भगवान महावीर : जैन धर्म और दर्शन (भाग 1)
* जैन शब्द की उत्पति संस्कृत के "जिन " शब्द से हुई है ।
* "जिन" शब्द का अर्थ है "विजेता" अर्थात जिसने अपनी इन्द्रियों और विषय वासनाओं पर नियंत्रण कर आध्यात्मिक विजय प्राप्त की हो ।
* "जिन" का अर्थ है - जितेन्द्रिय ।
* जैन धर्म में जैन महात्माओं को "निग्रन्थ" कहा गया है । अर्थात - सांसारिक बन्धनों से मुक्त व्यक्ति / संत।
* जैन धर्म के संस्थापकों एवं प्रवर्तकों को "तीर्थंकर" कहा जाता है ।
* जैन अनुश्रुतियों के अनुसार जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर हुए है ।
* "ऋषभदेव" पहले , 23वें "पाश्र्वनाथ" , और 24वें व अंतिम तीर्थंकर "महावीर " हुए ।
* "पाश्र्वनाथ" काशी के क्षत्रिय राजा अश्वसेन के पुत्र थे । उसने जैन अनुयायियों के लिए चार सिद्वान्त बनाये
- अहिंसा, सत्य, अस्तेय(चोरी नही करना ) , और अपरिग्रह ( सम्पति का त्याग ) ।
* भगवान महावीर ने पाँचवाँ सिद्वान्त " ब्रहमचर्य" जोड़े ।
* वर्धमान महावीर का जन्म 540 ई0 पू0 वैशाली के कुण्डग्राम में हुआ था । इनके पिता सिद्धार्थ "ज्ञात्रांक कुल " के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी ।
* महावीर का विवाह यशोधरा से हुआ एवं इनकी पुत्री का नाम "प्रियदर्शिनी " था जिसका विवाह " जमाली " से हुआ , वह महावीर के प्रथम शिष्य हुए ।
* 30 वर्ष की आयु में अपने माता-पिता के मृत्यु के उपरांत अपने बड़े भाई " नन्दिवर्धन" के अनुमति से सन्यास ग्रहण किये।
* 12 वर्षों के कठिन तपस्या के बाद 42 वर्ष की आयु में "जुम्भिक" नामक स्थान के समीप " ऋजुपालिका नदी " के किनारे "साल वॄक्ष" के नीचे "कैवल्य(सर्वोच्च ज्ञान)" प्राप्त हुआ ।
* सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति और सांसारिक माया मोह के बंधनों से पूर्णतः छुटकारा पाने के बाद वर्धमान अब " अर्हत( पूजनीय) " , " केवलिन"(सर्वज्ञ)" , "निग्रन्थ( बन्धन रहित)" , " जिन (विजेता)" ," महावीर ( विषय-वासना से मुक्त )" कहलाए ।
* वर्धमान महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 468 ई0 पू0 बिहार के "पावापुरी" ( राजगीर) में हुआ ।
* "जिन" शब्द का अर्थ है "विजेता" अर्थात जिसने अपनी इन्द्रियों और विषय वासनाओं पर नियंत्रण कर आध्यात्मिक विजय प्राप्त की हो ।
* "जिन" का अर्थ है - जितेन्द्रिय ।
* जैन धर्म में जैन महात्माओं को "निग्रन्थ" कहा गया है । अर्थात - सांसारिक बन्धनों से मुक्त व्यक्ति / संत।
* जैन धर्म के संस्थापकों एवं प्रवर्तकों को "तीर्थंकर" कहा जाता है ।
* जैन अनुश्रुतियों के अनुसार जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर हुए है ।
* "ऋषभदेव" पहले , 23वें "पाश्र्वनाथ" , और 24वें व अंतिम तीर्थंकर "महावीर " हुए ।
* "पाश्र्वनाथ" काशी के क्षत्रिय राजा अश्वसेन के पुत्र थे । उसने जैन अनुयायियों के लिए चार सिद्वान्त बनाये
- अहिंसा, सत्य, अस्तेय(चोरी नही करना ) , और अपरिग्रह ( सम्पति का त्याग ) ।
* भगवान महावीर ने पाँचवाँ सिद्वान्त " ब्रहमचर्य" जोड़े ।
* वर्धमान महावीर का जन्म 540 ई0 पू0 वैशाली के कुण्डग्राम में हुआ था । इनके पिता सिद्धार्थ "ज्ञात्रांक कुल " के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी ।
* महावीर का विवाह यशोधरा से हुआ एवं इनकी पुत्री का नाम "प्रियदर्शिनी " था जिसका विवाह " जमाली " से हुआ , वह महावीर के प्रथम शिष्य हुए ।
* 30 वर्ष की आयु में अपने माता-पिता के मृत्यु के उपरांत अपने बड़े भाई " नन्दिवर्धन" के अनुमति से सन्यास ग्रहण किये।
* 12 वर्षों के कठिन तपस्या के बाद 42 वर्ष की आयु में "जुम्भिक" नामक स्थान के समीप " ऋजुपालिका नदी " के किनारे "साल वॄक्ष" के नीचे "कैवल्य(सर्वोच्च ज्ञान)" प्राप्त हुआ ।
* सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति और सांसारिक माया मोह के बंधनों से पूर्णतः छुटकारा पाने के बाद वर्धमान अब " अर्हत( पूजनीय) " , " केवलिन"(सर्वज्ञ)" , "निग्रन्थ( बन्धन रहित)" , " जिन (विजेता)" ," महावीर ( विषय-वासना से मुक्त )" कहलाए ।
* वर्धमान महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 468 ई0 पू0 बिहार के "पावापुरी" ( राजगीर) में हुआ ।
वर्धमान महावीर
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