शासक और इतिवृत : सम्पूर्ण नोट्स (मुग़ल इतिहास )
परिचय :
मुगलकाल में 6 प्रमुख शासक हुए | इन सभी शासकों के
काल के इतिहास के लेखन हेतु तत्कालीन इतिहास के स्रोत उपलब्ध है | बाबर और जहांगीर ने
स्वयं अपनी आत्म कथा लिखी | कुछ शासकों ने अपने दरबारी इतिहासकारों के माध्यम से तत्कालीन घटनाओं को रेखांकित
करवाया|
इस पाठ में मुग़ल शासनकाल की 1526 से 1707 तक के इतिहास की चर्चा करेंगे | हालांकि मुग़ल शासन
काल आगे भी जारी रहा | मुग़ल शासन का अंत 1857
में अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार के
साथ ही समाप्त हो गया | मुग़ल काल में शासकों के इतिहास के साथ -साथ उस काल के सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक
व्यवस्था के बारे में जानकारी हासिल करेंगे|
मुग़ल इतिहास का स्रोत
शासक |
स्रोत |
लेखक |
बाबर (1526-1530) |
बाबरनामा |
बाबर |
हुमायूं (1530-1540) |
हुमायूँनामा |
गुलबदन बेगम |
अकबर (1556-1605) |
अकबरनामा |
अबुल फजल |
|
तबकाते अकबरी |
निजामुद्दीन अहमद |
|
मुनताखाव-उल तबारीख |
अब्दुल कादिर
बदायूँनी |
जहांगीर (1605-1627) |
तुजुके जहाँगीरी |
जहांगीर |
|
इकबालनामा-ए-जहाँगीरी |
मौतमिद खान बख्शी |
शाहजहाँ (1627-1658) |
पादशाहनामा |
अब्दुल हमीद लाहौरी |
|
पादशाहनामा |
मोहम्मद अमीन
कजवीनी |
औरंगजेब (1658-1707) |
आलमगीरनामा |
काजिम शिराजी |
इतिवृत क्या है ?
·
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में उल्लेख किया है कि इतिहास के
अंतर्गत पुराण, इतिवृत्त
आख्यान एवं अर्थशास्त्र सभी आते हैं
·
इतिहासकार गिरजा शंकर प्रसाद ने इतिवृत्त उस जीवन चरित अथवा
वंश चरित को कहा है जिसमें लेखक राजकीय प्रलेखों, प्रशस्तियों के आधार पर शासक के अधिक निकट रहकर इतिहास लिखने
का प्रयास करता है ।
·
मुगल बादशाह ने दरबारी इतिहासकारों को अपने शासनकाल के
विवरणों के लेखन का कार्य सौंपा | इन विवरणों में बादशाह के समय की घटनाओं का संपूर्ण
लेखा-जोखा दिया गया | इसके
अतिरिक्त उनके लेखकों ने शासकों को अपने क्षेत्र के शासन में मदद के लिए
उपमहाद्वीप के अंश चित्रों से भी ढेरों जानकारियां इकट्ठा की|
·
अंग्रेजी में लिखने वाले आधुनिक इतिहासकारों ने इन विवरणों
को क्रॉनिकल अर्थात इतिवृत्त का नाम दिया है|
मुगल शासक और उनका साम्राज्य
·
भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर था |
·
उसने 21 अप्रैल 1526 ईस्वी को पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को परास्त
कर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया |
·
बाबर का पूरा नाम जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर था |
·
बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 श्री को फरगना में हुआ था | उसके पिता का नाम उमर शेख
मिर्जा और माता का नाम कुतलुग निगार खानम था ।
·
बाबर अपने पितृपक्ष की ओर से तैमूर का पांचवा वंशज था और मातृ पक्ष की ओर से चंगेज
खान का 14वां वंशज था।
·
बाबर को चगताई तुर्क कहां गया है| मुगल नाम मंगोल से उत्पन्न हुआ
है परंतु मुगल शासक अपने आप को तैमूरी कहा है|
बाबर
·
8 जून 1494 को पिता की मृत्यु के पश्चात 11 वर्ष की आयु में बाबर फरगना का शासक
बना।
·
बाबर भारत पर आक्रमण करने से पहले काबुल ,बुखारा खुरासान और समरकंद पर विजय
प्राप्त की थी |
·
बाबर ने 1507 ईस्वी में काबुल जीतने के बाद पादशाह की उपाधि धारण की।
·
बाबर खैबर दर्रा पार करके भारत पर पहला आक्रमण 1519
ईस्वी में
किया और बैजरा एवं भेरा को जीतकर वापस लौट गया|
·
बाबर ने दूसरा आक्रमण 1519 ईस्वी में ही किया और पेशावर से
वापस चला गया |
·
तीसरा आक्रमण 1520 ईस्वी में किया और सियालकोट को
जीता
·
बाबर ने अपने चौथे आक्रमण में पंजाब के अधिकांश भाग पर कब्जा
किया | यह
आक्रमण 1524 ई. में हुआ |
·
बाबर ने 5वां आक्रमण 1526 ई. में किया | बाबर का 5वां आक्रमण पानीपत का प्रथम
युद्ध के नाम से जाना जाता है| यह युद्ध बाबर और इब्राहिम लोदी
के बीच 21 अप्रैल 1526 को हुआ था | इस युद्ध
में बाबर विजयी हुआ | उसने
पहली बार तुगलूमा युद्व पद्वति का प्रयोग किया ।
·
बाबर ने पहली बार भारत में तोपखाने का प्रयोग किया। उस्ताद
अली कुली एवं मुस्तफा,बाबर के मुख्य तोपची थे |
·
खानवा का युद्ध खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 ईस्वी को बावरा और मेवाड़ के शासक
राणा सांगा के बीच हुआ इस युद्ध में बाबर विजई हुआ और गाजी की उपाधि धारण की इसके
साथ ही भारत में मुगलों का साम्राज्य स्थापित हो गया
·
चंदेरी का युद्ध - चंदेरी का युद्ध 29 जनवरी 1528 ईसवी को बाबर और मेदनी राय के बीच
हुआ इस युद्ध में मेदनी राय मारा गया|
·
घाघरा का युद्ध- घाघरा का युद्ध 6 अप्रैल 15 से 29 ईसवी को बिहार के घाघरा नदी के तट
पर बाबर और महमूद खान लोधी के बीच हुआ इस युद्ध में बाबर विजई हुआ बाबर के द्वारा
लड़ा गया अंतिम युद्ध था
·
बाबर की मृत्यु 25 दिसंबर 1530 ईस्वी को हुआ| उसे पहले आगरा के आरामबाग में
और बाद में काबुल में दफनाया गया । मरने से पहले उसने हुमायूं से आश्वासन लिया कि
वह अपने भाइयों के साथ सद-व्यवहार करेगा|
·
पानीपत का युद्ध जीतने के बाद बाबर ने सरदारों को इनाम दिया | बाबर की इस उदारता के लिए उसे
कलंदर कहकर पुकारा गया
·
बाबर ने मुबइयान पुस्तक लिखी जो मुस्लिम कानून की पुस्तक है
।
·
बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक -ए -बाबरी तुर्की भाषा में लिखी
थी | इस
पुस्तक में भारत में 5 मुसलमान
राज्य दिल्ली, गुजरात, बहमनी,
मालवा और
बंगाल और दो काफिर राज्य विजयनगर तथा मेवाड़ का वर्णन किया है|
·
बाबर ने आगरा में ज्यामितीय विधि पर नूरे अफगान नामक बाग लगाया
जिसे आरामबाग कहा जाता है।
हुमायूँ (1530-1540)
- बाबर का उत्तराधिकारी उसका जेष्ठ पुत्र हुमायूं हुआ|
- हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 ई. को काबुल में हुआ।
- उसकी मां का नाम माहम सुल्ताना थी ।
- हुमायूं 23
वर्ष की आयु में मुगल सम्राट बना ।
- उसका राज्यारोहण
30 दिसम्बर 1530
को हुआ।
- हुमायूं ने मुग़ल राज्य को चारों भाइयों में विभाजित कर दिया
कामरान -काबुल,गंधार,मुल्तान, पंजाब (माँ-गुलरूखबेगम)
अस्करी - संभल का क्षेत्र ( माँ-गुलरुख बेगम )
हिंदाल -अलवर का क्षेत्र (दिलदार बेगम )
सुलेमान मिर्जा -बदख्शां का क्षेत्र (चचेरा भाई)
हुमायूं द्वारा लड़े गए युद्ध
- कालिंजर पर आक्रमण
- 1531 ईस्वी में हुमायूँ ने कालिंजर के शासक प्रताप रुद्रदेव पर
आक्रमण किया | यह आक्रमण असफल रहा |
- दोहरिया का युद्ध - यह युद्ध 1532 ईस्वी में हुमायूँ और अफगान
महमूद लोदी के मध्य हुआ जिसमें महमूद लोदी पराजित हुआ|
- बहादुर शाह से संघर्ष
- 1535 -36 ई. में हुमायूँ ने गुजरात के
शासक बहादुर शाह को हराकर मांडू और चंपानेर का दुर्ग जीता|
- चौसा का युद्ध- 27 जून 1540 ई. को हुमायूँ और अफगानी शेर खान के मध्य बिहार के बक्सर के चौसा नामक स्थान पर युद्ध हुआ| इस युद्ध में हुमायूँ पराजित हुआ| बड़ी मुश्किल से हुमायूँ निजाम नामक एक भिस्ती की सहायता से गंगा पार कर जान बचाई।चौसा का युद्व जीतने के उपरांत शेर खान ने शेरशाह की उपाधि धारण की|
- कन्नौज या बिलग्राम का युद्ध - 17 मई 1540ई. को शेरशाह ने बिलग्राम के युद्ध में हुमायूँ को पराजित कर आगरा और दिल्ली पर अधिकार
कर लिया | इस युद्ध के बाद हुमायूँ भारत छोड़कर सिंध चला गया|
- हुमायूँ ने 15
वर्षों तक निर्वासित जीवन जिया| इस दौरान उसने हिन्दाल के
शिया गुरु मीर अली अकबर की पुत्री हमीदा बानो बेगम से 1541 ईस्वी में विवाह किया
- हुमायूँ के निष्कासित जीवन के दौरान सिंध में
अमरकोट के राणा वीर साल ने शरण दी | इसके यहां ही 15 अक्टूबर 1542 ई. को हमीदा बानो बेगम ने अकबर को जन्म दिया
- हुमायूँ 15
मई 1555
में मच्छीवाड़ा के युद्ध में विजय प्राप्त की और
पंजाब को जीता
·
सरहिंद का युद्व - 22 जून 1555 ई. को सरहिंद के युद्व में
मुगलों(हुमायूँ की सेना )ने सिकन्दर सूर को पराजित किया । इसके बाद हुमायूँ ने
दिल्ली, आगरा और सम्भल के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया ।
·
·
अंततः 23 जूलाई 1555 को हुमायूँ एक बार
फिर दिल्ली का बादशाह बना|
·
·
हुमायूँ की मृत्यु दिनपनाह
के पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर 27 जनवरी 1556 ईस्वी को हुई | उसने अकबर को अपना
उत्तराधिकारी नियुक्त किया| दिल्ली में दिनपनाह नामक नगर की स्थापना हुमायूँ ने की थी
शेरशाह सूरी
·
शेरशाह का जन्म 1472 ईस्वी में हुआ था उसके बचपन का
नाम फरीद था| 1497 से 1518 ई.तक फरीद ने अपने पिता की जागीर की देखभाल की और शासन का अनुभव
प्राप्त किया|
·
बहार खान लोहानी ने फरीद को शेर को मारने
के उपलक्ष में शेरखान
की उपाधि
दी
·
शेर खान ने हजरत-ए-आला
की उपाधि
ग्रहण की और दक्षिण बिहार का वास्तविक शासक बना |
·
1530 ईस्वी में शेरशाह ने चुनार के किलेदार ताज खां की विधवा पत्नी लाड
मलिका से विवाह कर चुनार के किले पर अधिकार कर लिया|
·
चौसा का युद्व - 1540 ईस्वी में चौसा के युद्ध में
हुमायूँ को पराजित करने के बाद शेर खान ने शेरशाह सुल्तान-ए- आदिल की उपाधि ग्रहण
की और सुल्तान बना
·
बिलग्राम का युद्ध - 17 मई 1540 ईस्वी को शेरशाह ने हुमायूँ को
बिलग्राम के युद्ध में पराजित कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया और द्वितीय अफगान
साम्राज्य की स्थापना की|
·
शेरशाह सूरी की मौत 22 फरवरी 1545 ईस्वी को कालिंजर पर आक्रमण के
समय तोपखाना फट जाने से हो गई थी|
शेरशाह की उपलब्धियां
·
शेरशाह ने रोहतासगढ़ का किला दिल्ली का पुराना किला एवं उसके
अंदर “किला -ए-
कुहना “, सासाराम का
मकबरा बनवाया तथा पाटलिपुत्र का नाम बदलकर पटना रखा|
·
शेरशाह ने बंगाल में सुनार गांव से आगरा दिल्ली होते लाहौर
तक सड़क -ए- आजम बनवाया जिसे आज ग्रैंड ट्रंक रोड कहा जाता है|
·
शेरशाह ने पुरानी मुद्रा व्यवस्था को बंद करके नई मुद्रा
चलाई | मुद्रा
का नाम रुपया रखा|
अकबर
·
अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ई. को अमरकोट के राजा वीरसाल के
महल में हुआ था।
·
14 फरवरी 1556 ई. को अकबर को बादशाह घोषित कर दिया। उस समय उसकी आयु मात्र 14 वर्ष थीं।
·
बैरम खान को अकबर का संरक्षक नियुक्त किया गया|
·
