Tuesday, 17 August 2021

Vijaynagar Empire: Ncert Objective Notes

 एक साम्राज्य की राजधानी :विजयनगर साम्राज्य 

Vijayanagar Empire

 NCERT: Objective Notes











  • विजयनगर  अथवा विजय का शहर एक शहर और एक साम्राज्य दोनों के लिए प्रयुक्त नाम था|
  • उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला यह साम्राज्य 1336 से 1565  तक समृद्वता का प्रतीक था |
  • आज इस स्थान को हम्पी के नाम से जानते है |
  • इस नाम का अविर्भाव यहाँ के स्थानीय मातृदेवी पम्पा देवी के नाम से हुआ था
  • विजयनगर  साम्राज्य की जानकारी पुरातात्विक खोजों, स्थापत्य के नमूनों, अभिलेखों तथा अन्य दस्तावेजों के  आधार पर इकट्ठा की गयी |

 

  • हम्पी के भग्नावशेष की खोज का श्रेय ब्रिटिश अभियंता और पुराविद कर्नल कालिन मैकेंजी को जाता है|
  • मैकेजी द्वारा हासिल शुरुआती जानकारियाँ विरूपाक्ष मंदिर और पम्पा देवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थी |
  • 1856 में कुछ फोटोग्राफरों ने यहाँ के चित्र लिए जिससे शोधकर्ता उनका अध्ययन कर पाए|
  • 1836 से ही अभिलेखकर्ताओं ने हम्पी के अन्य मंदिरों से अभिलेख इकट्ठा करने लगे|
  • इतिहासकारों ने हम्पी के इतिहास का विदेशी यात्रियों के वृतांतों तथा तेलुगु, कन्नड़, तमिल,और संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया |
  • 1754 ई. में जन्में मैकेंजी ने एक अभियंता, सर्वेक्षक तथा मानचित्रकार के रूप में जाने जाते थे












    • 1815 ई. में  उन्हें भारत का पहला सर्वेयर जनरल बनाया गया और 1821 में अपनी मृत्यु तक बने रहे |
    • भारत के अतीत को बेहतर ढंग से समझने और उपनिवेश के प्रशासन को आसान बनाने के लिए उन्होंने इतिहास का सर्वेक्षण करना आरंभ किया|
    • मैकेंजी का विशवास था कि कंपनी स्थानीय लोंगों के अलग-अलग कबीलों, जो इस समय भी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा थे, को अब भी प्रभावित करने  वाले इनमें से कई संस्थाओं, कानूनों तथा रीति-रिवाजों के विषय में बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँहासिल कर सकती थी

राय, नायक तथा सुलतान 

    • परम्परा और अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 में किया था|
    • इस साम्राज्य की अस्थिर सीमाओं में अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले तथा अलग-अलग धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले लोग रहते थे |
    • अपनी उत्तरी सीमाओं पर विजयनगर शासकों ने अपने समकालीन राजाओं, जिनमें ढक्कन के सुलतान और उड़ीसा के गजपति शासक शामिल थे, उर्वर नदी घाटियों तथा लाभकारी विदेशी व्यापार से उत्पन्न सम्पदा पर अधिकार के लिए संघर्ष किया|
    •  विजयनगर के शासकों ने इन राज्यों से भवन निर्माण की तकनीकों को ग्रहण किया और आगे और विकसित किया
    • विजयनगर शासकों ने तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर और बेलूर के चन्नकेशव मंदिर को संरक्षण दिया|
    • विजयनगर के शासकों ने अपने आप को रायकहते थे |


 






विजयनगर का संक्षिप्त इतिहास 

·     1336 में हरिहर और बुक्का ने दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की | यह क्षेत्र रायचूर दोआब के दक्षिण भाग में स्थित था 

·      रायचूर दोआब के उत्तर भाग में बहमनी साम्राज्य था जिसकी स्थापना 1347 में अलाउद्दीन बहमन शाह ने की थी|

·         उस समय दिल्ली का सुलतान मुहम्मद बिन तुगलक था (1325-51)|

·         विजयनगर साम्राज्य में चार वंशों ने शासन किया – 

 

·         संगम वंश (1336-1485) 

1.     हरिहर प्रथम  (1336-56)- संगम वंश का प्रथम शासक था| पहली राजधानी अनेगोंडी थी| सात वर्ष के बाद उसने अपनी राजधानी विजयनगर बनाई |हरिहर प्रथम ने होयसल को जीतकर विजयनगर में मिलाया|

2.     बुक्का प्रथम(1356-77)- बुक्का ने मदुरै को जीता औरवेड-मार्ग प्रतिष्ठापककी उपाधि ग्रहण की| 

