मौर्य वंश-322 BC-185 BC
मौर्य साम्राज्य के स्रोत:-
साहित्यिक स्रोत :-
पुस्तक - लेखक* अर्थशास्त्र - चाणक्य
* मुद्राराक्षस- विशाखदत्त
* कल्पसूत्र - भद्रबाहु
* परिशिष्टपर्वन- हेमचन्द्र
* कथासरित्सागर- सोमदेव
* वृहत्कथामन्जरी- क्षेमेन्द्र
* इंडिका - मेगास्थनीज
* इसके अतिरिक्त विष्णु पुराण , दीपवंश , महावंश, महाबोधि वंश , दिव्यादान , अशोकावदान, मंजूश्रीमूलकल्प,
ग्रँथों में मौर्य वंश की जानकारी मिलती है ।
मौर्या साम्राज्य के पुरातात्विक स्रोत :-
* अशोक शिलालेख , रूद्रदामन का जूनागढ़(गिरनार) अभिलेख, आहत सिक्के आदि मौर्य साम्राज्य की जानकारी उपलब्ध कराते है ।
मौर्य वंश की उत्पति :-
* चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय प्रमाणित करता है ।
* बौद्व ग्रँथों महावंश , महापरिनिर्वाणनसुत्त , दिव्यादान में चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय कहा है ।
* जैन ग्रँथों परिशिष्टपर्वन , पुन्याश्रव कथाकोश में भी चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय कहा है ।
* मुद्राराक्षस , कथासरित्सागर और वृहत्कथामन्जरी में चन्द्रगुप्त मौर्य को शुद्र कहा है ।
चन्द्रगुप्त मौर्य :-
* मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ई0 पू0 किया ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई0 पू0 में हुआ था
* चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध सम्राट बनाने में आचार्य चाणक्य की बड़ी भूमिका थी । जिन्हें अपना प्रधानमंत्री
बनाया ।
* एरियन और प्लूटार्क ने चन्द्रगुप्त मौर्य को " एंड्रोकोट्स" के नाम का प्रयोग किया है ।
* सर्वप्रथम सर विलियम जोन्स ने चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए "सैंडरोकोट्स " तथा "एंड्रोकोट्स" नामों का तादात्म्य
स्थापित किया था ।
* जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना को " डाकुओं का गिरोह " कहा है ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य 305 ई0 पू0 सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस निकेटर को पराजित किया । सेल्युकस ने अपनी
पुत्री कार्नेलिया का विवाह चन्द्रगुप्त से किया तथा चार प्रांत काबुल (पेरोपनिसडाई) , कंधार ( आरकोसिया) , हेरात ( एरिया) और मकरान( जेड्रोसिया) सौपें । यह विवाह भारतीय इतिहास का प्रथम अंतरराष्ट्रीय विवाह था ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन गुरु भद्रबाहु से जैन धर्म की शिक्षा ली।
* मेगास्थनीज सेल्युकस निकेटर का राजदूत था जो चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में था और इंडिका नामक ग्रन्थ
लिखा ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्युकस निकेटर के बीच का हुए युद्व का वर्णन ऐप्पियस ने किया है।
* चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ई0पू0 श्रवनवेलगोला में उपवास( सल्लेखना) द्वारा हुई ।
* रूद्रदामन अभिलेख से ज्ञात होता है कि सौराष्ट्र में पुष्यगुप्त चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था ।
* जूनागढ़ स्थित सुदर्शन झील का निर्माण चन्द्रगुप्त मौर्य ने कराया था ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी " पाटलीपुत्रा " थी ।
* प्लूटार्क ने लिखा है कि " चन्द्रगुप्त मौर्य ने 6लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत को रौंदा डाला और उस पर
अपना अधिकार कर लिया ।"


बिंदुसार: ( 298-273ई0 पू0 )
* चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार हुआ, जो 298 ई0 पू0 मगध के सिंहासन पर बैठा ।* यूनानी लेखकों ने बिंदुसार को अमित्रोकेडीज कहा है जिसका संस्कृत रूपांतर अमित्रघात (शत्रुओं का नाश करनेवाला ) होता है ।
