मौर्यकालीन स्थापत्य कला
कला के क्षेत्र में मौर्य काल अति समृद्ध का काल था । वस्तुत: मौर्य काल मे शान्ति व्यवस्था सुख समृद्धि एवं राजकीय संरक्षण के वातावरण में कला का प्रस्फुटित होना स्वाभाविक था । स्थापत्यकला के क्षेत्र में विशेष उन्नति हुई ।
इस काल मे युग के दो रूप मिलते है । एक राजपक्ष के द्वारा निर्मीत कला , जो कि मौर्य प्रासाद और अशोक स्तम्भो में पाई जाती है । दूसरा "लोककला"। लोककला के रूपो की परंपरा पूर्व युगों से काष्ठ और मिट्टी में चली आयी थी । अब इसे पाषाण के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया ।
राजकीय कला : राजकीय कला का पहला उदाहरण चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रासाद था जिसका वर्णन एरियन ने किया है। एरियन के अनुसार राजप्रासाद की शान शौकत का मुकाबला न तो सूसा और न अन्य समकालीन साम्राज्य कर सकता था । फाह्यान ने भी उस काल के बचे अवशेष कालीन भवनो को देखा तो उन्हें " देवनिर्मितं" समझा ।
यह प्रासाद वर्तमान पटना के निकट कुम्हरार गांव के समीप था । खुदाई से प्राप्त प्रासाद के सभा भवन के अवशेष से अनुमान लगाया जा सकता है | 1914-15 और 1951 में खुदाई से 40 पाषाण स्तम्भ मिले है,जो इस समय भग्न दशा में है। भवन की लंबाई 140 फूट और चौड़ाई 120 फूट है । भवन के स्तम्भ बलुआ पत्थरों से बने थे और उनमें चमकदार पॉलीस की गई थी ।
यह प्रासाद वर्तमान पटना के निकट कुम्हरार गांव के समीप था । खुदाई से प्राप्त प्रासाद के सभा भवन के अवशेष से अनुमान लगाया जा सकता है | 1914-15 और 1951 में खुदाई से 40 पाषाण स्तम्भ मिले है,जो इस समय भग्न दशा में है। भवन की लंबाई 140 फूट और चौड़ाई 120 फूट है । भवन के स्तम्भ बलुआ पत्थरों से बने थे और उनमें चमकदार पॉलीस की गई थी ।
नगर निर्माण : मौर्य शासकों ने नगरो का भी निर्माण करवाया था ।उसने कश्मीर में श्रीनगर
और नेपाल में ललितपातन नगर बसाये और भवनो से सुसज्जित किया । नगर के सुरक्षा के लिए चारो ओर लकडी की दीवार बनाई थी जिसके बीच बीच मे तीर चलाने के लिए छेद बने थे । दीवार के चारो ओर खाई थी जो 60 फुट गहरी और 600 फूट चौड़ी थी । दीवार में 570 बुर्ज और 64 द्वार थे ।
स्तूप-विहार निर्माण कला : बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार सम्राट अशोक ने 84000 स्तूपों, चैत्य तथा विहारों का निर्माण करवाया । स्तूपों की ऊँचाई लगभग 22 मीटर ,32 मीटर,64 मीटर,100 मीटर तक होती थी। तक्षशिला, सांची, बोधगया, वैशाली ,सारनाथ,कपिलवस्तु आदि स्थानों पर स्तूप देखे जा सकते है ।
गुहा-गृह निर्माण कला : मौर्य काल मे अनेक गुहा-गृहो का निर्माण हुआ । ठोस चट्टानों को काटकर उनमे कमरे और सभागृह बनाये जाते थे । आशोक और दशरथ ने आजीवक सम्प्रदाय के साधुओ के लिए बराबर की पहाड़ियों में गुफा गृह वनबा कर दान में दिए गए । अशोक द्वारा बनवाई गई गुफाओ के आधार पर ही कालांतर में एरण, कन्हेरी, कारले के चैत्य गृहों का निर्माण गुआ ।
पाषाण स्तम्भ कला : मौर्यकालीन कला के उत्कृष्ट नमूने पाषाण स्तम्भ है ।अशोक द्वारा निर्मित पाषाण स्तम्भ विशिष्ट स्थान रखता है। अपने धर्मलेखों, राजघोषनाओ और आदेशो को जनसाधारण तक पहुचाने के लिए चुनार के बलुआ पत्थर से निमित्त कराया गया । 16 मीटर ऊँचा और 80 टन वजन इन पाषण स्तम्भो के एक ही टुकड़े को काटकर बनाया जाता था । सारनाथ का स्तम्भ मौर्य युग का सर्वश्रेष्ठ नमूना है ।
मूर्तिकला : मौर्य काल में मूर्ति कला का भी विकास हुआ। इस काल मे मनुष्यों, यक्ष-यक्षिणी, गन्धर्वों, देवी देवताओं, आदि की मूर्तियां बनाई जाती थी। इस काल की मूर्तियों में मथुरा से यक्षमूर्ति ,पटना से यक्ष की दो मूर्ति, बेसनगर से यक्षिणी की मूर्ति प्रमुख हैं। सभी मूर्तियां पालिसदर है एवं सजीव दिखती हैं।
इस प्रकार ,कहा जा सकता हैं कि मौर्य काल मे कला का संरक्षण से अभूतपूर्व विकास हुआ । यक्ष-यक्षिणी की मूर्ती, सारनाथ का स्तम्भ ,बराबर की गुफाएं आदि की कला मौर्य काल की देन है जो आने वाली पीढ़ीयों के लिए अनुगमन बनी ।
इस प्रकार ,कहा जा सकता हैं कि मौर्य काल मे कला का संरक्षण से अभूतपूर्व विकास हुआ । यक्ष-यक्षिणी की मूर्ती, सारनाथ का स्तम्भ ,बराबर की गुफाएं आदि की कला मौर्य काल की देन है जो आने वाली पीढ़ीयों के लिए अनुगमन बनी ।
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