Bricks, beads and bones :ncert notes
ईंट, मनके तथा अस्थियाँ (हड़प्पा सभ्यता)
परिचय :
* पुरातत्व क्या है ?
* सिन्धु नदी घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है |
* हड़प्पा संस्कृति क्या है ?,
* हड़प्पा सभ्यता की राजनैतिक ,आर्थिक, समाजिक और धार्मिक व्यवस्था कैसी थी ?
हड़प्पा सभ्यता
* पुरातत्व : पुरातत्व वह विज्ञान है जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्रियों की खुदाई कर अतीत के लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ।
* संस्कृति: पुरातत्व संस्कृति शब्द का प्रयोग पूरा- वस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं और सामान्यतया एक साथ , एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा कालखंड से संबद्ध पाए जाते हैं ।
हड़प्पा संस्कृति के संदर्भ में इन पूरा- वस्तुओं के मुहरे, मनके, बाट , पत्थर के फलक और पकी हुई ईट सम्मिलित है । यह वस्तुएं अफगानिस्तान , जम्मू , बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से मिली है ।
* हड़प्पा संस्कृति : इस सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक का स्थान , जहां यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी , के नाम पर किया गया है । इसका काल निर्धारण 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है । इस सभ्यता के पहले और बाद में भी संस्कृतियां अस्तित्व में थी जिन्हें क्रमशः आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है ।
समय निर्धारण से सम्बद्ध शब्द :
BC : Before Christ (ईसा के जन्म के पूर्व का काल)
AD : Anno Domini(ईसा के जन्म के बाद का काल)
BCE: Before Common Era
CE: Common Era
BP : Before Present ( वर्तमान से पहले )
BC : Before Christ (ईसा के जन्म के पूर्व का काल)
AD : Anno Domini(ईसा के जन्म के बाद का काल)
BCE: Before Common Era
CE: Common Era
BP : Before Present ( वर्तमान से पहले )
आरंभिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृति : सिंध और चोलिस्तान में बस्तियों की संख्या : -
सिंध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित - 43 132
(हड़प्पा स्थल )
त्याग दिए गए आरम्भिक 29 33
(हड़पा स्थल)
सिंध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित - 43 132
(हड़प्पा स्थल )
त्याग दिए गए आरम्भिक 29 33
(हड़पा स्थल)
* सिंधु घाटी सभ्यता से पहले भी कई संस्कृतियां अस्तित्व में थी जिसका प्रभाव विशिष्ट मृदभांड , कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य से पता चलता है ।
* हड़प्पा सभ्यता में निवासी पेड़ पौधों से प्राप्त उत्पाद और जानवरों , जिसमें मछली शामिल है , से भोजन प्राप्त करते थे ।
* उत्खनन में गेहूं , दाल , सफेद चना और तिल मिले हैं ।
* जानवरों की हड्डियों में भेड़ , बकरी और सुअर की हड्डियां शामिल है । यह सभी पालतू जानवर थे।
* मोहरों पर किए गए रेखांकन तथा मृण्यमूर्तियों से यह इंगित होता है कि खेत जोतने के लिए बैल का प्रयोग होता था ।
* चोलिस्तान के स्थलों और बनवाली( हरियाणा से मिट्टी से बने हल मिले हैं ।
