नगर एवं व्यापार :
नए नगर :
* छठी शताब्दी ई० पू० उपमहाद्वीप के महाजनपदों के राजधानियां संचार मार्गों के किनारे बसे थे | पाटलीपुत्रा , बनारस जैसे शहर नदीमार्ग के किनारे तथा पुहार , भरूकच्छ जैसे नगर समुद्रतट के किनारे |
* पाटलीपुत्रा का विकास पाटलीग्राम नाम के एक गाँव से हुआ|
* 5वीं सदी ई० पू० मगध के शासको ने अपनी राजधानी राजगृह से हटाकर पाटलीग्राम लाया |
* 4थी सदी ई० पू० तक आते आते मौर्य साम्राज्य की राजधानी और एशिया के बड़े नगरों में से एक बन गया |
* 7 वीं सदी में चीनी यात्री श्वैन त्सांग को पाटलीपुत्रा खंडहर के रूप में मिला और इसकी जनसंख्या भी कम थी |
* महाजनपद काल में राजा और शासक वर्ग किलेबंद नगरों में रहते थे , यहाँ आंशिक रूप से खुदाई हुई है जहां से उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली है जिन पर चमकदार कलई चढी है ,और इसे उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र कहा जाता है |
* द्वितीय शताब्दी ई० पू० कई नगरों में छोटे दानात्म्क अभिलेख प्राप्त हुए जिनपर दाता का नाम और उसके व्यवसाय का भी उल्लेख है |
* नगरों में रहनेवाले धोबी , बुनकर, लिपिक , बढाई, कुम्हार , स्वर्णकार , लौहकार , अधिकारी धार्मिक गुरु ,व्यापारी और राजाओं के बारे में विवरण लिखे जाते थे |
* उत्पादकों और व्यापारियों के संघ का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें " श्रेणी " कहा गया है |
* श्रेणियां पहले कचे माल को खरीदती थी ;फिर उनसे सामान तैयार कर बाजार में बेच देती थी |
* छठी सदी ई० पू० से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्गों एवं भूमार्गों का जाल बिछ गया था | व्यापार नदी मार्ग , भूमार्ग एवं समुद्री मार्ग द्वारा होता था |
इन मार्गों की सुरक्षा के बदले राजा व्यापारियों से कर वसूलते थे |
* तमिल भाषा में मसत्थुवन और प्राकृत में सत्थावाह और सेठी के नाम से प्रसिद्व बड़े व्यापारी थे |
* नमक , अनाज, कपड़ा , धातु , और उससे निर्मित उत्पाद , पत्थर , लकड़ी, जड़ी-बूटी जैसे अनेक प्रकार के सामानों का व्यापार होता था |
* रोमन साम्राज्य में काली मिर्च , जैसे मसालों तथा कपड़ों व् जडी-बूटियों की भारी मांग थे जो अरब सागर के रास्ते भूमध्य क्षेत्र तक पहुंचाया जाता था |
* 6ठी सदी ई० पू० आहत सिक्कों का प्रचलन से व्यापार के लिए विनिमय कुछ हद तक आसान कर दिया |
* आहत सिक्के सम्राट द्वारा जारी किये जाते थे , मौर्य शासकों द्वारा जारी सिक्के प्राप्त हुए है | यह भी सम्भव है की व्यापारियों , धनपतियों और नागरिकों ने भी इस प्रकार के सिक्के जारी किये हों |
* आहतसिक्के चांदी और तांबे दोनों धातु से बनाये जाते थे |
* शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के हिन्द-यूनानी शासको ने जारी किये थे |
* सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम श्ताब्दी ईस्वी में कुशान शासकों ने जारी किये थे | उत्तर और मध्य भारत के कई पुरास्थ्लों पर ऐसे सिक्के मिले है |
* दक्षिण भारत में रोमन साम्राज्य के सिक्के मिले है जो व्यापारिक गतिविधियों का परिचायक था |
* प्रथम शताब्दी में पंजाब और हरियाणा क्षेत्रों में यौधेय शासकों द्वारा जारी सिक्के मिले है जो उनकी व्यापार में रुचि और सहभागिता परिलक्षित होती है |
* गुप्त शासकों ने सर्वाधिक सोने के सिक्के जारी किये | इन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में " दीनार " कहा गया है | यह आर्थिक समृद्वी का सूचक भे था |
* छठी सदी ई० से सोने के सिक्के बहुत कम मिले है | इससे यह संकेत मिलता है की आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया हो , साम्राज्य का पतन हो गया हो , व्यापार में कमी हो गयी हो |
नोट :
- " पेरिप्लस आफ एरीथ्रियन सी " एक यूनानी समुद्री यात्री द्वारा रचित ग्रन्थ है जो लगभग प्रथम शताब्दी हिन्द महासागर के यात्रा पर आया था |
- " पेरिप्लस " (यूनानी शब्द ) का अर्थ होता है " समुद्री यात्रा
- " एरीथ्रियन " ( यूनानी शब्द ) का अर्थ होता है " अरब सागर
- " मुद्राशास्त्र "- सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहते है , इसके साथ ही उन पर पाए जाने वाले चित्र , लिपि आदि तथा उनकी चातुओं का विश्लेषण और जिन सन्दर्भ में इन सिक्के को पाया गया है , उनका अध्ययन भी मुद्राशास्त्र के अंतर्गत आता है |
नए नगर :