* जैन परम्पराओं के अनुसार बिंदुसार के माता का नाम दुर्घरा था ।
* महावंश टीका में बिंदुसार की पत्नी का नाम वम्पा और अशोकावदान में सुभद्रांगी दिया है ।
* वायुपुराण में बिंदुसार का नाम भद्रासर तथा अन्य पुराणों में वारिसार मिलता है ।
* स्ट्रेबो के अनुसार सीरिया का राजा एण्टियोकस ने डायमेकस को अपना राजदूत बनाकर बिंदुसार के दरबार में
भेजा था ।
* प्लिनी का कहना है कि मिस्र का राजा फिलाडेलफस (टॉलमी-II) ने पाटलीपुत्रा में डियानीसियस नाम का
राजदूत भेजा था ।
* एथिनीयस नामक यूनानी लेखक के अनुसार सीरिया के राजा से तीन वस्तुओं की मांग की थी ।
1. मीठी मदिरा
2. सूखी अंजीर
3. एक दार्शनिक(सोफिस्ट)
* बिंदुसार के दरबार में 500 सदस्यों वाली एक मंत्रिपरिषद थी जिसका प्रधान खल्लाटक था ।
* जैन धर्म के अनुसार बिंदुसार को सिंहसेन कहा है ।
* दिव्यादान में तक्षशिला में होने वाले विद्रोह का वर्णन करता है जिसको दबाने के लिए बिंदुसार ने अशोक को
भेजा था ।
* दिव्यादान के अनुसार बिंदुसार ने अवन्ति का उपराजा अशोक को नियुक्त किया था ।
सम्राट अशोक - 273 BCE-236 BCE
* बिन्दुसार का उत्तराधिकारी अशोक 273 ई0 पू0 बना परन्तु राज्याभिषेक 269 ई0 पू0 हुआ ।
* राज्याभिषेक के समय अशोक अवन्ति का राज्यपाल था जहां विदिशा की राजकुमारी महादेवी से विवाह किया
और जिसके गर्भ से पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा का जन्म हुआ तथा जिसे बौद्व धर्म के प्रचार हेतु श्रीलंका भेजा
गया था ।
* मास्की एवं गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है जबकि पुराणों में अशोकवर्धन कहा गया है ।
* अशोक अपने राज्याभिषेक के 8वें वर्ष (261ई0पू0) कलिंग पर आक्रमण किया जिसका वर्णन अपने 13वें
शिलालेख में मिलता है ।
* कलिंग युद्ध उपरांत अशोक को उपगुप्त नामक बौद्व भिक्षु ने बौद्व धर्म में दीक्षित किया ।
* अशोक अपने राज्याभिषेक के 10वें वर्ष में सम्बोधि ( बोधगया) की यात्रा की तथा 20वें वर्ष लुम्बिनी की यात्रा की । लुम्बिनि ग्राम कर मुक्त घोषित किया गया तथा 1/8 भाग कर लेने की घोषणा की ।
* अशोक ने आजीविक सम्प्रदाय को रहने के लिए बिहार के गया जिले में बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया , जिनका नाम कर्ज , चोपर, सुदामा तथा विश्व की झोपड़ी था ।
* अशोक के शिलालेख में ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक एवं आरमाइक लिपि का प्रयोग किया गया ।
* 1750 ई0 में अशोक के शिलालेख की खोज टी0 फेंथेलर ने की थी ।
* 1837 ई0 में अशोक के शिलालेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ा था ।
शिलालेखीय साक्ष्य
सम्राट अशोक के चौदह वृहद शिलालेख
आठ अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुए है1. शाहबाजगढ़ी शिलालेख- खरोष्ठी लिपि
पाकिस्तान (पेशावर,यूसुफ जाई ) - 1836 ई0 में
खोजकर्ता - जनरल कोर्ट
2. मनसेहरा शिलालेख - खरोष्ठी लिपि
पाकिस्तान ( हजारा )- 1889 ई0
खोजकर्ता - जनरल कनिंघम
3. कालसी शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
उत्तरप्रदेश ( देहरादून) - 1860
खोजकर्ता - फोरेस्ट
4. गिरनार शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
गुजरात , काठियावाड़, जूनागढ़ - 1822 ई0
खोजकर्ता - कर्नल टॉड
5. धौली शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
उड़ीसा , पुरी - 1837 ई0
खोजकर्ता - कीटो
6. जौगड शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
उड़ीसा , गंजाम - 1850 ई0
खोजकर्ता- वाल्टर इलियट
7. एररगुडी शिलालेख - ब्राह्मी लिपि
आंध्रप्रदेश , करनूल - 1929 ई0
खोजकर्ता - अनुघोष
8. सोपारा शिलालेख- ब्राह्मी लिपि
महाराष्ट्र, थाना जिला- 1882 ई0
खोजकर्ता - ?