अकबर ने बैरम खान को वज़ीर(वकील) नियुक्त किया और उसे
खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की।
पानीपत का युद्व
·
पानीपत का दूसरा युद्ध 5 नवंबर 1556 ईस्वी को लड़ा गया|
·
इस युद्ध में अकबर के संरक्षक बैरम खान और मोहम्मद आदिल शाह सूर के
वजीर हेमू (जिसने दिल्ली पर अधिकार कर विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी वह इस
उपाधि को धारण करने वाला भारत का 14वां शासक था) के बीच हुई| इस युद्ध में हेमू की पराजय
होती है और वह वीरगति को प्राप्त होता है|
पेटीकोट शासन /पर्दा शासन
- प्रारंभ के 4 वर्ष तक बैरम खान अकबर की ओर से शासन करता रहा|
- 1560 ईस्वी में बैरम खां की पतन
के बाद 1562 तक वह अपनी धाय माँ माहम अनगा के प्रभाव में रहा|
- इस काल के शासन को पर्दा शासन अथवा पेटीकोट शासन कहा गया है 1562 ईस्वी में अकबर ने स्वतंत्र
रूप से शासन करना आरंभ किया
हल्दीघाटी का युद्व
·
मुगलों ने 1568 ईस्वी में मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया|
·
1572 ईस्वी में राजा उदय सिंह की मृत्यु के बाद राणा प्रताप ने चित्तौड़
पर पुनः अधिकार कर लिया
·
चित्तौड़ पर अधिकार करने के लिए अकबर ने राजा मानसिंह और
आसिफ खान के नेतृत्व में सेना भेजें |
·
18 जून 1576ई. मुगल सेना और महाराणा प्रताप की
सेना में हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध हुआ| इस युद्ध में महाराणा प्रताप
पराजित हुए
·
अकबर की मृत्यु 25 अक्टूबर 1605 ईस्वी को हुआ उसे आगरा के
सिकन्दरा में दफनाया गया ।
अकबर के दरबार के नवरत्न
·
बीरबल (महेश दास)- अकबर ने उसे राजा और कविप्रिय
की उपाधि प्रदान की
·
तानसेन -अकबर का
दरबारी गायक अकबर ने उसे कंठामरवाणी की उपाधि प्रदान की
·
मानसिंह- अकबर का
सेनापति और हरखा भाई का भाई था
·
अबुल फजल -उसने अकबरनामा एवं आईने अकबरी की रचना की
·
अब्दुल रहीम खानेखाना- वह बैरम खान का पुत्र था| इनके दोहे प्रसिद्व है|
·
मुल्ला दो प्याजा -प्याज से अधिक प्रेम होने के
कारण इसे मुल्ला दो प्याजा कहा जाता था
·
हकीम हकाम - वह सही विद्यालय का प्रमुख था
·
टोडरमल -अकबर का वित्त मंत्री, उसने भूमि माप के आधार पर लगान
की पद्धति का विकास किया
·
फैजी -अबुल फजल
का बड़ा भाई उसने
लीलावती (गणित की पुस्तक) का फारसी भाषा में अनुवाद किया
अकबर की राजपूत नीति
·
अकबर ने राजपूतों के साथ दमन और समझौते की नीति अपनाई उसने
राजपूतों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए
·
अकबर ने आमेर के कछवाहा नरेश राजा भारमल की पुत्री हरका बाई
से विवाह किया|
·
राजा भारमल के पुत्र भगवान दास एवं मानसिंह को अकबर ने शाही सेना
में सम्मिलित किया|
·
1570 ईस्वी में मारवाड़, बीकानेर एवं जैसलमेर राजाओं ने
मुगल अधीनता स्वीकार की|
अकबर की धार्मिक नीति
·
1562 ईस्वी में अकबर ने युद्ध बंदियों को दास बनाने की प्रथा पर रोक
लगाई |
·
1563 ईस्वी में अकबर ने तीर्थ यात्रा पर कर बंद कर दिया|
·
1564 ईस्वी में
अकबर ने जजिया कर समाप्त कर दिया |
·
धार्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करने के लिए अकबर ने फतेहपुर
सीकरी में 1575 में
इबादतखाना का निर्माण कराया , आरंभ में यह इबादतखाना सिर्फ मुस्लिमों के लिए था परंतु 1578 ईस्वी में सभी धर्मों के लिए इसे
खोल दिया गया
मजहर की घोषणा
·
इबादत खाना में एक ही धर्म के बीच वाद विवाद को झगड़े में
तब्दील होने से 1579 में अकबर ने मजहर की घोषणा की |
·
इसके द्वारा अकबर ने स्वयं को धर्म के मामलों में सर्वोच्च
बना दिया | इसके बाद
उसने सुल्तान-ए -आदिल की उपाधि धारण की|
·
अकबर अपना धर्म ज्ञान को बढ़ाने के लिए सभी धर्मों को
आमंत्रित किया | हिंदू
धर्म से प्रभावित होकर माथे पर तिलक लगाना आरंभ किया |
·
पारसी धर्म से प्रभावित होकर सूर्य की उपासना और अग्नि जलाने
की आज्ञा दी
·
अकबर सिख धर्म से प्रभावित होकर पंजाब का 1 वर्ष का कर माफ कर दिया|
·
ईसाई धर्म से प्रभावित होकर आगरा और लाहौर में गिरजाघर का निर्माण
किया|
·
अकबर ने पाया कि सभी धर्मों में अच्छाइयां हैं ,परंतु कोई भी धर्म संपूर्ण नहीं
है | इसलिए 1582 में दीन- ए -इलाही की स्थापना
की |
·
बीरबल इस धर्म को स्वीकार करने वाला है पहला और अंतिम हिंदू
था|
- 1578 ईस्वी में इबादत खाना सभी धर्मों के लिए खोलने पर हिंदुओं की तरफ से
पुरुषोत्तम और देवी , जैन धर्म की ओर से जिनचन्द्र सूरी,
हरिविजय सूरी,विजयसेन सूरी,पारसी धर्म से डस्टर मेहर जी राणा,ईसाई धर्म से फादर एक्वीविवा और एंटोनी मॉन्सटर शामिल थे |
- अकबर ने हरी विजय सूरी को जगतगुरु और जिनचंद्र
सूरी को युग प्रधान की उपाधि प्रदान की थी|
सूलह -ए-कुल
·
अकबर ने सुलह-ए- कुल की नीति अपनाई | इसका अर्थ होता है कि सबसे शांति
रखने का सिद्धांत |
·
अबुल फजल सुलह-ए-कुल के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला
मानता था |
·
सभी अधिकारियों को प्रशासन में सुलह-ए -कुल की नीति अपनाने
के निर्देश दिए गए|
अकबर के सामाजिक कार्य
·
अकबर ने तुलादान एवं झरोखा दर्शन जैसी पारसी परंपराओं को
शुरू किया|
·
अकबर ने सती प्रथा को रोकने का प्रयास किया विधवा, विवाह को कानूनी मान्यता दी|
·
शराब बिक्री पर रोक लगाई और लड़के लड़कियों के विवाह की उम्र 16 वर्ष एवं 14 वर्ष निर्धारित की|
·
1562 ईस्वी में दास प्रथा का अंत किया |
·
1563 ईस्वी में तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति की |
·
1564 ईस्वी में जजिया कर की समाप्ति की |
·
नुरुद्दीन मुहम्मद जहांगीर
·
जहांगीर का जन्म 30 अगस्त 15 से 69 ईसवी को फतेहपुर सीकरी के सूफी संत
शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर की पत्नी जोधाबाई उर्फ मरियम-उस-जमानी के गर्भ से पैदा हुआ था |अकबर जहांगीर को सलीम के नाम से
पुकारता था
·
जहांगीर का प्रमुख शिक्षक बैरम खान का पुत्र अब्दुल रहीम
खाने-खाना था|
·
जहांगीर को फारसी तुर्की अरबी गणित हिंदी इतिहास भूगोल आदि की
शिक्षा दिलाई गई |
·
साहित्य संगीत एवं चित्रकला में जहांगीर को विशेष रूचि थी|
·
जहांगीर का विवाह 1586 ईस्वी में आमेर के राजा
भगवानदास की पुत्री मानबाई से हुआ था|
·
जहांगीर का राज्याभिषेक 3 नवंबर 1605 को आगरा के किले में हुआ और उसने
नूरुद्दीन मोहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी की उपाधि धारण की|
·
जहांगीर , बादशाह बनते
हीं12 राज्यादेश
जारी किए, जिनमें कुछ
प्रमुख हैं -जागीरदार व सरकारी अधिकारी दूर निर्जन मार्गों पर कुएं व सराय बनवाएं |
·
शराब और हर प्रकार के मादक द्रव्य का विक्रय प्रतिबंधित किया
जाए|
·
बड़े नगरों में अस्पताल बनवाए जाएं |
·
रविवार एवं बृहस्पतिवार को पशु वध निषेध हो |
·
किलें व कारागारों में जो बंदी बंद हैं उसे मुक्त कर दिया जाए|
·
जहांगीर ने आगरा के किले में शाहपुर से लेकर बाहर यमुना नदी तक
एक सोने की जंजीर लगवाई थी , इस जंजीर को खींचकर कोई भी आम आदमी न्याय मांग सकता था|
·
जहांगीर के जेष्ठ पुत्र खुसरो ने 1606 इसवी में उसके विरुद्ध विद्रोह कर
दिया था |
·
खुसरो को पकड़कर अंधा कर दिया गया | 1622 ईस्वी में खुर्रम अर्थात
शाहजहां ने उसकी हत्या कर दी
·
5वें
सिक्ख गुरु अर्जुन देव ने खुसरो को आशीर्वाद दिया था | अतः जहांगीर ने उन्हें राजद्रोह
के अपराध में मृत्युदंड दिया
नूरजहाँ :
- नूरजहां का वास्तविक नाम मेहरून्निसा था |
- उसके पिता का नाम मिर्जा गयास बेग एवं माता का नाम अस्मत बेगम था |
- जहांगीर ने मिर्जा ग्यास बेग को यात्मौद्दौला
की उपाधि दी थी |
- अस्मत बेगम को इत्र के आविष्कार का श्रेय जाता
है|
- मेहरून्निसा का जन्म कंधार में 1577 ईस्वी में हुआ था |
- 1594 में 17 वर्ष की आयु में उसका विवाह अलीकुली के साथ हुआ था|
- अलीकुली को शेर का शिकार करने के कारण जहांगीर ने शेर- अफगान की उपाधि दी
थी |1606ई. में इस अफगान की मृत्यु हो गई|
· जहांगीर ने 1611ई. में मेहरून्निसा को मीना बाजार में देखा तो उसके ऊपर मोहित हो गया|
· जहांगीर ने 1611ई.में ही मेहरून्निसा से विवाह कर लिया और उसे नूरमहल एवं नूरजहां की उपाधि प्रदान की|
· 1612 में नूरजहां का भाई आसफ खान की पुत्री अर्जुबंद बानो बेगम के साथ शाहजहां का विवाह हुआ|
· जहांगीर की मृत्यु 1627ई. में हुई और उसे लाहौर में दफनाया गया|
·
जहांगीर का उत्तराधिकारी शाहजहां हुआ|
·
मुगल काल में चित्रकला का सबसे अधिक विकास जहांगीर के काल में
हुआ था |
·
जहांगीर के दरबार में उस्ताद मंसूर एवं अबुल हसन सबसे
प्रसिद्ध चित्रकार थे|
·
जहांगीर ने अबुल हसन को नादिर-उल-जमात एवं उस्ताद मनसूर को
नादिर-उल-असर की उपाधि प्रदान की थी|
·
जहांगीर के दरबार में सबसे पहले पुर्तगाली आए थे|
·
अंग्रेज भी व्यापारिक सुविधा के लिए जहांगीर के दरबार में आए
जिनमें विलियम हॉकिंस, सर टॉमस रो, विलियम पेंस, एडवर्ड डायरी, जहांगीर के दरबार में आए |
·
जहांगीर ने विलियम हॉकिंस को 400 का मनसबदार प्रदान किया था|
शाहजहां
·
शाहजहां का जन्म 5 जनवरी 1592 को लाहौर में हुआ|
·
उसकी माता मारवाड़ के शासक उदय सिंह की पुत्री जगत गोसाई थी |
·
1612 इसवी में खुर्रम का विवाह आसिफ खान की पुत्री अर्जुबंद बानो बेगम
के साथ हुआ जो बाद में मुमताज महल के नाम से विख्यात हुई|
·
जहांगीर का उत्तराधिकारी शाहजहां हुआ
·
शाहजहां फरवरी 1628 ईस्वी में आगरा में अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मोहम्मद साहिब
किरण -ए-सानी की उपाधि लेकर गद्दी पर बैठा ।
मुमताज महल
·
शाहजहां और मुमताज महल की शादी1612 में हुआ था जिससे 14 सन्तानो में से 7 ही जीवित रहा । इनमें 4 पुत्र और 3 पुत्रियां थी।
·
जहाँआरा-1614,दाराशिकोह-1615,शाहशुजा-1616, रोशनआरा-1617, औरंगजेब-1618, मुराद बक्श-1624, गौहन आरा-1631
·
मुमताज महल की 1631 में प्रसव पीड़ा के दौरान हो गई
थी। उसी के कब्र पर ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने करवाया ।
शाहजहां द्वारा कराए गए स्थापत्य
निर्माण
·
ताजमहल
·
दिल्ली का लाल किला
·
आगरा के किले में मोती मस्जिद
·
शीशमहल
·
मयूर सिंहासन
साहित्यिक एवं अन्य कृतियां
·
गंगाधर और जगन्नाथ पंडित शाहजहां के राज्य कवि थे
·
ताजमहल का निर्माण करने वाला मुख्य कलाकार उस्ताद अहमद
लाहौरी था जिसे शाहजहां ने नादिर उज-असर की उपाधि प्रदान की थी।
·
