Thursday 12 November 2020

Colonialism and the Countryside (उपनिवेशवाद और देहात) Policies of Revenue System)-NCERT class 12 chapter 10 part 4

Colonialism and the Countryside  (उपनिवेशवाद और देहात)

Policies of Revenue System- राजस्व की नीतियाँ 

परिचय 

1. उपनिवेशवाद का अर्थ 

2. देहातों में उपनिवेशवाद और उसके प्रभाव 

3. औपनिवेशिक राजस्व नीति  एवं उसके परिणाम 

4. देहात में विद्रोह : बंबई -ढक्कन विद्रोह


राजमहल की पहाड़ियां और वहां से जुडी जनजातियाँ (RajMahal Hills and related Tribes ): 

राजमहल की पहाड़ियां झारखंड के साहिबगंज और दुमका जिलों में अवस्थित है| तत्कालीन समय में ये स्थान अत्यंत विशाल तथा भयावह है | इस इलाकों में बहुत ही कम लोग आते है | घने जंगलों से घिरा इस पहाड़ियों में सिर्फ पहाड़िया (अनुसूचित जनजाति समुदाय ) ही आने-जाने की हिम्मत कर सकते है| यह समुदाय अत्यंत गरीबी तथा दयनीय हालत में रहते थे |

    पहाड़िया समुदाय के लोग कौन थे? कहां रहते थे? इस प्रश्न का हल जानने के लिए एक अंग्रेज चिकित्सक फ्रांसीसी  बुकानन ने सरकार की और  से  इस क्षेत्र का दुरा किया तथा यहाँ के लोगों के क्रिया-कलापों को अपने डायरी में लिखा| 

    जब बुकानन इस क्षेत्र का दौरे पर गया तो उसने यहाँ के लोगों की दयनीय स्थिति देखी| वहां के लोगों से मिला लेकिन उसने पाया कि वे लोग अंग्रेज अधिकारियों के प्रति शंकित दृष्टिकोण  रखते थे| बुकानन द्वारा लिखे गए विवरण क्षणिक घटना को ही प्रस्तुतु करते है | 

राजमहल की पहाड़ियों के लोग (People of the RajMahal Hills):

राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहने के कारण इन्हें पहाड़िया कहा जाता था| ये जंगल में अपना जीवन व्यतीत करते थे| इनका रहन-सहन , रीति-रिवाज अन्य समुदाओं से भिन्न था|

झूम की खेती:

राजमहल के पहाड़िया लोग जंगल के छोटे-से-हिस्से में झाड़ियों को काटकर और घास-फूंस को जलाकर जमीन साफ कर लेते थे और राख की पोटाश से उपजाऊ बनी जमीन पर अपने खाने के लिए दालें और ज्वर-बाजरा उगा लेते थे| वे अपने कुदाल से खेती करते थे और फिर उसे कुछ वर्षों के लिए पार्टी छोड़ कर नए इलाके में चले जाते जिससे कि उस जमीन में खोई  हुई उर्वरता फिर से उत्पन्न हो जाती थी|

पहाड़िया समुदाय जीवन शैली :

    उन जंगलों से पहाड़िया लोग खाने के लिए महुआ के फूल इकट्ठे करते थे, बेचने के लिए रेशम के कोया और राल और काठकोयला बनाने के लिए लकडियाँ इकट्ठी करते थे| पेड़ों के नीचे जो छोटे-छोटे पौधे उग आते थे या परती जमीन पर जो घास-फूंस के हरी चादर सी बिछ जाती थी वह पशुओं के लिए चरागाह बन जाती थी|

    पहाड़िया लोग जंगल से घनिष्ठ रूप से जुडी हुई थी| इमली के पेंड के नीचे बनी झोपड़ियों में रहते थे और ऍम के पेंड के छांह में आराम करते थे| पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे| वे बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे| उनके मुखिया लोग अपने समूह में एकता बनाए रखते थे|आपसी लड़ाई-झगड़ें निपटा देते थे|