सम्राट अशोक के लघु शिलालेख
1.रुपनाथ - मध्यप्रदेश, जबलपुर
2. गुजर्रा - मध्यप्रदेश, दतिया
3. सासाराम - बिहार , शाहाबाद
4. भब्रु (वैराट) - राजस्थान , जयपुर
5. मास्की - कर्नाटक, रायचूर
6. ब्रह्मगिरि - कर्नाटक, चित्तल्दुर्ग
7. सिद्वपुर - कर्नाटक , चित्तल्दुर्ग
8. जतिंरामेश्वर - कर्नाटक , चित्तल्दुर्ग
9. एररगुडी - आंध्रप्रदेश, कुरनूल
10. गोविमठ- कर्नाटक, मैसूर ,हासपेट
11. पालकिगुंड - कर्नाटक , मैसूर , हासपेट
12. राजुल मन्दगिरी- आंध्रप्रदेश, कुरनुल
13. अहरौरा - उत्तरप्रदेश, मिर्जापुर
14. सारोमारो- मध्यप्रदेश, शहडोल
15. पंगुडरिया - मध्यप्रदेश, सीहोर
16. नेतुर - कर्नाटक, बेलाड़ी
17. उड़गोलम- कर्नाटक, बेलाड़ी
सम्राट अशोक के स्तम्भ लेख
1. दिल्ली-टोपरा स्तम्भलेख2. दिल्ली- मेरठ स्तम्भलेख
3. लौरिया अरराज स्तम्भलेख- बिहार, चम्पारण
4. लौरिया नन्दनगढ़ स्तम्भलेख- बिहार, चम्पारण
5. रामपुरवा स्तम्भलेख- बिहार, चम्पारण
6. प्रयाग स्तम्भलेख- उत्तरप्रदेश , कौशाम्बी
नोट: कौशाम्बी अभिलेख " रानी अभिलेख" कहा जाता है ।
गुफा अभिलेख - बिहार के गया में बराबर की पहाड़ियों में तीन गुफा लेख
अशोक के प्रमुख अभिलेख एवं उनमें लिखित बातें :
* पहला अभिलेख : इसमें पशुबलि की निंदा की गई है ।
* दूसरा अभिलेख : इसमें अशोक ने मनुष्य एवं पशु बलि दोनो की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख किया है ।
* तीसरा अभिलेख : राजकीय अधिकारियों को आदेश दिया गया कि प्रत्येक पांच वर्ष उपरांत राज्य का दौरा करेंगे एवं धर्मानुशासन बताएं ।
* चौथा अभिलेख : भेरी घोष के स्थान पर धम्म घोष की घोषणा ।
* पाँचवाँ अभिलेख : धर्म महामात्य की नियुक्ति एव कार्य ।
* छठा अभिलेख : राजकार्य के प्रति कर्तव्य ।
* सांतवां अभिलेख : धार्मिक दृष्टिकोण ।
* आठवां अभिलेख : विहार यात्रा के स्थान पर धम्म यात्रा का आरम्भ ।
* नौवां अभिलेख: सच्ची शिष्टाचार का उल्लेख ।
* दसवां अभिलेख : राजा तथा अधिकारी प्रजा वत्सल बने ।
* ग्यारहवां अभिलेख : धम्म की व्याख्या ।
* बारहवां अभिलेख: धार्मिक सहिष्णुता पर जोर ।
* तेरहवाँ अभिलेख : कलिंग युद्व का वर्णन एवं अशोक का ह्रदय परिवर्तन , पड़ोसी राज्यों का वर्णन ।
धम्म
* अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारों की संहिता प्रस्तुत की उसे उसके अभिलेखों में "धम्म" कहा गया है ।* "धम्म" संस्कृत के "धर्म" का ही प्राकृत रूपांतर है ।
* दूसरे स्तम्भ लेख में अशोक स्वयं प्रश्न करता है - " कियं चु धम्मे ?" ( धम्म क्या है ?)