* कालीबंगा (राजस्थान ) से जूते हुए खेत का साथ मिला है ।
* फसलों में कटाई हेतु धातु के औजार का प्रयोग करते थे ।
* अफगानिस्तान में शोर्टघुई से नहर के प्रमाण मिले हैं ।
* धोलावीरा( गुजरात) से जलाशयों का प्रयोग कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था ।
हड़प्पा संस्कृति की सर्वप्रमुख विषेशता इसका नगर निर्माण योजना है । हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में पूर्व एवम पश्चिम में दो टीले मिलते है । पूर्वी टिले पर नगर तथा पश्चिमी टीले पर दुर्ग स्थित है । दुर्ग में सम्भवतः शासक वर्ग के लोग रहते थे। दुर्ग में परिखा ,प्रकार ,द्वार, राजमार्ग, प्रासाद ,सभा ,एवं जलाशय आदि वस्तु के सभी तत्व मिलते है। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर निचले स्तर पर ईंटों के मकानों वाला नगर बसा था। जहां सामान्य लोग रहते थे। नगरो के दुर्ग ऊँची और चौड़ी प्राचीरों में बुर्ज तथा मुख्य दिशाओं में द्वार बनाये गए थे। इनका निर्माण एक सुनियोजित योजना के आधार पर किया गया था ।
1. सड़क व्यवस्था: मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशेषता उसकी सड़कें थी।यहां की मुख्य सड़क 9.15 मीटर चौड़ी थी जिसे पुरातत्वविदों ने राजपथ कहा है ।अन्य सड़कों की लंबाई 2.75m से 3.66m तक थीं । जाल पद्वति के आधार पर नगर नियोजन होने के कारण सड़कें एक दुसरे के समकोण पर काटती थी जिनसे नगर कई खंडों में विभक्त हो गया था।इस पद्वति को आक्सफोर्ड सर्कस का नाम दिया गया हैं।सड़कें मिट्टी क़ी बनीं थी।एवँ इनकी सफाई की समुचित व्यवस्था थी। कुड़ा-करकट इकट्ठा करने के लिए गड्डे बनाये जाते या कूड़ेदान रखे जाते थे।
2. जल निकास प्रणाली:: हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना क़ी एक औऱ विषेशता जल निकास प्रणाली है।यहाँ के अधिकांश भवनों मे निजी कुँए एवं स्नानागार होते थे।भवनो के कमरे, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी छोटी नालियों से निकल कर गली की नाली मे आता था। गली की नाली को मुख्य सडक के दोनो ओर बनी नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य सडक के दोनों ओर बनी पक्की नालियों को पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा ढक दिया जाता था । नालियों की सफाई एवम कूड़ा करकट को निकालने के लिए बीच बीच में नर मोखे (main hole) भी बनाये जाते थे।
3. स्नानागार: मोहनजोदड़ो का प्रमुख सार्वजनिक स्थल हैं यहाँ के विशाल दुर्ग में स्थित विशाल स्नानागार। यह 39 फुट लम्बा*23फुट चौडा*8फुट गहरा है। इसमें उतरने के लिए उत्तर एवं दक्षिण की ओर सीढ़ीयां बनी है । स्नानागार का फर्श पक्की ईटो से बनी है। सम्भवतः इस विशाल स्नानागार का उपयोग अनुष्ठानिक स्नान हेतु होता होगा । मार्शल महोदय ने इसी कारण इसे तत्कालीन विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण कहा है ।
स्रोत: गूगल नेट
4. अन्नागार: मोहनजोदड़ो में ही 45 .72 लम्बाई मीटर * चौड़ाई 22.86 मीटर एक अन्नागार मिला है । हड़प्पा के दूर्ग में भी 12 धन्य कोठार खोजे गए है । ये दो कतारों में 6-6 की संख्या में है । प्रत्येक का आकार 15.23 मीटर × 6.09 मीटर है । अन्नागार का सुदृढ व्यवस्था एक उच्चकोटि की थी ।