पहाड़िया और बाहरी लोगों का हस्तक्षेप :

पहाडिया लोग बराबर मैदानी इलाकों पर आक्रमण करते थे जहां लोग स्थायी रूप से खेती-बड़ी करते थे|  ये आक्रमण खासकर अभाव व् अकाल के वर्षों में ज्यादा होता था| इन लोगों के आक्रमण से बचने के लिए जमींदारों और व्यपारियों को क्रमश: खराज और पथकर देना पड़ता था| परन्तु 18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में अंग्रेजों ने जंगलों की कटाई-सफाई के काम को प्रोत्साहित किया ताकि निर्यात के लिए फसल पैदा की जा सके| 

     बाहरी लोग वनवासियों को असभ्य, बर्बर, उपद्रवी और क्रूर समझते थे| इसलिए उन्होंने महसूस किया कि जंगलों  को सफाया करके, वहां स्थायी कृषि स्थापित करनी होगी और जंगली लोगों को पालतू व सभी बनाना होगा ; शिकार का काम छुड़वाना होगा औअर खेती का धंधा अपनाने के लिए  उन्हें राजी करना होगा |

    1770 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहाड़ियों को निर्मूल करने की नीति अपनाई| 1780 के दशक में भागलपुर के कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड ने पहाडिया मुखियाओं को एक वर्षिक वेतन भत्ता  का प्रस्ताव रखा तथा इसके बदले उसे अपने आदमियों को अनुशासन में रखना था| परन्तु कुछ ही मुखिया इसके प्रस्ताव के लिए तैयार हुआ|  ऐसे में अंगरेजी सरकार ने बल प्रयोग करना ही उचित समझा| पहाड़िया सैन्य बलों से बचने और बाहरी लोगों से लड़ाई चालू रखने के लिए पहाडी के भीतरी भागों में चले गये|

राजमहल क्षेत्र में संथालों का प्रवेश : 

1780 के दशक के दौरान  संथाल लोग वहां के जंगलों का सफाया करते हुए , लकड़ी को काटते हुए, जमीन जोतते हुए और चावल तथा कपास उगाते हुए उस इलाके में बड़ी संख्या में घुसे चले आ रहे थे|  इसलिए पहाड़ियों को राजमहल के पहाड़ियों में और भीतर की ओर पीछे हटना पडा|  पहाड़िया कुदाल का और संथाली हल  का प्रयोग करते थे| ये दोनों की बीच शत्रुता लम्बे समय तक चलती रही |

संथाल : अगुआ बाशिंदे 

1810 ई. के अंत में बुकानन ने राजमहल का दौरा किया| वह गुन्जुरिया पहाड़ ,राजमहल  का एक भाग था , गुन्जरिया गाँव पहुँचा| उसने देखा कि आस-पास की जमीन खेती के लिए साफ़ की गई थी | उसने अनुभव किया कि "मानव श्रम के समुचित प्रयोग से " इस इलाके को समृद्व क्षेत्र में बदला जा सकता है| बुकानन ने तम्बाकू और सरसों की फसल देख कर मोहित हो चूका था| पूछने पर उसे पता चला कि संथालों ने कृषि क्षेत्र की सीमाएं काफी बढ़ा ली थी| वे इस इलाके में 1800 के आस-पास आए और पहाडी लोगों को भगाकर तथा जंगलों को साफ़ कर बस गए |

संथालियों का राजमहल क्षेत्रों में आगमन : 

संथाली 1780 के दशक के आस-पास बंगाल में आने लगे थे| जमींदार लोग खेती के लिए नई भूमि तैयार करने के लिए और खेती का  विस्तार करने के लिए उन्हें भाड़े पर रखते थे और ब्रिटिश अधिकारीयों ने जंगल महालों में बसने का  निमंत्रण  दिया| 