3.     हरिहर-II (1377-1404)- इसने महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की थी | यह शिव के विरूपाक्ष रूप का उपासक था| उसने रायचूर दोआब पर अधिकार करने की कोशिश की परन्तु फिरोज शाह बहमनी से परास्त हुआ|

देवराय प्रथम -(1406-22 ई.)-

·         देवराय-प्रथम ने हरविलास और प्रसिद्व तेतुगू  कवि श्रीनाथ को आश्रय  दिया|

·         इसके काल में इटली के यात्री निकोली कोंटी ने 1420 ई. में विजयनगर की यात्रा की|

 

देवराय - II (1422-46)

·         देवराय द्वीतीय संगम वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था| उसने दो संस्कृत ग्रन्थ महानाटक सुधानिधि और वादरायण के ब्रह्मसूत्र पर टीका की रचना की|

·         उसके समय ईरान का यात्री अब्दुल रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की|

·         देवराय -II के मृत्यु के बाद मल्लिकार्जुन ने 1446-65 तक शासन किया

·         संगम वंश का अंतिम शासक विरूपाक्ष (1465-85) हुआ

सालुव वंश (1486-1505)

·         सालुव वंश का संस्थापक नरसिंह सालुव था |

·         उसने 1486 से 1492 तक शासन किया |

·         नरसिंह के मृत्यु के बाद उसका अल्पायु पुत्र तिम्मा को गद्दी पर बैठाकर नरसनायक को संरक्षक नियुक्त किया |

·         1503 ई. में नरसनायक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र वीर नरसिंह तुलुव  तिम्मा का संरक्षक नियुक्त हुआ |

·         1503 ई. में वीर नरसिंह तुलुव ने तिम्मा की ह्त्या कर सालुव वंश का शासन समाप्त कर दिया|

  तुलुव वंश (1505-1570)

    वीर नरसिंह तुलुव (1503-1509 ई.)

·         तुलुब वंश की स्थापना  वीर नरसिंह  तुलुव ने 1503 ई. सुलुव वंश के तिम्मा की हत्या करके की |

·         अल्प समय के  बावजूद  उसने सेना को संगठित करके बहमनी के सुल्तानों के आक्रमणों का सामना किया और नागरिकों को युद्वप्रिय बनाया|

·         विवाह कर से नागरिकों को मुक्त कर दिया |

·         1509 ई. में वीर नरसिंह तुलुव की मृत्यु के बाद उसका भाई कृष्णदेव राय विजयनगर राजा बना|

 कृष्णदेव राय (1509-1530 ई.)










·         कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक था| बाबर ने भी अपनी आत्मकथा बाबरनामा में  तत्कालीन भारत का सबसे शक्तिशाली शासक माना था|

·         विदेशी यात्री कृष्णदेव राय के शासन काल में यात्रा किया :- पुर्तगाली यात्री - डोमिंगो पायस(1520-22), अदुअर्दो बारबोसा (1516-18)

·         कृष्णदेव राय का उपनाम- आंध्र भोज , अभिनव भोज 

·         रचनाएं - आमुक्तमाल्यद,         जामवंतीकल्याणम

·         स्थापत्य निर्माण- विट्ठल स्वामी मंदिर, पम्पा देवी मंदिर , हजारा मंदिर 

·         कृष्णदेवराय ने अपने प्रसिद्व तेलुगु ग्रन्थ आमुक्तामाल्याद में अपनी प्रशासनिक नीतियों की विवेचना किया है|

·       उसने अपनी मां नागला देवी के नाम परनागलपुरनामक नगर की स्थापना की |

·         उसने विट्ठल स्वामी मंदिर, हजारा मंदिर और पम्पा देवी मंदिर का भी निर्माण कराया तथा कई मंदिरों में गोपुरम् का निर्माण कराया|


   


        Vitthal Swami Temple                                                Hazar Ram Temple












·       



*  1520 ई. में बीजापुर को विजयनगर में शामिल किया |

·     1514 ई. में कृष्णदेवराय ने उड़ीसा के शासक गजपति प्रतापरुद्र को पराजित किया |

·     पुर्तगाली गवर्नर अलबुकर्क को उसने भटकल में दुर्ग निर्माण की अनुमति प्रदान की|

·      कृष्णदेवराय के दरबार के आठ विद्वानों कोअष्ट दिग्गजकहा जाता है |

·     कृष्णदेवराय ने कृषि की उन्नति के लिए अनेक तालाब व् नहरों का निर्माण कराया 

·         डोमिंगो पेईस ने विजयनगर के रोम के समान वैभवशाली व विश्व का सर्वोतम नगर कहा है |

 