5.ईंट : हड़प्पा संस्कृति के नगरो मे प्रयुक्त ईटे एक विशेषता थी। इस काल की ईंट चतुर्भजाकार थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त सबसे बड़ी ईंट का आकार 51.43cm*26.27cm*6.35 cm है। परन्तु सामान्य ईंटो का प्रयोग 27.94cm * 13.97cm * 6.35cm आकार वाली है ।
* गृह स्थापत्य : मोहनजोदड़ो का निचला हिस्सा आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है । इनमे से कई एक आंगन पर केंद्रित थे , जिसके चारों ओर कमरे बने थे । संभवत: आंगन खाना पकाने और कताई करने जैसी गतिविधियों का केंद्र था । खास तौर से गर्म और शुष्क मौसम के लिए ।भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियां नही थी । हर घर ईंटो के फर्श से बना अपना एक स्नानाघर होता था जिसकी नालियाँ दीवारों के माध्यम से सडक़ की नालियों से जुड़ी हुई थी । कुछ घरों में दूसरे तल/छत पर जाने के लिए सीढ़ियों के अवशेष मिले है । कई आवासों में ऐसे कुँए होते थे जिससे बाहर का व्यक्ति भी प्रयोग कर सकता था। मोहनजोदड़ो में ऐसे कुओं की संख्या अनुमानतः 700 बताई गई है ।
हम कह सकते है कि हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषता नगर नियोजन प्रणाली है जो अन्य समकालीन सभ्यता में नही दिखती है।
2. जल निकास प्रणाली:: हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना क़ी एक औऱ विषेशता जल निकास प्रणाली है।यहाँ के अधिकांश भवनों मे निजी कुँए एवं स्नानागार होते थे।भवनो के कमरे, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी छोटी नालियों से निकल कर गली की नाली मे आता था। गली की नाली को मुख्य सडक के दोनो ओर बनी नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य सडक के दोनों ओर बनी पक्की नालियों को पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा ढक दिया जाता था । नालियों की सफाई एवम कूड़ा करकट को निकालने के लिए बीच बीच में नर मोखे (main hole) भी बनाये जाते थे।
3. स्नानागार: मोहनजोदड़ो का प्रमुख सार्वजनिक स्थल हैं यहाँ के विशाल दुर्ग में स्थित विशाल स्नानागार। यह 39 फुट लम्बा*23फुट चौडा*8फुट गहरा है। इसमें उतरने के लिए उत्तर एवं दक्षिण की ओर सीढ़ीयां बनी है । स्नानागार का फर्श पक्की ईटो से बनी है। सम्भवतः इस विशाल स्नानागार का उपयोग अनुष्ठानिक स्नान हेतु होता होगा । मार्शल महोदय ने इसी कारण इसे तत्कालीन विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण कहा है ।
स्रोत: गूगल नेट
4. अन्नागार: मोहनजोदड़ो में ही 45 .72 लम्बाई मीटर * चौड़ाई 22.86 मीटर एक अन्नागार मिला है । हड़प्पा के दूर्ग में भी 12 धन्य कोठार खोजे गए है । ये दो कतारों में 6-6 की संख्या में है । प्रत्येक का आकार 15.23 मीटर × 6.09 मीटर है । अन्नागार का सुदृढ व्यवस्था एक उच्चकोटि की थी ।
5.ईंट : हड़प्पा संस्कृति के नगरो मे प्रयुक्त ईटे एक विशेषता थी। इस काल की ईंट चतुर्भजाकार थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त सबसे बड़ी ईंट का आकार 51.43cm*26.27cm*6.35 cm है। परन्तु सामान्य ईंटो का प्रयोग 27.94cm * 13.97cm * 6.35cm आकार वाली है ।
