Sunday 11 October 2020

Colonialism and the Countryside (उपनिवेशवाद और देहात)-NCERT class 12 chapter 10 part 1

 उपनिवेशवाद और देहात (Colonialism and countryside) -सरकारी अभिलेखों का अध्ययन (Study of Official Reports)

परिचय 

1. उपनिवेशवाद का अर्थ 

2. देहातों में उपनिवेशवाद और उसके प्रभाव 

3. औपनिवेशिक राजस्व नीति  एवं उसके परिणाम 

4. देहात में विद्रोह : बंबई -ढक्कन विद्रोह 

प्राचीन काल से ही भारत एक ग्राम प्रधान देश रहा है | इसके  बावजूद भारतीय समाज एक उन्नत संस्कृति को प्रतिबिम्बित  करता है | ग्रामीण समाज  द्वारा उत्पादित अनाज, मसाले और हस्तशिल्प दुनिया के अन्य देशों में निर्यात किया जाता था जिसका प्रमाण वेदेशी यात्रियों के यात्रा-वृतांत से पता चलता है |

    अंग्रेजों से पूर्व जितने भी विदेशी आक्रान्ता भारत आये वे यहीं रच-बस गए| उन्होंने भारत को ही अपनी भूमि मानी और जो भी कमाया यहीं खर्च किया | इससे भारतीय ग्रामीण समाज में  समृद्वता बनी रही |

    1600 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया  कंपनी की स्थापना हुई | इसका उद्वेश्य व्यापार करना था |आरम्भ में यह कपंनी एक मात्र व्यापारिक कम्पनी थी  तथा भारतीय माल का आयात करती थी और यूरोप में बेचती थी | परन्तु देश की राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए 1757 के प्लासी युद्व और 1764 की बक्सर की युद्व की विजय ने व्यापारिक कंपनी को शासन करनेवाली कम्पनी में परिवर्तित कर दिया | यहीं से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को औपनिवेशिक देश के रूप में बदल दिया | इसने देश की राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर अधिकार कर लिया| 

उपनिवेशवाद का अर्थ : किसी समृद्व एवं शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा अपने विभिन्न हितों को साधने के लिए किसी निर्बल किन्तु प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण राष्ट्र के विभिन्न संसाधनों का शक्ति के बल पर उपभोग करना| 

    उपनिवेशवाद में उपनिवेश की जनता शक्तिशाली विदेशी राष्ट्र द्वारा शासित होती है| वस्तुतु: किसी शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा निहित स्वार्थवश किसी निर्बल राष्ट्र के शोषण को हम उपनिवेशवाद कहते है |

भारत में उपनिवेशों की स्थापना के कारण :Causes of Establishment of Colony in India)

1. कच्चे माल की प्राप्ति : यूरोपीय देशों मे औद्योगिकीकरण कारण कच्चे माल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण भारत में उपनिवेश की स्थापना की |

2. निर्मित माल की खपत : यूरोपीय देशों में उत्पादित माल की खपत के लिए एक बड़े बाजार की जरुरत थे जिसकी लिए उपनिवेशों की स्थापना की गयी |

3. ईसाई धर्म का प्रचार : उपनिवेशों की स्थापना के साथ-साथ ईसाई धर्म की प्रचार करना तथा गैर-ईसाई लोगों को ईसाई बनाना अपना लक्ष्य समझते थे |

4. अमीर देश बनने की लालसा : विभिन्न देशों से आये यात्रियों ने भारत की समृद्वता और वैभव का गुणगान किया , जिससे प्रेरित होकर यूरोपीय भारत में धन और वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए आये |

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भारतीय ग्रामीण समाज पर उपनिवेशवाद का प्रभाव : (Impact of Colonialism of Indian Rural  Society)

1.  कुटीर  उद्योगों का विनाश : यूरोपीय देशों ने भारतीयों की समृद्वता का आधार कुटीर उद्योग को समाप्त क्र दिया | जिन समानों का भारत निर्यात करता था , उन समानों का भारत आयात करने करने लगा | 

2. अंग्रेजों द्वारा स्थापित भूमि प्रबंध की त्रुटियाँ : अंग्रेजों ने पूरे भारत  के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार के भूमि प्रबंधन किया | परन्तु ये व्यवस्था कारगर सिद्व नहीं हुआ और किसान ऋणग्रस्त होते गए |

3. राजस्व संग्रह करने के कठोर तरीके : अंग्रेजों ने किसानों से लगान वसूली में कीसी भी प्रकार का ढील नहीं देती थी | फसल की बर्बादी या अकाल पड़ने पर लगान वसूला जाता था | परिणामस्वरूप किसान अपने खेत साहूकारों के पास गिरवी रखता था | बाद में साहूकारों का कर्ज नहीं चुका पाने के कारण भूमि से हाथ धोना पड़ता |

1. बंगाल और वहां के जमींदार :

भारत में औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था | सबसे पहले बंगाल प्रान्त में ही ग्रामीण समाज को पुनर्व्यवस्थित  करने और भूमि सम्बन्धी अधिकारों की नयी व्यवस्था तथा एक नयी राजस्व प्रणाली स्थापित करने के प्रयत्न किये गए थे | 

जमींदार (Zamindar):

"जमींदार " वास्तव में राजस्व एकत्रित करने वाला अधिकारी होता था जिसके अधीन  वृहत इलाका या क्षेत्र अथवा पूरा जिला होता था| ये अपनी सेनाएं रखते थे, इन्हें "राजा " भी कहा जाता था|

