Thursday 11 February 2021

गौतम बुद्व

 गौतम बुद्व 



* बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल के तराई में स्थित कपिलवस्तु के लुंबिनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में 563 ई0 पू0 में हुआ था ।

* इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था । इनकी माता का नाम महामाया देवी था, पिता - शुधोधन शाक्य गण के प्रमुख थे , पालन पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था ।

* सिद्वार्थ का विवाह 16 वर्ष की आयु में "यशोधरा" नामक कन्या से हुआ ,जिनका बुद्व ग्रन्थो में "बिम्बा," "गोपा", " भदकच्छना" नाम मिलता है ।

* इनके पुत्र का नाम " राहुल " था ।

* सिद्वार्थ जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को क्रमशः देखा - बूढ़ा व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, शव और एक सन्यासी।

* सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्वार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया , इस घटना को बुद्व धर्म में " महाभिनिष्क्रमण" की संज्ञा दी जाती है ।

* गृहत्याग के उपरांत सिद्वार्थ वैशाली के " अलार कलाम " से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की , जो सिद्वार्थ के प्रथम गुरु माने जाते है ।

* उसके बाद राजगीर में " रुद्रकरामपुत" से शिक्षा ग्रहण की, जो सिद्वार्थ के दूसरे गुरु हुए ।
 
* तदुपरांत सिद्वार्थ उरुवेला ( बोधगया) वन की ओर प्रस्थान किए जहां कौण्डिय, बप्पा, भादिया, महानामा , एवं अस्सागी नामक पांच साधक मिले ।

* बोधगया के उरुवेला वन में निरंजना नदी के किनारे 6 वर्षों के कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की अवस्था में वैशाख पूर्णिमा की रात , पीपल वृक्ष के नीचे , सिद्वार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ और सिद्वार्थ" बुद्व " कहलाये ।इस घटना को " सम्बोधि" कहते है ।

* कहा जाता है कि उरुवेला की नर्तकियों के ये शब्द उनके कानों में सुनाई दिए" अपनी वीणा के तारों को इतना ढीला न करो कि उनमें संगीत न निकले और इतना न कसो की वे टूट जाए ।" इससे सिद्वार्थ को " मध्यम मार्ग " अपनाने की प्रेरणा मिली । बौद्ध धर्म में इसे " मध्यम प्रतिपदा " कहा जाता है ।

* जिस वॄक्ष के नीचे सिद्वार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ उसे " बोधिवृक्ष" कहा गया ।

* जिस स्थान पर सिद्वार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ उसे बोधगया कहा जाता है ।

* गौतम बुद्व ने अपना पहला उपदेश सारनाथ (ऋशिपत्तनम) में दिया, जिसे बुद्व ग्रन्थों में " धर्मचक्रप्रवर्तन" कहा गया है ।

* बुद्व ने अपने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी" श्रावस्ती" में दिए ।

* प्रमुख अनुयायी - बिंबिसार, अजातशत्रु, मुंड, प्रसेनजीत, उदयन , बिंदुसार , अशोक , आदि

* बुद्व ने अपना उपदेश " पाली भाषा " मे दिया ।

* बुद्व के प्रधान शिष्य "उपाली "और "आनन्द "थे ।

* महात्मा बुद्व ने अपना अंतिम उपदेश कुशीनारा के परिव्राजक "सुभच्छ" को दिया ।

* महात्मा बुद्व की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में 483 ई0 पू0 कुशीनारा ( देवरिया, उत्तरप्रदेश) में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन ग्रहण करने के उपरांत हो गई , इसे बौद्ध धर्म में " महापरिनिर्वाण" कहा जाता है ।

* मल्लों ने अत्यंत सम्मानपूर्वक बुद्व का अंत्येष्टि संस्कार किया ।
 
* एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्व के शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बांटकर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया ।

* बुद्व का जन्म एवं मृत्यु की तिथि को चीनी परम्परा के कैंटीन अभिलेख के आधार पर निश्चित किया गया है ।

* महात्मा बुद्व को " एशिया का प्रकाश पुंज"(Light of Asia) कहा जाता है ।


बौद्व धर्म के सिद्वान्त और दर्शन
बौद्व धर्म के चार आर्य सत्य:-
1. दुःख ( संसार दुःख से व्याप्त है ।
2. दुःख समुदाय (दुःख का कारण)     
3.  दुःख निरोध ( तृष्ना के विनाश से दुःख का निरोध)   
 4. दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा ( तृष्ना का परित्याग)

