सातवाहन वंश
साहित्यिक स्रोत :
* मत्स्य पुराण और वायु पुराण
* राजा हाल द्वारा रचित "गाथासप्तशती "
* गुनाडय द्वारा रचित " वृहत्कथा"
* नागानिका का नानाघाट अभिलेख ( महाराष्ट्रके पूना जिले में स्थित)
* गौतमीपुत्र शातकर्णीके नासिक से प्राप्त दो गुहालेख
* गौतमी बलश्री का नासिक गुहालेख
* वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी का नासिक गुहालेख
* वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी का कार्ले अभिलेख
* यज्ञश्री शातकर्णी का नासिक गुहालेख
* सातवाहन काल के प्राप्त सिक्के
उत्पति :
* पुराणों में सातवाहन वंश के संस्थापक " सिमुक " को " आंध्र-भृत्य " तथा " आंध्राजातीय " कहा गया है |
* " महाभारत" में आंध्रों को म्लेच्छ तथा मनु स्मृति में वर्णसंकर एवं अन्त्यज कहा गया है |
* गौतमीपुत्र शातकर्णी के नासिक प्रशस्ति में " एकब्राह्मण " अर्थात अद्वितीय ब्राह्मण कहा गया है |
सातवाहन वंश के राजाओं का इतिहास
* वायु पुराण के अनुसार कंव वंश के अंतिम शासक " सुशर्मा " की हत्या "सिमुक " ने 60 इ०पू० किया तथा " सातवाहन वंश" की स्थापना की |
* सिमुक ने 60 इ०पू० से 37 ईसा पूर्व तक शासन किया |
* सिमुक के मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई कृष्ण राजा बना जिसने 37 ईसा पूर्व से 19 ईसा पूर्व तक शासन किया |
* कृष्ण के बाद सिमुक का पुत्र शातकर्णी प्रथम सातवाहन वंश का राजा बना |
* शातकर्णी प्रथम 19 ईसा पूर्व सिंहासन पर आसीन हुआ |
* हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है की क्लीन नरेश खारवेल की सेना और सातवाहन नरेश शातकर्णी प्रथम के सेना के बीच संघर्ष हुआ था जिसमें खारवेल की सेना को प्रबल विरोध का सामना करना पड़ा और वापस लौटना पड़ा |
* शातकर्णी प्रथम ने दो अश्वमेघ यज्ञ और राजसूर्य यज्ञों का अनुष्ठान कराया |
* शातकर्णी प्रथम ने " दक्षिणापथपति" और " अप्र्तिहतचक्र" उपाधी धारण की |
* शातकर्णी प्रथम की जानकारी उसकी पत्नी नागनिका का नानाघट के अभिलेख से मिलती है |
* मत्स्य पुराण में शातकर्णी प्रथम और गौतमीपुत्र शातकर्णी के बीच शासन कने वाले राजाओं की संख्या 19 राजाओं का उल्लेख मिलता है तथा एक शताब्दी तक सातवाहन काल का ह्रास काल था |
* गौतमीपुत्र शातकर्णी का शासन काल 106 ई० से १3० ई० तक मानी जाती है |
* पुराणों के अनुसार गौतमीपुत्र शातकर्णी सातवाहन वंश का 23वें शासक था | इसके माता का नाम गौतमी बलश्री और पिता का नाम शिवस्वाती मिलता है |
* इसके तीन लेख दो नासिक से तथा एक कार्ले से प्राप्त हुआ है |
s
* गौतमी पुत्र शातकर्णी ने राजराज, महाराज , स्वामी आदि की उपाधि धारण की |
* कुछ अन्य शक्तिशाली नरेश पुलुमावी शातकर्णी ( 130-159 ई० ) , शिवश्री शातकर्णी (159-166 ई० ) , शिवस्कंद शातकर्णी (167-174 ई०) और यज्ञश्री शातकर्णी (174-203 ई०)
उत्पति :
* पुराणों में सातवाहन वंश के संस्थापक " सिमुक " को " आंध्र-भृत्य " तथा " आंध्राजातीय " कहा गया है |
* " महाभारत" में आंध्रों को म्लेच्छ तथा मनु स्मृति में वर्णसंकर एवं अन्त्यज कहा गया है |
* गौतमीपुत्र शातकर्णी के नासिक प्रशस्ति में " एकब्राह्मण " अर्थात अद्वितीय ब्राह्मण कहा गया है |
