अभिलेखों
का अर्थ निकालने के तरीके :
ब्राह्मी
लिपि का अध्ययन:
*
आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त लगभग
सभी लीपियों का मूल ब्राह्मी लिपि है |
*सम्राट अशोक के आधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है |
*यूरोपीय
विद्वानों ने भारतीय विद्वानों की सहायता से देवनागरी लिपि में कई पांडुलिपियों का
अध्ययन किया और उनके अक्षरों की प्राचीन अक्षरों के नमूनों से तुलना की |
*
कई दशकों के बाद अभिलेख वैज्ञानिकों ने प्राकृत भाषा से तुलना के बाद जेम्स
प्रिसेप ने अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का 1838 ई०में अर्थ निकाल लिया|
खरोष्ठी
लीपि का अध्ययन :
* पश्चिमोत्तर भारत के अभिलेखों में प्रयुक्त
खरोष्ठी लिपि का अध्ययन द्वितीय –प्रथम शताब्दी ई० पू० हिन्द-यूनानी राजाओं द्वारा
बनवाए गए सिक्कों के अक्षरों से मिलान किया जिससे अभिलेखों का पढ़ना आसान हो गया |
अभिलेखों
से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य का अध्ययन :
*
माना की अशोक के दो अभिलेख प्राप्त हुए | उनमें एक अभिलेख पर अशोक द्वारा अपनाई गयी
उपाधियों का प्रयोग किया गया जैसे "देवानांपीय अर्थात देवताओं का प्रिय" और “ पियदस्सी “ यानी “ देखने में सुन्दर “ |
*
अशोक नाम अन्य अभिलेखों में मिलता है
जिनमें उनकी उपाधियाँ भी है |इस अभिलेखों का परीक्षण करने के बाद
अभिलेखाशास्त्रियों ने पता लगाया की उनके विषय, शैली, भाषा और पुरालिपिविज्ञान
सबमें समानता है |
अत:
इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उक्त अभिलेखों का एक ही शासक ने बनवाया था |
*
इतिहासकारों को अभिलेखों के अध्ययन हेतु अन्य परीक्षण करने पड़ते है | जैसे यदि
राजा के आदेश यातायात मार्गो के किनारे और नगरों के पास प्राकृतिक पत्थरों पर
उत्कीर्ण थे , तो क्या उस रास्ते से आने जाने वाले लोग पढ़ते थे ?
*
क्या अधिकांश लोग पढ़े –लिखे थे ?
*
क्या मगध (पाटलीपुत्रा ) में प्रयुक्त प्राकृत भाषा सभी स्थानों पर समझते थे ?
*
क्या राजा के आदेशों का पालन किया जाता था ? इन प्रश्नों के उत्तर पाना पुरातत्ववेत्ताओं/इतिहासकारों
के लिए आसान नही है |
अभिलेख
साक्ष्य की सीमा :
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अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा है |
*
अभिलेखों में अक्षरों का अंकन हलके ढंग से हुआ है जिन्हें पढ़ना आसान नही होता है |
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अभिलेख नष्ट भी हो सकते है, जिनका अक्षर लुप्त हो सकता है |ऐसे में वास्तविक अर्थ
लगा पाना मुश्किल होता है क्योंकि कुछ अर्थ विशेष स्थान या समय से सम्बन्धित होते
है |
*
कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए है लेकिन सभी का अर्थ नही निकाले जा सके है |
*
कई हजार अभिलेख ऐसे भी रहे होंगे जो कालान्तर में नष्ट हो गए होंगे, जो अभिलेख
उपलब्ध है उसके ये अंश मात्र है |
*
अभिलेख प्राय: किसी विशेष अवसरों का वर्णन करते है | यह उन्ही व्यक्तियों के विचार
व्यक्त करते है जो उन्हें लिखवाते है |
समाप्त
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M. PRASAD
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