* "कियं चु धम्मे ?" अशोक अपने प्रश्न का उत्तर दूसरे और सातवें स्तम्भ लेखों में देता है - " अपासिनवे बहु-
कयाने दया दाने सचे सोचये माददे साधवे च " ।
अर्थात
अल्प पाप है , अत्याधिक कल्याण है, दया है , दान है , सत्यवादिता है , पवित्रता है, मृदुता है , साधुता है ।
* उपर्युक्त गुणों को व्यवहार में लाने के लिए निम्न बाते आवश्यक बताई गई है , जो इस प्रकार है ।
1. प्राणियों की हत्या न करना।
2. माता-पिता की सेवा करना।
3. वृद्वों की सेवा करना ।
4. गुरुजनों का सम्मान करना ।
5. मित्रों , परिचितों, ब्राह्मणों तथा श्रमणों के साथ अच्छा व्यवहार करना ।
6. दासों एवं नौकरों के साथ अच्छा व्यवहार करना।
7. अल्प व्यय ।
8. अल्प संचय ।
अशोक ने दुर्गुण भी बताए है ।
1. प्रचण्डता
2. निष्ठुरता
3. क्रोध
4. घमण्ड
5. ईर्ष्या
नोट : सम्राट अशोक ने " धम्म" की जो परिभाषा दी है वह " राहुलोवाद सुत्त " से ली गई है ।
धम्म का स्वरूप
विद्वानों ने धम्म को भिन्न भिन्न रूप में व्याख्या की है ।
* फ्लीट ने सम्राट अशोक का " राजधर्म " मानते है ।
* राधाकुमुद मुखर्जी ने धम्म को " सभी धर्मों की साझी सम्पति " बताया है ।
* रामशंकर त्रिपाठी "अशोक के धम्म के तत्व विश्वजनीन है " मानते है ।
* रोमिला थापर का मानना है " धम्म " सम्राट अशोक का अपना अविष्कार था ।
परन्तु सम्राट अशोक अपनी प्रजा को भौतिक और नैतिक कल्याण चाहता था इस उद्वेश्य से " धम्म नीति " का विधान किया ।
धम्म प्रचार के उपाय
* गिरनार से प्राप्त तृतीय अभिलेख की द्वितीय और तृतीय पंक्ति में सम्राट अशोक ने धम्म प्रचार हेतु उपायों को इस प्रकार लिखा है - " मेरे सम्पूर्ण राज्य में युक्त, रज्जुक, एवं प्रादेशिक प्रत्येक पांचवे वर्ष यात्रा पर निकलें और धम्म का प्रचार करें और अन्य राज्य सम्बन्धी कार्य करे "
* अशोक ने राज्याभिषेक के 14वें वर्ष " धर्म महामात्रों " की नियुक्ति की ।
* अशोक ने " धम्म " प्रचार हेतु भारत के विभिन्न भागों में धम्म की शिक्षाओं को शिलालेखों पर उत्कीर्ण कराया ।
* सम्राट अशोक के शासनकाल में ही 250 ई0 पू0 तृतीय बौद्व संगीति का आयोजन "पाटलीपुत्रा" में
मोगलीपुत्तीसस" की अध्यक्षता में हुआ था ।
* सम्राट अशोक ने भारतवर्ष के साथ -साथ विदेशों में भी धम्म प्रचासर हेतु दूत भेजे । बौद्व ग्रन्थ "महावंश" में
इनके नाम है -
1. काश्मीर और गांधार - मज्झन्तिक
2. हिमालय देश - मज्झिम
3. वनवासी(उत्तरी कन्न्ड़)- रक्षित
4. यवन देश - महारक्षित
5. अपरान्तक - धर्मरक्षित
6. महाराष्ट्र - महाधर्मरक्षित