·         अच्युतदेव राय- (1530-1542)- पुर्तगाली नाविक फर्नाओ नूनीज (1535-1537) इसके काल में भारत आया| डेमिंगों पेस एवं फर्नाओ नूनीज के यात्रा वृतांतों के आधार पर ही सीवेल ने अपनी पुस्तकफारगोटन एम्पायर”(Forgotten Empire) लिखी

·         सदाशिव (1542-1570)- यह नाममात्र का शासन था| राज्य की वास्तविक शक्ति उसके प्रधानमंत्री रामराय के हाथ में थी|  1565 ई. में तालीकोट के युद्व (राक्षसी तागड़ी/ बनी हट्टी) में विजयनगर को  बहमनी राज्य के संयुक्त सेनाओं ने मिलकर पराजित किया|

·         अरावीडूवंश (1570-1615)- विजयनगर साम्राज्य के पतन के पश्चात तिरुमल ने आरवीडू वंश की नीवं रखी| इसकी राजधानी पेनुकोंडा एवं चंद्रगिरी थी | रंग तृतीय विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक सिद्व हुआ

·         गजपति 

·         गजपति का शाब्दिक अर्थ  होता है - हाथियों का स्वामी |

·         15 वीं शताब्दी में उड़ीसा के एक शक्तिशाली शासक वंश का नामगजपति वंशथा |

अश्वपति 

·         विजयनगर की लोक प्रचलित परम्पराओं के ढक्कन के सुल्तानों को अश्वपति या घोड़ों के स्वामी कहा जाता था |

नरपति

·         रायों को नरपति या लोगों के स्वामी की संज्ञा दी गई है |

शासक और व्यापारी

·         मध्य काल में युद्वकला प्रभावशाली अश्वसेना पर आधारित होती थी, इसलिए भारतीय शासक अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयत करते थे|

·         घोड़ों का व्यापार आरम्भिक चरणों में अरब व्यपारियों द्वारा नियंत्रित होता था|

·         व्यपारियों के स्थानीय समूह , जिन्हें कुदिरई चेट्टी अथवा घोड़ों के व्यपारी कहा जाता था, भी इन विनिमयों में भाग लेते थे

·         1498ई. से भारत में पुर्तगाली भी उभर कर आए , जो उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पर व्यापारिक और सामरिक केंद्र स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे| 

·         पुर्तगालियों की बेहतर सामरिक तकनीक, विशेष रूप से बंदूकों के प्रयोग ने उन्हें इस काल की उलझी हुई राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरने में सहायता की| 

  • विजयनगर भी मसालों, वस्त्रों तथा रत्नों के अपने बाजारों के लिए प्रसिद्व था|

  • विजयनगर की समृद्व जनता मंहगी विदेशी वस्तुओं की मांग करती  थी विशेष रूप से रत्नों और आभूषणों की |

  • दूसरी ओर व्यापार  से प्राप्त राजस्व राज्य की समृद्वि में महत्वपूर्ण योगदान देता था|

 

राज्य का चरमोत्कर्ष तथा पतन

·         विजयनगर की राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमांडर शामिल थे|

·         विजयनगर का पहला राजवंश-संगम वंश था जिसका शासनकाल 1336 से 1485 तक रहा तथा जिसकी स्थापना हरिहर और बुक्का ने की थी|

·         नर सिंह सालुव ने संगम वंश को समाप्त कर सालुव  वंश की स्थापना की

·         1503 ई. में वीर नरसिंह तुलुव ने सालुव वंश को समाप्त कर तुलुव वंश की स्थापना की |

·         तुलुव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक कृष्णदेव राय था|

कृष्णदेव राय के महत्वपूर्ण कार्य

·         कृष्णदेव राय ने तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र (रायचूर दोआब) 1512 ई. में हासिल किया|

·         उसने उड़ीसा के गजपति शासक प्रताप रूद्र को पराजित किया -1514ई. में |

·         1520 ई. में बीजापुर के सुलतान को बुरी तरह से पराजित किया|

·         कृष्णदेव राय का शासन  शान्ति और समृद्वि का काल था|

·         दक्षिण भारत के कई मंदिरों का निर्माण और मंदिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव राय को जाता है|

·         उसने विजयनगर के समीप ही अपनी माँ के नाम पर नगलपुरम नामक उपनगर की स्थापना भी की|

कृष्णदेव राय के मृत्यु पश्चात विजयनगर 

·         1529 में कृष्णदेव राय के मृत्यु के पश्चात उसके उतराधिकारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पडा|

·         1565 ई. में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी-तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्व में उतरी जहां उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुंडा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली|

·         विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर को लूटा और तबाह कर दिया|

·         अब साम्राज्य का केंद्र पूर्व की और स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविडू राजवंश ने पेनुकोंडा से और बाद में चंद्रगिरी (तिरुपति के समीप) से शासन किया

 

