Wednesday, 18 August 2021

खुदीराम बोस

 खुदीराम बोस 

हाथ में गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी पर चढ़े थे क्रांतिकारी खुदीराम बोस, महज 18 साल 8 महीने और 8 दिन की उम्र में हुए थे शहीद

जन्म : ३ दिसम्बर 1889
जन्म स्थान : बहुवैनी , मिदनापुर , पश्चिम बंगाल 
पिता का नाम : त्रेलोक्य नाथ बोस 
माता का नाम : लक्ष्मी प्रिया देवी 
शिक्षा : 9 वीं 

 छात्र जीवन से ही ऐसी लगन मन में लिये इस नौजवान ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और मात्र 19 वें वर्ष में हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर चढ़कर इतिहास रच दिया।


कोलकाता में चीफ प्रेसिडेंसी जज थे- किंग्सफोर्ड। किंग्सफोर्ड पूरे बंगाल में भारतीय क्रांतिकारियों को कठोर सजा देने के लिए जाने जाते थे। इस वजह से वो भारतीय क्रांतिकारियों की नजर में थे। अंग्रेजों को इसकी भनक लग चुकी थी और उन्होंने जज किंग्सफोर्ड का तबादला मुजफ्फरपुर कर दिया।


जज किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दो युवा क्रांतिकारियों को मिली- खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी। दोनों किंग्सफोर्ड के पीछे-पीछे मुजफ्फरपुर आ गए।


यहां दोनों ने जज किंग्सफोर्ड की रेकी की। दोनों ने देखा कि जज किंग्सफोर्ड रोजाना यूरोपियन क्लब से बग्घी में निकलते थे। दोनों ने योजना बनाई कि जिस बग्घी में जज किंग्सफोर्ड सवार होंगे, उसे विस्फोट से उड़ा दिया जाएगा।


30 अप्रैल 1908 का दिन। दोनों क्रांतिकारी अपनी योजना को पूरा करने के लिए तैयार थे।


क्लब से एक बग्घी बाहर निकली और दोनों ने उस पर बम फेंक दिया, लेकिन बग्घी में जज किंग्सफोर्ड की जगह दो महिलाएं सवार थीं। हमले में दोनों की मौत हो गई। जज किंग्सफोर्ड को मारने का प्लान अधूरा रह गया। हमले के बाद दोनों क्रांतिकारी भाग निकले।













पुलिस से बचने के लिए दोनों अलग-अलग भागे। प्रफुल्ल चाकी समस्तीपुर में एक रेलगाड़ी में बैठ गए, लेकिन रेल में पुलिस सबइंस्पेक्टर भी सवार था। उसने चाकी को पहचान लिया और पुलिस को सूचना दे दी। अगले स्टेशन पर चाकी को पकड़ने के लिए पुलिस तैयार खड़ी थी। चाकी ने भागने की कोशिश की, लेकिन चारों तरफ से घिरे होने की वजह से भाग नहीं सके और उन्होंने खुद को गोली मार ली।


इधर वैनी पूसा रोड स्टेशन से खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर मुकदमा चलाया गया। अंग्रेज सरकार ने केवल 8 दिन में ही सुनवाई पूरी कर दी। 13 जुलाई 1908 को फैसला आया जिसमें खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई। इस फैसले के खिलाफ कोलकाता हाईकोर्ट में अपील की गई, लेकिन जज ने फांसी की सजा बहाल रखी। फांसी का दिन तय हुआ- 11 अगस्त 1908।


 ये युवा क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गया। खुदीराम बोस अपने हाथ में गीता लेकर एक वीर भारतीय की तरह निडर होकर फांसी के तख्त पर चढ़े थे। उनके चेहरे पर फांसी का बिल्कुल भी खौफ नहीं था। मात्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन की उम्र में शहीद हुए खुदीराम बोस की शहादत ने युवाओं में आजादी की एक नई अलख जगा दी थी।

No comments:

Post a Comment

M. PRASAD
Contact No. 7004813669
VISIT: https://www.historyonline.co.in
मैं इस ब्लॉग का संस्थापक और एक पेशेवर ब्लॉगर हूं। यहाँ पर मैं नियमित रूप से अपने पाठकों के लिए उपयोगी और मददगार जानकारी शेयर करती हूं। Please Subscribe & Share

Also Read

Learning Disabilities

🧠 Learning Disabilities – 30 MCQs with Answers --- 1. Learning disabilities are primarily related to problems in: A) Intelligence B) Vision...