7. महिष्मण्डल ( मैसूर) - महादेव
8. श्रीलंका - महेंद्र एवं संघमित्रा
बौद्व धर्म को एशियाई धर्म बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका थी ।
मौर्य शासन व्यवस्था चार भागों में बांटा जा सकता है ।
मौर्य शासन व्यवस्था चार भागों में बांटा जा सकता है ।
1. केंद्रीय शासन
2. प्रांतीय शासन
3. नगर शासन
4. ग्राम शासन
मौर्या साम्राज्य के केन्द्रीय शासन
* सम्राट: सम्राट सत्ता का केंद्र था । वह सबसे बड़ा सेनापति, प्रधान न्यायाधीश, कानूनों का निर्माता, तथा
धर्मप्रवर्तक था। कौटिल्य ने राज्य के सात अंग - सम्राट, अमात्य, जनपद, दूर्ग , कोष , सेना और मित्र बताए है ।
* मंत्रीपरिषद : इसमें 12 से 20 तक मंत्री होते थे । प्रत्येक मंत्री को 12000 पन वार्षिक वेतन मिलता था ।
* केंद्रीय अधिकारी तन्त्र : शासन की सुविधा हेतु केंद्रीय शासन अनेक विभागों में बंटा था । प्रत्येक विभाग को
"तीर्थ " कहा जाता था । प्रत्येक तीर्थ (विभाग) का अध्यक्ष अमात्य कहलाता था । अर्थशास्त्र में कुल 18 तीर्थों का
उल्लेख है । जो इस प्रकार है -
1. मंत्री व पुरोहित
2. समाहर्ता- राजस्व विभाग
3. सन्निधाता- राजकीय कोष संरक्षक
4. सेनापति- युद्व विभाग का मंत्री
5. युवराज- राजा का उत्तराधिकारी
6. प्रदेष्टा -न्यायाधीश (फौजदारी)
7. नायक - सेना का मुख्य संचालक
8. करमांटिक - उद्योगों का प्रभारी
9. व्यावहरिक- न्यायधीश( दीवानी)
10. मंत्रीपरिषदाध्यक्ष- मंत्रीपरिषद का अध्यक्ष
11. दण्डपाल - पुलिस मंत्री
12. अंतपाल - सीमा मंत्री
13. दुर्गपाल- देश के भीतर दुर्गों का प्रबन्धक
14. नागरक- नगर का प्रमुख अधिकारी
15. प्रशस्ता - राजकीय आज्ञाओं का प्रभारी
16. दौवारिक - राजमहलों का निरीक्षक
17. आंतवर्षिक - सम्राट के अंगरक्षक प्रभारी
18. आटविक - वन विभाग अधिकारी
* केंद्रीय प्रशासन में प्रत्येक विभाग का अधीक्षक होता था। चाणक्य ने 32 विभागों का उल्लेख किया है ।
1. पण्याध्यक्ष- वाणिज्य का अध्यक्ष
2. गणिकाध्यक्ष- वेश्याओं का निरीक्षक
3. सीताध्यक्ष - कृषि विभाग का अध्यक्ष
4. आकराध्यक्ष- खानों का अध्यक्ष
5. कृपयाध्यक्ष - वन सम्पदा अध्यक्ष
6. शुल्कअध्यक्ष - व्यापारिक करों का संग्राहक
7. पौतवाध्यक्ष - तौल एवं माप प्रभारी
8. सूत्राध्यक्ष - वस्त्र उधोग प्रधान
9. लोहाध्यक्ष - धातु विभाग अध्यक्ष
10. नवाध्यक्ष - जहाजरानी प्रधान इत्यादि
इन अध्यक्षों को 1000 पण वार्षिक वेतन मिलता था ।
मौर्या साम्राज्य के प्रांतीय शासन :
अशोक के अभिलेख में 5 प्रांतो का उल्लेख मिलता है ।