हम कह सकते है कि हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषता नगर नियोजन प्रणाली है जो अन्य समकालीन सभ्यता में नही दिखती है।
हड़प्पा सभ्यता के राजनीतिक संगठन :
* हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता थी।
* हड़प्पा सभ्यता की शासन व्यवस्था के बारे में साक्ष्यों के अभाव में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती ।
* हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता थी।
* हड़प्पा सभ्यता की शासन व्यवस्था के बारे में साक्ष्यों के अभाव में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती ।
* उत्खनन के परिणाम स्वरूप जो साक्ष्य उपलब्ध हैं उनसे इस सभ्यता के राजनीतिक स्वरूप का अनुमान भर लगाया जा सकता है ।
* मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में प्राप्त दुर्गों से प्रतीत होता है कि यहां का शासन सुदृढ़ दुर्गों द्वारा होता था ।
* ऐसा अनुमान है कि उनका एक राजा होता था जो सम्भवतः पुरोहित होता था ।
* जनता से कर के रूप में अनाज लिया जाता था ।
* हड़प्पा और मोहनजोदड़ो क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी भारत का शासन केंद्र थे । इसीलिए स्टूअर्ट पिग्गट महोदय ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को सिंधु घाटी नदी सभ्यता की जुड़वां राजधानी बतलाया है ।
* कुछ विद्वानों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का शासन व्यापारी वर्ग के हाथ में था ।
* मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में प्राप्त दुर्गों से प्रतीत होता है कि यहां का शासन सुदृढ़ दुर्गों द्वारा होता था ।
* ऐसा अनुमान है कि उनका एक राजा होता था जो सम्भवतः पुरोहित होता था ।
* जनता से कर के रूप में अनाज लिया जाता था ।
* हड़प्पा और मोहनजोदड़ो क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी भारत का शासन केंद्र थे । इसीलिए स्टूअर्ट पिग्गट महोदय ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को सिंधु घाटी नदी सभ्यता की जुड़वां राजधानी बतलाया है ।
* कुछ विद्वानों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का शासन व्यापारी वर्ग के हाथ में था ।
हड़प्पा सभ्यता के सामाजिक जीवन :
* हड़प्पा सभ्यता में परिवार ही सामाजिक इकाई थी।
* समाज मातृसत्तात्मक था ।
* हड़प्पा सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन करते थे ।
* खुदाई से प्राप्त सुइयों के अवशेष से पता चलता है कि वे लोग सिले वस्त्र पहनते थे ।
* स्त्रियां जूड़ा बांधती थी, पुरूष लम्बे लम्बे बाल तथा दाढ़ी-मूंछ रखते थे ।
* हड़प्पा वासी आभूषण के शौकीन थे ।- कण्ठहार, कर्णफूल, हंसुली, भुजबंध , अंगूठी, करधनी आदि
* चन्हूदड़ों से लिपिस्टिक के अस्तित्व मिले है ।
* आभूषण बहुमूल्य पत्थरों, हाथी दांत , हड्डी, एवं शंख के बने होते थे ।
* मिट्टी एवं धातुओं से निर्मित बर्तनों का प्रयोग करते थे ।
* आमोद प्रमोद के साधन उपलब्ध थे । पासा , नृत्य, शिकार करना आदि ।
* हड़प्पा सभ्यता में परिवार ही सामाजिक इकाई थी।
* समाज मातृसत्तात्मक था ।
