Wednesday, 27 May 2020

इतिहास - विचारक ,विश्वास और इमारतें : वर्ग 12 पाठ-4 भाग-7

साँची स्तूप  की  कला 
                साँची स्तूप की कला को समझने के लिए बुद्व के चरित लेखन को समझना जरुरी होता है |  स्तूप और तोरण द्वार पर बनी कलाकृतियाँ  बुद्व के जीवन की घटनाओं का प्रतीक के रूप में है | साथ ही जातक कथाओं से जुडी  कथाओं को मूर्त रूप दिया गया है |
                चित्र 4.14  बोधि वृक्ष की पूजा , वृक्ष , आसन और उसके चारों ओर जनसमुदाय का चित्रण


                चित्र 4.15  बुद्व के ध्यान की दशा तथा स्तूप 

                चित्र 4.16 चक्र का प्रतीक के रूप में इस्तेमाल ( बुद्व द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक 

लोक परम्पराएं एवं शालभंजिका 
                साँची में उत्कीर्ण बहुत सी मूर्तियाँ बौद्व मत से सीधी जुडी नही थी | इन्ही में एक थी - शालभंजिका की मूर्ति 


तोरणद्वार द्वार के किनारे एक पेड़  पकड कर झूलती हुई स्त्री |  साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन से पता चला कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित  सालभंजिका की मूर्ती है |  ऐसा माना जाता था कि इस स्त्री द्वारा छूए जाने से वृक्षों में फुल खिल उठाते  थे और फल लगने लगते थे |
                शालभंजिका से यह ज्ञात होता है जो लोग दूसरे धर्म , विश्वासों एवं  प्रथाओं से आए थे , उनलोगों ने बौद्व धर्म को समृद्व किया |
                साँची स्तूप पर उत्कीर्ण जानवरों की मूर्तियाँ मनुष्य के गुणों के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था |
उदाहरण : हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक


                इन प्रतीकों में कमल दल और हाथिओं के बीच एक स्त्री की मूर्ति है , ये हाथी स्त्री के ऊपर जल छिड़क रहे है जैसे वे उनका अभिषेक कर रहे हों | कुछ  इतिहासकार बुद्व की माता माया से जोड़ते है तो दूसरे इतिहासकार देवी गजलक्ष्मी  मानते है |  गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली  देवी  थी जिन्हें प्राय:  हाथिओं के साथ जोड़ा जाता है |
                 साँची स्तूप की मूर्ती कला को समझने के लिए बौद्व ग्रन्थों का अध्ययन जरुरी है | अन्यथा उसके अर्थ और ही निकल जाते है |
                कला विषय पर लिखने वाले इतिहासकार जेम्स फर्गुसन ने साँची को वृक्ष और  सर्प पूजा  का केंद्र माना था | वे बौद्व साहित्य से  अनभिज्ञ थे |

बौद्व सम्प्रदाय :
कालान्तर में बौद्व धर्म तीन भागो में विभाजित हो गया -  क्रमश: हीनयान , महायान , वज्रयान 
1. हीनयान / थेरवाद - हीनयान का अर्थ होता है - लघु चक्र | ये लोग बुद्व की मूल शिक्षाओं एवं सिद्वान्तों का अनुकरण करते थे | अष्टांगिक मार्ग में विश्वास रखते थे | मूर्ति पूजा में विश्वास नही था |
सम्राट अशोक हीनयान धर्म का संरक्षक था |
2. महायान - महायान का अर्थ है - मोक्ष का महाचक्र | मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे | बुद्व को मानव के स्थान पर भगवान के रूप पूजा करने लगे | महायान धर्म का संरक्षक कनिष्क था | प्रथम शताब्दी में आयोजित चतुर्थ बौद्व संगीति में बौद्व धर्म दो भाग में विभाजित हो गया था |
3. वज्रयान- इस सम्प्रदाय का उदय 8वीं सदी के दौरान बिहार एवं बंगाल में हुआ | यह एक कर्मकांडीय सम्प्रदाय थी | जिसमें स्त्रियाँ और मदिरा आवश्यक का प्रयोग होता था |  इसकी बुराइयां ही बौद्व धर्म के पतन का कारण बनी |

          

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