अब्दुल हमीद लाहौरी ने पादशाहनामा लिखा और इनायत खान ने
शाहजहांनामा लिखा।
·
शाहजहां ने दारा शिकोह को शाहबुलंद इकबाल की उपाधि प्रदान की
थी
·
शाहजहां ने संगीतज्ञ लाल खान को गुण समुंदर की उपाधि दी थी
उत्तराधिकारी का युद्व और शाहजहां का अंत
धरमत का
युद्ध :15अप्रैल , 1658
·
यह युद्व शाही सेना और औरंगजेब + मुराद के बीच हुआ | इस युद्व में शाही सेना पराजित हुई
थी |
सामूगढ़ का
युद्व :8 जून 1858
·
औरंगजेब और मुराद की सेनाओं ने दाराशिकोह को पराजित किया
·
शाहजहाँ को बंदी बना लिया गया |
·
शाहजहाँ कैद में 8 वर्ष रहने के बाद 1666 में उसकी मृत्यु हो गयी |
देवराई का
युद्व :12-14अप्रैल 1659
·
औरंगजेब ने दारा शिकोह को पराजित किया और कैद कर लिया |
30
अगस्त 1659 को दारा को क़त्ल कर दिया |
औरंगजेब (1658-1707)
·
औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 ई. को हुआ|
·
इसकी माता मुमताज महल थी|
·
औरंगजेब का विवाह 1637 ई. को रजिया बीबी से हुआ था|
·
दिल्ली की गद्दी पर 15जून 1659 को अब्दुल मुजफ्फर
मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर पादशाह गाजी की उपाधि धारण कर बैठा |
औरंगजेब (1658-1707) के सामाजिक और धार्मिक कार्य
·
नौरोज का आयोजन, संगीत समारोह, शराब का सेवन, जुआ पर प्रतिबंध लगा दिया |
·
कुरान को शासन का आधार बनाया |
·
हिन्दुस्तान को दार-उल-इस्लाम में बदलना चाहा|
·
1663 में सती प्रथा पर प्रतिबंध
·
1668 में हिन्दू त्योहारों के आयोजन पर प्रतिबन्ध
·
शासन के 11वें वर्ष झरोखा पर प्रतिबंध
·
शासन के 12वें वर्ष तुलादान प्रथा पर प्रतिबंध
·
1679 में जजिया कर पुन: लगाया
·
औरंगजेब को जिन्दा पीर एवं शाही दरवेश भी कहा जाता है
औरंगजेब (1658-1707) के समय प्रमुख विद्रोह
·
अफगान विद्रोह , 1667ई.
·
जाट विद्रोह , 1669 ई.
·
सतनामी विद्रोह, 1672 ई.
·
बुन्देला विद्रोह , 1661ई.
·
शाहजादा अकबर का विद्रोह, 1681ई.
·
अंग्रेजों का विद्रोह, 1686ई.
·
राजपूतों का विद्रोह, 1679-1709 ई.
·
सिक्ख विद्रोह, 1675 ई.
उत्तरकालीन मुगल शासक
कर्म संख्या |
मुग़ल शासक |
कब से |
कब तक |
1. |
बाबर |
1526 |
1530 |
2. |
हुमायूँ |
1530 |
1540 ,1555-56 |
3. |
अकबर |
1556 |
1605 |
4. |
जहांगीर |
1605 |
1627 |
5. |
शाहजहाँ |
1627 |
1658 |
6. |
औरंगजेब |
1658 |
1707 |
7 |
बहादुर शाह प्रथम |
1707 |
1712 |
8 |
जहांदारशाह |
1712 |
1713 |
9. |
फारुख्शीयार |
1713 |
1719 |
1. |
रफ़ी-उद-दराज |
1719 |
1719 |
2. |
शाहजहाँ द्वितीय |
1719 |
1719 |
3. |
मुहम्मद शाह |
1719 |
1748 |
4. |
अहमद शाह |
1748 |
1754 |
5. |
आलमगीर द्वितीय |
1754 |
1759 |
6. |
शाहजहाँ द्वितीय |
1759 |
1760 |
7 |
शाह आलम द्वितीय |
1760 |
1806 |
8 |
अकबर द्वितीय |
1806 |
1837 |
9. |
बहादुर शाह द्वितीय (अंतिम शासक ) |
1837 |
1857 |
इतिवृतों की रचना
- मुगल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त
साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत है |
- इतिवृत्त की रचना इस साम्राज्य के अंतर्गत आने
वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज के दर्शन की प्रायोजना के उद्देश्य
से लिखे गए थे |
- शासक यह सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी
पीढ़ियों के लिए उनके शासन का विवरण उपलब्ध रहें|
इतिवृत्त रचना के केंद्र
- शासक पर केन्द्रित घटनाएं
- शासक का परिवार
- दरबार व् अभिजात
- युद्व और प्रशासनिक व्यवस्थाएं
मुख्य इतिवृत रचनाएं :
अकबरनामा, शाहजहाँनामा , आलमगीरनामा से संकेत मिलता है की साम्राज्य व् दरबार
का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था|
भाषा: तुर्की से फारसी की ओर
·
मुग़ल दरबारी इतिहास फ़ारसी में लिखे गए थे |
·
मुग़ल खुद को चगताई मूल के मानते थे और तुर्की उनकी मातृभाषा
थी | बाबर
द्वारा लिखित बाबरनामा तुर्की भाषा में है |
·
चगताई तुर्क स्वयं को चंगेज खां के सबसे बड़े पुत्र के वंशज
मानते थे|
·
अकबर ने फारसी भाषा को दरबार की भाषा बनाया| उनलोगों को शक्ति व् प्रतिष्ठा
प्रदान की गई जिनकी भाषा पर अच्छी पकड़ थी|
·
कुछ वर्षों में यह सभी स्तरों के प्रशासन की भाषा बन गयी
जिसे लेखाकारों, लिपिकों
तथा अन्य अधिकारियों को भी सीखना पड़ा|
·
फ़ारसी के हिन्दी के साथ पारस्परिक संपर्क से उर्दू भाषा का
जन्म हुआ|
·
मुग़ल बादशाहों ने महाभारत और रामायण को फ़ारसी में अनुवादित किए
जाने का आदेश दिया |
·
महाभारत का अनुवाद रज्मनामा (युद्वों की पुस्तक) के रूप में हुआ|
पांडुलिपियों के रचना
·
मुग़ल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों में अर्थात हाथ से लिखी होती थी |
·
पांडुलिपि रचना का मुख्य केंद्र शाही किताबखाना था| यह एक लिपिघर था जहां बादशाह के
पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता और नई पांडुलिपियों की रचना की जाती थी |
पांडुलिपियों
को तैयार करने में शामिल लोग :-
·
पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने ,
·
सुलेखकों की पाठ की नकल तैयार करनेवाले,
·
कोफ्तागरों की पृष्ठों को चमकाने वाले ,
·
चित्रकारों की पाठ से दृश्यों को चित्रित करने वाले ,
·
जिल्द्साजों की प्रत्यके पन्ने को इकट्ठा कर अलंकृत आवरण बनाने
वाले |
पांडुलिपियों के रचना
·
सुलेखकों और चित्रकारों को उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा मिली जबकि
अन्य, जैसे
जिल्दसाज गुमनाम कारीगर हे रह गए |
·
सुलेखन हाथ से लिखने की महत्वपूर्ण कौशल मानी जाती थी|
·
नस्तलीक लेखन शैली :नस्तलीक
अकबर की पसंदीदा शैली थी - यह एक तरल शैली थी जिसे लम्बे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था| 5 से 10 मिलीमीटर की नोक वाले छंटे हुए सरकंडे,जिसे कलम कहा जाता है, के टुकड़े से स्याही में डूबोकर लिखा जाता है| सामान्यतया
कलम की नोक में बीच में छोटा सा चीरा लगा दिया जाता था ताकि वह स्याही आसानी से सोख ले |
रंगीन चित्र
·
मुग़ल बादशाह के शासन की घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दृश्य
रूप में वर्णित किया जाता था |
·
सुलेखक उसके आसपास के पृष्ठों को खाली छोड़ देते थे जहां चित्रकार वर्णित विषय का चित्र अंकन करते थे |
· चित्र बादशाह और उसकी शक्ति को दिखायेजाने वाला विचारों का
सम्प्रेषण माना जाता था|
· इतिहासकार अबुल फजल ने चित्रकारी का एक “जादुई कला “ के रूप में वर्णन किया है जो निर्जीव वस्तु को भी इस रूप में प्रस्तुत करती हो जैसे उसमें जीवन हो |
· बादशाह, उसके दरबार तथा उसमें हिस्सा लेने वाले लोगों का चित्रण
करनेवाले चित्रों की रचना को लेकर शासकों और मुसलमान रूढ़ीवादी वर्ग के
प्रतिनिधियों अर्थात उलमा के बीच निरंतर तनाव बना रहा|
· ऐसा माना जाता है कि कुरान और हदीस में प्रतिष्ठित मानव
रूपों के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबंध का आह्वान किया है|
तस्वीर की प्रशंसा में
अबुल फजल
चित्रकारी को बहुत सम्मान देता था -
किसी भी चीज का उसके जैसा ही रेखांकन बनाना तस्वीर कहलाता है | अपनी युवावस्था के एकदम शुरुआती दिनों से ही महामहिम ने इस कला में अपनी अभिरूचि व्यक्त की है| वे इस अध्ययन और मनोरंजन दोनों का ही साधन मानते हुए इस कला को हर संभव प्रोत्साहन देते है| चित्रकारों की एक बड़ी संख्या इस कार्य में लगाई गई है| हर हफ्ते शाही कार्यशाला के अनेक निरीक्षक और लिपिक बाद्शाह के सामने प्रत्येक कलाकार का कार्य प्रस्तुत करते है और महामहिम प्रदर्शित उत्कृष्टता के आधार पर ईनाम देते तथा कलाकारों के मासिक वेतन में वृद्वि करते है| अब सर्वाधिक उत्कृष्ट चित्रकार मिलने लगे और बिह्जाद जैसे कलाकारों की अत्युतम कलाकृतियों को तो उन यूरोपीय चित्रकारों के उत्कृष्ट कार्यों के समकक्ष ही रखा जा सकता है| जिन्होंने विश्व में व्यापक ख्याति अर्जित कर ली है| ब्योरे की सूक्ष्मता, परिपूर्णता और प्रस्तुतिकरण की निर्भीकता जो अब चित्रों में दिखाई पड़ती है, वह अतुलनीय है यहाँ तक कि निर्जीव वस्तुएं भी प्राणवान प्रतीत होती है| सौ से अधिक चित्रकार इस कला के प्रसिद्व कलकार हो गए है| हिन्दू कलाकारों के लिए यह बात खासतौर पर सही है| उनके चित्र वस्तुओं की हमारी परिकल्पना से कहीं परे है| वस्तुतः पूरे विश्व में कुछ लोग ही उनके समान पाए जा सकते है |
अकबरनामा-अबुल फजल
अकबरनामा के लेखक अबुल फजल है| इसके पांडुलिपि में औसतन 150 पूरे अथवा दोहरे पृष्ठों पर लड़ाई, घेराबंदी, शिकार, इमारत-निर्माण, दरबारी दृश्य आदि के चित्र हैं|
अबुल फजल जीवनी:
अबुल फजल का पालन- पोषण मुग़ल राजधानी आगरा में हुआ| वह अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद में
पर्याप्त निष्णात था| इससे भी अधिक वह एक प्रभावशाली
विवादी तथा स्वतंत्र चिन्तक था जिसने
लगातार दकियानूसी उलमा के विचारों का विरोध किया| इन गणों से अकबर प्रभावित हुआ| उसने अबुल फजल को अपना सलाहकार और अपनी नीतियों के प्रवक्ता के रूप में बहुत उपर्युक्त पाया|
दरबारी
इतिहासकार के रूप में अबुल फजल ने अकबर के शासन से जुड़े विचारों को न केवल आकार दिया बल्कि उनको स्पष्ट रूप से
व्यक्त किया |
अबुल फजल ने
अकबरनामा की रचना 1589 में आरम्भ
किया और तेरह वर्षों तक इसपर कार्य किया| यह इतिहास घटनाओं के वास्तविक
विवरणों, शासकीय दस्तावेजों तथा जानकार
व्यक्तियों के मौखिक प्रमाणों जैसे विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों पर आधारित है|
अकबरनामा को तीन जिल्दों में विभाजित किया गया है जिनमें से प्रथम दो इतिहास है| तीसरी जिल्द आइन-ए-अकबरी है|
पहली
जिल्द में आदम से लेकर अकबर के जीवन के एक खगोलीय काल चक्र (30वर्ष ) तक मानव जाति का इतिहास है|
दूसरी
जिल्द अकबर के 46वें शासन
वर्ष (1601) पर खत्म होती है| 1602 में अबुल फजल राजकुमार सलीम
द्वारा तैयार किये गए षड्यंत्र का शिकार हुआ और वीर सिंह बुन्देला
द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी|
अकबरनामा का
लेखन राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण घटनाओं के समय के साथ विवरण देने के पारंपरिक
ऐतिहासिक दृष्टीकोण से किया गया|
इसके साथ ही
तिथियों और समय के साथ होने वाले बदलावों के उल्लेख के बिना ही अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण प्रस्तुत करने के अभिनव तरीके