राजा और व्यापारी  

विजयनगर के सबसे प्रसिद्व शासक कृष्णदेव राय ने शासनकाल के विषय में अमुक्तमल्यद नामक तेलुगु भाषा में एक कृति लिखी| व्यपारियों के विषय में लिखा:

एक राजा को अपने बंदरगाहों को सुधारना चाहिए और वाणिज्य को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चन्दन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का खुले तौर पर आयात किया जा सके उसे प्रबंध करना चाहिए कि उन विदेशी नाविकों जिन्हें तूफानों, बीमारी या थकान के कारण उनके देश में उतरना पड़ता है, कि भलीभांति देखभाल की जा सकेसुदूर देशों के व्यापारियों, जो हाथियों और अच्छे घोड़ों का आयात करते है, जो रोज बैठक में बुलाकर तोहफे देकर तथा उचित मुनाफे की स्वीकृति देकर अपने साथ सम्बद्व  करना चाहिए| ऐसा करने पर ये वस्तुएं कभी भी तुम्हारे दुश्मनों तक नहीं पहुचेंगी|

राय तथा नायक/ नायंकर व्यवस्था   

·         विजयनगर साम्राज्य में राजा को राय कहा जाता था|

·         ये राजा सैनिक व असैनिक अधिकारियों को उनकी विशेष सेवाओं के बदले भूमि प्रदान करते थे| इस प्रकार की भूमि को अमरम कहलाती थी| इसके प्राप्तकर्ता अमर-नायक कहलाते थे|

·         अमर-नायक अपने भू-क्षेत्र के कृषकों, शिल्पियों एवं व्यापारियों से भू-राजस्व तथा अन्य कर वसूलते थे

·         वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा सैनिक संगठन के रख-रखाव के लिए अपने पास रखते थे|

·         अमर -नायक वर्ष में एक बार राजा को भेंट भेजते थे| अपनी स्वामी भक्ति प्रकट करने हेतु राजदरबार में उपहारों के साथ स्वयं भी उपस्थित होते थे|


अमर-नायक

·         अमर शब्द का आविर्भाव मान्यतानुसार संस्कृत शब्द समर से हुआ है जिसका अर्थ है लड़ाई या युद्व|

·          यह फ़ारसी शब्द अमीर से भी मिलता - जुलता है जिसका अर्थ है - ऊँचे पद का कुलीन व्यक्ति |

·         विजयनगर शासक इन अमरनायक को एक-दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर उन पर अपना नियंत्रण दर्शाता था पर 17वीं शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए जिससे केन्द्रीय ढाँचे का विघटन होने लगा |

आयंगर व्यवस्था

·         विजयनगर साम्राज्य प्रान्तों में विभक्त था|

·         प्रांत मंडल में विभक्त थे |

·         मंडल वलनाडू (जिला) में विभक्त था|

·         वलनाडू नाडू में विभक्त था|

·         नाडू गांव् की बड़ी राजनीतिक इकाई थी|

·         गाँव को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में संगठित थी|

·         गाँव पर 12 व्यक्ति मिलकर शासन करते थे जिन्हें  सामूहिक रूप से आयंगर कहा जाता था|

·         इनके पद आनुवांशिक होते थे| इन्हें वेतन के बदले  कर मुक्त भूमि दी जाती थी|

    विजयनगर में विदेशी यात्री 

 क्र.

विदेशी यात्री 

देश 

भ्रमण काल 

यात्रा वृतांत 

शासक 

1.

निकोलो कोंटी

इटली 

1420-22

-

देवराय प्रथम 

2. 

अब्दुर रज्जाक 

ईरान 

1441-42

मतलअसादेन 

देवराय द्वीतीय 

3.

अफनासी निकितन 

रूस 

1466-72

तीन समुद्रों पार   की यात्रा 

मुहम्मद शाह 3

बहमनी शासक 

4. 

एडूअर्ड़ो बारबोसा 

पुर्तगाल 

1516-1518

ट बुक आफ दुआर्डो बारबोसा 

कृष्णदेव राय 

5. 

डेमिंगों पेस 

पुर्तगाल 

1520-22

डेमिंगों की कथा 

कृष्णदेव राय 

6.

