Sunday 25 July 2021

Federalism: Ncert Notes and Solutions

 Federalism: Ncert Notes and Solutions

संघवाद 

परिचय :

* सत्ता के बंटवारे के स्वरूप पर  विचार करेंगे 

* भारत के संघवाद के सिद्वांत और व्यवहार को समझने का प्रयत्न करेंगे 

* संघवाद को मजबूत करने वाली नीतियों और राजनीति का विश्लेषण करेंगे 

* संघवाद के तीसरे स्तर यानी स्थानीय शासन की चर्चा करेंगे 

संघवाद :
    देश में दो या दो से अधिक स्तरों वाली सरकारें होती है | अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती है  तथा इनके अधिकार क्षेत्र अलग-अलग होती है | केंद्र सरकार राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर क़ानून बनाती है जबकि राज्य सरकारे राज्य से सम्बन्धित विषयों पर क़ानून बनाती है | सत्ता की ये दोनों सरकारे अपने-अपने स्तर पर स्वतंत्र होकर अपना काम करती है |ये दोनों सरकारें अपने-अपने स्तर पर लोगों को जवाबदेह होती है |



















एकात्मक सरकार : एकात्मक व्यवस्था में शासन का एक ही स्तर होता है और बाकी इकाइयां उसके अधीन काम करती है | इसमें केन्द्रीय सरकार  प्रांतीय या स्थानीय सरकारों को आदेश दे सकती है |

संघीय व्यवस्था की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं : 

* यहाँ साकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है |

* अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती है पर क़ानून बनाने , कर 
वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार क्षेत्र होता है |

* केन्द्रीय सरकार,प्रांतीय सरकारों  तथा स्थानीय निकायों के अधिकार क्षेत्रों  से सम्बन्धित प्रावधान 
संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित है |

* संविधान में  परिवर्तन के लिए दोनों सरकारों की सहमति जरुरी होती है |

* अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार 
है | विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्य न्यायालय निर्णायक की  भूमिका निभाता है |

* विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित है |

* इस प्रकार संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य है - देश की एकता की सुरक्षा और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना |

संघीय शासन व्यवस्था आमतौर पर दो तरीकों से गठित होती है :

1. दो या दो से अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करने का | इसमें दोनों स्वतंत्र राष्ट्र अपनी संप्रभुता को साथ रखते , अपनी अलग-अलग पहचान को भी बनाए रखते है और अपनी सुरक्षा तथा खुशहाली बढाने का रास्ता अख्तियार करते है | जैसे संयुक्त राज्य अमरीका,आस्ट्रेलिया 

2. बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सता का बंटवारा कर देना |- जैसे भारत , बेल्जियम,स्पेन 

भारत में संघीय व्यवस्था :

 भारतीय संविधान ने भारत को राज्यों का संघ घोषित किया |इसमें संघ शब्द नही आया पर भारतीय संघ का गठन  संघीय शासन व्यवस्था के सिद्वांत पर हुआ है |  भारतीय संविधान ने मौलिक रूप से दो स्तरीय  शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था - संघ सरकार  और राज्य सरकार| बाद में पंचायतों और नगरपालिकाओं के रूम में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया |

    संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों तीन हिस्से में  बांटा गया है | ये तीन सूचियाँ इस प्रकार है - 

1. संघ सूची - इस सूची में 97 विषय आते है जिस पर केंद्र सरकार क़ानून बना सकती है - जैसे प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैसी राष्ट्रीय महत्व के विषय है |

2. राज्य सूची : इस सूची में 66 विषय आते है जिसपर क़ानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को है जैसे - पुलिस ,वाणिज्य,कृषि और सिंचाई आदि |

3. समवर्ती सूची : इस  सूची में 47 विषय आते है | जैसे शिक्षा, वन, मजदूर-संघ,विवाह,गोद्लेना और उतराधिकार जैसे वे विषय है जो केंद्र के साथ राज्य सरकारों की साझी दिलचस्पी में आते है | इस विषय पर क़ानून बनाने का अधिकार दोनों का है | लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया क़ानून ही मान्य होता है |

