Wednesday, 29 July 2020

भारत में राष्ट्रवाद वर्ग 10 भाग 5

भारत में राष्ट्रवाद 
परिचय 
* भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कारण :
* चंपारण सत्याग्रह 
* खिलाफत और असहयोग आन्दोलन 
* सविनय अवज्ञा आन्दोलन 
* सामूहिक अपनेपन की भावना 
राष्ट्रवाद की भावना तब पनपती है जब लोग ये महसूस करने लगते है कि वे एक ही राष्ट्र के अंग है; जब वे एक-दूसरे को एकता के सूत्र में बाँधने वाली कोई साझा बात ढूंढ लेते है| लेकिन राष्ट्र लोगों के मष्तिष्क में एक यथार्थ का रूप कैसे लेता है? विभिन्न समुदायों, क्षेत्रों या भाषाओं से संबद्ध अलग-अलग समूहों ने सामूहिक अपनेपन का भाव कैसे विकसित किया?
* सामूहिक अपनेपन की यह भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों के चलते पैदा हुई थी|
* बहुत सारी सांस्कृतिक प्रक्रियाएं भी थी जिनके जरिये राष्ट्रवाद लोगों की कल्पना और दिलोदिमाग पर छा गया था|
* इतिहास व साहित्य, लोक कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक, सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया था|
    जैसा कि हमलोग जानते है, राष्ट्र की पहचान सबसे ज्यादा किसी तस्वीर में अंकित की जाती है| इससे लोगों को एक ऐसी छवि गढ़ने में मदद मिलती है जिसके जारी वे राष्ट्र को पहचान सकते है|
    20वीं सदी में राष्ट्रवाद के विकास के साथ भारत की पहचान भी भारत माता की छवि का रूप में लेने लगी| भारत माता की तस्वीर पहली बार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने बनाई| 1870 के दशक में उन्होंने मातृभूमि की स्तुति के रूप में "वन्दे मातरम" गीत लिखा था| बाद में उन्होंने अपने उपन्यास "आनंद मठ" में शामिल कर लिया|
    स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा से अबीन्द्र्नाथ टैगोर ने भारत माता की छवि चित्रित किया| इस पेंटिंग में भारत माता को एक संन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है| वह शांत, गंभीर,देवी और अध्यात्मिक गुणों से युक्त दिखाई देती है| आगे चल कर जब इस छवि को बड़े पैमाने पर तस्वीरों में उतारा जाने लगा और विभिन्न कलाकार यह तस्वीर बनाने लगे तो भारत माता की छवि विविध रूप ग्रहण करती गई| इस मातृ छवि के प्रति श्रद्वा को राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा|
    राष्ट्रवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करने के आन्दोलन से भी मजबूत हुआ| 19वीं सदी के आखिर में राष्ट्रवादियों ने भाटों व् चारणों द्वारा गाई-सुनाई जाने वाली लोक कथाओं को दर्ज करना शुरू कर दिया| उनका मानना था कि यही कहानियां हमारी उस परम्परागत संस्कृति की सही तस्वीर पेश करती है जो बाहरी ताकतों के प्रभाव से भ्रष्ट और दूषित हो चुकी है| अपनी राष्ट्रीय पहचान  को ढूढने और अपने अतीत में गौरव का भाव पैदा करने के लिए इस लोक परम्परा को बचाकर रखना जरुरी था|
    लोक परम्पराओं, बाल-गीत और मिथकों  को जीवित करने के उद्देश्य से रवीन्द्रनाथ टैगोर भी सक्रीय थे| मद्रास में नटेसा शास्त्री ने "द फोक्लोर्स आफ सदर्न इंडिया" के नाम से तमिल लोक कथाओं का विशाल संकलन चार खंडों में प्रकाशित किया| उनका मानना था कि लोक कथाएँ राष्ट्रीय साहित्य होती है; यह "लोगों के असली विचारों और विशिष्टताओं की सबसे विश्वसनीय अभिव्यक्ति" है |
    जैसे-जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन आगे बढ़ा, राष्ट्रवादी नेता लोगों को एकजूट करने और उनमें राष्टवाद की भावना भरने के लिए चिन्हों और प्रतीकों के बारे में और ज्यादा जागरूक होते गए | स्वदेशी आन्दोलन के दौरान एक तिरंगा झंडा(हरा,पीला,लाल) तैयार किया गया| इसमें ब्रिटिश भारत के आठ प्रान्तों  का प्रतिनिधित्व करता एक अर्धचन्द्र दर्शाया गया था|
    1921तक गांधीजी ने भी स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था| यह भी तिरंगा (सफ़ेद, हरा और लाल) था | इसके मध्य में गांधीवादी प्रतीक चरखे को जगह दी गई थी जो स्वावलंबन का प्रतीक था| जुलूसों में यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था|
    इतिहास की पुनर्व्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन था| भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे| उन्होंने उस गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू कर दिया जब कला और वास्तुशिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, क़ानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे| 
    इस राष्ट्र्वादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था| 
    लोगों को एकजुट करने की इन कोशिशों की अपनी समस्याएं थी| जिस अतीत का गौरवगान किया जा रहा था वह हिन्दुओं का अतीत था| जिन छवियों का सहारा लिया जा रहा था वे हिन्दू प्रतीक थे| इसलिए अन्य समुदायों के लोग अलग-थलग महसूस करने लगे थे|
निष्कर्ष :
महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लोगों के असंतोष और परेशानियों को स्वतंत्रता के संगठित आन्दोलन में समाहित करने  का प्रयास किया| उन्होंने आन्दोलन के जरिये पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने का प्रयास किया|  लोगों  अलग-अलग आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के साथ हिस्सा ले रहे थे| इसके बावजूद औपनिवेशिक शासन को खत्म करने और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने का प्रयास जारी थी| 
    
                                              

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