फर्नाओ नूनीज 

पुर्तगाल 

1535-37

क्रोनिकल आफ फर्नाओ

अच्युतदेव राय 

 

विजयनगर शहर के विषय में खोज  

  • विजयनगर के राजाओं तथा उनके नायकों के बड़ी संख्या में अभिलेख मिले है जिनमें मंदिरों को दिए जानेवाले दानों का उल्लेख है तथा महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण है|



  • इनमें सबसे उल्लेखनीय वृतांत निकोलो कोंटी नामक इतालवी व्यापारी, अब्दुर्रज्जाक नामक फारस के राजा का दूत, अफानासी निकितन नामक रूस का व्यापारी, जिन सभी ने 15वीं सदी में शहर की यात्रा की थी, और दुआर्ते बारबोसा, डोमिंगो पेस तथा पुर्तगाल का फर्नाओ नूनिज, जो सभी 16वीं शताब्दी में आये थे, के है |

डोमिंगो पेस की नजर में विजयनगर शहर

डोमिंगो पेस के अनुसार  विजयनगर शहर का वर्णन:

इस शहर का परिमाप मैं यहाँ नही लिख रहा हूँ क्योंकि यह एक स्थान से पूरी तरह नहीं देखा जा सकता, पर मैं एक पहाड़. पर चढ़ा जहां से मैं इसका  एक बड़ा भाग देख पाया | मैं इसे पूरी तरह से नहीं देख पाया क्योंकि यह कई पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित है| वहां से मैंने जो देखा वह मुझे रोम जितना विशाल प्रतीत हुआ है, और देखने में अत्यंत सुन्दर; इसमें पेड़ों के कई उपवन है, आवासों के बगीचों में तथा पानी की कई नालियां जो इसमें आती है, तथा कई स्थानों पर झीलें है; तथा राजा के महल के समीप ही खजूर के पेड़ों का बगीचा तथा अन्य फल प्रदान करने वाले वृक्ष है |

विजयनगर की जल-सम्पदा

·         विजयनगर शहर भारतीय प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक था इसलिए पानी संचयन का प्रबंध आवश्यक था|

·         विजयनगर चारों ओर ग्रेनाइट की चट्टानों से घिरा है|इन चट्टानों से कई जलधाराएं फूटकर तुंगभद्रा नदी में मिलती है| इससे एक प्राकृतिक कुंड का निर्माण हुआ था|

·         इन सभी धाराओं को बांधकर जल-हौज बनाये गए थे| इन्ही में से एककमलपुरम जलाशयथा| इससे आसपास खेतों की सिंचाई की जाती थी साथ ही एक नहर के माध्यम सेराजकीय केंद्रतक भी ले जाया गया|

·         तुंगभद्रा नदी पर बाँध बनाकरहिरिया नहरनिकाली गयी थी जिसके पानी का प्रयोगधार्मिक केंद्रसेशहरी केंद्रको अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में होता था

·         संभवतः इस नहर का निर्माण संगम वंश के राजाओं द्वारा करवाया गया था|

हौजों/जलाशयों का निर्माण किस प्रकार होता था ?

कृष्णदेव राय द्वारा बनवाए जलाशय के विषय में पेस लिखता है :-

      राजा ने एक जलाशय बनवाया ….. दो पहाड़ियों के मुख-विबर पर जिससे दोनों में से किसी पहाडी से आने वाला सारा जल वहां इकट्ठा हो,इसके अलावा जल 9मील (लगभग 15 किमी)से भी अधिक की दूरी से पाइपों से आता है जो बाहरी श्रृंखला के निचले हिस्से के साथ-साथ बनाए गए थे| यह जल एक झील से लाया जाता है जो छ्लकाव से खुद एक छोटी नदी में मिलती है| जलाशय में तीन विशाल स्तम्भ बने है जिन पर खूबसूरती से चित्र उकेरे गए है; ये ऊपरी भाग में कुछ पाइपों से जुड़े हुए है जिनमें ये अपने बगीचों तथा धान के खेतों की सिंचाई के पानी लाते है| इस जलाशय को बनाने के लिए इस राजा ने एक पूरी पहाड़ी को तुड़वा दिया...जलाशय में मैंने इतने लोगों को कार्य करते देखा कि वहां पद्रह से बीस हजार आदमी थे, चीटियों की तरह ……. 

विजयनगर के किलेबंदियाँ तथा सड़कें

·         15वीं शताब्दी में फारस के शासक द्वारा कालीकोट भेजा गया दूत अब्दुर रज्जाक ने विजयनगर में दुर्गों की सात पंक्तियों का वर्णन किया है|

·         इन किलोबंदियों द्वारा शहर,कृषि क्षेत्र व जंगल को भी घेरा गया है|

·         सबसे बाहरी दीवार विजयनगर के चारों ओर की पहाड़ियों को आपस में जोड़कर निर्मित की गयी है| दीवार में पत्थर के फनाकार टुकड़ों का उपयोग किया किया गया है जो स्वत: जुड़कर अपने स्थान पर टिके है |

·         अब्दुर रज्जाक बताता है किपहली,दूसरी तथा तीसरी दीवारों के बीच जूते हुए खेत,बगीचे तथा आवास है |”

·         डेमिंगोस पेस के अनुसार पहली किलेबंदी से शहर की दूरी अधिक है| बीच में खेत एवं बगीचे है |दूसरी किलेबंदी द्वारा नगरीय केंद्र के आंतरिक भाग को घेरा गया है| तीसरी किलेबंदी द्वारा शासकीय केंद्र को घेरा गया है |

प्रश्न : कृषि क्षेत्रों को किलेबंद भू-भाग में क्यों समाहित  किया गया?