बौद्ध धर्म के आष्टांगिक मार्ग :
1. सम्यक दृष्टि  (चार आर्य सत्यों का सही परख)                 
2.सम्यक संकल्प(भौतिक वस्तु एवं दुर्भावना का त्याग)
3. सम्यक वाणी (धर्मसम्मत एवं मृदु वाणी का प्रयोग)
4. सम्यक कर्म ( सत्य कर्म करना )
5. सम्यक आजीव ( सदाचारी जीवन जीते हुए आजीविका कमाना )
6. सम्यक व्यायाम ( विवेकपूर्ण प्रयत्न एवं शुद्व विचार ग्रहण करना )
7. सम्यक स्मृति ( कर्म, वचन , मन के प्रति सचेत रहना
8. सम्यक समाधि ( चित की समुचित एकाग्रता )

दस शील तथा आचरण
1. अहिंसा 
2. सत्य 
3. अस्तेय( चोरी न करना )
4. अपरिग्रह ( धन संग्रह न करना ) 
5. ब्रह्मचर्य
6. नृत्य व संगीत का त्याग 
 7. सुगन्धित पदार्थों का त्याग  
8. असमय भजन का त्याग  
9. कोमल शय्या का त्याग  
10. कामिनी कंचन का त्याग

*  अनीश्वरवाद- जैन धर्म की ही तरह बौद्ध धर्म में भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नही था ।

*  बौद्व धर्म में कर्म फल के सिद्वान्त को तर्क संगत माना है ।

*  बुद्व आत्मा की परिकल्पना को स्वीकार नही करते ।

*  बुद्व का पुनर्जन्म में विश्वास हैं।

*  संघ में प्रविष्ट होने को  " उपसम्पदा " कहा जाता है ,   बौद्व संघ का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित थी ।

*  बौद्ध धर्म  माह के चार दिवस (अमावस्या, पूर्णिमा, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी) उपवास के होते , इसे " उपोस्थ" कहा जाता है ।

*  बौद्वओं का सबसे पवित्र पर्व  "वैशाख पूर्णिमा" है , जिसे बुद्व पूर्णिमा कहा जाता है ।

*  महात्मा बुद्व से सम्बद्व आठ स्थान ( लुम्बिनी, गया, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, सनकास्य, राजगृह, वैशाली ) "अस्टमहास्थान" के रूप में चर्चित है ।

*  "बोरोबुदुर का बौद्व स्तूप" विश्व का सबसे विशाल स्तूप है जिसका निर्माण शैलेन्द्र राजाओं ने इंडोनेशिया के जावा में कराया ।

*  बुद्व का पंचशील सिद्वान्त का वर्णन " छान्दोग्य उपनिषद" में मिलता है ।

*  शंकराचार्य को " प्रच्छन्न बौद्व " भी कहा जाता है ।

*  बुद्व के " अष्टांगिक मार्ग" का स्रोत " तैत्तरीय उपनिषद " है ।

*  "सुत्तपिटक " को बौद्व धर्म का एनसाइक्लोपीडिया" कहा जाता है ।

* महात्मा बुद्ध के तीन नाम - बुद्व, तथागत, शाक्यमुनि

* बुद्व के जन्म की जातक कथाएं " सुत्तपिटक" में वर्णित है ।

* त्रिपिटक तीन है ।
सुत्तपिटक - बौद्व धर्म का सिद्वान्त वर्णित
विनयपिटक- बौद्व धर्म के आचार विचार एवं नियम
अभिधम्मपिटक- बौद्व दर्शन का वर्णन

*  बौद्व धर्म से सम्बंधित स्मारक - सांची, भरहुत , अमरावती के स्तूप , कार्ले की बौद्व गुफाएं,अजन्ता की गुफा, बाघ की गुफाएं, बराबर की गुफाएं ।

*  98 ई0 में कनिष्क के शासनकाल में कुण्डलवन बौद्व संगीति में बौद्व धर्म का विभाजन दो भाग " महायान" और " हीनयान" में हो गया ।

* हीनयान सम्प्रदाय के सभी ग्रन्थ "पाली भाषा "में है ।

* हीनयान अनुयायी बिना किसी परिवर्तन के बुद्व के मूल उपदशों को स्वीकार करते है , इन्हें निम्नमार्गी एवं रूढ़िवादी की संज्ञा दी जाती है ।

* हीनयान सम्प्रदाय दो भागों में विभक्त हो गया - "वैभाषिक" और "सौत्रान्तिक" ।

* " वैभाषिक" "सम्यक ज्ञान " को वास्तविक प्रमाण मानते है ,इसकी उतपति काश्मीर में हुई और मुख आचार्य - वसुमित्र, बुद्वदेव , धर्मत्रात, आदि थे ।

"सौत्रान्तिक मत" का मुख्य आधार सुत्तपिटक है ।
* महायान का अर्थ है - उत्कृष्ट मार्ग 

