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Monday, 25 May 2020

बन्धुत्व , जाति तथा वर्ग वर्ग 12 पाठ 3 (भाग-9)

 साहित्यिक स्रोतों  का उपयोग :
* प्राचीन भारतीय  इतिहास लिखने में साहित्यिक स्रोतों का उपयोग इतिहासकार को अत्यंत सावधानी के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर करना होता है |

वह जरुरी बाते जो इतिहासकार किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते है |
* ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया - पालि, प्राकृत , तमिल , संस्कृत , अन्य आम भाषा
* इन ग्रन्थों को अध्ययन करने वाले कौन थे  |
*  क्या ये ग्रन्थ रूचिकर थे |
* ग्रन्थ  लिखने की विषयवस्तु क्या थी |
* ग्रन्थों के लेखक/ रचनाकार  कौन थे |
* ग्रन्थ की रचना किस काल में रचित की गयी |


महाभारत  और साहित्यिक स्रोतों का उपयोग :
* महाभारत की भाषा और विषय वस्तु सरल  है |
- भाषा - संस्कृत
- दूसरे ग्रन्थों की अपेक्षा सरल संस्कृत का उपयोग
- महाभारत ग्रन्थ की विषयवस्तु के दो मुख्य  शीर्षकों  के अंतर्गत रखते है - आख्यान , उपदेशात्मक
* आख्यान - इसमें कहानियों का संग्रह है
* उपदेशात्मक- इस भाग में सामाजिक आचार-विचार के मानदंडो का चित्रण है |
 सवाल : क्या महाभारत में , सचमुच में हुए किसी युद्व का स्मरण किया जा रहा था ?
- कुछ विद्वानों ने इस बात की पुष्टि करते है कि हमें युद्व की पुष्टि किसी और साक्ष्य से नही होती !


महाभारत : लेखक और तिथियाँ 
* सम्भवत: मूल कथा के रचयिता  भाट सारथी थे जिन्हें  "सूत " कहा जाता था |
* ये सूत क्षत्रिय योद्वाओं के साथ युद्व क्षेत्र में जाते थे व् उनकी विजय एवं उपलब्धियों को काव्य के रूप में प्रस्तुत करते थे | इन रचनाओं का प्रेषण मौखिक रूप से होता था |
* 200ई. पू. से 200 ई. के बीच ब्राह्मण वर्ग ने  महाभारत की कथावस्तु का प्रथम चरण का  लेखबद्व किया |
 यह वह चरण था जब विष्णु देवता की आराधना प्रभावी हो रही थी ,  तथा  श्रीकृष्ण  को विष्णु का रूप बताया गया |
*  कालान्तर में लगभग  200-400 ई. के बीच मनुस्मृति से मिलते -जुलते वृहत उपदेशात्मक प्रकरण महाभारत में जोड़ें गए  |
* प्राम्भ में सम्भवत: 10000  श्लोकों से भी कम रहा होगा , जो  बढ़कर एक लाख श्लोकों वाला हो गया |
* साहित्य परम्परा में इस ग्रन्थ के रचयिता ऋषि वेद व्यास माने जाते है |

महाभारत की सदृश्यता की खोज :
पुरातत्ववेता बी.बी. लाल ने 1951-52 में मेरठ के हस्तिनापुर नामक गाँव में उत्खनन किया  जो महाभारत में कुरुओं की राजधानी का उल्लेख मिलता है | नामों की समानता एक संयोग है !
* यहाँ पांच स्तरों के साक्ष्य मिले है जिनमें  दूसरा स्तर  ( 12-7 वी सदी ई.पू. )  पर मिलने वाले घरों के के बारे में कहते है  "  जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहां से आवास गृहों की कोई  निश्चित परियोजना नही मिली किन्तु मिट्टी की दीवार और मिट्टी की ईंट  अवश्य मिली है |  सरकंडे की छाप वाले मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की और इशारा करती है की कुछ घरों की दीवारें सरकंडों की बनी थी जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था "|
* तीसरे स्तर ( 6-3 सदी ई.पू. )  के लिए बी.बी. लाल  कहते है - " तृतीय काल के घर कच्ची और कुछ पक्की ईंटो के बने हुए थे , इनमें शोषक घट  और ईंटो के नाले गंदे पानी के निकास के लिए इस्तेमाल किए जाते थे , तथा वलय- कूपों का इस्तेमाल , कुओं  और मल की निकासी वाले गर्तों , दोनों ही रूपों में किया  जाता था "|
एक और उदारहरण - द्रौपदी के पांच पति  का  उल्लेख है | इस प्रकार की प्रथा  हिमालय क्षेत्र में प्रचालन में   थी और आज भी है |

                  हस्तिनापुर
महाभारत के आदिपर्वन में इस नगर का चित्रण इस प्रकार मिलता है :
   यह नगर जो समुद्र की भाति भरा हुआ था , जो सैकड़ों प्रासादों से संकुलित था | इसके सिंहद्वार , तोरण आर कंगूरे सघन बादलों की तरह घुमड़ रहे थे | यह इंद्र की नगरी के समान शोभायमान था |
   *      क्या आपको लगता है की लाल की खोज और महाकाव्य में वर्णित हस्तिनापुर में समानता है |









       भारतीय इतिहास के कुछ विषय : बन्धुत्व , जाति और वर्ग 
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भारतीय इतिहास के कुछ विषय : वर्ग 12 पाठ तीन – बन्धुत्व , जाति तथा वर्ग
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                                                                          समाप्त 

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