व्यापार होता था |
* रोमन साम्राज्य में काली मिर्च , जैसे मसालों तथा कपड़ों व् जडी-बूटियों की भारी मांग थे जो अरब सागर के रास्ते भूमध्य क्षेत्र तक पहुंचाया जाता था |
* 6ठी सदी ई० पू० आहत सिक्कों का प्रचलन से व्यापार के लिए विनिमय कुछ हद तक आसान कर दिया |
* आहत सिक्के सम्राट द्वारा जारी किये जाते थे , मौर्य शासकों द्वारा जारी सिक्के प्राप्त हुए है | यह भी सम्भव है की व्यापारियों , धनपतियों और नागरिकों ने भी इस प्रकार के सिक्के जारी किये हों |
* आहतसिक्के चांदी और तांबे दोनों धातु से बनाये जाते थे |
* शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के हिन्द-यूनानी शासको ने जारी किये थे |
* सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम श्ताब्दी ईस्वी में कुशान शासकों ने जारी किये थे | उत्तर और मध्य भारत के कई पुरास्थ्लों पर ऐसे सिक्के मिले है |
* दक्षिण भारत में रोमन साम्राज्य के सिक्के मिले है जो व्यापारिक गतिविधियों का परिचायक था |
* प्रथम शताब्दी में पंजाब और हरियाणा क्षेत्रों में यौधेय शासकों द्वारा जारी सिक्के मिले है जो उनकी व्यापार में रुचि और सहभागिता परिलक्षित होती है |
* गुप्त शासकों ने सर्वाधिक सोने के सिक्के जारी किये | इन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में " दीनार " कहा गया है | यह आर्थिक समृद्वी का सूचक भे था |
* छठी सदी ई० से सोने के सिक्के बहुत कम मिले है | इससे यह संकेत मिलता है की आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया हो , साम्राज्य का पतन हो गया हो , व्यापार में कमी हो गयी हो |
नोट :
- " पेरिप्लस आफ एरीथ्रियन सी " एक यूनानी समुद्री यात्री द्वारा रचित ग्रन्थ है जो लगभग प्रथम शताब्दी हिन्द महासागर के यात्रा पर आया था |
- " पेरिप्लस " (यूनानी शब्द ) का अर्थ होता है " समुद्री यात्रा
- " एरीथ्रियन " ( यूनानी शब्द ) का अर्थ होता है " अरब सागर
- " मुद्राशास्त्र "- सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहते है , इसके साथ ही उन पर पाए जाने वाले चित्र , लिपि आदि तथा उनकी चातुओं का विश्लेषण और जिन सन्दर्भ में इन सिक्के को पाया गया है , उनका अध्ययन भी मुद्राशास्त्र के अंतर्गत आता है |
अभिलेखों का अर्थ निकालने के तरीके :
ब्राह्मी लिपि का अध्ययन:
* आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त लगभग सभी लीपियों का मूल ब्राह्मी लिपि है |
*सम्राट अशोक के आधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है |
*यूरोपीय विद्वानों ने भारतीय विद्वानों की सहायता से देवनागरी लिपि में कई पांडुलिपियों का अध्ययन किया और उनके अक्षरों की प्राचीन अक्षरों के नमूनों से तुलना की |
* कई दशकों के बाद अभिलेख वैज्ञानिकों ने प्राकृत भाषा से तुलना के बाद जेम्स प्रिसेप ने अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का 1838 ई०में अर्थ निकाल लिया|
खरोष्ठी लीपि का अध्ययन :
* पश्चिमोत्तर भारत के अभिलेखों में प्रयुक्त खरोष्ठी लिपि का अध्ययन द्वितीय –प्रथम शताब्दी ई० पू० हिन्द-यूनानी राजाओं द्वारा बनवाए गए सिक्कों के अक्षरों से मिलान किया जिससे अभिलेखों का पढ़ना आसान हो गया |
अभिलेखों से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य का अध्ययन :
* माना की अशोक के दो अभिलेख प्राप्त हुए | उनमें एक अभिलेख पर अशोक द्वारा अपनाई गयी उपाधियों का प्रयोग किया गया जैसे "देवानांपीय अर्थात देवताओं का प्रिय" और “ पियदस्सी “ यानी “ देखने में सुन्दर “ |
* अशोक नाम अन्य अभिलेखों में मिलता है जिनमें उनकी उपाधियाँ भी है |इस अभिलेखों का परीक्षण करने के बाद अभिलेखाशास्त्रियों ने पता लगाया की उनके विषय, शैली, भाषा और पुरालिपिविज्ञान सबमें समानता है |
अत: इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उक्त अभिलेखों का एक ही शासक ने बनवाया था |
* इतिहासकारों को अभिलेखों के अध्ययन हेतु अन्य परीक्षण करने पड़ते है | जैसे यदि राजा के आदेश यातायात मार्गो के किनारे और नगरों के पास प्राकृतिक पत्थरों पर उत्कीर्ण थे , तो क्या उस रास्ते से आने जाने वाले लोग पढ़ते थे ?
* क्या अधिकांश लोग पढ़े –लिखे थे ?
* क्या मगध (पाटलीपुत्रा ) में प्रयुक्त प्राकृत भाषा सभी स्थानों पर समझते थे ?
* क्या राजा के आदेशों का पालन किया जाता था ? इन प्रश्नों के उत्तर पाना पुरातत्ववेत्ताओं/इतिहासकारों के लिए आसान नही है |
अभिलेख साक्ष्य की सीमा :
* अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा है |
* अभिलेखों में अक्षरों का अंकन हलके ढंग से हुआ है जिन्हें पढ़ना आसान नही होता है |
* अभिलेख नष्ट भी हो सकते है, जिनका अक्षर लुप्त हो सकता है |ऐसे में वास्तविक अर्थ लगा पाना मुश्किल होता है क्योंकि कुछ अर्थ विशेष स्थान या समय से सम्बन्धित होते है |
* कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए है लेकिन सभी का अर्थ नही निकाले जा सके है |
* कई हजार अभिलेख ऐसे भी रहे होंगे जो कालान्तर में नष्ट हो गए होंगे, जो अभिलेख उपलब्ध है उसके ये अंश मात्र है |
* अभिलेख प्राय: किसी विशेष अवसरों का वर्णन करते है | यह उन्ही व्यक्तियों के विचार व्यक्त करते है जो उन्हें लिखवाते है |
समाप्त
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M. PRASAD
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