* हड़प्पा सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन करते थे ।
* खुदाई से प्राप्त सुइयों के अवशेष से पता चलता है कि वे लोग सिले वस्त्र पहनते थे ।
* स्त्रियां जूड़ा बांधती थी, पुरूष लम्बे लम्बे बाल तथा दाढ़ी-मूंछ रखते थे ।
* हड़प्पा वासी आभूषण के शौकीन थे ।- कण्ठहार, कर्णफूल, हंसुली, भुजबंध , अंगूठी, करधनी आदि
* चन्हूदड़ों से लिपिस्टिक के अस्तित्व मिले है ।
* आभूषण बहुमूल्य पत्थरों, हाथी दांत , हड्डी, एवं शंख के बने होते थे ।
* मिट्टी एवं धातुओं से निर्मित बर्तनों का प्रयोग करते थे ।
* आमोद प्रमोद के साधन उपलब्ध थे । पासा , नृत्य, शिकार करना आदि ।
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक जीवन :
* हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन स्वरूप प्राप्त अवशेषो के आधार पर धार्मिक स्वरूप का अनुमान लगा सकते है ।
* हड़प्पा सभ्यता से कोई मन्दिर और ना ही ऐसा कोई भवन मिला है जिसे मन्दिर की संज्ञा दी जा सके ।
* मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त मृण्मूतियों को पुरातत्वविदों द्वारा मातृदेवी की मूर्तियां मानते है ।अर्थात मातृदेवी की पूजा होती होगी।
* एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है जो सम्भवतः धरती देवी की मूर्ति है ।
* मोहनजोदड़ो से एक मुद्रा प्राप्त हुई है जिसमें तीन मुख्य वाला एक पुरूष योग मुद्रा में बैठा है । इसके तीन सिंग है । इसके बाएं ओर एक गैंडा और भैंसा है , दायीं ओर एक हाथी और व्याघ्र , इसके सम्मुख हिरन है । इसकी तुलना पशुपति से की गई है ।
* हड़प्पा सभ्यता में बहुसंख्या में लिंग-योनि की प्राप्ति हुई है जो लिंग पूजा के संकेत है ।
* कूबड़ वाला बैल विशेष पूजनीय था ।
* नाग पूजा के संकेत मिले है ।
* बड़ी संख्या में ताबीज़ मिले है । लगता है तन्त्र-मन्त्र में लोगों का विश्वास था ।
* मोहनजोदड़ो में स्वास्तिक पर्याप्त संख्या में मिले है , जो सूर्य पूजा का संकेत है ।
* कालीबंगा और लोथल से ईंटों की बनी वेदी मिली है जो अग्नि पूजा का साक्ष्य है ।
* कालीबंगा से हवन कुंड मिले है जो यज्ञ का साक्ष्य है ।
* हड़प्पा सभ्यता के लोग तीन तरीकों से मृतकों का दाह संस्कार करए थे ।
1. पूर्ण समाधिकरण- शव को भूमि के नीचे गाढ़ दिया जाता था ।
2. आंशिक समाधिकरण:- इसमें पशु पक्षियों के खाने के बाद बचे शेष को गाढ़ दिया जाता ।
3. दाह कर्म- इसमें शव जला दिया जाता एवं उसकी भस्म को गाढ़ दिया जाता था ।
* हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन स्वरूप प्राप्त अवशेषो के आधार पर धार्मिक स्वरूप का अनुमान लगा सकते है ।
* हड़प्पा सभ्यता से कोई मन्दिर और ना ही ऐसा कोई भवन मिला है जिसे मन्दिर की संज्ञा दी जा सके ।
* मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त मृण्मूतियों को पुरातत्वविदों द्वारा मातृदेवी की मूर्तियां मानते है ।अर्थात मातृदेवी की पूजा होती होगी।
* एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है जो सम्भवतः धरती देवी की मूर्ति है ।
