सामाजिक सुधार आंदोलन - राजा राममोहन राय
राजा राममोहन राय

* राजा राममोहनराय को भारतीय सामाजिक पुनर्जागरण का अग्रदूत और धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रवर्त्तक कहा जाता है ।
* राजा राममोहन राय को "आधुनिक भारत का पिता", "पत्रकारिता का अग्रदूत" भी कहा जाता है ।
* इनका जन्म बंगाल के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में 1772 ई0 में हुआ था ।
* 15 वर्ष की अवस्था में मूर्ति पूजा का विरोध करने के कारण उनके परिवार ने घर से निकाल दिया ।
* इस दौरान अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया और अनेक भाषाओं अंग्रेजी, फ्रेंच, लैटिन, ग्रीक, हिब्रू, संस्कृत (बनारस से) , अरबी एवं फारसी (पटना ) से सीखा ।
* राजा राममोहन राय ने 1805 ई0 ईस्ट इंडिया कम्पनी की नौकरी कर ली तथा 1814 ई0 में अवकाश प्राप्त किया ।
* उन्होंने 1814 ई0 में " आत्मीय सभा "की स्थापना की ।
* 1817 ई0 में राजा राममोहनराय के सहयोग से "डेविड हेयर " ने कलकत्ता में " हिन्दू कालेज" की स्थापना की ।
* राजाराम मोहन राय ने दो अखबार "सम्वाद-कौमुदी " (बंगला)1821 ई0 में और 1822 ई0 में "मिरात उल अखबार " ( फारसी) का प्रकाशन किया ।
* "ब्रह्मणिकल पत्रिका" अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ ।
* 20 अगस्त 1828 ई0 में " ब्रह्मसमाज" की स्थापना की गई ।
* 1825 ई0 में "वेदांत कालेज " की स्थापना की ।
* राजा राम मोहन राय के अथक प्रयास से ही 1829 ई0 में लार्ड विलियम बेंटिक ने " सती प्रथा " का अंत हुआ ।
* 1831 ई0 में दिल्ली के मुग़ल सम्राट " अकबर द्वीतीय" के पक्ष का समर्थन करने के लिए इंग्लैंड गए और वहीं "ब्रिस्टल" में उनका देहांत 27 सितम्बर 1833 ई0 को हो गया । मुगल सम्राट ने " राजा " की उपाधि से विभूषित किया था ।
राजा राममोहन राय के द्वारा लिखित साहित्य/ पत्रिका:
1. " एकेश्वरवादियों को उपहार"(Gift to Monotheists) ,(
2. " प्रीसेप्ट आफ जेसस"(presept of Jesus)
1. " एकेश्वरवादियों को उपहार"(Gift to Monotheists) ,(
2. " प्रीसेप्ट आफ जेसस"(presept of Jesus)
ब्रह्म समाज का उद्वेश्य:
1. एकेश्वरवाद की उपासना
2. मूर्ति पूजा का विरोध
3. पुरोहितवाद का विरोध
4. अवतारवाद का खंडन
5. बालविवाह, बहुविवाह , सतीप्रथा , छुआछूत का विरोध एवं विधवा विवाह का समर्थन
1. एकेश्वरवाद की उपासना
2. मूर्ति पूजा का विरोध
3. पुरोहितवाद का विरोध
4. अवतारवाद का खंडन
5. बालविवाह, बहुविवाह , सतीप्रथा , छुआछूत का विरोध एवं विधवा विवाह का समर्थन
* ब्रह्मसमाज को आगे बढ़ाने का प्रयास आचार्य केशवचन्द सेन तथा देवेन्द्रनाथ टैगोर ने किया ।
* ब्रह्मसमाज का विभाजन दो भागों में 1865 ई0 में हुआ । "आदि ब्रह्मसमाज/ तत्त्वबोधिनी सभा" का नेतृत्व देवेंद्र नाथ टैगोर ने तथा " साधारण ब्रह्मसमाज / भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज" का नेतृत्व केशवचन्द सेन ने किया ।
* 1878 ई0 में केशवचन्द सेन अपने 12 वर्षीय पुत्री का विवाह एक कुलीन परिवार में करने के कारण ब्रह्मसमाज की ख्याति गिरने लगी।
राजा राममोहन राय
देवेन्द्रनाथ टैगोरकेशवचन्द सेन
No comments:
Post a Comment
M. PRASAD
Contact No. 7004813669
VISIT: https://www.historyonline.co.in
मैं इस ब्लॉग का संस्थापक और एक पेशेवर ब्लॉगर हूं। यहाँ पर मैं नियमित रूप से अपने पाठकों के लिए उपयोगी और मददगार जानकारी शेयर करती हूं। Please Subscribe & Share