1. उदीच्य ( उत्तरापथ) - तक्षशिला (राजधानी)
2. अवन्ति - उज्जैन ( राजधानी )
3. कलिंग - तोसली (राजधानी)
4. दक्षिणापथ- सुवर्णगिरि (राजधानी)
5. प्राच्य - पाटलीपुत्रा ( राजधानी )
* प्रांतों के राज्यपाल प्रायः कुमार कहलाते थे
* अर्थशास्त्र के अनुसार राज्यपाल को 12000 पण वार्षिक वेतन मिलता था ।
* प्रांत मण्डल में विभक्त थे जिसका प्रधान "प्रदेष्टा " नामक व्यक्ति होता था ।
* मण्डल जिलों में विभक्त था जिसे " विषय" कहा जाता था और उसके प्रधान "विषयपति " ।
* विषय के नीचे "स्थानीय" होता था जिसमें 800 ग्राम थे। इसके नीचे " द्रोणमुख" जिसमें 400 ग्राम शामिल था। इसके नीचे "खार्वटिक" था जिसमें 200 ग्राम अर्थात 20 संग्रहन होते थे । प्रत्येक संग्रहन में 10 ग्राम शामिल थे ।
* संग्रहन का प्रधान " गोप " कहा जाता था ।
* मेगास्थनीज जिले के अधिकारियों को। " एग्रोनोमोई" कहता है ।
मौर्या साम्राज्य के नगर प्रशासन :
* मेगास्थनीज के अनुसार नगर का शासन 30 सदस्यों की एक परिषद थी जो 6 समितियों में विभक्त था ।प्रत्येक समिति में 5-5 सदस्य होते थे ।
1. शिल्पकला समिति
2. वैदेशिक समिति
3. जनगणना समिति
4. वाणिज्य व्यवसाय समिति
5. वस्तु निरीक्षक समिति
6. कर समिति
* मेगास्थनीज " नगर " के पदाधिकारियों को " एस्टिनोमोई " कहता है ।
मौर्या साम्राज्य के ग्राम शासन :
* ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी और ग्राम का अध्यक्ष "ग्रामीक " / ग्रामिणी " कहलाता था ।
मौर्या साम्राज्य की सैन्य व्यवस्था :
* चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल , 30 हजार अश्वरोही , 9 हजार हाथी, तथा सम्भवतः 800 रथ थे ।* सैनिको को नगद वेतन मिलता था ।
* मेगास्थनीज के अनुसार सेना के प्रबन्ध 6 समितियों द्वारा होता था ।प्रत्येक समिति में 5-5 सदस्य होते थे ।
1. प्रथम समिति - जल सेना की व्यवस्था
2. दूसरी समिति - सामाग्री , यातायात एवं रसद की व्यवस्था
3. तीसरी समिति - पैदल सैनिकों की देख-रेख
4. चौथी समिति - अश्वरोहियों की व्यवस्था
5. पांचवा समिति - गज सेना की व्यवस्था
6. छठीं समिति - रथों के सेना की व्यवस्था
* सेनापति युद्व विभाग का प्रधान होता था। उसे 48000 पण वार्षिक वेतन मिलता था ।
मौर्या साम्राज्य की गुप्तचर व्यवस्था :
* गुप्तचर विभाग के अधिकारी को " महामात्यापसर्प " कहा जाता था ।
* अर्थशास्त्र में गुप्तचरों को " गूढ़ पुरुष " कहा गया है ।
* अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख है ।
1. संस्था - एक स्थान पर रहने वाले गुप्तचर