4. अवशिष्ट शक्तियाँ : जो विषय इनमें किसी सूची में नहीं आते , उन विषयों पर केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में चले जाते है | 

     भारतीय संघ के सारे राज्यों को बराबर अधिकार नही है | कुछ राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त है | असम, अरुणाचल  प्रदेश,  मिजोरम,  नागालैंड अपने विशिष्ट सामाजिक तथा ऐतिहासिक परिस्थितीयों के कारण  भारत के संविधान के कुछ प्रावधानों -अनुच्छेद 371 के तहत विशेष शक्तियों का लाभ उठाते है |

     भारतीय संघ के वैसे इकाइयां जो अपने आकार के चलते स्वतंत्र प्रांत नही बन सकते | इन्हें किसी मौजूदा प्रांत में विलीन करना भी सम्भव नही है | दिल्ली,चंडीगढ़, लक्षद्वीप आदि इसी कोटि में आते है | इन्हें केंद्र शासित प्रदेश कहा जाता है | इन इलाकों का शासन  चलाने का विशेष अधिकार केंद्र सरकार  को प्राप्त है | 

भारत में संघीय व्यवस्था कैसे चलती है ?

    भारत में संघीय शासन व्यवस्था की सफलता का श्रेय संवैधानिक  प्रावधान के साथ -साथ लोकतान्त्रीक राजनीति के चरित्र को भी देना होगा | इससे ही संघवाद की भावना, विविधता का आदर  और संग-साथ रहने की इच्छा का हमारे देश के साझा आदर्श के रूप में स्थापित होना सुनिचित हुआ |

भारतीय राज्य 

    भारत ने सन 1947 में लोकतंत्र की राह पर अपनी जीवन-यात्रा शुरू की | उस वक्त से लेकर 2019 तक का अगर आप राजनीतिक मानचित्र देखें तो इस अवधि में अनेक पुराने प्रांत गायब हो गए और कई नए प्रांत बनाए गए | कई की सीमाएं, क्षेत्र और नाम बदल गए |


   











 


 नए राज्यों का गठन भाषा , संस्कृति, भूगोल अथवा जातीयताओं की विभिन्नता को  रेखांकित करने और उन्हें आदर देने के आधार पर  किया गया |

 

भाषा-नीति :
  


















  हमारे संविधान किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नही दिया गया | हिन्दी को राजभाषा माना गया पर हिन्दी सिर्फ 40 फीसदी भारतीयों की मातृभाषा है इसलिए 21 अन्य भाषाओं के संरक्षण के संरक्षण हेतु अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है | केंद्र सरकार के किसी पद का उम्मीदवार इनमें से किसी भी भाषा में परीक्षा दे सकता है बशर्ते उम्मीदवार इसको विकल्प के रूप में चुने | राज्यों की भी अपनी राजभाषाएँ है | राज्यों का अपना अधिकाँश काम अपनी राजभाषा में ही होता है | संविधान के अनुसार सरकारी कामकाज की भाषा के तौर पर अंगरेजी का प्रयोग 1965 में बंद हो जाना चाहिए था पर अनेक गैर-हिन्दी भाषी प्रदेशों ने मांग की कि अंगरेजी भाषा का प्रयोग जारी रखा जाए | केंद्र सरकार ने हिन्दी के साथ-साथ अंगरेजी को राजकीय कामों में प्रयोग की अनुमति दे दी |

केंद्र -राज्य सम्बन्ध :

काफी समय तक देश में एक ही पार्टी का केंद्र और अधिकाँश राज्यों में शासन रहा | इसका व्यावहारिक मतलब यह हुआ कि राज्य सरकारों ने स्वायत संघीय इकाई के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं किया | जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें रही तो केंद्र सरकार ने राज्यों के अधिकारों की अनदेखी करने की कोशिश  की | केंद्र सरकार अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी | यह संघवाद के भावना के प्रतिकूल काम था |
   

