उत्तर: 

सुरक्षा की दृष्टी से | मध्य काल में घेराबंदियों का मुख्य उद्देश्य शत्रुओं को खाद्य सामाग्री से वंचित कर समर्पण के लिए बाध्य करना होता था| ये घेराबंदियों कई महीनों और यहाँ तक कि वर्षों तक चल सकती थी| आमतौर पर शासक ऐसी परिस्थियों से निपटने के लिए किलेबंद क्षेत्रों के भीतर विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाते थे| विजयनगर के शासकों ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए  कृषि भूभाग को बचाने के लिए एक अधिक मंहगी तथा व्यापक नीति को अपनाया

शहरी केंद्र 

·     विजयनगर शहर के सामान्य लोगों के अपेक्षाकृत कम पुरातात्विक साक्ष्य मिलें है ।

·      पुरातत्वविदों ने कुछ स्थानिन पर चीनी मिट्टी पाई है और उनका सुझाव है कि हो सकता है कि इन स्थानिन पर अमीर व्यापारी रहते हों ।

·         कुछ मकबरों और मस्जिदों के अवशेष भी मिले है जो हम्पी में मिलें मंदिरों के मंडपों के स्थापत्य से मिलता जाता है ।

·         सामान्य लोगों के आवासों के बारे में पुर्तगाली यात्री बारबोसा वर्णन करता हैलोगों के अन्य आवास छप्पर के है ,पर फिर भी सुदृढ़ है, और व्यवसाय के आधार पर कई खुले स्थानों वाली लंबी गलियो में व्यवस्थित है

·         इस पूरे क्षेत्र में पूजा स्थल मिलें है , जो विभिन्न समुदायों द्वारा संरक्षित थे।  कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय सामान्य नागरिकों के लिए पानी के स्रोत थे ।

 महानवमी डिब्बा



·   







*      शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थितमहानवमी डिब्बाएक विशालकाय मंच है जो लगभग 11000वर्ग फीट के आधार पर 40 फ़ीट की ऊंचाई तक जाता है । इस पर लकड़ी की संरचना बनी थी।मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से पटा पड़ा है ।

·        ऐसा माना जाता है कि विजयनगर शासक महानवमी (दशहरा के समय ) के अवसर पर रुतबे ताकत तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करए थे ।

·        इस अवसर पर होने वाले  धर्मानुष्ठानों में मूर्ती की पूजा,राज्य के अश्व की पूजा तथा जानवरों की बलि सम्मिलित थी ।

·        त्योहार के अंतिम राजा अपनी सेना का खुले मैदान में आयोजित समारोह में निरीक्षण करता था तथा अधीनस्थ राजाओं से भेंट स्वीकार करता था 


कमल महल 










·         विजयनगर शहर की सबसे सुंदर इमारत कमलमहल है जिसकी ऊपरी संरचना कमल की तरह दिखती है। इस इमारत का नामकरण अंग्रेज यात्रियों ने 19वीं सदी के दौरान किया था ।

·        माना जाता है कि यह परिषदीय सदन था जहां राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था ।


 

हजार राम मंदिर 

·         एक अत्यंत दर्शनीय इमारत जिसे हजार राम मंदिर कहा जाता है जिसका प्रयोग केवल राजा और उनके परिवार द्वारा ही किया जाता था ।

·        इस मन्दिर की दीवारों पर मूर्तियाँ अंकित थी जो सुरक्षित अवस्था में है ।

·        इस मंदिर की आंतरिक दीवारों पर रामायण से लिये गए कुछ दृश्यांश सम्मिलित है ।

 









 

हाथियों का अस्तबल

·       कमल महल के समीप ही हाथियों का अस्तबल बना हुआ था । 

·      यह लम्बाई में एक विशाल इमारत थी एवं स्थापत्य का एक प्रमुख नमूना भी था ।

·      कमल महल एवं हाथियों के अस्तबल पर भी  इन्डो - इस्लामिक भवन निर्माण कला का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है ।











 



विठ्ठल मन्दिर

·         इसका निर्माण देवराय द्वितीय काल में प्रारम्भ हुआ एवं कृष्णदेव राय के काल तक चलता रहा ।

·        यह मंदिर 500 फुट लम्बे और 310फुट चौड़ी चाहरदीवारी से घिरा है ।

·        मुख्य मंदिर मध्यभाग में स्थित है । प्रमुख देवता विट्ठल थे जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप है ।

