Saturday 28 November 2020

Money & Credit (मुद्रा एवं साख ) NCERT NOTES CLASS 10 ECONOMICS


Money & Credit (मुद्रा एवं साख )


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वस्तु विनिमय प्रणाली:
 विनिमय की जिस प्रणाली में लोग एक चीज के बदले दूसरी चीज की लेन देन करते हैं उसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं। जब मुद्रा का प्रचलन शुरु नहीं हुआ था तो लोग वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रयोग करते थे। आज भी कुछ स्थानों पर वस्तु विनिमय प्रणाली का इस्तेमाल होता है।


आवश्यकताओं का दोहरा संयोग:
यह वस्तु विनिमय के लिये एक जरूरी शर्त है। यह वस्तु विनिमय प्रणाली की सबसे बड़ी कमजोरी भी है। मान लीजिए कि आपको अपने एक किलो आलू के बदले एक पारले बिस्कुट चाहिए। आपको किसी ऐसे आदमी को ढूंढना होगा जिसे अपने पारले बिस्कुट के लिए एक एक किलो आलू की जरूरत हो। ऐसे दो लोगों को ढ़ूँढ़ना एक मुश्किल काम होता है जिन्हें एक दूसरे की चीज अदल-बदल करनी हो।

मुद्रा:


मुद्रा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी भी वस्तु को विनिमय करते है | मुद्रा के माध्यम से ही क्रेता और विक्रेता वस्तुओं और सेवाओं की खरीद –बिक्री करते है , क्योंकि मुद्रा सरकार द्वारा प्राधिकृत होता है |

मुद्रा के आधुनिक रूपों में “कागज़ के नोट” और “सिक्के “ प्रचलित है |

“रूपये” को व्यापक रूप में विनिमय का माध्यम स्वीकार करने के निम्न कारण है |

1.किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है |

2. भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है|

3. भारतीय क़ानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने का अधिकार नहीं देता है |

मुद्रा के लाभ:

* यह आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से छुटकारा दिलाती है।

* यह कम जगह लेती है और इसे कहीं भी लाना ले जाना आसान होता है।

* मुद्रा को आसानी से कहीं भी और कभी भी विनिमय के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।

* आधुनिक युग में कई ऐसे माध्यम उपलब्ध हैं जिनकी वजह से अब करेंसी नोट को भौतिक रूप में ढ़ोने की जरूरत नहीं है। 

मुद्रा के अन्य रूप:

बैंक में निक्षेप या जमा: 
व्यक्ति अपने आय का कुछ हिस्सा खर्च करने के बाद बचे बाकि धनराशि को अक्सर बैंकों में निक्षेप या जमा के रूप में रखते हैं। बैंक में रखी हुई धनराशि सुरक्षित रहती है और उसपर ब्याज भी मिलता है। व्यक्ति कभी भी अपने खाते से जरूरत के हिसाब से रुपये निकाल सकता है। बैंक खाते में जमा धनराशि को जरूरत (डिमांड) के हिसाब से निकाला जा सकता है इसलिए इन खातों के निक्षेप (डिपॉजिट) को डिमांड डिपॉजिट कहते हैं। बैंक से राशि जमा या निकासी चेक या ड्राफ्ट से कर सकते है|

आप अपना बकाया भुगतान करने के लिये चेक का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। चेक पर भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और भुगतान की जाने वाली राशि को लिखना होता है। उसके बाद चेक जारी करने वाले व्यक्ति को चेक के नीचे हस्ताक्षर करना होता है।

डिमांड ड्राफ्ट के जरिये भी भुगतान किया जा सकता है। डिमांड ड्राफ्ट को बैंक से खरीदा जा सकता है। यह दिखने में चेक की तरह ही होता है। डिमांड ड्राफ्ट पर भुगतान की जाने वाली राशि, भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और बैंक अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं।

क्रेडिट: 
बैंक में जमा कुल राशि का एक छोटा हिस्सा ही नगद के रूप में बैंक के पास रहता है। यह सामान्यत: कुल जमा राशि का 15% होता है। बैंक के पास यह राशि इसलिए रहती है ताकि यदि कोई व्यक्ति अपने खाते से राशि निकालने आये तो उसे भुगतान किया जा सके। किसी भी बैंक के कुल खाताधारकों का एक छोटा हिस्सा ही किसी एक दिन को पैसे निकालने आता है। इसलिये यह राशि इस काम के लिये पर्याप्त होती है। बैंक शेष राशि का इस्तेमाल बैंक कर्ज देने में करता है। कर्ज में जो राशि दी जाती है उसे क्रेडिट (साख) कहते हैं। 
    बैंक इस राशि पर ब्याज लेता है। बैंक द्वारा लिया गया ब्याज दर हमेशा बैंक द्वारा दिये जाने वाले ब्याज दर से अधिक होता है। इस तरह से बैंक की आय का मुख्य स्रोत ब्याज ही होता है।

क्रेडिट/डेबिट कार्ड:


मुद्रा का उच्च स्तर का विनिमय का माध्यम क्रेडिट और डेबिट कार्ड हैं। डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड एक जैसे दिखते हैं। डेबिट कार्ड द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने खाते में जमा राशि से भुगतान कर सकता है। क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करते समय आप बैंक से कम अवधि के लिये कर्ज लेते हैं। दोनों तरह के कार्डों से भुगतान इलेक्ट्रानिक रूप में होता है और किसी को नगद रखने की जरूरत नहीं होती है।