    संथालों को जमीने देकर राजमहल की तलहटी में बसने के लिए तैयार कर लिया | 1832 तक, जमीन के एक काफी बड़े इलाके को "दामिन-इ-कोह" के रूप में सीमांकित कर दिया गया| इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया|  

संथालों के लिए शर्तें :

1. संथालों को भूमि के कम-से-कम दसवें भाग को साफ़ करके पहले 10 वर्षों के भीतर जोतना था|

2. सीमांकित इलाके के भीतर रहना था 

3. हल चलाकर खेती करनी थी 

4. स्थायी किसान  बनना था| 

    "दामिन -इ-कोह"के सीमांकन के बाद संथालों की बस्तियां बड़ी तेजी से बढ़ी| संथालों के गाँव की संख्या जो 1838 में 40 थी, 1851 में बढकर 1473 हो गयी| इस अवधि में संथालों की जनसंख्या  जो केवल 3000 थी, बढकर 82000 से भी अधिक हो गई|

    संथाली खानाबदोश जीवन को छोड़कर एक जगह स्थायी रूप से बस गए और बाजार के लिए कई तरह के वाणिज्यिक फसलों की खेती करने लगे थे और  व्यपारियों तथा साहूकारों के साथ लेन- देन  करने लगे थे | परन्तु संथालों ने जिस भूमि को साफ़ करके खेती शुरू की थी उस पर सरकार ने भारी कर लगा रखे थे और कर्ज की अदायगी  नहीं करने पर जमीन पर कब्जा कर रहे थे|

पहाड़िया समुदाय की स्थिति :

आरम्भ में पहाड़िया समुदाय संथालों का प्रतिरोध किया पर अन्तोगत्वा वे इन पहाड़ियों के भीतर चले जाने के लिए मजबूर कर दिए गए| चट्टानी और बंजर भूमि तथा शुष्क इलाका होने से पहाड़िया समुदाय के जीवन पर बुरा प्रभाव पडा| वे गरीब हो गए| झूम की खेती करना मुश्किल हो गया |उनके लिए शिकार करना भी समस्या हो गया |

संथाल विद्रोह (Santhaal Revolt):

कारण :

1. संथाली औपनिवेशिक शासन तथा राजस्व के बढने से तंग आ चुके थे|

2. संथालियों को जमींदारों और साहूकारों द्वारा शोषण किया जा रहा था|

3. कर्ज के लिए उनसे 50 से 500 प्रतिशत तक सूद लिया जाता था|

4. हाट और बाजार में उनका सामान कम तौला जाता था|

5. धनाढ्य लोग अपने जानवरों को इन लोगों के खेतों में चरने के लिए छोड़ दिया जाता था|

विद्रोह की गतिविधियाँ :

1. यह विद्रोह 1855-1856 में प्रारम्भ हुआ था|

2. इस विद्रोह का नेतृत्व सिद्वू तथा कान्हू ने किया था|



3. संथालों ने जमीन्दारों तथा महाजनों के घरों को लूटा, खाद्यान को छीना|

4. संथालियों ने अस्त्र-शस्त्र, तीर-कमान , भाला, कुल्हाड़ी आदि लेकर एकत्रित हुए  और अपनी तीन मांग प्रस्तुत किये|

1. उनका शोषण बंद किया जाए 

2. उनकी जमीने वापस की जाएँ |

3. उनको स्वतंत्र जीवन जीने दिया जाए|

विद्रोह का दमन :

    अंग्रेजों ने आधुनिक हथियारों के बल पर संथाल  विद्रोह का दमन कर दिया गया| कई संथाल योद्वा वीरगति को प्राप्त हुए | इस विद्रोह के पश्चात् संथालों को संतुष्ट करने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने कुछ विशेष क़ानून लागू किये | संथाल परगने का निर्माण किया गया , जिसके लिए 5,500 वर्ग मील का क्षेत्र भागलपुर और बीरभूम जिलों में से लिया गया|    



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