सातवाहन वंश के राजाओं का इतिहास
* वायु पुराण के अनुसार कंव वंश के अंतिम शासक " सुशर्मा " की हत्या "सिमुक " ने 60 इ०पू० किया तथा " सातवाहन वंश" की स्थापना की |
* सिमुक ने 60 इ०पू० से 37 ईसा पूर्व तक शासन किया |
* सिमुक के मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई कृष्ण राजा बना जिसने 37 ईसा पूर्व से 19 ईसा पूर्व तक शासन किया |
* कृष्ण के बाद सिमुक का पुत्र शातकर्णी प्रथम सातवाहन वंश का राजा बना |
* शातकर्णी प्रथम 19 ईसा पूर्व सिंहासन पर आसीन हुआ |
* हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है की क्लीन नरेश खारवेल की सेना और सातवाहन नरेश शातकर्णी प्रथम के सेना के बीच संघर्ष हुआ था जिसमें खारवेल की सेना को प्रबल विरोध का सामना करना पड़ा और वापस लौटना पड़ा |
* शातकर्णी प्रथम ने दो अश्वमेघ यज्ञ और राजसूर्य यज्ञों का अनुष्ठान कराया |
* शातकर्णी प्रथम ने " दक्षिणापथपति" और " अप्र्तिहतचक्र" उपाधी धारण की |
* शातकर्णी प्रथम की जानकारी उसकी पत्नी नागनिका का नानाघट के अभिलेख से मिलती है |
* मत्स्य पुराण में शातकर्णी प्रथम और गौतमीपुत्र शातकर्णी के बीच शासन कने वाले राजाओं की संख्या 19 राजाओं का उल्लेख मिलता है तथा एक शताब्दी तक सातवाहन काल का ह्रास काल था |
* गौतमीपुत्र शातकर्णी का शासन काल 106 ई० से १3० ई० तक मानी जाती है |
* पुराणों के अनुसार गौतमीपुत्र शातकर्णी सातवाहन वंश का 23वें शासक था | इसके माता का नाम गौतमी बलश्री और पिता का नाम शिवस्वाती मिलता है |
* इसके तीन लेख दो नासिक से तथा एक कार्ले से प्राप्त हुआ है |
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* गौतमी पुत्र शातकर्णी ने राजराज, महाराज , स्वामी आदि की उपाधि धारण की |
* कुछ अन्य शक्तिशाली नरेश पुलुमावी शातकर्णी ( 130-159 ई० ) , शिवश्री शातकर्णी (159-166 ई० ) , शिवस्कंद शातकर्णी (167-174 ई०) और यज्ञश्री शातकर्णी (174-203 ई०)
सातवाहन वंश की शासन व्यवस्था :
* सातवाहन वंश की शासन व्यवस्था का स्वरूप राजतंत्रात्मक था |
* सातवाहन नरेश "राजन" , "राजराज ", "महाराज" , "स्वामिन " जैसी उपाधियाँ धारण करते थे |
* प्रशासन की सुविधा के लिए साम्राज्य को अनेक विभागों में विभाजित किया गया जिसे " आहार " कहा जाता था |
* प्रत्येक आहार के अंतर्गत एक निगम तथा कई गाँव होते थे | प्रत्येक आहार का शासन एक अमात्य के अधीन होता था |
* जो अमात्य राजधानी में रहकर सम्राट की सेवा में रहते थे उसे " राजामात्य" कहा जाता था |
* सातवाहन लेखों में कुछ पदाधिकारियों के नाम मिलते है |
- भानडागारिक - कोषाध्यक्ष ,
- रज्जुक - राजस्व विभाग प्रमुख
- पनिघरक - नगरों में जलपूर्ती का प्रबंध करने वाला अधिकारी
- कर्मान्तिक - भवनों के निर्माण की देख-रेख करने वाला
* आहार के नीचे ग्राम होते थे जिसका प्रमुख " ग्रामिक " कहलाता था |
* नगरों का शासन " निगम सभा के द्वारा चलाया जाता था |
सातवाहन काल की सामजिक व्यवस्था :
* वर्णाश्रम धर्म पर आधारित समाज
* नई -नई जातियों का व्यवसायों के आधार पर संगठित
* शकों तथा यवनों का भारतीयकरण