* मोहनजोदड़ो से एक मुद्रा प्राप्त हुई है जिसमें तीन मुख्य वाला एक पुरूष योग मुद्रा में बैठा है । इसके तीन सिंग है । इसके बाएं ओर एक गैंडा और भैंसा है , दायीं ओर एक हाथी और व्याघ्र , इसके सम्मुख हिरन है । इसकी तुलना पशुपति से की गई है ।
* हड़प्पा सभ्यता में बहुसंख्या में लिंग-योनि की प्राप्ति हुई है जो लिंग पूजा के संकेत है ।
* कूबड़ वाला बैल विशेष पूजनीय था ।
* नाग पूजा के संकेत मिले है ।
* बड़ी संख्या में ताबीज़ मिले है । लगता है तन्त्र-मन्त्र में लोगों का विश्वास था ।
* मोहनजोदड़ो में स्वास्तिक पर्याप्त संख्या में मिले है , जो सूर्य पूजा का संकेत है ।
* कालीबंगा और लोथल से ईंटों की बनी वेदी मिली है जो अग्नि पूजा का साक्ष्य है ।
* कालीबंगा से हवन कुंड मिले है जो यज्ञ का साक्ष्य है ।
* हड़प्पा सभ्यता के लोग तीन तरीकों से मृतकों का दाह संस्कार करए थे ।
1. पूर्ण समाधिकरण- शव को भूमि के नीचे गाढ़ दिया जाता था ।
2. आंशिक समाधिकरण:- इसमें पशु पक्षियों के खाने के बाद बचे शेष को गाढ़ दिया जाता ।
3. दाह कर्म- इसमें शव जला दिया जाता एवं उसकी भस्म को गाढ़ दिया जाता था ।
हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक जीवन :
* कृषि मूल आधार
* फसल - कपास ,गेहूँ, जौ , मटर, तिल, बाजरा
* लोथल और रंगपुर (गुजरात) - धान की भूसी ,बाजरा
* हड़प्पा - मटर, तिल
* फल- केला , नारियल, खजूर , अनार ,नीबू ,तरबूज
* अनाज पीसने के लिए चक्कियों, व कूटने के लिए ओखली का प्रयोग ।
* युनानियों ने कपास को सिंडन कहा है ।
* पशुपालन: बैल,कुता, हाथी, सुअर,गधा , ऊँट पालतू जानवर
* बिल्ली,बन्दर,खरगोश, हिरन, मुर्गा , मोर , तोता ,उल्लू , हंस आदि के चित्र भी यहां प्राप्त मूर्तियों , खिलौनों एवं मुहरों पर मिले है ।
* कृषि मूल आधार
* फसल - कपास ,गेहूँ, जौ , मटर, तिल, बाजरा
* लोथल और रंगपुर (गुजरात) - धान की भूसी ,बाजरा
* हड़प्पा - मटर, तिल
* फल- केला , नारियल, खजूर , अनार ,नीबू ,तरबूज
* अनाज पीसने के लिए चक्कियों, व कूटने के लिए ओखली का प्रयोग ।
* युनानियों ने कपास को सिंडन कहा है ।
* पशुपालन: बैल,कुता, हाथी, सुअर,गधा , ऊँट पालतू जानवर
* बिल्ली,बन्दर,खरगोश, हिरन, मुर्गा , मोर , तोता ,उल्लू , हंस आदि के चित्र भी यहां प्राप्त मूर्तियों , खिलौनों एवं मुहरों पर मिले है ।
शिल्प तथा उद्योग- धंधे :
* कपड़ा बुनाई ,
* मिट्टी वर्तन का निर्माण ,
* आभूषणों का निर्माण- शंख , सीप, घोंघा, हाथी दांत से आभूषण का निर्माण ,
* पशु एवं मानव तथा टेरीकोटा का निर्माण,
* कपड़ा बुनाई ,
* मिट्टी वर्तन का निर्माण ,
* आभूषणों का निर्माण- शंख , सीप, घोंघा, हाथी दांत से आभूषण का निर्माण ,
* पशु एवं मानव तथा टेरीकोटा का निर्माण,
व्यापार तथा वाणिज्य :
* हड़प्पा और मोहनजोदड़ो प्रमुख व्यापारिक स्थल
* वस्तु विनिमय प्रणाली
* जलमार्ग एवं स्थलमार्ग से व्यापार
* बाट का प्रयोग - 1,2,4,8,16,32,64 का अनुपात
* सर्वाधिक 16 इकाई का प्रयोग
* दशमलव प्रणाली का प्रयोग जानते
* लोथल (गुजरात) से गोदिवाड़ा(बन्दरगाह) होने का प्रमाण
* हड़प्पा सभ्यता का व्यापारिक सम्बन्ध मेसोपोटामिया , दलमून( बहरीन ) से था
* हड़प्पा और मोहनजोदड़ो प्रमुख व्यापारिक स्थल
* वस्तु विनिमय प्रणाली