से भी इसका लेखन हुआ| आइन-ए-अकबरी में मुग़ल साम्राज्य को
हिन्दुओं, जैनों, बौद्वों और मुसलमानों की भिन्न-भिन्न आबादी वाले तथा एक मिश्रित
संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में
प्रस्तुत किया गया है|
अबुल फजल
की भाषा बहुत अलंकृत थी और चूँकि इस भाषा के पाठों को ऊँची आवाज में पढ़ा जाता था| अत: इस भाषा में लय तथा
कथन-शैली को बहुत महत्व दिया गया| इस भारतीय-फ़ारसी शैली को दरबार
में संरक्षण मिला|
बादशाहनामा:
अब्दुल हमीद लाहौरी
अबुल फजल
का शिष्य अब्दुल हमीद लाहौरी बादशाहनामा का लेखक है| शाहजहाँ ने अकबरनामा के नमूने पर अपने शासन का इतिहास लिखने
के लिए अब्दुल हमीद लाहौरी को
नियुक्त किया| बादशाहनामा भी सरकारी इतिहास है| इसकी तीन जिल्दें(दफ़्तर) है और
प्रत्येक जिल्द दस चन्द्र वर्षों का ब्योरा देती हैं| लाहौरी ने शाहजहाँ के शासन (1627-47) के पहले दो दशकों पर पहला और दूसरा दफ़्तर लिखा| बुढ़ापे की अशक्ताओं की वजह से
लाहौरी तीसरे दशक के बारे में न लिख सका
जिसे बाद में इतिहासकार वारिस ने पूरा किया|
भारतीय
ऐतिहासिक ग्रन्थों का अनुवाद
औपनिवेशिक
काल के दौरान अंग्रेज प्रशासकों ने अपने साम्राज्य के लोगों और संस्कृतियों (जिन पर लम्बा शासन करना चाहते थे), को बेहतर ढंग से समझने के लिए भारतीय इतिहास का अध्ययन
तथा उपमहाद्वीप के बारे में ज्ञान का अभिलेखागार
स्थापित करना शुरू किया|
1784
में सर
विलियम जोन्स द्वारा स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल ने कई भारतीय पांडुलिपियों के
सम्पादन, प्रकाशन
और अनुवाद किया| हेनरी बेवरीज ने अकबरनामा का अंगरेजी में अनुवाद किया| बादशाहनामा का केवल कुछ अंश ही अंगरेजी में अनुवाद हुआ है|
बादशाहनामा
का सफ़र
मुगलों के
अधीन बहुमूल्य पांडुलिपियों की भेंट एक स्थापित राजनयिक प्रथा थी| इसी का
अनुकरण करते हुए अवध नवाब ने 1799 में जार्ज तृतीय को सचित्र बादशाहनामा भेंट में दिया| तभी से यह विंडीसर कासल के अंगरेजी शाही संग्रहों में सुरक्षित है |
1994
में हुए
संरक्षण कार्य में बंधी हुई पांडुलिपि को अलग-अलग करना आवश्यक हो गया| इसी की वजह से चित्रों को
प्रदर्शित करना संभव हुआ और 1997 में पहली बार बादशाहनामा के
चित्र नई दिल्ली, लन्दन और वाशिंगटन में हुई प्रदर्शनियों में दिखाए गए|
आदर्श राज्य
: एक दैवीय प्रकाश
दरबारी
इतिहासकारों ने कई साक्ष्यों का हवाला देते हुए यह दिखाया कि मुग़ल राजाओं को सीधे ईश्वर से शक्ति मिली थी| उनके द्वारा वर्णित दंत दंतकथाओं में से एक मंगोल रानी अलानकुआ की कहानी है जो अपने शिविर में आराम करते समय सूर्य की एक किरण द्वारा गर्भवती हुई
थी | उसके द्वारा जन्म लेने वाली सन्तान
पर इस दैवीय प्रकाश का प्रभाव था| इस प्रकार पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह प्रकाश
हस्तांतरित होता रहा|
ईश्वर(फार-ए-इजादी) से नि:सृत प्रकाश को ग्रहण करनेवाली चीजों के पदानुक्रम में मुग़ल राजत्व को अबुल फजल ने ऊँचे स्थान पर रखा| इस विषय में वह ईरानी सूफ़ी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी से प्रभावित था|
सूफ़ी
शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के अनुसार एक पदानुक्रम के तहत यह दैवीय प्रकाश राजा में संप्रेषित होता जिसके बाद राजा अपनी प्रजा के
लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन
जाता था|
इतिवृतों
के विवरणों का साथ देने वाली चित्रों ने इन विचारों को इस तरीके से संप्रेषित किया कि
उन्होंने देखने वालों के मन-मष्तिष्क पर स्थायी प्रभाव डाला| 1वीं शताब्दी से मुग़ल कलाकारों
ने बादशाहों को प्रभामंडल के साथ चित्रित करना शुरू किया| ईश्वर के प्रकाश के प्रतीक के
रूप में इन प्रभामंडलों को उन्होंने ईसा
और वर्जिन मेरी के यूरोपीय चित्रों में देखा था |
सुलह-ए-कुल:
एकीकरण का स्रोत
मुग़ल
साम्राज्य में हिन्दुओं, मुसलमानों
और जराथ्रुश्तियों जैसे अनेक नृजातीय और
धार्मिक समुदायों के लोग रहते थे| बादशाह यह सुनिश्चित करता था की सभी समुदायों में शान्ति और न्याय बनी रहे | अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शान्ति) के आदर्श को प्रबुद्व शासन की
आधारशिला मानता था|
सुलह-ए-कुल
में यूँ तो सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता थी किन्तु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को
क्षति नहीं पहुंचाएंगे अथवा आपस में नहीं
लड़ेंगे|
सुलह-ए-कुल
का आदर्श राज्य नीतियों के जरिये लागू किया गया| मुगलों के अधीन अभिजात-वर्ग मिश्रित किस्म का था- उसमें
ईरानी,तूरानी अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी शामिल थे| इन सबको दिए गए पद और पुरस्कार राजा के उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित थे| साम्राज्य के अधिकारियों को प्रशासन में सुलह-ए-कुल के नियम को पालन
करना होता था |
सभी मुग़ल
बादशाहों ने उपासना स्थलों के निर्माण व् रख-रखाव के लिए अनुदान दिए| युद्व के दौरान मंदिरों के नष्ट
होने पर मरम्मत हेतु अनुदान दिया जाता था|
सामाजिक
अनुबंध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता
अबुल फजल ने
प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबंध के रूप में परिभाषित किया है| वह कहता है
कि बादशाह अपनी प्रजा के चार तत्वों की रक्षा करता है - जीवन (जन), धन, सम्मान (नामस ) और विश्वास (दीन ) |और इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की मांग
करता है| केवल न्यायपूर्ण सम्प्रभु ही शक्ति और दैवीय
मार्गदर्शन के साथ इस अनुबंध का सम्मान कर पाते थे |
मुग़ल राजधानी
और दरबार
·
दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों की राजधानी दिल्ली थी मगर दिल्ली
सल्तनत के अंतिम वंश के सुल्तान सिकंदर लोदी (1489-1517) ने 1504 में आगरा को अपनी राजधानी बनाया|
· 1526 में मुग़ल वंश के संस्थापक बाबर ने लोदियों की राजधानी आगरा पर आधिकार कर लिया |
· 1560 के दशक में अकबर ने आगरा के किले का लाल बलुया पत्थर से निर्माण कराया |
· 1570 के दशक में अकबर ने आगरा के पास फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी
बनाने का निर्णय लिया |
· अकबर ने सूफ़ी संत शेख सलीम चिश्ती के लिए सफेद संगमरमर का
मकबरा बनवाया|
· 1572 में गुजरात विजय की याद में यहीं पर बुलंद दरवाजा का निर्माण
करवाया |
·
1571 से 1585 के बीच फतेहपुर सीकरी का निर्माण कार्य पूरा हुआ|
· यहाँ जामा मस्जिद, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-ख़ास, जोधाबाई महल और बीरबल महल बनाये गए |
· उत्तर-पश्चिम सीमा को मजबूत करने के उद्वेश से 1585 में अकबर ने राजधानी को लाहौर में स्थानांतरित किया|
· शाहजहाँ ने 1648 में दरबार, सेना व राजसी खानदान आगरा सेनयी निर्मित शाही राजधानी शाहजहांनाबाद ले गया| यहाँ लालकिला, जामा मस्जिद, चांदनी चौक का निर्माण कराया| लाल किले का पश्चिमी द्वार लाहौरी दरवाजा एवं दक्षिणी दरवाजा द्वार दिल्ली दरवाजा है, इस किले में दीवाने आम , दीवानी खास और मोतीमहल
है |
·
दरबार में किसी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी की वह
शासक के कितना पास और दूर बैठा है |
· किसी भी दरबारी को शासक द्वारा दिया गया स्थान बादशाह की नजर
में उसकी महत्ता का प्रतीक था |
· एक बार जब बादशाह सिंहासन पर बैठ जाता था तो कोई भी बिना
अनुमति के दरबार से बाहर नही जा सकता था|
· शिष्टाचार का जरा सा भी उल्लंघन होने पर ध्यान दिया जाता था
और उस व्यक्ति को तुरंत ही दण्डित किया जाता था |
दरबार में प्रणाम करने का तरीका
·
कोर्निश - कोर्निश अभिवादन का एक ऐसा तरीका था जिसमें दरबारी दाएं हाथ की
तलहथी को ललाट पर रखकर आगे की ओर झुकाते थे|
· सिजदा- घुटने के बल बैठकर सर झुकाना| इस प्रथा का आरम्भ सुलतान बलबन
ने किया था|
· पैबोस- सुल्तान के चरणों को चूमना|
· जमींबोसी- जमीन चूमना
· चार तसलीम - दाएं हाथ को जमीन पर रखने से शूरो होता है | इसमें तलहथी ऊपर की और होती है| इसके बाद हाथ को धीरे-धीरे उठाते हुए व्यक्ति खड़ा होता है तथा तलहथी को सर के ऊपर रखता है| ऐसा चार बार की जाती है| तसलीम का शाब्दिक अर्थ “आत्मनिवेदन” है |
बादशाह का दिनचर्या
·
झरोखा दर्शन :प्रात: काल धार्मिक प्रार्थना
करने के उपरान्त बादशाह पूर्व की ओर मुंह किये एक झरोखे में आता था | इसके नीचे लोगों की भीड़ (सैनिक, व्यापारी , शिल्पकार, किसान, बीमार बच्चों के साथ औरतें) सुलतान को देखने के लिए खड़े रहते| अकबरद्वारा शुरू किया गया यह प्रथा का उद्वेश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति को विस्तार देना था|
· दीवान-ए-आम : झरोखे में एक घंटा बिताने के बाद बादशाह अपनी सरकार के प्राथमिक कार्यों के संचालन हेतु सार्वजनिक सभा भवन (दीवान-ए-आम) में आता था| वहां राज्य के अधिकारी रिपोर्ट प्रस्तुत करते तथा निवेदन करते थे |
·
दीवान-ए-खास: दो घंटे बाद बादशाह दीवान-ए-ख़ास में निजी सभाएं और गोपनीय मुद्दों पर चर्चा करता था और कर अधिकारी हिसाब का ब्योरा देते थे|कभी-कभी बादशाह उच्च प्रतिष्ठित कलाकारों के कार्यों अथवा वास्तुकारों (मिमार) के द्वारा बनाए गए इमारतों के नक्शों को देखता था|
· शाह बुर्ज (Royal Tower): दीवान-ए-खास के बाद बादशाह शाह बुर्ज जाता था |यहां अत्यंत ही गोपनीय मुद्दों पर विचार-विमर्श होता था| यहाँ शाहजादों एवं गिने-चुने अधिकारियों को ही आने की अनुमति थी|
रत्नजड़ित सिंहासन
आगरा महल
के सार्वजनिक सभा भवन में रखे शाहजहाँ के रत्नजड़ित सिंहासन (तख़्त-ए-मुरस्सा) के
बारे में बादशाहनामा में लिखा है:
सिंहासन की भव्य संरचना में एक छतरी है जो द्वादशकोणीय स्तम्भों पर टिकी हुई है| इसकी ऊँचाई सीढियों से गुम्बद तक 5 क्यूबिट(10 फूट) है| अपने राज्यारोहण के समय महामहिम ने यह आदेश दिया कि 86लाख रूपये के रत्न तथा बहुमूल्य पत्थर और एक लाख तोला सोना जिसकी कीमत रू14 लाख है, से इसे सजाया जाना चाहिए| सिंहासन की साज-सज्जा में 7वर्ष लग गए| इसकी सजावट में प्रयुक्त पत्थर रूबी थी जिसकी कीमत एक लाख रूपये थी और जिसे शाह अब्बास सफावी ने जहांगीर को भेजाथा| इस रूबी
पर बादशाह तिमुर साहिब-ए-किरानी, मिर्जा शाहरुख, मिर्जा उलुग बेग और शाह अब्बास
