Tuesday 5 November 2019

ब्राह्मण साहित्य

ब्राह्मण साहित्य


1. ब्राह्मण साहित्य में सबसे पुराना ग्रंथ ऋग्वेद को माना जाता है ऋग्वेद में आर्यों के धार्मिक सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का परिचय मिलता है ।

2. वेदों की संख्या चार हैं -ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और  अथर्ववेद ।

3. चारों वेदों का सम्मिलित रूप संहिता कहलाता है ।

4.ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं- ऐतरेय और कौषीतकि ।
ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद को माना गया है ।

क.  ऋग्वेद में ऋग्वेद में कूल 1028 सूक्त एवं 10500 मंत्र हैं  । यह 10 मंडलों में विभक्त है ।
ख.  गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है ।

5. ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम तथा कुछ प्राचीन राजाओं का उल्लेख है ।

6. कौषीतकि ब्रह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्रह्मण ग्रन्थ से पुराना प्रतीत होता है । इसमें अग्नि का उल्लेख है ।

7. यजुर्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं - शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ एवं तैत्तरीय ब्राह्मण ग्रन्थ ।  यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है । यजुर्वेद में यज्ञ एवं हवन संबंधी नियम विधान है ।

8. सामवेद का ब्राह्मण ग्रंथ - ताण्डय , पंचविश है । सामवेद का उपवेद गंधर्व वेद है । सामवेद में गीत गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है ।

9. अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रंथ - गोपथ है । अथर्ववेद का उपवेद शिल्प वेद है । अथर्ववेद में तन्त्र-मन्त्र , जादू-टोना एवं आयुर्वेदिक औषधियों का विवरण मिलता है ।

10.  आरण्यक  ब्राह्मण ग्रंथों के अंतिम भाग है जिसमें दार्शनिक एवं रहस्यआत्मक विषयों का विवरण है ।

11.  आरण्यक चिंतनशील ज्ञान के पक्ष को उजागर करता है  । जंगल में पढ़े जाने के कारण इसे आरण्यक नाम प्राप्त हुआ है ।

12. आरण्यक कुल  7  हैं  ।
  ऐतरेय ,  शांखायन , तैतरीय ,  मैत्रायणी , माध्यन्दिन,        बृहदारण्यक , तल्वकार , छांदोग्य ।

13. उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग होने के कारण वेदांत कहलाते हैं ।

14. उपनिषद आरण्यको के  पूरक एवं भारतीय दर्शन के प्रमुख स्रोत हैं आध्यात्मिक विधा का ज्ञान गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता था उसे उपनिषद कहते थे ।

15. उपनिषदों की संख्या 108 है ।

16. उपनिषदों में आत्मा, परमात्मा, मोक्ष एवं पुनर्जन्म की अवधारणा मिलती है ।

17. "सत्यमेव जयते "मुण्डकोपनिषद से लिया गया है ।

18. वेदांग 6 है । - शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छंद , ज्योतिष ।

19. पुराणों की संख्या 18 है ।

20. विष्णु पुराण में मौर्य काल , वायु पुराण में गुप्तकाल , मत्स्य काल में आंध्रवंश कई जानकारी मिलती है ।

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