2. संचरा - छद्म वेश में घूमने वाले गुप्तचर
मौर्या साम्राज्य की भूमि तथा राजस्व :
* राजकीय भूमि की व्यवस्था का प्रधान अधिकारी " सीताध्यक्ष " था जो दासों तथा बन्दियों से खेती करवाता था ।
* राज्य की आय का प्रमुख स्रोत भूमि-कर था जो सिद्धान्ततः उपज का 1/6 होता था ।
* भूमि कर को "भाग " कहा जाता था ।
* राजकीय भूमि से प्राप्त आय को " सीता " कहा गया है ।
* करों को एकत्र करने वाला अधिकारी " समाहर्त्ता " कहलाता था ।
* नगरों से प्राप्त आय " दुर्ग" , जनपद की आय "राष्ट्र" , फूल व खेत से प्राप्त आय " सेतु " और मवेशियीं से
प्राप्त " ब्रज " कहलाती थी ।
मौर्या साम्राज्य की न्याय व्यवस्था :
* सम्राट सर्वोच्य न्यायाधीश होता था ।
* न्यायालय दो प्रकार थे
1. धर्मस्थीय न्यायालय: दीवानी न्यायालय
2. कण्टकशोधन न्यायालय : फौजदारी मामले
* अर्थशास्त्र में तीन प्रकार के अर्थदण्डों का वर्णन है -
1. पूर्व साहस दण्ड - यह 48 से 96 पण तक था
2. मध्यम साहस दण्ड- यह 200 से 500 पण था
3. उत्तम साहस दण्ड - यह 500 से 1000 पण था
मौर्यकालीन सामाजिक व्यवस्था:
* मेगास्थनीज ने भारतीय समाज मे सात वर्गों का उल्लेख किया है - दार्शनिक , कृषक , योद्वा, पशुपालक ,
कारीगर , निरीक्षक, मंत्री
* कोई भी व्यक्ति न तो अपनी जाति के बाहर विवाह कर सकता था और न उससे भिन्न पेशा ही अपना सकता था
। परन्तु दार्शनिक अपवाद थे ।
* कृषक , कारीगर तथा व्यापारी सैनिक कर्तव्यों से मुक्त रहते थे ।
* अर्थशास्त्र से पता चलता है कि समाज में दासों की स्थिति संतोषजनक थी ।
* समाज में शूद्रों की स्थिति दयनीय थी ।
* लड़को एवं लड़कियों की वयस्यक आयु क्रमशः 16 और 12 वर्ष थी ।
* समाज में अन्तर्जातीय विवाह का भी प्रचलन था ।
* मनोविनोद के साधन - रथदौड़, घुड़दौड़, सांड़दौड, मदारी, गायक , नर्तक , आदि
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था:
कृषि :
* कृषि प्रधान जीविका एवं अर्थव्यवस्था के साधन थे ।
* प्रतिवर्ष दो फसले उगाई जा सकती थी।
* कृषि कार्य हेतु फाल, कुल्हाड़ी, हँसिये का प्रयोग होता था ।
* गेहूँ, जौ , चना , ईख , तिल, सरसों , मसूर , आदि प्रमुख फसल थी ।
* सिंचाई का उत्तम प्रबन्ध था ।
* पशुओं में बैल , गाय, बकरी, भेड़, गधे , भैंस, सुअर , कुत्ता आदि पाले जाते थे ।
मौर्यकालीन व्यापार:
* आंतरिक एवं बाह्य व्यापार प्रचलित थे ।
* भारत का बाह्य व्यापार सीरिया, मिस्र , तथा अन्य पश्चिमी दर्शन से होता था ।
* बाह्य व्यापार पश्चिम में " भृगकच्छ" तथा पूर्वी भारत में " ताम्रलिप्ति" के बन्दरगाहों से होता था ।