के साथ-साथ अकबर, जहांगीर और स्वयं महामहिम के नाम अंकित थे |
मुग़ल शासन में त्यौहार
सिंहासनारोहण
की वर्षगाँठ, ईद,, शब्-ए-बरात एवं होली जैसे
त्यौहार अत्यंत भव्यता के साथ मनाये जाते थे| मुग़ल शासक वर्ष में तीन मुख्य त्यौहार मनाता था- सूर्यवर्ष एवं चन्द्रवर्ष के अनुसार बादशाह का जन्मदिन भी धूमधाम में मनाया जाता था | जन्मदिन पर तुलादान की प्रथा थी| बादशाह को विभिन्न वस्तुओं से तौलकर उन्हें दान कर दिया जाता था| फारसी नववर्ष का त्यौहार “नौरोज “ भी मनाया जाता था|
शब-ए-बरात: शब-ए-बारात हिजरी कैलेण्डर के आठवें महीने अर्थात 14वें सावन को पड़नेवाली
पूर्णचंद्र रात्री है| भारतीय
उपमहाद्वीप में प्रार्थनाओं और आतिशबाजियों के खेल द्वारा इस दिन को मनाया जाता है| ऐसा माना जाता है कि इस रात
मुसलमानों के लिए आगे आने वाले वर्ष का भाग्य निर्धारित होता है और पाप माफ़ कर दिए
जाते है|
मुगल शाही विवाह
मुग़ल दरबार
में विवाह का आयोजन अत्यंत भव्यता के साथ होता था | 1633 में दारा शिकोह और नादिरा
(राजकुमार परवेज की पुत्री) के विवाह की व्यवस्था राजकुमारी जहाँआरा और मुमताज महल
की नौकरानी सती उन निसाखानुम द्वारा की गयी| शादी की उपहारों के प्रदर्शन दीवान-ए-आम
में की गई थी| हिनाबंदी(मेंहदी
लगाना) की रस्म दीवान-ए -ख़ास में अदा की गई| विवाह पर कुल 32लाख रूपये खर्च हुए थे जिसमें 6लाख शाही खजाने से, 16 लाख रूपये जहाँआरा द्वारा और शेष दुल्हन की माँ द्वारा दिए
गए थे | बादशाहनामा
में चित्रों के माध्यम से इसका वर्णन किया गया है |
मुगल शाही विवाह
मुग़ल दरबार
में विवाह का आयोजन अत्यंत भव्यता के साथ होता था | 1633 में दारा शिकोह और नादिरा
(राजकुमार परवेज की पुत्री) के विवाह की व्यवस्था राजकुमारी जहाँआरा और मुमताज महल
की नौकरानी सती उन निसाखानुम द्वारा की गयी| शादी की उपहारों के प्रदर्शन
दीवान-ए-आम में की गई थी| हिनाबंदी(मेंहदी
लगाना) की रस्म दीवान-ए -ख़ास में अदा की गई| विवाह पर कुल 32लाख रूपये खर्च हुए थे जिसमें 6लाख शाही खजाने से, 16 लाख रूपये जहाँआरा द्वारा और शेष दुल्हन की माँ द्वारा दिए
गए थे | बादशाहनामा
में चित्रों के माध्यम से इसका वर्णन किया गया है |
पदवियां, उपहार और भेंट
· राज्याभिषेक के समय अथवा किसी शत्रु पर विजय के बाद मुग़ल
बादशाह विशाल पदवियां ग्रहण करते थे|
· बादशाह योग्य व्यक्तियों को भी पदवियां प्रदान करता था | औरंगजेब ने राजा जय सिंह और जसवंत सिंह को मिर्जा राजा की पदवी प्रदान की थी|
· कभी-कभी पदवियां या तो अर्जित की जा सकती थीं अथवा इन्हें पाने के लिए पैसे दिए जा सकते थे| मीर खान ने अपने नाम में “अमीर खान” करने के लिए औरंगजेब को एक लाख रूपये देने का प्रस्ताव किया था|
· खिल्लत:
अन्य पुरस्कारों में सम्मान का जामा (खिल्लत ) भी शामिल था जिसे पहले कभी न कभी बादशाह द्वारा पहना गया हुआ होता था| इसे बादशाह का आशीर्वाद माना जाता था|
· सरप्पा (सर से पाँव तक): एक अन्य उपहार था| इस उपहार
के तीन हिस्से हुआ करते थे: जामा, पगड़ी और पटका|
· बादशाह द्वारा अक्सर रत्नजड़ित आभूषण भी उपहार के रूप में दिए
जाते थे | ख़ास परिस्थितियों में बादशाह कमल की मंजरियों वाला रत्नजड़ित गहनों का सेट(पद्म मुरस्सा) भी उपहार में देता था |
शाही परिवार -हरम
(शाब्दिक अर्थ - पवित्र स्थान)
·
मुगलकाल में हरम
मुगलों की घरेलू दुनिया का प्रतीक था| मुग़ल परिवार में बादशाह की पत्नियां और
उपपत्नियाँ, उसके नजदीकी और दूर के रिश्तेदार (माता, सौतेली व उपमाताएं, बहन, पुत्री, बहू, चाची, मौसी बच्चे आदि) व्
महिला परिचारिकाएँ तथा गुलाम होते थे| बहु विवाह प्रथा भारतीय उपमहाद्वीप में
विशेषकर शासक वर्गों में व्यापक रूप से प्रचलित थी|
·
·
मुग़ल परिवारों में शाही परिवारों से
आने वाली स्त्रियों को बेगम कहा जाता था| जिन स्त्रियों का जन्म कुलीन परिवार
में नहीं हुआ होता था वे अगहा कहा जाता था|बेगम का स्थान अगहा से उंचा होता था| उपपत्नियों को
अगाचा कहा जाता था|इन सभी को पदानुक्रम के अनुसार मासिक भत्ता एवं उपहार मिलते थे|
·
·
इस्लाम के अनुसार बादशाह चार पत्नियां
रख सकता था| यदि पति की इच्छा हो और उसके पहले से चार पत्नियां न हों तो अगहा
और अगाचा भी बेगम का दर्जा प्राप्त कर सकती थी|
·
·
गुलाम हिजड़े (ख्वाजासर) परिवार के अन्दर
-बाहर के जीवन में रक्षक, नौकर और व्यापार में रुचि लेने वाली महिलाओं के एजेंट होते थे|
मुग़ल काल में प्रमुख
महिलाएं
नूरजहाँ के बाद मुग़ल रानियों और
राजकुमारियों ने महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियंत्रण रखना शुरू किया| शाहजहाँ की पुत्रियों , जहाँआरा और रोशनआरा, को ऊँचे मनसबदारों के
समान वार्षिक आय होती थी| इसके अतिरिक्त जहाँआरा को सूरत के बंदरगाह नगर जो की विदेशी व्यापार
का एक केंद्र था, से राजस्व प्राप्त होता था|
जहांआरा ने शाहजहाँ की नयी राजधानी
शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) की कई वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में हिस्सा लिया| इनमें से आँगन व
बाग़ के साथ एक दोमंजिली भव्य कारवाँसराय थी| चांदनी चौक की रूपरेखा भी जहाँआरा
द्वारा बनाई गई थी|
कुछ मुग़ल महिलाऐं अत्यंत विदुषी थी| हुमायूं की भतीजी
सलीमा सुल्तान फ़ारसी की अच्छी ज्ञाता था| हुमायूं की बहन गुलबदन बेगम ने तुर्की और
फ़ारसी की जानकार थी| उसने हुमायूंनामा लिखी|गुलबदन बेगम ने राजाओं और राजकुमारों के
संघर्ष और कुछ संघर्षों को सुलझाने में परिवार की उम्रदराज स्त्रियों की भूमिका के
बारे में विस्तार से लिखी|
मुगल अभिजात वर्ग
मुग़ल दरबार का एक प्रमुख स्तम्भ
अधिकारियों का वर्ग था| इतिहासकारों ने उसे मुग़ल अभिजात वर्ग का नाम दिया है| इस वर्ग का उल्लेख एक
ऐसे गुलदस्ते के रूप में किया जाता है जो बादशाह के वफादार होते थे| अभिजात वर्ग में
भर्तियाँ विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी| शाहजहाँ के शासन काल
में चंद्रभान ब्राह्मण ने अपनी पुस्तक चार चमन (चार बाग़) में मुग़ल अभिजात वर्ग का
विस्तृत वर्णन किया है| इस वर्ग में अरब, ईरानी, तुर्की, रूसी, अबीसिनियाई ,राजपूत, भारतीय मुसलमान आदि सम्मिलित थे|
1560 के बाद दो शासकीय समूहों राजपूतों एवं भारतीय मुसलमानों को शाही
सेवा में शामिल किया गया| इनमें नियुक्त होने वाला प्रथम व्यक्ति अम्बेर के राजा भारमल
कछवाहा था| अकबर ने योग्यता के आधार पर खत्री जाति के राजा टोडरमल को वित्त
मंत्री का उच्च पद दिया| जहांगीर पर नूरजहाँ का प्रभाव होने से ईरानियों को उच्च पद प्राप्त
हुए| औरंगजेब ने राजपूतों को उच्च पद प्रदान किया| मराठों की भी अच्छी
खासी संख्या थी |
मुगल अभिजात वर्ग
- अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा
प्राप्त करने के एक जरिया थी|
सेवा में आने का इच्छुक व्यक्ति एक अभिजात के
जरिये याचिका देता था जो बादशाह के सामने तजवीज प्रस्तुत करता था|
- तजवीज
:यह एक अभिजात द्वारा बादशाह के सामने प्रस्तुत
की जाने वाली याचिका थी जिसमें किसी उम्मीदवार को मनसबदार के रूप में नियुक्त
करने की सिफारिश की जाती थी|
मुग़ल दरबार में प्रमुख मंत्री :
- मीरबख्शी (उच्चतम वेतनदाता): वह खुले दरबार में बादशाह के
दाएं ओर खड़ा होता था तथा नियुक्ति और पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को
प्रस्तुत करता था जबकि उसका कार्यालय उसकी मुहर व हस्ताक्षर के साथ-साथ
बादशाह की मुहर व् हस्ताक्षर वाले आदेश
तैयार करता था|
मुगल अभिजात वर्ग
मुग़ल दरबार में प्रमुख मंत्री :
- दीवान-ए-आला (वित्त मंत्री): इसे राजस्व एवं
वित्त का अधिभार दे दिया गया। यह भू-राजस्व का आकलन एवं उसकी वसूली का
निरीक्षण करता था। वह उससे संबंधित हिसाब की जाँच भी करता था। उसके कायों के
सहायता करने के लिए उसके अंतर्गत बहुत से अधिकारी थे | उदाहरण के लिए-
- दीवान-ए-खालसा – खालसा भूमि का
निरीक्षण
- दीवान-ए-तन – नगद वेतन से
संबंधित
- दीवान-ए-जागीर – जागीर भूमि का
निरीक्षण
- दीवान-ए-वयुतत –
राजकीय कारखानों का निरीक्षण
- शाहीद-ए-तौजिन – सैनिक लेख का
प्रभारी
- मुशरिफ-ए-खजाना – खजांची
दीवान के पद के महत्त्व को कम करने के
लिए एक से अधिक दीवानों की भी नियुक्ति की जाती थी। कभी-कभी तो दीवानों की संख्या 10 तक पहुँच जाती थी।
मुग़ल दरबार में प्रमुख मंत्री :
- सद्र-उस-सुदूर - यह बादशाह का
मुख्य धार्मिक परामर्शदाता होता था। यह धार्मिक अनुदानों को नियंत्रित करता
था। साथ ही यह धार्मिक मामलों से सम्बन्धित मुकदमें भी देखता था। शाहजहाँ के
शासनकाल में काजी एवं मुख्य सद्र के पद एक ही व्यक्ति को दिए जाते थे। किंतु
औरंगजेब के शासन-काल में मुख्य काजी एवं मुख्य सद्र के पद को अलग-अलग कर दिया
गया।
ये तीनों मन्त्रे कभी-कभी इकट्ठे एक सलाहकार निकाय के रूप में काम
करते थे लेकिन ये एक दूसरे से स्वतंत्र होते थे| अकबर ने इन तथा अन्य सलाहकारों के साथ
मिलकर साम्राज्य की प्रशासनिक,
राजकोषीय व मौद्रिक संस्थाओं को आकार
प्रदान किया|
- तैनात-ए-रकाब : दरबार में
नियुक्त अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था जिसे किसी भी प्रांत या सैन्य
अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था| वे प्रतिदिन दो बार सुबह व शाम
को सार्वजनिक सभा-भवन में बादशाह के प्रति आत्मनिवेदन करने के कर्तव्य से
बंधे थे| दिन-रात बादशाह और उसके घराने की सुरक्षा की जिम्मेदारी
भी वे उठाते थे|
मनसबदारी
वयवस्था
·
चंगेज खान ने अपनी सेना का गठन दशमलव पद्वति पर किया था| उसकी सेना की सबसे छोटी इकाई 10 एवं बड़ी इकाई 10000 थी | भारत में मुग़ल बादशाह अकबर ने भी 1575 में मनसबदारी प्रथा में इसी दशमलव
पद्वति को अपनाया |
· जात एवं सवार : मनसबदार को दो पद जात एवं सवार प्रदान किये जाते थे| ब्लाकमैन के अनुसार एक मनसबदार को अपने पास जितने सैनिक रखने पड़ते थे, वह “जात” का सूचक था| वह जितने घुड़सवार रखता था ,”सवार “ का सूचक था |
· 17वीं सदी में 1,000 या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार अभिजात (उमरा जो कि अमीर का बहुवचन है) कहे गए|
· 1611 में जहांगीर ने शाहजहाँ को 10,000/5,000 का मनसब दिया था अर्थात उसके
पास 10,000 सैनिक एवं 5,000 घुड़सवार रहते थे|
मनसबदारों के
कार्य