·        इस देवता की पूजा को कर्नाटक में साम्राज्यिक संस्कृति को आत्मसात करने के लिए आरम्भ किया ।

·        मन्दिर के बाहर सूर्य देवता के लिए ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित रथ बने है ।पचास रुपये के नोट में रथ के पहिये का चित्र अंकित है ।











विरूपाक्ष मंदिर 

·         अभिलेखों से ज्ञात होता है कि यह मंदिर 9-10वीं सदी का था, विजयनगर साम्राज्य में इसे और बड़ा किया गया था।

·        मुख्य मंदिर के सामने बना मण्डप कृष्णदेव राय ने आने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया । 

·        पूर्वी गोपुरम का निर्माण भी उसी ने करवाया था ।

·        मन्दिर के सभागारों का प्रयोग संगीत, नृत्य और नाटकों के लिए होता था । 

·        अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनंद मनाने एवं झूला-झुलाने के लिए होता था।










 

गोपुरम

·         गोपुरम प्रवेश द्वार को कहा जाता है जिसे विजयनगर शासकों ने बनवाया था ।

·        राय गोपुरम राजकीय प्रवेशद्वार थे जो अक्सर केंद्रीय देवालयों की मीनारों को बौना प्रतीत कराते थे और जो लम्बी दूरी से ही मंदिर के होने के संकेत देते थे ।

·        गोपुरम सम्भवतः शासकों की ताकत की याद भी दिलाते थे,जो ऊंची मीनारों के निर्माण के लिए आवश्यक साधन,तकनीक तथा कौशल को प्रदर्शित करता था ।
















 

राजधानी का चयन

·         विजयनगर साम्राज्य की राजधानी विजयनगर जिसे आज हम्पी कहा जाता है , जिसका राजधानी के रूप में चयन निम्न कारणों से किया गया ।

·        स्थानीय मान्यताओं के अनुसार किष्किंधा पहाड़ियाँ रामायण में उल्लिखित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं ।

·        अन्य मान्यताओं के अनुसार स्थानीय मातृदेवी पम्पा देवी ने इन पहाडियों में विरुपाक्ष, जो राज्य के संरक्षक देवता तथा शिव का एक रूप माने जाते है, से विवाह के लिए तप किया था। आज तक यह विवाह विरुपाक्ष मन्दिर में हर वर्ष धूम-धाम से आयोजित किया जाता है ।

·        विजयनगर के शासक भगवान विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा करते थे। सभी राजकीय आदेशों पर कन्नड़ लिपि मेंश्री विरुपाक्षअंकित होता था ।

·       शासकहिन्दू सूरतराणाका प्रयोग करते थे जिसका अर्थ था हिन्दू सुल्तान ।

 

·         विजयनगर साम्राज्य की राजधानी विजयनगर जिसे आज हम्पी कहा जाता है , जिसका राजधानी के रूप में चयन निम्न कारणों से किया गया ।

·        स्थानीय मान्यताओं के अनुसार किष्किंधा पहाड़ियाँ रामायण में उल्लिखित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं ।

      







विजयनगर की स्थापत्यकला की विशेषताएं

·         विजयनगर शैली के भवन तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में फैला है ।

·        शासकों ने पुराने मन्दिरों का विस्तार किया, कई मंदिरों में गोपुरम का निर्माण किया तथा नई इमारतों का निर्माण भी कराया।

·        विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला को तीन भागों में विभाजित कर सकते है - धार्मिक, राजशाही और नागरिक ।

·        विजयनगर शैली में चालुक्य , होयसल,पल्लव एवं चोल शैलियों का मिश्रण देखने को मिलता है ।

·        इमारतों के निर्माण में स्थानीय ग्रेनाइट पत्थरों का  उपयोग किया है ।

·        मन्दिरों के स्तम्भों की विविध एवं जटिल सजावट विजयनगर शैली की एक प्रमुख विशेषता है ।

·        हम्पी के मंदिरों में कुछ स्तम्भों पर हिंदुओं की पौराणिक कथाओं के चित्र उत्कीर्ण है जो खूबसूरती में चार चांद लगाते है।

·        विरुपाक्ष मन्दिर,गोपुरम, कमलमहल, हाथियों का अस्तबल, विठ्ठल मन्दिर, हजार राम मंदिर स्थापत्य कला के उदाहरण है ।

महलों, मन्दिरों तथा बाजारों का अंकन

·         विजयनगर के जानकारी मैकेंज़ी द्वारा किये गए आरंभिक सर्वेक्षणो के बाद यात्रा वृत्तांतों और अभिलेखों से मिलती है ।

·        20वीं शताब्दी में इस स्थान का संरक्षण भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण तथा कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग द्वारा गया। 