क्रेडिट (साख) की शर्तें:

अक्सर लोगों और व्यवसाइयों को कुछ जरूरतों के लिये कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है। बीज, खाद, कृषि औजार, आदि खरीदने के लिये किसानों को कर्ज की जरूरत पड़ती है। लोग अक्सर गाड़ी या घर जैसे महंगी चीजें कर्ज लेकर ही खरीद पाते हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति भी व्यवसाय के लिये कर्ज लेते रहते हैं। इस प्रकार क्रेडिट (साख) हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जब भी कोई व्यक्ति या संस्थान किसी बैंक से कर्ज लेता है तो उसके लिये एक ऋण समझौता किया जाता है। ऋण समझौता में ब्याज दर और कर्ज चुकता करने के बारे में सारे नियम और शर्तों का उल्लेख होता है। बैंक अक्सर कर्ज चुकता करने के लिये एक मासिक किस्त तय करता है ताकि नियत अवधि के भीतर कर्ज चुकता हो सके।

कोलैटेरल या समर्थक ऋणाधार:
समर्थक ऋणाधार ऐसी सम्पति है , जिसका मालिक कर्जदार (जैसे-भूमि, इमारत,गाड़ी,पशु, बैंक में पूंजी) और इसका इस्तेमाल वह उधारदाता को गारंटी देने के रूप में करता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता| यदि कर्जदार उधार वापस नहीं कर पाटा, तो उधारदाता को समर्थक ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है |

ऋण की शर्तें:
ऋण की शर्तों में ब्याज दर, कोलैटरल और भुगतान की विधि का वर्णन हो होता है। ऋण की शर्तें अलग-अलग ऋण समझौते में अलग-अलग होती हैं और यह ऋण लेने वाले और ऋण देने वाले की हैसियत पर भी निर्भर करता है। 
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साख के स्रोत :

औपचारिक स्रोत :


* औपचारिक स्रोत में सस्ते ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराए जाते है|

* यह स्रोत पंजीकृत होती है |

* इस स्रोत के अंतर्गत व्यापारिक बैंक और सहकारी समितियां ऋण उपलब्ध कराती है |

* औपचारिक स्रोत से ऋण बैंक के शर्तों के आधार पर मिलती है |

* बैंक, सहकारी समितियां औपचारिक स्रोत के उदाहरण है |

अनौपचारिक स्रोत :

* यह स्रोत सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होती है |

* इस स्रोत के अंतर्गत साहूकार, व्यापारी,रिश्तेदार, और दोस्त आदि ऋण उपलब्ध कराते है |

* इन स्रोतों से ऋण उच्च ब्याज दर मिलता है |

* अधिकांश गरीब वर्ग अनौपचारिक स्रोतों से ही ऋण प्राप्त करते है |

मुद्रा विनिमय प्रणाली वास्तु विनिमय प्रणाली से अधिक उत्तम है| कैसे?

* मुद्रा के रूप में किसी वस्तु का मूल्य मापा जा सकता है, लेकिन वस्तु विनिमय प्रणाली से मूल्य का मापना आसान नहीं है |

* मुद्रा के रूप में सम्पति को इकठ्ठा करना आसान है परन्तु वस्तु प्रणाली में कठिन है |

* मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी तक लाया-ले जा सकते है परन्तु वस्तु विनिमय में बहुत परेसानी है |

* मुद्रा से वस्तु का क्रय-विक्रय करना आसान है परन्तु वस्तु से वस्तु का विनिमय बहुत कठिन है |


केन्द्रीय बैंक के कार्य :


* केन्द्रीय बैंक मुद्रा निर्गत करने का कार्य करती है (एक रूपये नोट को छोड़कर) |

* यह बैंक व्यवसायिक बैंकों को लाइसेंस प्रदान करती है तथा उनकी निगरानी करती है |

* केन्द्रीय बैंक व्यवसायिक बैंको के लिए नियम बनाती है तथा पालन कराती है|

* केन्द्रीय बैंक सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करती है |

* प्रत्यके तिमाही पर मौद्रिक नीति की घोषणा करती है|

* केन्द्रीय बैंक व्यावसायिक बैंको को ऋण उपलब्ध कराती है | 
* भारत का केन्द्रीय बैंक का नाम -भारतीय रिजर्व बैंक 

व्यावसायिक बैंक :


* व्यावसायिक बैंक ग्राहकों के राशि जमा स्वीकार एवं निर्गत करने का कार्य करती है

* ये बैंक ग्राहकों को ऋण उपलब्ध कराती है|

* व्यवसायिक बैंक आभूषण एवं कागजात को सुरक्षित रखने के लिए लॉकर सुविधा प्रदान करती है|

* व्यावसायिक बैंको को केन्द्रीय बैंक के दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है|

* व्यवसायिक बैंकों को आवर्ती जमा करना, साख, डेबिट कार्ड, क्रडिट कार्ड, एटीएम सुविधा आदि उपलब्ध कराना होता है| 
* व्यावसायिक बैंक - SBI,PNB,BOB,UBI,EXIS BANK,ICICI BANK,  INDIAN BANK,CBI ETC.

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M. PRASAD
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