थेरीगाथा :
यह अनूठा बौद्व ग्रन्थ सुत्त पिटक का हिस्सा है | इसमें भिक्खुनियों द्वारा रचित छंदों का संकलन किया गया है | इसमें महिलाओं के सामाजिक और आध्यात्मिक अनुभवों के बारे में अंतर्दृष्टि मिलती है | पुन्ना नाम की एक दासी अपने मालिक के घर के लिए प्रतिदिन सुबह नदी का पानी लाने जाती थी | वहां वह हर दिन एक ब्राह्मण को स्नान कर्म करते हुए देखती थी | एक दिन उसने ब्राह्मण से बात की | निम्नलिखित पद्य की रचना पुन्ना ने की थी जिसमें ब्राह्मण से उसकी बातचीत का वर्णन है :
मैं जल ले जाने वाली हूँ |
कितनी भी ठंढ हो
मुझे पानी में उतरना ही है
सजा के डर से
या ऊँचे घरानों की स्त्रियों के कटु वाक्यों के डर से |
हे ब्राह्मण तुम्हें किसका डर है ,
जिससे तुम जल में उतरते हो
(जबकि) तुम्हारे अंग ठंड से काँप रहे है ?
ब्राह्मण बोले :
मैं बुराई को रोकने के लिए अच्छाई कर रहा हूं ;
बूढा हो या बच्चा
जिसने भी कुछ बुरा किया हो
जल में स्नान करके मुक्त हो जाता है |
पुन्ना ने कहा :
यह किसने कहा है
कि पानी में नहाने से बुराई से मुक्ति मिलती है ?.......
वैसा हो तो सारे मेंढक और कछुए स्वर्ग जायंगे
साथ में पानी के सांप और मगरमच्छ भी !
इसके बदले में वे कर्म न करें
जिनका डर
आपको पानी की ओर खींचता है |
हे ब्राह्मण , अब तो रुक जाओ !
अपने शरीर को ठंढ से बचाओं ....................
इस वाद-विवाद से बुद्व के " सम्यक कर्म " की शिक्षा मिलती है |
बौद्व संघ में भिक्षुओं और भिक्खुनियों के लिए नियम
ये नियम विनय पिटक में मिलते है :
जब कोई भिक्खु एक नया कम्बल या गलीचा बनाएगा तो उसे इसका प्रयोग कम से कम छ: वर्षों तक करना पडेगा | यदि छ: वर्ष से कम अवधि में वह बिना भिक्खुओं की अनुमति के एक नया कम्बल या गलीचा बनवाता है तो चाहे उसने अपने पुराने कम्बल /गलीचे को छोड़ दिया हो या नही - नया कम्बल या गलीचा उससे ले लिया जाएगा और इसके लिए उसे अपराध स्वीकारना होगा |
यदि कोई भिक्खु किसी गृहस्थ के घर जाता है और उसे टिकिया या पके अनाज का भोजन दिया जाता है तो यदि उसे इच्छा हो तो वह दो से तीन कटोरा भर ही स्वीकार कर सकता है | यदि वह इसे ज्यादा स्वीकार करता है तो उसे अपना " अपराध " स्वीकार करना होगा | दो या तीन कटोरे पकवान स्वीकार करने के बाद उसे इन्हें अन्य भिक्खुओं के साथ बांटना होगा | यही सम्यक आचरण है |
यदि कोई भिक्खु जो संघ के किसी विहार में ठहरा हुआ है , प्रस्थान के पहले अपने द्वारा बिछाए गए या विछवाए गए बिस्तरे को न ही समेटता है , न ही समेटावाता है , या यदि वह बिना विदाई लिए चला जाता है तो उसे अपराध स्वीकार करना होगा |
यह अनूठा बौद्व ग्रन्थ सुत्त पिटक का हिस्सा है | इसमें भिक्खुनियों द्वारा रचित छंदों का संकलन किया गया है | इसमें महिलाओं के सामाजिक और आध्यात्मिक अनुभवों के बारे में अंतर्दृष्टि मिलती है | पुन्ना नाम की एक दासी अपने मालिक के घर के लिए प्रतिदिन सुबह नदी का पानी लाने जाती थी | वहां वह हर दिन एक ब्राह्मण को स्नान कर्म करते हुए देखती थी | एक दिन उसने ब्राह्मण से बात की | निम्नलिखित पद्य की रचना पुन्ना ने की थी जिसमें ब्राह्मण से उसकी बातचीत का वर्णन है :
मैं जल ले जाने वाली हूँ |
कितनी भी ठंढ हो
मुझे पानी में उतरना ही है
सजा के डर से
या ऊँचे घरानों की स्त्रियों के कटु वाक्यों के डर से |
हे ब्राह्मण तुम्हें किसका डर है ,
जिससे तुम जल में उतरते हो
(जबकि) तुम्हारे अंग ठंड से काँप रहे है ?
ब्राह्मण बोले :
मैं बुराई को रोकने के लिए अच्छाई कर रहा हूं ;
बूढा हो या बच्चा
जिसने भी कुछ बुरा किया हो
जल में स्नान करके मुक्त हो जाता है |
पुन्ना ने कहा :
यह किसने कहा है
कि पानी में नहाने से बुराई से मुक्ति मिलती है ?.......
वैसा हो तो सारे मेंढक और कछुए स्वर्ग जायंगे
साथ में पानी के सांप और मगरमच्छ भी !
इसके बदले में वे कर्म न करें
जिनका डर
आपको पानी की ओर खींचता है |
हे ब्राह्मण , अब तो रुक जाओ !
अपने शरीर को ठंढ से बचाओं ....................
इस वाद-विवाद से बुद्व के " सम्यक कर्म " की शिक्षा मिलती है |
बौद्व संघ में भिक्षुओं और भिक्खुनियों के लिए नियम
ये नियम विनय पिटक में मिलते है :
जब कोई भिक्खु एक नया कम्बल या गलीचा बनाएगा तो उसे इसका प्रयोग कम से कम छ: वर्षों तक करना पडेगा | यदि छ: वर्ष से कम अवधि में वह बिना भिक्खुओं की अनुमति के एक नया कम्बल या गलीचा बनवाता है तो चाहे उसने अपने पुराने कम्बल /गलीचे को छोड़ दिया हो या नही - नया कम्बल या गलीचा उससे ले लिया जाएगा और इसके लिए उसे अपराध स्वीकारना होगा |
यदि कोई भिक्खु किसी गृहस्थ के घर जाता है और उसे टिकिया या पके अनाज का भोजन दिया जाता है तो यदि उसे इच्छा हो तो वह दो से तीन कटोरा भर ही स्वीकार कर सकता है | यदि वह इसे ज्यादा स्वीकार करता है तो उसे अपना " अपराध " स्वीकार करना होगा | दो या तीन कटोरे पकवान स्वीकार करने के बाद उसे इन्हें अन्य भिक्खुओं के साथ बांटना होगा | यही सम्यक आचरण है |
यदि कोई भिक्खु जो संघ के किसी विहार में ठहरा हुआ है , प्रस्थान के पहले अपने द्वारा बिछाए गए या विछवाए गए बिस्तरे को न ही समेटता है , न ही समेटावाता है , या यदि वह बिना विदाई लिए चला जाता है तो उसे अपराध स्वीकार करना होगा |
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M. PRASAD
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