* " बारबैरिकम" बन्दरगाह सिंधु के मुहाने पर स्थित था ।
* " नवाध्यक्ष" नामक पदाधिकारी व्यापारिक जहाजों का नियंत्रण करता था ।
* आंतरिक व्यापार सड़क और नदी मार्ग से होता था ।
* चम्पा, पाटलीपुत्रा, वैशाली, राजगृह, गया , काशी , प्रयाग , कौशाम्बी, कान्यकुब्ज, हस्तिनापुर, तक्षशिला प्रमुख नगर थे ।
* " पण्याध्यक्ष" बिक्री की वस्तुओं का निरीक्षण करता।
मौर्याकालीन उधोग-धंधे :
* कपड़ा उद्योग प्रमुख उद्योग था ।
* अर्थशास्त्र में " दुकूल " ( स्वेत तथा चिकना वस्त्र ) और " क्षौम"( रेशमी वस्त्र ) का उल्लेख है ।
* मथुरा , कलिंग , बंग , वत्स वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्र थे ।
* इसके अलावा बढ़ईगीरी, चर्म उद्योग , धातु उद्योग भी प्रचलित थे ।
* उद्योग-धंधों की संस्थाओं को "श्रेणी" कहा जाता था ।
मौर्याकालीन सिक्के :
* स्वर्ण सिक्कों को "निष्क" , चांदी के सिक्के को " कार्षापण" या "धारण" , तांबे के सिक्के को " माषक" , तथा छोटे- छोटे तांबे के सिक्के को " काकणि" कहा जाता था ।
* मुद्राओं का परीक्षण करने वाला अधिकारी " रूपदर्शक" कहा जाता था ।
* मौर्य शासन का वित्तिय वर्ष "अषाढ़(जूलाई)" माह से प्रारम्भ होता था ।
* अर्थशास्त्र के अनुसार ब्याज दर 15% वार्षिक होती थी ।
मौर्याकालीन धार्मिक व्यवस्था :
* मौर्य काल में ब्राह्मण धर्म , आजीवक सम्प्रदाय, जैन धर्म और बौद्व धर्म प्रचलित था ।
* पशु बलि की प्रथा थी जिसे अशोक ने बंद करने के लिए आदेश जारी किया था जिसका उल्लेख उसके प्रथम
शिलालेख से होती है ।
* बौद्व धर्म का राजकीय संरक्षण प्राप्त था ।
* अशोक ने 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराया था ।
मौर्याकीलीन भाषा तथा साहित्य :
* मौर्य काल में साधारण जनता की भाषा "पाली" थी ।
* सम्राट अशोक ने अपने अभिलेख "प्राकृत" भाषा में उत्कीर्ण करवाये तथा इसे राजभाषा बनवाया ।
* अशोक के अभिलेखों में दो प्रकार की लिपियों का प्रयोग मिलता है - " खरोष्ठी" लिपि दाई से बाई ओर लिखी
जाती थी जबकि दूसरी लिपि " ब्राह्मी " थी जो बाईं से दाईं ओर लिखी जाती थी ।
* मौर्याकालीन प्रमुख साहित्य कृति '-
चाणक्य- अर्थशास्त्र
मोगलीपुत्तीसस- कथावत्थु
भद्रबाहु- कल्पसूत्र
मेगास्थनीज- इंडिका
मौर्याकालीन स्थापत्य कला :
* मथुरा जिले के परखम गांव से प्राप्त यक्ष मूर्ति 'मणिभद्र" एवं पटना के दीदारगंज से प्राप्त " चवरधारिणी " की
यक्ष प्रतिमा महत्वपूर्ण है ।
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