* जलमार्ग एवं स्थलमार्ग से व्यापार
* बाट का प्रयोग - 1,2,4,8,16,32,64 का अनुपात
* सर्वाधिक 16 इकाई का प्रयोग
* दशमलव प्रणाली का प्रयोग जानते
* लोथल (गुजरात) से गोदिवाड़ा(बन्दरगाह) होने का प्रमाण
* हड़प्पा सभ्यता का व्यापारिक सम्बन्ध मेसोपोटामिया , दलमून( बहरीन ) से था
वस्तुओं का आयात - निर्यात
* सोना- अफगानिस्तान, फारस, दक्षिण भारत
* चांदी - ईरान , अफगानिस्तान
* लाजवर्द( नील रत्न )- अफगानिस्तान
* सीसा - ईरान , अफगानिस्तान
* सुलेमानी पत्थर - सौराष्ट्र , पश्चिम भारत
* सेलखड़ी - राजस्थान, बलोचिस्तान
* नीलमणि- महाराष्ट्र
* शंख - उड़ीसा, दक्षिण भारत
* सोना- अफगानिस्तान, फारस, दक्षिण भारत
* चांदी - ईरान , अफगानिस्तान
* लाजवर्द( नील रत्न )- अफगानिस्तान
* सीसा - ईरान , अफगानिस्तान
* सुलेमानी पत्थर - सौराष्ट्र , पश्चिम भारत
* सेलखड़ी - राजस्थान, बलोचिस्तान
* नीलमणि- महाराष्ट्र
* शंख - उड़ीसा, दक्षिण भारत
* मेसोपोटामिया से प्राप्त सिंधु सभ्यता सम्बन्धी अभिलेखों से इसका नाम मेलुहा मिलता है ।
* ऋग्वेद में हडप्पा सभ्यता को हरियूपिया कहा गया है ।
* ऋग्वेद में हडप्पा सभ्यता को हरियूपिया कहा गया है ।
* भारत में भारत का इतिहास जानने हेतु पुरातात्विक अन्वेषण का आरम्भ 15 जनवरी 1784 ई0 को विलियम जोन्स ने कलकत्ता में एसियाटिक सोसायटी की स्थापना की ।
* भारत में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना 1861 ई0 में हुई और एलेक्जेंडर कनिंघम को इसका निर्देशक नियुक्त किया गया ।
* 1902 ई0 में भारतीय पुरातत्व विभाग का जनरल डायरेक्टर सर जान मार्शल नियुक्त किया गया ।
* 1924 ई0 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल सर जान मार्शल ने सिंधु नदी घाटी सभ्यता की खोज की घोषणा की ।
* 1826 ई0 में सर्वप्रथम हड़प्पा टीले का उल्लेख चालर्स मैसन द्वारा किया गया ।
* 1856 ई0 में करांची से लाहौर तक रेललाइन बिछाने के दौरान हुई खुदाई में जान ब्रंटन एवं विलियम ब्रंटन नामक अंग्रेजों को कुछ पुरातात्विक अवशेष मिले।
* 1921 ई0 में दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रावी नदी के तट पर हड़प्पा नामक स्थल की खोज की ।
* 1922 ई0 में राखलदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो स्थल की खोज की ।
* भारत में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना 1861 ई0 में हुई और एलेक्जेंडर कनिंघम को इसका निर्देशक नियुक्त किया गया ।
* 1902 ई0 में भारतीय पुरातत्व विभाग का जनरल डायरेक्टर सर जान मार्शल नियुक्त किया गया ।
* 1924 ई0 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल सर जान मार्शल ने सिंधु नदी घाटी सभ्यता की खोज की घोषणा की ।
* 1826 ई0 में सर्वप्रथम हड़प्पा टीले का उल्लेख चालर्स मैसन द्वारा किया गया ।
* 1856 ई0 में करांची से लाहौर तक रेललाइन बिछाने के दौरान हुई खुदाई में जान ब्रंटन एवं विलियम ब्रंटन नामक अंग्रेजों को कुछ पुरातात्विक अवशेष मिले।
* 1921 ई0 में दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रावी नदी के तट पर हड़प्पा नामक स्थल की खोज की ।
* 1922 ई0 में राखलदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो स्थल की खोज की ।
* हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम -1600km एवं उत्तर से दक्षिण - 1100 km है । यह त्रिभुजाकार है और लगभग 13 लाख वर्ग km में फैला है ।
* यह सभ्यता उत्तर में जम्मू (अखनूर) , दक्षिण में नर्मदा नदी तट ,पूर्व में मेरठ तथा पश्चिम में बलूचिस्तान(मकरान) तक फैला है ।
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण:
1. सर जान मार्शल : 3250-2750 ई0 पू0
2. अर्नेस्ट मैके : 2800-2500 ई0 पू0
3. माधव स्वरूप वत्स : 2700-2500 ई0 पू0
4. राधाकुमुद मुखर्जी : 3200-2750 ई0 पू0
5. आर. ई. एम. व्हील : 2500- 1750 ई00 पू0
6. वी. ए. स्मिथ : 2500-1500ई0 पू0
7. रेडियो कार्बन विधि(C-14) : 2500-1750 ई0 पू0
कार्बन विधि(C-14) और व्हीलर का मत विद्वानों द्वारा मान्य की गई है ।
इस सभ्यता के काल निर्धारण में इतिहासकरो में मतभेद है।
विभिन्न इतिहासकारो के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के निर्माता:
विद्वान हड़प्पा सभ्यता के निर्माता
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1.डॉक्टर गुहा मंगोल, आग्नेय,एल्पाइन(मिश्रित जाति
2.रंगनाथ राव बहुजातीय जिसमे एक आर्य भी
3.जी. गार्डन। सुमेरियन
4.डा. व्हीलर द्रविड़
5.राम प्रसाद चंद्र व्यापारी
विद्वान हड़प्पा सभ्यता के निर्माता
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1.डॉक्टर गुहा मंगोल, आग्नेय,एल्पाइन(मिश्रित जाति
2.रंगनाथ राव बहुजातीय जिसमे एक आर्य भी
3.जी. गार्डन। सुमेरियन
4.डा. व्हीलर द्रविड़
5.राम प्रसाद चंद्र व्यापारी
हड़प्पा सभ्यता के काल को लेकर इतिहासकारो में मतभेद हैं।विभिन्न इतिहासकारों ने इस सभ्यता का काल निम्नानुसार निर्धारित किया है।
संख्या विद्वान काल
1. सर जॉन मार्शल 3250-2750 ई.पू.
2. अर्नेस्ट मैके 2800-2500 ई.पू.
3. माधव स्वरूप वत्स 2700-2500 ई.पू.
4. राधा कुमुद मुखर्जी 3200-2750 ई.पू.
5. व्हीलर 2500-1750 ई.पू.
6. वी.ए. स्मिथ 2500-1500 ई.पू.
7. रेडियो कार्बन विधि(C-14) 2500-1750 ई.पू.
इसमें C-14 विधि एवं व्हीलर द्वारा निर्धारित हड़प्पा सभ्यता की तिथि 2500-1750 ई.पू. अधिकतर इतिहासकारो द्वारा मान्य की गई हैं ।
सिंधु नदी घाटी सभ्यता प्रमुख स्थल एवं खोजकर्ता
सिंधु नदी घाटी सभ्यता प्रमुख स्थल एवं खोजकर्ता
हड़प्पा सभ्यता का पतन
1. सर जान मार्शल , मैके, एस.आर. राव, एम. आर. साहनी के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का पतन नदियों में आये बाद के कारण हुआ था।
2. व्हीलर , गार्डन चाइल्ड ,पिग्गट के अनुसार बाह्य आक्रमण हड़प्पा सभ्यता के पतन का मयखय कारण था ।
3. आरेन स्टाइन , ए. एन. घोष के अनुसार जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण था ।
4. माधोस्वरूप वत्स , एच. टी. लैम्ब्रिक के अनुसार नदियों के मार्ग परिवर्तन के कारण सभ्यता का पतन हुआ ।
5. के. यू. आर. केनेडी महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं को पतन का जिम्मेदार माना है ।
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M. PRASAD
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