1990 के बाद देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ  | यही दौर केंद्र में गठबंधन सरकार की शुरुआत का भी था | चुकीं किसी एक दल  को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत  नही मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सकरार बनानी पडी | इससे सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी | 

भारत की  भाषायी  विविधता:

2011 के जनगणना के अनुससार लोगों ने 1300 से ज्यादा अलग-अलग भाषाओं  को अपनी मातृभाषा के रूप में दर्ज कराया था |   इन भाषाओं  को कुछ प्रमुख भाषाओं के साथ  समूह्बद्व कर दिया  जाता है |जैसे - भोजपुरी,मगही, बुन्देलखंडी, राजस्थानी आदि | ऐसी समूहबद्वता के बाद भी जनगणना में 121 प्रमुख भाषाएँ पाई गयी | इनमें से 22  भाषाओं को भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में रखा गया है और इसी  कारण  इसे अनुसूचित भाषाएँ कहा जाता है |

    हिन्दी सिर्फ 44 फीसदी लोगों की ही मातृभाषा है | भाषा के हिसाब से भारत दुनिया का सम्भवत: सबसे ज्यादा विविधता वाला देश है |

भारत का विकेंद्रीकरण :

    भारत में दो स्तरों की सरकार है - केंद्र सरकार और राज्य सरकार | यह महसूस किया गया कि भारत में संघीय सत्ता की साझेदारी तीन स्तर पर करने की जरुरत है  जिसमें तीसरा स्तर स्थानीय सरकारों का हो और यह प्रांतीय स्तर की सरकार के नीचे हो |
    जब केंद्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती है तो इसे सता का विकेंद्रीकरण कहते है |

सत्ता का विकेंद्रीकरण क्यों जरुरी है ?-
 
* स्थानीय मुद्दे और समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही हो |

*  देश की शासन व्यवस्था के प्रति लोगों कि जागरूकता 

*  राजनीतिक ज्ञान का विकास 

    देश में वास्तविक विकेंद्रीकरण की दिशा में बड़ा कदम 1992 में उठाया  गया | संविधान संशोधन करके तीसरे स्तर को ज्यादा शक्तिशाली और प्रभावी बनाया गया  इसके लिए निम्न कदम उठाए गए |

* नियमित रूप से चुनाव कराना 

* निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में अनुसूचित जातियों,अनुसूचित 
जनजातियों और  पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित है |

* कम से कम 1/3 पद महिलाओं के लिए आरक्षित है 

* राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन 

*  राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा इन स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है 

    स्थानीय स्वशासन में ग्रामीण क्षेत्र के लिए  तीन स्तर बनाए गए है - गाँव स्तर पर ग्राम पंचायत , प्रखंड स्तर पर प्रखंड समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद् 

     नगरीय क्षेत्र के लिए भी तीन स्तर बनाए गए है - नगर पंचायत, नगरपालिका  और  नगर निगम 
                स्थानीय स्वशासन का प्रयोग दुनिया का सबसे बड़ा प्रयोग है |नगरपालिकाओं और ग्राम-पंचायतों के लिए करीब 36 लाख लोगों का चुनाव होता है | यह संख्या अपने आप में दुनिया के कई देशों की कुल आबादी से ज्यादा है | स्थानीय सरकारों को संवैधानिक दर्जा दी जाने से हमारे यहाँ लोकतंत्र की जड़े मजबूत हुई है | महिलाओं के प्रतिनिधित्व बढ़ने से उनकी आवाज को मजबूती मिली है |
    बहरहाल , इन सबके बावजूद अभी भी अनेक परेशानियां कायम है | 

* पंचायतों के चुनाव में भी प्रत्याशियों द्वारा  बड़ी मात्रा में धन खर्च किया जाता है |

* ग्राम सभाओं की बैठकें नियमित रूप से नही होती |

* अधिकाँश राज्य सरकारों ने स्थानीय सरकारों को पर्याप्त अधिकार नहीं दिए है |
     फिर भी स्थानीय स्वशासन देश  की लोकतंत्र के लिए आदर्श स्थिति बनाये रखने का प्रयास किया है |

                                                             समाप्त 





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M. PRASAD
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