Thursday 11 February 2021

भगवान महावीर : जैन धर्म और दर्शन

भगवान महावीर : जैन धर्म और दर्शन


*  जैन शब्द की उत्पति संस्कृत के "जिन " शब्द से हुई है ।

*  "जिन" शब्द का अर्थ है  "विजेता" अर्थात जिसने अपनी इन्द्रियों और विषय वासनाओं पर नियंत्रण कर आध्यात्मिक विजय प्राप्त की हो ।

*   "जिन" का अर्थ है - जितेन्द्रिय ।

*  जैन धर्म में जैन महात्माओं को "निग्रन्थ" कहा गया है । अर्थात - सांसारिक बन्धनों से मुक्त व्यक्ति / संत।

*  जैन धर्म के संस्थापकों एवं प्रवर्तकों को "तीर्थंकर" कहा जाता है ।

*    जैन अनुश्रुतियों के अनुसार जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर हुए  है ।

*   "ऋषभदेव"  पहले , 23वें  "पाश्र्वनाथ" , और 24वें व अंतिम तीर्थंकर "महावीर " हुए ।

*   "पाश्र्वनाथ" काशी के क्षत्रिय राजा अश्वसेन के पुत्र थे ।  उसने जैन अनुयायियों के लिए चार सिद्वान्त बनाये

- अहिंसा, सत्य, अस्तेय(चोरी नही करना ) , और अपरिग्रह ( सम्पति का त्याग ) ।

*   भगवान महावीर ने पाँचवाँ सिद्वान्त  " ब्रहमचर्य" जोड़े ।

*  वर्धमान महावीर का जन्म 540 ई0 पू0 वैशाली के कुण्डग्राम में हुआ था । इनके पिता सिद्धार्थ "ज्ञात्रांक कुल " के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी ।

*   महावीर का विवाह यशोधरा से हुआ एवं इनकी पुत्री का नाम "प्रियदर्शिनी " था जिसका विवाह " जमाली " से हुआ , वह महावीर के प्रथम शिष्य  हुए ।

* 30 वर्ष की आयु में अपने माता-पिता के मृत्यु के उपरांत अपने बड़े भाई " नन्दिवर्धन" के अनुमति से सन्यास ग्रहण किये।

*  12 वर्षों के कठिन तपस्या के बाद 42 वर्ष  की आयु में  "जुम्भिक"  नामक स्थान के समीप  " ऋजुपालिका नदी " के किनारे "साल वॄक्ष" के नीचे "कैवल्य(सर्वोच्च ज्ञान)" प्राप्त हुआ ।

*  सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति और सांसारिक माया मोह के बंधनों से पूर्णतः छुटकारा पाने के बाद वर्धमान अब      " अर्हत( पूजनीय)  " , " केवलिन"(सर्वज्ञ)" , "निग्रन्थ( बन्धन रहित)" , " जिन (विजेता)" ," महावीर ( विषय-वासना से मुक्त )"  कहलाए ।

*   वर्धमान महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 468 ई0 पू0 बिहार के "पावापुरी" ( राजगीर) में हुआ ।

   


Lord Mahavir (भगवान महावीर):जैन धर्म और दर्शन


*  वर्धमान महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत ( अर्ध मागधी) में दिया था जबकि भगवान गौतम बुद्व ने पाली भाषा में अपना उपदेश दिया |

*  महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद जामिल और प्रथम भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी ।

*   बौद्ध साहित्य में महावीर को "निगण्ठ-नाथपुत्र" कहा गया है ।

*   महावीर ने चार महाव्रतों में पाँचवाँ महाव्रत             " ब्रह्मचर्य"  जोड़ा ।

*   भिक्षुओं के लिए पंच महाव्रत की व्यवस्था है -
1. अहिंसा ,
2.  सत्य , 
3. अस्तेय,
4. अपरिग्रह , 
5. ब्रह्मचर्य

*   गृहस्थों के लिए पंच अणुव्रत की व्यवस्था है ।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य।

*  जैन धर्म के त्रिरत्न है -  
सम्यक  दर्शन , 
सम्यक ज्ञान , 
सम्यक आचरण ।

*  जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नही है परन्तु "आत्मा" की मान्यता है ।

*  जैन धर्म "कर्मवाद "और "पुनर्जन्म"नें विश्वास रखता है , उसके अनुसार कर्मफल ही जन्म और मृत्यु का कारण है ।
*  जैन धर्म में "सलेखना" की प्रथा है ,जिसका तात्पर्य है " उपवास द्वारा शरीर का त्याग "

*  पहली जैन संगीति 300 ई0पू0 पाटलीपुत्रा में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के समय  स्थूलबाहु  के नेतृत्व में हुआ , इस सभा में ही जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया - दिगम्बर और स्वेताम्बर ।

* स्थलबाहु एवं उसके अनुयायियों को "श्वेताम्बर"  ( सफेद कपड़े पहनते है ) तथा भद्रबाहु एवं उसके  अनुयायियों को "दिगम्बर"(नग्न अवस्था में ) कहा गया ।

*  दूसरी जैन सभा 512 ई0 में वल्लभी ( गुजरात) में देवधिरक्षमा श्रवण की अध्यक्षता में हुई ।

* श्वेताम्बर सम्प्रदाय के लोगों ने ही सर्वप्रथम महावीर एवं अन्य तीर्थकरों की पूजा आरम्भ की ।

*  जैन धर्म के आध्यात्मिक विचारों "सांख्य दर्शन" से ग्रहण किये है ।

* जैन धर्म के मानने वाले प्रमुख राजा थे - उदयन , चन्द्रगुप्त मौर्य, खारवेल, राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष , चन्देल शासक ।

*  जैन धर्म के प्रमुख केंद्र थे - उज्जैन और मथुरा ।

* जैन धर्म के तीर्थंकरों के प्रतीक निम्न है ।
       ऋषभदेव - वृषभ ,       
       शांतिनाथ- हिरन , 
       पाश्र्वनाथ- सर्पफण     
       महावीर - सिंह

*  ऋग्वेद में दो तीर्थंकर ऋषभदेव और अरिष्टनेमि का उल्लेख मिलता है ।

*  जैन  परम्परा के अनुसार "अरिष्टनेमि" वासुदेव कृष्ण के समकालीन थे । "अरिष्टनेमि 22वें तीर्थंकर थे ।

* महावीर के 11 प्रमुख शिष्यों को "गन्धर्व" कहा गया है , गन्धर्व का अर्थ होता है - विद्यालयो के प्रधान " ।

*  जैन धर्म से सम्बन्धित स्थापत्य कला

हाथीगुम्फा, बाघगुफा, दिलवाड़ा मन्दिर, पावापुरी, राजगृह, श्रवणबेलगोला,

* जैन साहित्य को "आगम" कहा जाता है ।

* प्रमुख साहित्य - 
12 अंग, 12 उपांग , 2 सूत्रग्रन्थ , 14 पर्व , भगवतीसूत्र , भद्रबाहु रचित कल्पसूत्र


वर्धमान महावीर 

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