* सातवाहन राजाओं के नाम का मातृ प्रधान होना स्त्रियों की सम्मानपूर्ण सामाजिक स्थिति का सूचक
सातवाहन काल की धार्मिक व्यवस्था :
* दक्षिण भारत में वैदिक एवं बौद्व धर्मों का उन्नति काल
* ब्राह्मणों को भूमि दान देने की प्रथा का आरम्भ
* अमरावती , नागार्जुनीकोंडा , श्रीशैल प्रधान केंद्र
सातवाहन काल की आर्थिक स्थिति :
* भारत में भूमि अनुदान का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य
* कर के रूप में उपज का छठवां भाग
* मिलिन्द्पन्हों में 75 व्यवसायों का उल्लेख हुआ है |
* व्यवसायियों का अलग -अलग श्रेणी होती थी जिसका प्रधान " श्रेष्ठिन " कहा जाता था |
* श्रेणी का कार्यालय को " निगम सभा " कहा जाता था |
* चांदी और तांबे के सिक्कों को प्रयोग जिसे " कार्षापण" कहा जाता था |
* प्रमुख व्यापारिक नगर : पैठन , तगर , जुन्नार , कराहाटक, नासिक , भड़ौच, उज्जैन आदि
* व्यापारिक वस्तु : निर्यात -वस्त्र , मलमल , चीनी , इलायची , हीरे , मानिक , मोती |
आयात : रोमन मदिरा , तांबा , रांगा, सीसा आदि
भाषा तथा साहित्य :
* प्राकृत भाषा का प्रयोग
* राजा हाल रचित " गाथासप्तशती " प्राकृत भाषा में लिखी गयी |
* गुनाड्य रचित " वृहत्कथा " ग्रन्थ
* शर्ववर्मन रचित " कातन्त्र " नामक संस्कृत ग्रन्थ
कला एवं स्थापत्य :
* अमरावती स्तूप - आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में , अमरावती लेखों में इसका प्राचीन नाम " धान्यकटक" |
* इस स्तूप की खोज 1797 ई० में कर्नल मैकेंजी ने किया |
* "नागार्जुनीकोंड " स्तूप नागार्जुनी पहाडी पर तीसरी शताब्दी ई० में निर्माण किया गया था |
* ईक्ष्वाकु नरेश मराठी पुत्र वीरपुरुष दत्त के शासन काल में निर्मित हुआ |
* नागार्जुनीकोंड स्तूप को 1926 ई० में लांगहर्स्ट ने पता लगाया |
* सातवाहन काल में अनेक चैत्य का निर्माण हुआ -
- भाजा - महाराष्ट्र के पुणे जिले में
- कोंडाने - महाराष्ट्र के कुलाबा जिले में
- पीतलखोरा - महाराष्ट्र में शातामाला नामक पहाडी पर
- अजन्ता की गुफाएं - महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में , अजन्ता की पहाडी पर , यहाँ पर 29 गुफाएं उत्कीर्ण के गयी |
* नासिक की गुफाएं - महाराष्ट्र के नासिक जिले में , 17गुफाएं खोदी गयी , जिसमें एक चैत्य और 16 विहार गुफाएं |
* कार्ले की गुफाएँ - महाराष्ट्र के पुणे जिले में भोरघाट पहाडी पर , एक चैत्य और तीन विहार गुफाएं |
* कान्हेरी की गुफाएं - पुराना नाम - कृष्णागिरि , महाराष्ट्र के बोरीवली के पास ,
* सातवाहन वंश की शासन व्यवस्था का स्वरूप राजतंत्रात्मक था |
* सातवाहन नरेश "राजन" , "राजराज ", "महाराज" , "स्वामिन " जैसी उपाधियाँ धारण करते थे |
* प्रशासन की सुविधा के लिए साम्राज्य को अनेक विभागों में विभाजित किया गया जिसे " आहार " कहा जाता था |
* प्रत्येक आहार के अंतर्गत एक निगम तथा कई गाँव होते थे | प्रत्येक आहार का शासन एक अमात्य के अधीन होता था |
* जो अमात्य राजधानी में रहकर सम्राट की सेवा में रहते थे उसे " राजामात्य" कहा जाता था |
* सातवाहन लेखों में कुछ पदाधिकारियों के नाम मिलते है |
- भानडागारिक - कोषाध्यक्ष ,