1. सैन्य अभियानों में ये अभिजात अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे तथा प्रान्तों में वे साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में भी कार्य करते थे|
2. प्रत्येक सैन्य कमांडर घुड़सवारों को भर्ती करता था ,उन्हें हथियारों आदि से लैस करता था और उन्हें प्रशिक्षण देता था|
3. घुड़सवार सिपाही शाही निशान से पाशर्वभाग में दागे गए उत्कृष्ट श्रेणी के घोड़े रखते थे |
4. मनसबदार शासक की ओर से उसके प्रशासनिक और आर्थिक गतिविधियों
में भी सहयोग करते थे |
मनसबदारी
व्यवस्था के गुण
1.
मनसबदारी व्यवस्था से शासक को सैन्य संगठन करने से छुटकारा मिल
गयी| जब भी शासक
को सैन्य सेवा की आवश्यकता होती , मनसबदार पूरा करते |
2. इस व्यवस्था से प्रशासनिक खर्च में कमी आयी और सैन्य एवं असैन्य विभागों में योग्य व्यक्तियों की सेवा प्राप्त हुई|
3. इस व्यवस्था ने एक नए अभिजात वर्ग को जन्म दिया जो उच्च पद प्राप्त करने के लिए बादशाह के प्रति वफादार होता था|
4. मनसबदारी व्यवस्था ने मुग़ल साम्राज्य को विस्तार देने और
एकजूट करने में सहायक सिद्व हुआ |
5. मनसबदार कला और साहित्य के संरक्षक थे| इस व्यवस्था से सांस्कृतिक उत्थान में मदद मिली |
मनसबदारी
व्यवस्था के दोष
1.
सामान्य तौर पे, मनसबदार दिए गए संख्या से कम जात
और सवार रखते थे| निरीक्षण के
दौरान सैनिकों और सवारों को किराए पर लाते थे|
2. इस व्यवस्था से मुग़ल सेना कभी भी बादशाह के प्रति लगाव उत्पन्न नहीं कर सका|
3. मुग़ल सेना इस व्यवस्था के कारण कभी भी राष्ट्रीय सेना के रूप नहीं ले सकी |
4. बहुत सारे मनसबदार एकजूट होकर लड़ने में नाकाम रहे जिससे दुश्मन को लाभ मिला |
5. इस व्यवस्था में सैन्य और असैन्य सेवाओं को मिला दिया गया जिससे प्रशासनिक और सैन्य दक्षता का पर्याप्त विकास नहीं हुआ|
6. मनसबदारी व्यवस्था ने अभिजात वर्ग को विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया|
इन दोषों के बावजूद मनसबदारी व्यवस्था मुग़ल साम्राज्य का आधार था| साम्राज्य
को स्थायित्व और एकीकृत करने में सफल रहा|
मुगलकालीन
सूचना व्यवस्था
मीर
बख्शी दरबारी लेखकों (वाकिया नवीस ) के समूह का निरीक्षण करता था| ये लेखक ही दरबार में प्रस्तुत
किये जाने वाले सभी अर्जियों व दस्तावेजों तथा सभी शासकीय आदेशों (फरमान) का आलेख
तैयार करते थे|
इसके अतिरिक्त अभिजातों और क्षेत्रीय शासकों के प्रतिनिधि (वकील ) दरबार
की बैठकों (पहर) की तिथि और समय के साथ “उच्च दरबार से समाचार” (अखबारात-ए-दरबार-ए-मुअल्ला ) शीर्षक के अंतर्गत दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करते थे|
अखबारात में हर तरह की सूचनाएं होती है जैसे दरबार में उपस्थिति, पदों,और पदवियों का दान, राजनयिक शिष्टमंडलों , ग्रहण किये गए उपहारों अथवा किसी अधिकारी के स्वास्थ्य के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन का इतिहास लिखने के लिए यह सूचनाएं उपयोगी होती है|
मुग़ल
प्रांतीय प्रशासन
मुग़ल
साम्राज्य प्रान्तों (सूबों) में विभाजित्त था| प्रांतीय शासन प्रमुख गर्वनर
(सूबेदार) होता था जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था|
प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बंटा था | सरकार का प्रमुख फौजदार कहलाता था | अक्सर सरकार की सीमाएं फौजदारों के नीचे आने वाले क्षेत्रों की सीमाओं से मेल खाती थी | इन इलाकों में फौजदारों को विशाल घुड़सवार फ़ौज और तोपचियों के साथ रखा जाता था|
सरकार परगना में विभाजित था| परगना का प्रमुख शिकदार कहलाता था| परगना स्तर पर स्थानीय प्रशासन की एख-रेख कानूनगो (राजस्व आलेख का रखनेवाला ), चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी) और काजी (न्याय अधिकारी) द्वारा की जाती थी|
मुग़ल
प्रांतीय प्रशासन
नगर के
शासन का प्रधान कोतवाल होता था| गाँव का प्रधान ग्राम प्रधान कहलाता था जिसे खुत या मुकदम
कहा जाता था|
शासन के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों का एक बड़ा सहायक समूह, लेखाकार, लेखा-परीक्षक, संदेशवाहक और अन्य कर्मचारी होते थे जो तकनीकी रूप से दक्ष अधिकारी थे| ये मानकीकृत नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार कार्य करते तथा तथा प्रचुर संख्या में लिखित आदेश व वृतांत तैयार करते थे|
प्रशासन की मुख्य भाषा फ़ारसी था | ग्राम- लेखा के लिए स्थानीय भाषाओं का प्रयोग होता था|मुग़ल इतिहासकारों ने प्राय: बादशाह और उसके दरबार को ग्राम स्तर तक के सम्पूर्ण प्रशासनिक तन्त्र का नियंत्रण करते हुए प्रदर्शित किया है|
स्थानीय जमींदारों और मुग़ल साम्राज्य के प्रतिनिधियों के बीच संसाधनों और सत्ता के बंटबारों को लेकर संघर्ष भी होता था |
मुगल
साम्राज्य का अन्य देशो के साथ सम्बन्ध
मुग़ल
बादशाह अपनी साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए भरसक यह प्रयास करते कि
अफगानिस्तान को ईरान व मध्य एशिया के क्षेत्रों से पृथक करने वाले हिन्दुकुश
पर्वतों द्वारा निर्धारित सीमा पर नियन्त्रण बरकरार रहे| क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप में
आने वाले सभी विजेताओं को उतर भारत तक पहुँचने के लिए हिन्दुकुश को पार करना होता
था | मुग़ल
नीति का यह प्रयास रहा कि सामरिक महत्व की चौकियों विशेषकर काबुल और कंधार पर
नियन्त्रण कायम रहे ताकि इस सम्भावित खतरे से बचाव किया जा सके |
कंधार पर नियन्त्रण हेतु मुगलों और सफावियों दोनों संघर्षरत थे | कंधार हुमायूं के अधिकार में था | जिसे 1595 में अकबर पुन: जीत लिया | 1622 में सफावियों ने कंधार को
मुगलों से जीत लिया |
ओटोमन
साम्राज्य के साथ मुगलों ने अपने सम्बन्ध इस स्तर तक थे की व्यापारियों और तीर्थ
यात्रियों के स्वतंत्र आवागमन को बरकरार रखवा सके| इस मार्ग से ही मक्का और मदीना
जैसे तीर्थ स्थल जुड़े थे | मुग़ल
बादशाह लाल सागर के बंदरगाह अदन और मोखा को बहुमूल्य वस्तुओं के निर्यात को
प्रोत्साहन देता था और इनकी बिक्री से अर्जित आय को उस इलाके के धर्मस्थलों व्
फकीरों में दान में बात देता था | हालांकि
औरंगजेब को जब अरब भेजे जाने वाले धन के दुरूपयोग का पता चला तो उसने भारत में उसके वितरण
का समर्थन किया क्योंकि उसका मानना था कि “ यह भी वैसा ही ईश्वर का घर है
जैसा कि मक्का “|
मुग़ल दरबार
में जेसुइट धर्म प्रचारक
16
वीं
शताब्दी के दौरान भारत आने वाले जेसुइट शिष्टमंडल ईसाई धर्म प्रचार, व्यापार और साम्राज्य निर्माण
की प्रक्रिया का हिस्सा थे|
अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने को बहुत उत्सुक था| उसने जेसुइट पादरियों को
आमंत्रित करने के लिए एक दुतमंडल गोवा भेजा| पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेहपुर
सीकरी के मुग़ल दरबार में 1580 में पहुँचा जिसमें फादर एक्वैविवा और अंटोनी मान्सेरेट शामिल थे और वह वहां लगभग दो वर्ष रहा| इस जेसुइट लोगों ने ईसाई धर्म के विषय में अकबर से बात की और उसके सदगुणों के विषय में उलमा से उनका वाद-विवाद हुआ| लाहौर के मुग़ल दरबार में दो और शिष्टमंडल 1591 और 1595 में भेजे गए|
सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों को अकबर के सिंहासन के काफी नजदीक स्थान दिया| वे उसके साथ अभियानों में जाते,उसके बच्चों को शिक्षा देते तथा
उसके फुरसत के समय में वे अकसर साथ होते थे|फादर मान्सेरेट ने अपने अनुभवों का विवरण लिखते हुए कहता है :
उससे (अकबर से) भेंट करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए उसकी पहुँच कितनी सुलभ है इसके बारे में अतिश्योक्ति करना कठिन है| लगभग प्रत्येक दिन वह ऐसा अवसर
निकालता है कि कोई भी आम आदमी अथवा अभिजात उससे मिल सके और बातचीत कर सके| उससे जो भी बात करने आता है उन सभी के प्रति कठोर न होकर वह स्वयं को मधुर भाषी और मिलनसार दिखाने का प्रयास करता है| उसे उसकी प्रजा के दिलो दिमाग से जोड़ने में इस शिष्टाचार और भद्रता का बड़ा असाधारण प्रभाव है |
औपचारिक धर्म
पर प्रश्न उठाना
दार्शनिक व्
धार्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करने के लिए अकबर ने फतेहपुर सीकरी में 1575 में इबादतखाना का निर्माण कराया |
1579 में अकबर ने महजर की घोषणा की| इसके द्वारा किसी भी विवाद पर अकबर
की राय ही अंतिम राय होगी|
अकबर के धार्मिक विचार, विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के विद्वानों से प्रश्न पूछने और उनके धर्म-सिद्वान्तों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने से, परिपक्व हुए| धीरे-धीरे वह धर्मों को समझने के रूढ़ीवादी तरीकों से दूर प्रकाश और सूर्य पर केन्द्रित दैवीय उपासना के स्व-कल्पित विभिन्न दर्शन ग्राही रूप की और बढ़ा |
मुगलकालीन चित्रकला
मुग़ल बादशाह बाबर,हुमायूं, अकबर एवं जहांगीर को चित्रकला में विशेष रुचि थी | हुमायूं फारस से अपने साथ मीर सैयद अली एवं ख्वाजा अब्दुसमद को लाया|अकबर के समय अब्दुसमद,सैयद अली, दसवंत,वसावन,हरिवंश आदि चित्रकार थे| दसवंत प्रसिद्व चित्रकार था जिसकी कृति “रज्मनामा” थी| जहांगीर के दरबार में विशनदास, मुराद,मंसूर, मनोहर एवं गोवर्धन प्रमुख चित्रकार थे| जहांगीर चित्रकला का इतना बड़ा पारखी था की वह चित्र देखकर बता सकता था कि इस चित्र में कौन-कौन सा भाग किस चित्रकार द्वारा बनाया गया है|
शाहजहाँ के काल में मीर हाशिम , अनूप प्रमुख चित्रकार था औरंगजेब के समय चित्रकला का पतन हो गया| मधुर लेखनी के कारण अब्दुसमद को शीरी कलम एवं मुहम्मद हुसैन कश्मीरी को जर्री कलम की उपाधि से विभूषित किया गया था|
शासक और इतिवृत: प्रश्न -उत्तर
1. सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों में मुगलों द्वारा भारत में बनाए गए शहरों के किन्ही दो चारित्रिक लक्षणों का उल्लेख कीजिये | cbse 2019
उत्तर: शहरों के दो चारित्रिक लक्षण निम्नलिखित है :-
1. शहरों की विशाल इमारतें अपनी शहरी भव्यता और समृद्वि के लिए प्रसिद्व थी |
2. मुग़ल शहर शाही प्रशासन और नियन्त्रण में थी | इसमें अवस्थित आवास व्यक्ति की स्थिति और प्रतिष्ठा का प्रतीक था |
2. “ अकबर ने सोच-समझकर फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया |” इस कथन की परख उसके द्वारा किये गए प्रयासों के साथ कीजिये | CBSE 2019
उत्तर:
* फारसी को दरबार की भाषा का उंचा स्थान दिया गया तथा उन लोगों को शक्ति और प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनकी इस भाषा पर अच्छी पकड़ थी |
* ईरानी और मध्य एशियाई प्रवासियों को मुगल दरबार में जगह दी गई |
* यह अभिजात वर्ग की भाषा थी |
* राजा, शाही परिवार के लोग और दबार के विशिष्ट सदस्य यह भाषा बोलते थे |
* यह प्रशासन के अभी स्तरों की भाषा बन गई, जिससे लेखाकारों, लिपिकों तथा एनी अधिकारियों ने ही इसे सीख लिया |
* फारसी के हिन्दी के साथ पारस्परिक सम्बन्ध से उर्दू के रूप में एक नई भाषा का विकास हुआ |
३. “ मुग़ल शक्ति का सुपष्ट केंद्र बादशाह का दरबार था |” उपयुक्त तर्कों के साथ इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए | CBSE 2019
उत्तर: मुग़ल शक्ति का स्पष्ट केंद्र बादशाह का दरबार था | इसे निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है |
* बादशाह के दरबार की भौतिक व्यवस्था शासक पर केन्द्रित थी और राज सिंहासन इसका केंद्र-बिंदु था
* राजगद्दी के ऊपर छतरी राजसत्ता का प्रतीक था |
दरबारियों को, मुग़ल दरबार में बैठने का विशिष्ट स्थान शासक की निगाहों में उनके महत्व के अनुसार सौंपा गया था |
* किसी भी दरबारी को बादशाह के अनुमति के अपने आवंटित स्थान से जाने की अनुमति नहीं थी |
* संबोधन, शिष्टाचार और बोलने के ध्यानपूर्वक निर्धारित रूप से निर्दिष्ट किये गए थे , उल्लंघन करने पर दंड दिया जाता था |
* अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में एक व्यक्ति की हैसियत का संकेत दिया जाता था |
* राजनयिक दूतों सबंधी नवाचारों का कडाई से पालन किया जाता था |
* राजा द्वारा अभिजात वर्ग और अन्य लोगों को दरबार में पुरस्कार और उपहार दिए जाते थे।
* राजा दरबार में विभिन्न देशों के राजदूतों के साथ मिलता था।
* मनसबदार मुगल दरबार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे।
* राजनीतिक प्रणाली मुगल दरबार द्वारा तैयार की गई थी ।
* सैन्य शक्ति की शाही संरचना को मुगलों द्वारा तैयार की गई थी।
4. भारत में मुगल शासकों द्वारा अभिजात –वर्ग में विभिन्न जातियों और धार्मिक समूहों के लोगों की भर्ती क्यों की जाती थी ? व्याख्या कीजिये CBSE 2018
उत्तर:
* मुग़ल शासक को यह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके \
* मुगलों के अधिकारी वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था हो वफादारी से बादशाह के साथ जुड़े थे |
* साम्राज्य के निर्माण के आरंभिक चरण में तूरानी और इरानी अभिजात वर्ग की प्रधानता थी परन्तु समय-समय पर विद्रोह कर देते थे |
* 1560 के बाद अकबर ने भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों राजपूतों और भारतीय मुसलमानों को शामिल किया |
* जहांगीर ने इरानी समूहों को प्राथमिकता दी तो औरंगजेब ने राजपूतों और बाद में मराठों को शामिल किया |
* अभिजात वर्ग के सभी राजपूत , ईरानी , तूरानी , अफगानी , दक्षिणी मुसलमानों को पद और पुरस्कार उसके कार्य और बादशाह के प्रति निष्ठा के आधार पर दिया जाता था |
* अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति , धन और उच्चतम पद प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक माध्यम था |
* सैन्य अभियानों में अभिजात अपनी सेना के साथ भाग लेते थे और प्रान्तों में वे साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में कार्य करते थे |
* मुगलों ने दबार में समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर अपने शासनकाल को अत्यधिक माजबूत किया और कई वर्षो तक शासन किया |
5. मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका की व्याख्या कीजिये | CBSE 2018
उत्तर - शाही परिवार
• 'हरम' शब्द फारसी से निकला है जिसका मतलब है 'पवित्र स्थान' । मुगुल परिवारों की घरेलू दुनिया में उनकी औरतों और बच्चों आदि के लिए 'हरम' शब्द का इस्तेमाल होता था। इसमें बादशाह की पत्नियां तथा उपपत्नियाँ, उसके करीबी तथा दूर के रिश्तेदार (माता, सौतेली तथा उपमाताएं, बहन, बहू, पुत्री, चाची-मौसी, बच्चे आदि) तथा महिला परिचारिकाएं औ दास होते थे ।
• मुगल परिवार में शाही परिवारों से आने वाली औरतों (बेगमों ) तथा दूसरी स्त्रियों (अगहा ) जिनका जन्म कुलीन परिवार में नहीं हुआ था, में फर्क रखा जाता था। दहेज (मेहर) के तौर पर अच्छा-ख़ासा नकद और बहुमूल्य वस्तुएं लेने के पश्चात विवाह करके आई बेगमों को अपने पतियों से स्वाभाविक तौर पर अगहाओं की तुलना में ज्यादा ऊँचा दर्जा और आदर मिलता था। राजतंत्र से जुड़े स्त्रियों के पदानुक्रम में उपपत्नियों (अगाचा) की स्थिति सर्वाधिक निम्न थी। इन सभी को नकद मासिक भत्ता और अपने दर्जे के अनुसार उपहार मिलते थे। वंश आधारित परिवारिक ढांचा पूर्णतः स्थाई नहीं था। अगर पति की मर्जी हो और उसके पास पहले से ही 4 पत्नियां न हो तो अगहा व अगाचा भी बेगम की स्थिति पा सकती थी।
• पत्नियों के अलावा मुगल परिवार में कई महिला और पुरुष दास होते थे। वे साधारण से साधारण कार्य से लेकर निपुणता, कौशल, बुद्धिमत्ता के विभिन्न कार्यों का संपादन करते थे । दास हिजड़े (ख्वाजासार ) परीवार के अंदर और बाहर के जीवन में रक्षक, दास और व्यापार में दिलचस्पी लेने वाली स्त्रियों के एजेंट होते थे।
शाही परिवार में महिलाओं की भूमिका
• मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों, जैसे नूरजहां, रोशनआराऔर गुलबदन बेगम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
• नूरजहां ने जहांगीर के शासनकाल में शासन प्रबंध में भाग लिया।
• उसके पश्चात मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियंत्रण शुरू कर दिया।
• शाहजहां की पुत्रियों, जहांआरा और रोशनआरा को ऊँचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय प्राप्त होती थी।
• जहाँआरा को सूरत के बंदरगाह नगर से राजस्व प्राप्त होता था। यह नगर विदेशी व्यापार का एक लाभप्रद केन्द्र था।
• मुगल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहांनाबाद (दिल्ली) के हृदय स्थल चांदनी चौक की रूपरेखा तैयार की थी।
• जहांआरा की वास्तुकलात्मक परियोजनाओं का एक अन्य उदाहरण दो मंजिली भव्य कारवांसराय शामिल थी जिसमें एक आंगन और एक बाग था।
• बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम द्वारा हुमायूँनामा लिखा गया जिससे मुगलों के घरेलू जीवन की जानकारी प्राप्त होती है। अबुल फजल ने मुगलों का इतिहास लिखते समय इस कृति का लाभ उठाया।
6. आप किस प्रकार सोचते है कि मुग़ल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत मुग़ल इतिहास के अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत है ? CBSE 2017
Ans: मुगल इतिहास के अध्ययन के लिए एक स्रोत के रूप में इतिहास
(i) मुगल शासन के इतिहास का अध्ययन करने के लिए इतिहास महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
(ii) उन्हें एक प्रबुद्ध राज्य की दृष्टि को प्रोजेक्ट करने के लिए लिखा गया था, जो इसकी छत्रछाया में आया था।
(iii) वे मुगल शासन का विरोध करने वालों को संदेश देने के लिए थे।
(iv) शासक यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके शासन के बाद का लेखा-जोखा हो।
(v) उनके द्वारा लिखे गए इतिहास शासक, उनके परिवार, अदालतों और रईसों, युद्धों और प्रशासनिक व्यवस्था पर केंद्रित घटनाओं पर केंद्रित थे।
(vi) अकबर- नामा, शाहजहांनामा, आलमगीर नामा का सुझाव है कि उनके लेखकों की नजर में साम्राज्य और अदालत का इतिहास सम्राट के समान था।
7. मुग़ल शासकों ने बड़े प्रभावशाली तरीके से विजातीय जनसाधारण को शाही संरचना के अंतर्गत सम्मिलित किया “| इस कथन की पुष्टि कीजिये | 2016
उत्तर:
* मुग़ल शासक को यह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके \
* मुगलों के अधिकारी वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था हो वफादारी से बादशाह के साथ जुड़े थे |
* साम्राज्य के निर्माण के आरंभिक चरण में तूरानी और इरानी अभिजात वर्ग की प्रधानता थी परन्तु समय-समय पर विद्रोह कर देते थे |
* 1560 के बाद अकबर ने भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों राजपूतों और भारतीय मुसलमानों को शामिल किया |
* जहांगीर ने इरानी समूहों को प्राथमिकता दी तो औरंगजेब ने राजपूतों और बाद में मराठों को शामिल किया |
* अभिजात वर्ग के सभी राजपूत , ईरानी , तूरानी , अफगानी , दक्षिणी मुसलमानों को पद और पुरस्कार उसके कार्य और बादशाह के प्रति निष्ठा के आधार पर दिया जाता था |
* अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति , धन और उच्चतम पद प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक माध्यम था |
* सैन्य अभियानों में अभिजात अपनी सेना के साथ भाग लेते थे और प्रान्तों में वे साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में कार्य करते थे |
* मुगलों ने दबार में समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर अपने शासनकाल को अत्यधिक माजबूत किया और कई वर्षो तक शासन किया |
* मुगल शासकों ने शिक्षा और लेखाशास्त्र की ओर झुकाव रखने वाले हिन्दू जातियों के सदस्यों को शाही दरबार में शामिल किया |
* टोडरमल , बीरबल, प्रमुख उदाहरण है |
8. सटीक और विस्तृत आलेख तैयार करना , मुग़ल प्रशासन की मुख्य चुनौती थी | उदाहरण के साथ कथन की पुष्टि कीजिये | 2016
उत्तर:
* सटीक और विस्तृत आलेख तैयार करना मुग़ल प्रशासन के लिए आवश्यक था क्योंकि वृतांत और महत्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज शाही डाक के माध्यम से मुग़ल शासन के अधीन क्षेत्रों में एक छोर से दूसरे छोर तक जाते थे |
* राजधानी से बाहर तैनात अभिजातों के प्रतिनिधि तथा अदीनस्थ शासक बड़े मनोयोग से इन उदघोषणाओं की नकल तैयार करते थे एवं संदेश वाहकों के जरिये अपनी टिप्पणियां अपने स्वामियों के पास भेज देते थे |
* सार्वजनिक समाचार के लिए पूरा साम्राज्य एक तीव्र सूचना तंत्र से जुड़ा हुआ था |
* मीरबख्शी दरबारी लेखकों के समूह का निरीक्षण करते थे |
* ये लेखक ही दरबार में प्रस्तुत की जाने वाले सभी अर्जियों, दस्तावेजों तथा शासकीय आदेशों का आल्लेख तैयार करते थे |
9. मुग़ल साम्राज्य के शाही परिवार के विशिष्ट अभिलक्षणों की पहचान कीजिये 2015.