* छठी शताब्दी ई० पू० उपमहाद्वीप के महाजनपदों के राजधानियां संचार मार्गों के किनारे बसे थे | पाटलीपुत्रा , बनारस जैसे शहर नदीमार्ग के किनारे तथा पुहार , भरूकच्छ जैसे नगर समुद्रतट के किनारे |
* पाटलीपुत्रा का विकास पाटलीग्राम नाम के एक गाँव से हुआ|
* 5वीं सदी ई० पू० मगध के शासको ने अपनी राजधानी राजगृह से हटाकर पाटलीग्राम लाया |
* 4थी सदी ई० पू० तक आते आते मौर्य साम्राज्य की राजधानी और एशिया के बड़े नगरों में से एक बन गया |
* 7 वीं सदी में चीनी यात्री श्वैन त्सांग को पाटलीपुत्रा खंडहर के रूप में मिला और इसकी जनसंख्या भी कम थी |
* महाजनपद काल में राजा और शासक वर्ग किलेबंद नगरों में रहते थे , यहाँ आंशिक रूप से खुदाई हुई है जहां से उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली है जिन पर चमकदार कलई चढी है ,और इसे उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र कहा जाता है |
* द्वितीय शताब्दी ई० पू० कई नगरों में छोटे दानात्म्क अभिलेख प्राप्त हुए जिनपर दाता का नाम और उसके व्यवसाय का भी उल्लेख है |
* नगरों में रहनेवाले धोबी , बुनकर, लिपिक , बढाई, कुम्हार , स्वर्णकार , लौहकार , अधिकारी धार्मिक गुरु ,व्यापारी और राजाओं के बारे में विवरण लिखे जाते थे |
* उत्पादकों और व्यापारियों के संघ का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें " श्रेणी " कहा गया है |
* श्रेणियां पहले कचे माल को खरीदती थी ;फिर उनसे सामान तैयार कर बाजार में बेच देती थी |
* छठी सदी ई० पू० से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्गों एवं भूमार्गों का जाल बिछ गया था | व्यापार नदी मार्ग , भूमार्ग एवं समुद्री मार्ग द्वारा होता था |
इन मार्गों की सुरक्षा के बदले राजा व्यापारियों से कर वसूलते थे |
* तमिल भाषा में मसत्थुवन और प्राकृत में सत्थावाह और सेठी के नाम से प्रसिद्व बड़े व्यापारी थे |
* नमक , अनाज, कपड़ा , धातु , और उससे निर्मित उत्पाद , पत्थर , लकड़ी, जड़ी-बूटी जैसे अनेक प्रकार के सामानों का व्यापार होता था |
* रोमन साम्राज्य में काली मिर्च , जैसे मसालों तथा कपड़ों व् जडी-बूटियों की भारी मांग थे जो अरब सागर के रास्ते भूमध्य क्षेत्र तक पहुंचाया जाता था |
* 6ठी सदी ई० पू० आहत सिक्कों का प्रचलन से व्यापार के लिए विनिमय कुछ हद तक आसान कर दिया |
* आहत सिक्के सम्राट द्वारा जारी किये जाते थे , मौर्य शासकों द्वारा जारी सिक्के प्राप्त हुए है | यह भी सम्भव है की व्यापारियों , धनपतियों और नागरिकों ने भी इस प्रकार के सिक्के जारी किये हों |
* आहतसिक्के चांदी और तांबे दोनों धातु से बनाये जाते थे |
* शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के हिन्द-यूनानी शासको ने जारी किये थे |
* सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम श्ताब्दी ईस्वी में कुशान शासकों ने जारी किये थे | उत्तर और मध्य भारत के कई पुरास्थ्लों पर ऐसे सिक्के मिले है |
* दक्षिण भारत में रोमन साम्राज्य के सिक्के मिले है जो व्यापारिक गतिविधियों का परिचायक था |
* प्रथम शताब्दी में पंजाब और हरियाणा क्षेत्रों में यौधेय शासकों द्वारा जारी सिक्के मिले है जो उनकी व्यापार में रुचि और सहभागिता परिलक्षित होती है |
* गुप्त शासकों ने सर्वाधिक सोने के सिक्के जारी किये | इन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में " दीनार " कहा गया है | यह आर्थिक समृद्वी का सूचक भे था |
* छठी सदी ई० से सोने के सिक्के बहुत कम मिले है | इससे यह संकेत मिलता है की आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया हो , साम्राज्य का पतन हो गया हो , व्यापार में कमी हो गयी हो |
नोट :
- " पेरिप्लस आफ एरीथ्रियन सी " एक यूनानी समुद्री यात्री द्वारा रचित ग्रन्थ है जो लगभग प्रथम शताब्दी हिन्द महासागर के यात्रा पर आया था |
- " पेरिप्लस " (यूनानी शब्द ) का अर्थ होता है " समुद्री यात्रा
- " एरीथ्रियन " ( यूनानी शब्द ) का अर्थ होता है " अरब सागर
- " मुद्राशास्त्र "- सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहते है , इसके साथ ही उन पर पाए जाने वाले चित्र , लिपि आदि तथा उनकी चातुओं का विश्लेषण और जिन सन्दर्भ में इन सिक्के को पाया गया है , उनका अध्ययन भी मुद्राशास्त्र के अंतर्गत आता है |
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M. PRASAD
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