- रज्जुक - राजस्व विभाग प्रमुख
- पनिघरक - नगरों में जलपूर्ती का प्रबंध करने वाला अधिकारी
- कर्मान्तिक - भवनों के निर्माण की देख-रेख करने वाला
* आहार के नीचे ग्राम होते थे जिसका प्रमुख " ग्रामिक " कहलाता था |
* नगरों का शासन " निगम सभा के द्वारा चलाया जाता था |
सातवाहन काल की सामजिक व्यवस्था :
* वर्णाश्रम धर्म पर आधारित समाज
* नई -नई जातियों का व्यवसायों के आधार पर संगठित
* शकों तथा यवनों का भारतीयकरण
* सातवाहन राजाओं के नाम का मातृ प्रधान होना स्त्रियों की सम्मानपूर्ण सामाजिक स्थिति का सूचक
सातवाहन काल की धार्मिक व्यवस्था :
* दक्षिण भारत में वैदिक एवं बौद्व धर्मों का उन्नति काल
* ब्राह्मणों को भूमि दान देने की प्रथा का आरम्भ
* अमरावती , नागार्जुनीकोंडा , श्रीशैल प्रधान केंद्र
सातवाहन काल की आर्थिक स्थिति :
* भारत में भूमि अनुदान का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य
* कर के रूप में उपज का छठवां भाग
* मिलिन्द्पन्हों में 75 व्यवसायों का उल्लेख हुआ है |
* व्यवसायियों का अलग -अलग श्रेणी होती थी जिसका प्रधान " श्रेष्ठिन " कहा जाता था |
* श्रेणी का कार्यालय को " निगम सभा " कहा जाता था |
* चांदी और तांबे के सिक्कों को प्रयोग जिसे " कार्षापण" कहा जाता था |
* प्रमुख व्यापारिक नगर : पैठन , तगर , जुन्नार , कराहाटक, नासिक , भड़ौच, उज्जैन आदि
* व्यापारिक वस्तु : निर्यात -वस्त्र , मलमल , चीनी , इलायची , हीरे , मानिक , मोती |
आयात : रोमन मदिरा , तांबा , रांगा, सीसा आदि
भाषा तथा साहित्य :
* प्राकृत भाषा का प्रयोग
* राजा हाल रचित " गाथासप्तशती " प्राकृत भाषा में लिखी गयी |
* गुनाड्य रचित " वृहत्कथा " ग्रन्थ
* शर्ववर्मन रचित " कातन्त्र " नामक संस्कृत ग्रन्थ
कला एवं स्थापत्य :
* अमरावती स्तूप - आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में , अमरावती लेखों में इसका प्राचीन नाम " धान्यकटक" |
* इस स्तूप की खोज 1797 ई० में कर्नल मैकेंजी ने किया |
* "नागार्जुनीकोंड " स्तूप नागार्जुनी पहाडी पर तीसरी शताब्दी ई० में निर्माण किया गया था |
* ईक्ष्वाकु नरेश मराठी पुत्र वीरपुरुष दत्त के शासन काल में निर्मित हुआ |
* नागार्जुनीकोंड स्तूप को 1926 ई० में लांगहर्स्ट ने पता लगाया |
* सातवाहन काल में अनेक चैत्य का निर्माण हुआ -
- भाजा - महाराष्ट्र के पुणे जिले में
- कोंडाने - महाराष्ट्र के कुलाबा जिले में
- पीतलखोरा - महाराष्ट्र में शातामाला नामक पहाडी पर
- अजन्ता की गुफाएं - महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में , अजन्ता की पहाडी पर , यहाँ पर 29 गुफाएं उत्कीर्ण के गयी |
* नासिक की गुफाएं - महाराष्ट्र के नासिक जिले में , 17गुफाएं खोदी गयी , जिसमें एक चैत्य और 16 विहार गुफाएं |
* कार्ले की गुफाएँ - महाराष्ट्र के पुणे जिले में भोरघाट पहाडी पर , एक चैत्य और तीन विहार गुफाएं |
* कान्हेरी की गुफाएं - पुराना नाम - कृष्णागिरि , महाराष्ट्र के बोरीवली के पास ,
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M. PRASAD
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