    खेती किसानों द्वारा की जाती थी| ये किसान राजस्व की निर्धारित दर के अनुसार कर जमींदार को देते थे| कुछ शोषक जमींदार भू-राजस्व की निर्धारित दर के अतिरिक्त कर लेते थे जिसे " अबवाव " कहते थे| लेकिन अंग्रेजों ने 1790 के दशक में पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर दिया और भू-राजस्व की नयी प्रणाली अपनाई |

इस्तमरारी बंदोबस्त या स्थायी बंदोबस्त (Istmarari Bandobast/Permanent settlement): 

ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में 1793 में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया | इस व्यवस्था के अंतर्गत कंपनी द्वारा निश्चित की गई राशि को प्रत्यके जमींदार द्वारा रैयतों से संग्रह कर जमा करनी पड़ती थी|

    गाँव से राजस्व संग्रह करने का कार्य जमींदार द्वारा नियुक्त अधिकारी "अमला " किया करता था|

    यदि जमींदार  राजस्व की निश्चित राशि चुकाने में असफल होता तो निश्चित की गई तारीख को सूर्यास्त विधि (सूर्य अस्त होने से पूर्व निश्चित राशि का भुगतान करना अनिवार्य होता था) के तहत राजस्व के बदले उनकी सम्पति को नीलाम कर दिया जाता था और ऊँची बोली लगाने वाले खरीददार को बेच दी जाती थी| यह बंदोबस्त "लार्ड कार्नवालिस " ने लागू किया था|

                                    Lord Corniwallis 

इस्तमरारी बंदोबस्त लागू करने के उद्वेश्य : (Aim to Introduce the Permanent Settlement)

क) इस बंदोबस्त लागू होने से कम्पनी को निश्चित राजस्व प्राप्त हो सकेगा|

ख) ऐसा माना गया कि इस बंदोबस्त से कृषि में निवेश होगा तथा कम्पनी को ससमय राजस्व प्राप्त होगा जिससे उसे भविष्य की योजनाएं बनाने में लाभ होगा |

ग) कृषकों और जमींदारों का एक ऐसा समूह पैदा होगा जो ब्रिटिश कंपनी का वफादार वर्ग साबित होगा |जिसके पास कृषि में सुधार करने के लिए पूंजी और उद्यम दोनों होंगे |

    कम्पनी ने बंगाल के राजाओं और तालुक्क्दारों के सतत इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया |अब उन्हें जमींदार के रूप में वर्गीकृत किया गया और उन्हें सदा के लिए एक निर्धारित राजस्व मांग को अदाकरना था | जमींदार एक तरह से भू-स्वामी नहीं था , बल्कि वह राज्य का राजस्व समाहर्ता मात्र था|

    जमींदार के नीचे अनेक (कभी-कभी 400 तक ) गाँव होते थे| कम्पनी , एक जमींदार के अंतर्गत आने वाले भ-क्षेत्र की उपज का राजस्व निर्धारित करता था | तत्पश्चात जमींदार से यह आशा की जाती थी कि वह  अलग-अलग गावों में निर्धारित राशि के आधार पर अमला द्वारा राजस्व कम्पनी को निर्धारित तिथि पर जमा कर दिया  जाता था | यदि जमींदार ऐसा नहीं करेगा वो उसकी संपदा नीलाम की जा सकेगी |

इस्तमरारी बंदोबस्त में जमीदारों की असफलता (Failure of Zamindar in Istmarari Bandobast)-  राजस्व राशि के भुगतान में जमींदार क्यों चूक करते थे ?

    कम्पनी के अधिकारियों का यह सोचना था कि राजस्व मांग निर्धारित किए जाने से जमींदारों में सुरक्षा का भाव उत्पन्न होगा, और वे अपने निवेश पर प्रतिफल प्राप्ति की आशा से प्रेरित हकर अपनी संपदाओं में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित होंगे| किन्तु इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद, कुछ प्रारंभिक दशकों में जमींदार अपनी राजस्व मांग को अदा करने में बराबर कोताही करते रहे, जिसके परिणामस्वरूप राजस्व की बकाया रकमें बढ़ती गई |

जमीदारों की इस असफलता के कई कारण थे :

1. राजस्व में निर्धारित की गई राशि बहुत अधिक थी क्योंकि खेती का विस्तार होने से आय में वृद्वि हो जाने पर भी कम्पनी उस वृद्वि में अपने हिस्से का दावा कभी नहीं कर सकती थी|

2.  यह ऊँची मांग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें नीची थी, जिससे रैयत (किसानों) के लिए, जमींदार को उनकी डे राशियाँ चुकाना मुश्किल था|

3. राजस्व  असमान था, फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का ठीक समय पर भुगतान करना जरुरी था |वस्तुत: सूर्यास्त विधि के अनुसार, यदि निश्चित तारीख को सूर्य अस्त होने तक भुगतान नहीं होता था तो जमींदारी नीलाम किया जा सकता था| 

4. इस्तमरारी बंदोबस्त ने प्रारंभ में जमींदार की शक्ति को रैयत से राजस्व इक्कठा  करने और अपनी जमींदारी का प्रबंध करने तक ही सीमित कर दिया था|

* "राजा" शब्द का प्रयोग अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए किया जाता था |

* "ताल्लुकदार" का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक यानी सम्बन्ध हो | आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया |

* "रैयत " शब्द का प्रयोग अंग्रेजों के विवरणों में किसानों के लिए किया जाता था| बंगाल में रैयत जमीन को खुद काश्त नही करते थे , बल्कि "शिकमी -रैयत " को आगे पट्टे पर दिया करते थे |

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