* महायान बुद्व को भगवान के रूप मानते थे एवं मूर्ति पूजा करते है तथा इस सम्प्रदाय की स्थापना " नागार्जुन" को माना जाता है ।

* महायान  सम्प्रदाय भी दो भागों में विभक्त हुआ - "शून्यवाद(माध्यमिक )" (प्रवर्त्तक- नागार्जुन) और "विज्ञानवाद(योगाचार)"(प्रवर्त्तक- मैत्रेय)  

भारत का आइंस्टीन " नागार्जुन" को कहा जाता है जिनकी पुस्तक " माध्यमिक कारिका" सापेक्षवाद सिद्वान्त  को वर्णन  करती है ।

महायान सम्प्रदाय 
बौद्व धर्म की चतुर्थ तथा अन्तिम संगीति कुषाण शासक कनिष्क के राज्यकाल में काश्मीर के कुंडलवन  में हुई | इसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की तथा अश्वघोष इसके उपाध्यक्ष बने |  यहाँ बौद्व ग्रंथो के कठिन अंशों पर सम्यक विचार -विमर्श  किया गया तथा प्रत्येक पिटक पर भाष्य लिखे गए | कनिष्क ने इन्हें ताम्रपत्रों पर खुदवा कर एक स्तूप में रखवा दिया | त्रिपिटकों पर लिखे गए इन भाष्यों को ही "विभाषाशास्त्र" कहा जाता है | इसी समय बौद्व धर्म हीनयान तथा महायान नामक दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गए |

महायान सम्प्रदाय की लोकप्रियता के कारण :
 
       इस समय तक बौद्व मतानुयायियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी थी | अनेक लोग इस धर्म में नवीन विचारों एवं भावनाओं के साथ प्रविष्ट हुए थे | अत: बौद्व धर्म के प्राचीन स्वरूप में समयानुसार परिवर्तन लाना जरुरी था | अत: इसमें सुधार की मांग होने लगी | इसके विपरीत कुछ रुढ़िवादी  लोग  बौद्व धर्म के प्राचीन आदर्शो को ज्यों-का-त्यों  बनाए रखना चाहते थे और वे उसके स्वरूप में किसी प्रकार का परिवर्तन अथवा सुधार नही लाना चाहते थे | ऐसे लोगों का सम्प्रदाय "हीनयान" कहा गया | यह मार्ग  सिर्फ भिक्षुओं के लिए ही सम्भव था |
            बौद्व धर्म का सुधारवादी सम्प्रदाय "महायान" कहा गया | महायान का अर्थ है - उत्कृष्ट मार्ग | इसमें परसेवा तथा परोपकार पर विशेष बल दिया गया | बुद्व की मूर्ती के रूप में पूजा होने लगी | यह मार्ग सर्वसाधारण के लिए सुलभ था | इसकी व्यापकता एवं उदारता को देखते हुए इसका "महायान " नाम सर्वथा उपयुक्त लगता है | इसके द्वारा अधिक लोग मोक्ष प्राप्त कर सकते थे |
            महायान में परसेवा तथा परोपकार पर बल दिया गया | उसका उद्वेश्य समस्त मानव जीवन जाति का कल्याण है | इसके विपरीत हीनयान व्यक्तिवादी धर्म है |
        महायान आत्मा एवं पुनर्जन्म में विश्वास करता है | महायान में मूर्तिपूजा का भी विधान है तथा मोक्ष के लिए बुद्व की कृपा आवश्यक मानी गयी है | परन्तु हीनयान मूर्ति-पूजा एवं भक्ति में विश्वास नही रखता | 
        महायान की साधन पद्वति सरल एवं सर्वसाधारण के लिए सुलभ है | यह मुख्यत: गृहस्थ धर्म है जिसमें भिक्षुओं के साथ-साथ सामान्य उपासकों को भी महत्व दिया गया हिया |
        महायान का आदर्श "बोधिसत्व" है | बोधिसत्व मोक्ष प्राप्ति के बाद भी दूसरे प्राणियों की मुक्ति का निरंतर प्रयास करते रहते है | महायान की महानता का रहस्य उसकी नि:स्वार्थ सेवा तथा सहिष्णुता है |
        आगे चलकर महायान सम्प्रदाय के दो सम्प्रदाय बन गए | महायान के सम्प्रदाय है - शून्यवाद (माध्यमिक ) तथा विज्ञानवाद (योगाचार ) 


वज्रयान सम्प्रदाय की स्थापना सातवीं सदी में हुआ । जिसमें "तन्त्र-मन्त्र "विद्या का प्रभाव था ।
कुछ प्रमुख बौद्व मन्दिर 










गौतम बुद्व : बौद्ध धर्म  एवं दर्शन

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M. PRASAD
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