·        1976 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली और 1980 में विजयनगर रीसर्च प्रोजेक्ट ने गहन सर्वेक्षण आरभ किया| यह कार्य आज भी जारी है।

·        1986 में हम्पी को UNESCO ने world Heritage site के रूप में मान्यता दी ।

 हम्पी का मानचित्र निर्माण 

·        हम्पी  के मानचित्र निर्माण का पहला चरण यह था कि संपूर्ण क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बांटा गया और प्रत्येक वर्ग को वर्णमाला के अक्षर से इंगित किया गया| फिर इन छोटे वर्गों को पुनः और भी छोटे वर्गों के समूहों में बांटा गया, लेकिन इतना काफी नहीं था| आगे फिर छोटे वर्गों को और छोटी इकाइयों में बांटा गया|

·        दिए गए मानचित्र के आधार पर ऐसा लगता है की इनसे हजारों संरचनाओं के अंशों- छोटे देव- स्थलों और आवासों से लेकर विशाल मंदिरों तक को पुनः उजागर किया गया| उनका प्रलेखन भी किया गया| इन सब के कारण सड़क को रास्तों और बाजारों आदि के अवशेषों को पुनः प्राप्त किया जा सका हैइन सभी की स्थिति की पहचान स्तंभ आधारों तथा मंचों के माध्यम से की गई है| एक समय जो बाजार जीवंत थे उनका बस अब यही कुछ बचा है|

·        जॉन एम फ्रिटज, ऍम.एस. जॉर्ज मिशेल तथा ऍम.एस. नागराज राव जिन्होंने इसस्थान पर वर्षों तक कार्य किया, ने जो लिखा वह याद रखना महत्वपूर्ण है:विजयनगर के स्मारकों के अपने अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं- स्तंभ, टेक, धरण, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अंदरूनी भाग तथा मीनारों की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है जो प्लास्टर से सजाएं और संभवत चटकीले रंगों से चित्रित थे”| हालांकि लकड़ी की संरचनाएं अब नहीं हैं और केवल पत्थर की संरचनाएं अस्तित्व में है यात्रियों द्वारा पीछे छोड़े गए विवरण उस समय के स्पंदन से पूर्ण जीवन के कुछ आयामों को पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं|

 

हम्पी का बाजार

पुर्तगाली यात्री डेमिंग गोस पेस ने हम्पी के बाजार का विवरण प्रतुत किया है। पेईज बताता है कि गली में कई व्यापारी रहते हैं इनके पास सभी प्रकार के माणिक्य, हीरे, पन्ना, मोती, वस्त्र मिलते थे| हर शाम यहां एक मेला लगता है जहां सामान्य घोड़े, टट्टू, नींबू, संतरा, अंगूर, एवं लकड़ी मिलती है| इस गली में आप हर वस्तु पा सकते हैं| विजय नगर के बाजार में चावल, गेहूं, मकई, जौ,सेम, मूंग, काला चना आदि भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहते थे|

फर्नाओ नूनीज बताता है कि बाजार में प्रचुर मात्रा में अंगूर, नींबू, संतरे, अनार, आम एवं कटहल आदि मिलते हैं| सभी के दाम सस्ते हैं| बाजार में मांस भी मिलता था| भेड़-बकरी का मांस, सूअर, मृग, तीतर का मांस, खरगोश, कबूतर, बटेर सभी प्रकार के पक्षी,चूहे, बिजली एवं चिड़िया विजय नगर बाजार में मिलती थी| पुरूष-स्त्री दोनों  सुंदर कपड़े पहनते थे एवं  आकर्षक आभूषण से उनके शरीर लदे होते थे|

 

अनसुलझे प्रश्न

·         विजयनगर साम्राज्यकी राजधानी  विजयनगर शहर की इतनी जानकारी के बावजूद कुछ प्रश्न अनसुलझे रह गएजिसकी विशिष्ट जानकारी अभी तक ज्ञात नहीं हुई है|

·        जैसे भवनों के नक्शे कौन बनाता था, राजगीर, पत्थर काटने वाले मूर्तिकार जो वास्तविक निर्माण कार्य करते थे, कहां से आते थे

·        क्या उन्हें युद्ध के दौरान पड़ोसी क्षेत्रों से बंदी बनाया जाता था?

·        उन्हें किस प्रकार के वेतन मिलते थे?

·        निर्माण गतिविधियों का अधीक्षण कौन करता था? 

·        किस प्रकार के तकनीक का प्रयोग किया जाता था?

·        निर्माण के लिए कच्चा माल कैसे औरकहां से लाया जाता था?

·        कुछ अनसुलझे प्रश्न है जिनका उत्तर कुछ और खोज के बाद ही प्राप्त हो सकती हैं|

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