Saturday 23 May 2020

इतिहास - विचारक ,विश्वास और इमारतें : वर्ग 12 पाठ-4 भाग-3

विचारक , विश्वास और इमारतें 
               सांस्कृतिक विकास 
(लगभग 600 ई.पू. से ईसा सम्वत 600 तक )

बौद्व ग्रन्थ किस प्रकार तैयार और संरक्षित किए जाते थे ?
* महात्मा बुद्व  लोगो के साथ चर्चा और बातचीत करते हुए मौखिक शिक्षा देते थे | इनके उपदेश महिलाएं और पुरुष साथ में बच्चे भी सुनते थे |
* महात्मा बुद्व के किसी भी सम्भाषण को उनके जीवन काल में नही लिखा गया |
* महात्मा बुद्व के मृत्यु के बाद ( पांचवी -चौथी सदी ईसा पूर्व ) उनके शिष्यों ने चार बौद्व संगीतियों का आयोजन किया गया | वहां पर ही उनकी शिक्षाओं का संकलन किया गया | इन संग्रहों को " त्रिपिटक" (तीन टोकरियाँ ) कहा जाता था |
*  त्रिपिटक तीन भाग में विभाजित है | विनय पिटक , सुत्त पिटक और अधिधम्म  पिटक
*  विनय पिटक - संघ या बौद्व मठों में रहनेवाले लोगों के लिए नियमों का संग्रह था
*  सुत्त  पिटक - बुद्व के उपदेशों एवं शिक्षाओं का संग्रह  |
*  अधिधम्म पिटक - बौद्व धर्म के दार्शनिक विचारों का संग्रह  |
* हर पिटक के अंदर कई ग्रन्थ होते थे और बाद के युगों में बौद्व विद्वानों ने इन ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखी |
*  भारत से बाहर श्रीलंका में बौद्व धर्म के विस्तार होने पर दीपवंश ( द्वीप का इतिहास ) और महावंश (महान इतिहास ) जैसे क्षेत्र - विशेष के बौद्व इतिहास को लिखा गया |
*  आरंभिक बौद्व  ग्रन्थ पालि भाषा में लिखी गयी थी ,  बाद में संस्कृत में ग्रन्थ लिखे गए |
*  भारत के बौद्व शिक्षक के साथ चीनी तीर्थ यात्री फाह्यान और श्वैनत्सांग  ने भी  बौद्व ग्रन्थों का अपनी भाषाओं में अनुवाद किया  |
*  कई सदियों तक पांडुलिपियाँ एशिया के भिन्न -भिन्न इलाकों में स्थित बौद्व विहारों में संरक्षित थी |

भगवान महावीर 
* जैन परम्परा के अनुसार महावीर से पहले 23 शिक्षक हो चुके थे , उन्हें तीर्थंकर  कहा जाता है : यानी कि वे महापुरुष जो लोगों के जीवन की नदी के पार पहुंचाते है | भगवान महावीर जैन परम्परा के 24 वें तीर्थंकर थे |
* जैन दर्शन की महत्वपूर्ण अवधारणा  यह है कि विश्व प्राणवान है |  पत्थर , चट्टान और जल में भी जीवन होता है |
* जीवों के प्रति अहिंसा  जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है |
* जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है | कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की जरुरत होती है |
* जैन भिक्षु पांच व्रत करते थे :
-हत्या न करना |
- चोरी न करना |
- झूठ न बोलना |
- ब्रह्मचर्य का पालन करना |
- धन संग्रह न करना |
कथा :
                          यह कथा उत्तराध्ययन सूत्र  नामक एक ग्रन्थ से लिया गया है | इसमें कमलावती नामक महारानी अपने पति को सन्यास लेने के लिए समझा रही है |
                        अगर सम्पूर्ण विश्व और वहां के सभी खजाने तुम्हारे हो जाएं तब भी तुम्हें संतोष नही होगा , न ही यह सारा कुछ तुम्हें बचा पाएगा | हे राजन ! जब तुम्हारी मृत्यु होगी और जब सारा धन पीछे छूट जाएगा तब सिर्फ धर्म ही , और कुछ भी नही , तुम्हारी रक्षा करेगा | जैसे एक चिड़िया पिंजरे से नफरत करती है वैसे ही मैं इस संसार से नफरत करती हूँ | मैं बाल -बच्चे को जन्म न देकर निष्काम भाव से , बिना लाभ की कामना से और बिना द्वेष के एक साध्वी की तरह जीवन बिताउंगी |
                        जिन लोगों ने सुख का उपभोग करके उसे त्याग दिया है , वायु की तरह भ्रमण करते है , जहां मन करें स्वतंत्र उडते हुए पक्षियों की तरह जाते है ...............
                        इस विशाल राज्य का परित्याग करो .......................इन्द्रिय सुखों से नाता तोड़ो, निष्काम अपरिग्रही बनों , तत्पश्चात तेजमय हो घोर तपस्या करो .....................

जैन धर्म का विस्तार :
*  जैन धर्म का विस्तार सम्पूर्ण भारत में हुआ | जैन विद्वानों ने प्राकृत , संस्कृत,  तमिल जैसी अनेक भाषाओं में काफी साहित्य का सृजन किया |
*  जैन धर्म से जुडी पांडुलिपियाँ मन्दिरों से जुड़े पुस्तकालयों में  संरक्षित है |

जैन धर्म की विशेष जानकारी के लिए यहाँ Click करें
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