उत्तर - शाही परिवार
• 'हरम' शब्द फारसी से निकला है जिसका मतलब है 'पवित्र स्थान' । मुगुल परिवारों की घरेलू दुनिया में उनकी औरतों और बच्चों आदि के लिए 'हरम' शब्द का इस्तेमाल होता था। इसमें बादशाह की पत्नियां तथा उपपत्नियाँ, उसके करीबी तथा दूर के रिश्तेदार (माता, सौतेली तथा उपमाताएं, बहन, बहू, पुत्री, चाची-मौसी, बच्चे आदि) तथा महिला परिचारिकाएं औ दास होते थे ।
• मुगल परिवार में शाही परिवारों से आने वाली औरतों (बेगमों ) तथा दूसरी स्त्रियों (अगहा ) जिनका जन्म कुलीन परिवार में नहीं हुआ था, में फर्क रखा जाता था। दहेज (मेहर) के तौर पर अच्छा-ख़ासा नकद और बहुमूल्य वस्तुएं लेने के पश्चात विवाह करके आई बेगमों को अपने पतियों से स्वाभाविक तौर पर अगहाओं की तुलना में ज्यादा ऊँचा दर्जा और आदर मिलता था। राजतंत्र से जुड़े स्त्रियों के पदानुक्रम में उपपत्नियों (अगाचा) की स्थिति सर्वाधिक निम्न थी। इन सभी को नकद मासिक भत्ता और अपने दर्जे के अनुसार उपहार मिलते थे। वंश आधारित परिवारिक ढांचा पूर्णतः स्थाई नहीं था। अगर पति की मर्जी हो और उसके पास पहले से ही 4 पत्नियां न हो तो अगहा व अगाचा भी बेगम की स्थिति पा सकती थी।
• पत्नियों के अलावा मुगल परिवार में कई महिला और पुरुष दास होते थे। वे साधारण से साधारण कार्य से लेकर निपुणता, कौशल, बुद्धिमत्ता के विभिन्न कार्यों का संपादन करते थे । दास हिजड़े (ख्वाजासार ) परीवार के अंदर और बाहर के जीवन में रक्षक, दास और व्यापार में दिलचस्पी लेने वाली स्त्रियों के एजेंट होते थे।
शाही परिवार में महिलाओं की भूमिका
• मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों, जैसे नूरजहां, रोशनआराऔर गुलबदन बेगम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
• नूरजहां ने जहांगीर के शासनकाल में शासन प्रबंध में भाग लिया।
• उसके पश्चात मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियंत्रण शुरू कर दिया।
• शाहजहां की पुत्रियों, जहांआरा और रोशनआरा को ऊँचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय प्राप्त होती थी।
• जहाँआरा को सूरत के बंदरगाह नगर से राजस्व प्राप्त होता था। यह नगर विदेशी व्यापार का एक लाभप्रद केन्द्र था।
• मुगल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहांनाबाद (दिल्ली) के हृदय स्थल चांदनी चौक की रूपरेखा तैयार की थी।
• जहांआरा की वास्तुकलात्मक परियोजनाओं का एक अन्य उदाहरण दो मंजिली भव्य कारवांसराय शामिल थी जिसमें एक आंगन और एक बाग था।
• बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम द्वारा हुमायूँनामा लिखा गया जिससे मुगलों के घरेलू जीवन की जानकारी प्राप्त होती है। अबुल फजल ने मुगलों का इतिहास लिखते समय इस कृति का लाभ उठाया।
10. मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। NCERT
उत्तर -
• पांडुलिपि अर्थात हाथ से लिखी पुस्तकें तैयार करने का मुख्य केंद्र शाही किताबखाना (पुस्तकालय) था जोकि एक लिपि घर या ऐसा स्थान था जहां पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था तथा नई पांडुलिपियाँ लिखी जाती थी।
• पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया निम्नलिखित थी-
• कागज बनाने वाले की पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने;
• सुलेखक की पाठ की नकल तैयार करने;
• कोफ्तगर को पृष्ठों को चमकाने;
• इनके अलावा चित्रकारों की पाठ से दृश्यों को चित्रित करने के लिए और ज़िल्दसाजों की प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा करने उसे अलंकृत आवरण में बैठाने के लिए आवश्यकता होती थी।
11. राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्वों की पहचान कीजिए। NCERT
उत्तर - राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले मुख्य तत्व तीन थे -
1. बादशाह एक दैवीय प्रकाश
2. सुलह-ए-कुल -एकीकरण का एक स्रोत
3. सामाजिक अनुबंध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता
बादशाह एक दैवीय प्रकाश
*. दरबारी इतिहासकारों के अनुसार मुगल शासकों को सीधे ईश्वर से शक्ति मिली थी। उनके द्वारा वर्णित दंत कथाओं के अनुसार मंगोल रानी अलानकुआ अपने शिविर में आराम करते हुए सूर्य की एक किरण द्वारा गर्भवती हुई थी। उसके द्वारा जन्म लेने वाली संतान पर दिव्य प्रकाश का प्रभाव था। इस प्रकार पीढी दर पीढ़ी यह प्रकाश हस्तांतरित होता गया।
*. अबुल फजल ईश्वर से निःसृत प्रकाश को ग्रहण करने वाली वस्तुओं में मुगल राजत्व को सबसे प्रथम स्थान पर रखता है। इसके अंतर्गत दैवीय प्रकाश राजा में संप्रेषित होता है जिसके बाद राजा अपनी प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।
*. इसके साथ कलाकारों ने मुगल बादशाहों को प्रभामंडल के साथ चित्रित करना शुरू कर दिया। ईश्वर के प्रकाश के प्रतीक रूप में इन प्रभामण्डलों को उन्होंने ईसा और वर्जिन मेरी यूरोपीय चित्रों में देखा था।
सुलह-ए-कुल : एकीकरण का स्रोत
* मुगल इतिवृत्त साम्राज्य को हिंदुओं, जैनों, जरतुश्तियोंऔर मुसलमानों जैसे अनेक भिन्न-भिन्न नृजातीय और धार्मिक समुदायों को समाविष्ट किए हुए साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं ।
* सभी तरह की शांति और स्थायित्व के स्रोत के रूप में बादशाह सभी धार्मिक और नृजातीय समूहों के ऊपर होता था। वह इन सबके बीच मध्यस्थता करता था, तथा यह सुनिश्चित करता था कि न्याय और शांति बनी रहे।
* अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्णशांति ) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता है।
* सुलह-ए-कुल में सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे सब राज्यसत्ता को क्षति नहीं पहुंचाएंगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।
सुलह ए कुल का आदर्श राज्य नीतियों के द्वारा लागू किया गया -
* मुगलों के अधीन अभिजात-वर्ग मिश्रित था। उसमें ईरानी, तुरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी सम्मिलित थे।
इन सब को दिए गए पद और पुरस्कार पूरी तरह राजा के प्रति उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित थे।
1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया कर हटा दिया गया क्योंकि यह धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे।
* साम्राज्य के अधिकारियों को प्रशासन में सुलह-ए-कुल के नियमों का अनुपालन करने के लिए निर्देश दिए गए।
* सामाजिक अनुबंध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता
अबुल फजल के अनुसार प्रभुसत्ता एक सामाजिक अनुबंध का रूप है व बादशाह प्रजा के चार तत्वों जीवन, धन, सम्मान और विश्वास की रक्षा करता है और बदले में आज्ञा पालन व संसाधनों में भाग की मांग करता है।
मुगल काल में न्याय के विचार को कई प्रतीकों द्वारा जैसे शेर और बकरी को एक दूसरे के साथ चिपककर शांतिपूर्वक बैठे हुए दर्शाया गया है।
12. मुगल शासकों ने विभिन्न जातीय और धार्मिक समूहों से जानबूझकर भर्ती किया था। sample paper
ANSWER:
मुगल शासकों ने मुगल शासकों को सचेत रूप से भर्ती किया था:
i) मुगल कुलीनता मुगल राज्य के मुख्य स्तंभ थे
ii) मुगल कुलीनता को विभिन्न समूहों से चुना गया था, धार्मिक और जातीय दोनों रूप से ताकि विभिन्न समूहों के बीच शक्ति का संतुलन सुनिश्चित हो सके।
iii) उन्हें मुगल बादशाह के प्रति निष्ठा के साथ आयोजित उनकी एकता को दर्शाने वाले आधिकारिक इतिहास में गुलदस्ता या फूलों का गुलदस्ता बताया गया है।
iv) उन्हें जातीय रूप से चार प्रमुख समूहों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे कि ईरानी, तुरानी, राजपूत और शेखजाद या भारतीय मुसलमान।
v) सभी रईसों को स्थान दिया गया था या उन्हें जट और सायर से युक्त मनसब आवंटित किए गए थे
vi) बादशाहों को सम्राट के लिए सैन्य सेवा करने की भी आवश्यकता थी
13. 16वीं और 17 वीं सदियों के कृषि इतिहास को समझाने में एतिहासिक ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी ‘ किस प्रकार एक प्रमुख स्रोत है , व्याख्या कीजिये | इसके साथ इस काल में प्रयुक्त सिंचाई और तकनीक के तरीकों को भी स्पष्ट कीजिये |
उतर:
1. अबुल फजल द्वारा रचित एतिहासिक ग्रन्थ " आइन-ए-अकबरी ' में मुग़ल कालीन भूराजस्व और कृषि संबंधी जानकारी मिलती है |
2. आइन-ए-अकबरी से यह जानकारी मिलती है कि मुग़ल काल में खरीफ और रबी दोनों प्रकार की फसल उपजाई जाती थी |
3. इस काल में जहां पानी की वर्ष भर उपलब्धता थी वहां पर वर्ष में तीन फसलें उगाई जाती थी |
4. आइन-ए-अकबरी से पता चलता है कि आगरा में 39 किस्म की फसलें , दिल्ली में 43 फसलें उगाई जाती थी |
5. बंगाल में चावल की पैदावार अधिक होती थी |यहाँ 50 किस्म की धान की फसलें पैदा होती थी |
6. फसलों की सिचाईं के लिए कुँए , तालाब, रहट तथा नहर का प्रयोग होता था |
7. मुग़ल काल में कई नहरे भी बनवाई गई | कुछ नहरों की रम्मत का कार्य भी सम्पन्न किया गया |
No comments:
Post a Comment
M. PRASAD
Contact No. 7004813669
VISIT: https://www.historyonline.co.in
मैं इस ब्लॉग का संस्थापक और एक पेशेवर ब्लॉगर हूं। यहाँ पर मैं नियमित रूप से अपने पाठकों के लिए उपयोगी और मददगार जानकारी शेयर करती हूं। Please Subscribe & Share