पटना कलम शैली
पटना कलम शैली या इन्डो-ब्रिटिश शैली का विकास भारत की लघु चित्रकला शैली और ब्रिटिश शैली के संयोग से अंग्रेजो के संरक्षण में हुआ ।इसमें व्यक्ति चित्रों की प्रधानता थी । इस शैली में उकेरे गए आम जीवन की त्रासदियो के बीच से उभरते थे ।
पटना कलम शैली स्वतन्त्र रूप से दुनिया की पहली ऐसी कला शैली थी जिसने आम लोंगो और उनके जिन्दगी को कैनवास पर जगह दी ।वाटर कलर पर आधारित इस शैली की शुरुआत1760 के आसपास मुग़ल दरबार और ब्रिटिश दरबार मे होती है ।इसकी शुरुआत दो कलाकारों नोहर और मनोहर ने की ।बाद में उनके शिष्य पटना में आकर इस शैली में कई प्रयोग किए और आम लोगो की जीवन शैली पर कलाकृतियों को बनाया गया । इस शैली का विकास तेजी से हुआ और चारों ओर इसकी प्रसिद्वि फैल गई । मध्य 18वीं सदी में चित्रकला के तीन स्कूल थे - मुग़ल,आँगलो-इंडियन और पहाडी ।लेकिन पटना कलम शैली ने इसके बीच तेजी से अपनी जगह बना ली ।यही शैली बाद में इंडो-ब्रिटिश शैली के नाम से जानी जाती है ।
मुग़ल साम्राज्य के पतन की अवस्था मे शाही दरबार मे कलाकारों को प्रश्रय नही मिल पाया था ।इस कारण इनका पलायन अन्य क्षेत्रों में होने लगा था ।इसी क्रम में 1760 के लगभग पलायित चित्रकार तत्कालीन राजधानी "पाटलीपुत्र" वापस आ गए ।इन पलायित चित्रकारों ने राजधानी के लोदी कसा ,मुगलपुरा, दीवान मुहल्ला, मच्छर हट्टा, था नित्यानन्द का कुआँ क्षेत्र में था कुछ अन्य चित्रकारों ने दानापुर तथा आरा में बसकर चित्रकला के क्षेत्रीय रूप को विकसित किया ।यह चित्रकला ही "पटना कलम या पटना शैली" कहा जाता है ।
सामान्यतः इस शैली में चित्रकारों ने ब्यक्ति विशेष, पर्व -त्योहार, उत्सव तथा जीव जन्तुओ को महत्व दिया ।इस शैली के प्रमुख चित्रकार सेवक राम , हुलास राम,जयराम , शिवदयाल लाल आदि । चूँकि इस शैली के अधिकांश चित्रकार पुरूष थे इसलिए इसे "पुरूष चित्र शैली " भी कहा जाता है ।
इस शैली का जीवन काल अधिक समय तक नही रहा और ब्रिटिश काल के अंत के साथ ही लगभग यह शैली भी मृतप्राय ही हो गई। श्यामलनन्द और राधा मोहन प्रसाद इसी शैली के कलाकार थे ।राधा मोहन प्रसाद ने ही बाद में पटना आर्ट कालेज की नींव रखी थी जो कला गतिविधियों का एक प्रमुख केन्द्र है ।
पटना कलम शैली या इन्डो-ब्रिटिश शैली का विकास भारत की लघु चित्रकला शैली और ब्रिटिश शैली के संयोग से अंग्रेजो के संरक्षण में हुआ ।इसमें व्यक्ति चित्रों की प्रधानता थी । इस शैली में उकेरे गए आम जीवन की त्रासदियो के बीच से उभरते थे ।
पटना कलम शैली स्वतन्त्र रूप से दुनिया की पहली ऐसी कला शैली थी जिसने आम लोंगो और उनके जिन्दगी को कैनवास पर जगह दी ।वाटर कलर पर आधारित इस शैली की शुरुआत1760 के आसपास मुग़ल दरबार और ब्रिटिश दरबार मे होती है ।इसकी शुरुआत दो कलाकारों नोहर और मनोहर ने की ।बाद में उनके शिष्य पटना में आकर इस शैली में कई प्रयोग किए और आम लोगो की जीवन शैली पर कलाकृतियों को बनाया गया । इस शैली का विकास तेजी से हुआ और चारों ओर इसकी प्रसिद्वि फैल गई । मध्य 18वीं सदी में चित्रकला के तीन स्कूल थे - मुग़ल,आँगलो-इंडियन और पहाडी ।लेकिन पटना कलम शैली ने इसके बीच तेजी से अपनी जगह बना ली ।यही शैली बाद में इंडो-ब्रिटिश शैली के नाम से जानी जाती है ।
मुग़ल साम्राज्य के पतन की अवस्था मे शाही दरबार मे कलाकारों को प्रश्रय नही मिल पाया था ।इस कारण इनका पलायन अन्य क्षेत्रों में होने लगा था ।इसी क्रम में 1760 के लगभग पलायित चित्रकार तत्कालीन राजधानी "पाटलीपुत्र" वापस आ गए ।इन पलायित चित्रकारों ने राजधानी के लोदी कसा ,मुगलपुरा, दीवान मुहल्ला, मच्छर हट्टा, था नित्यानन्द का कुआँ क्षेत्र में था कुछ अन्य चित्रकारों ने दानापुर तथा आरा में बसकर चित्रकला के क्षेत्रीय रूप को विकसित किया ।यह चित्रकला ही "पटना कलम या पटना शैली" कहा जाता है ।
सामान्यतः इस शैली में चित्रकारों ने ब्यक्ति विशेष, पर्व -त्योहार, उत्सव तथा जीव जन्तुओ को महत्व दिया ।इस शैली के प्रमुख चित्रकार सेवक राम , हुलास राम,जयराम , शिवदयाल लाल आदि । चूँकि इस शैली के अधिकांश चित्रकार पुरूष थे इसलिए इसे "पुरूष चित्र शैली " भी कहा जाता है ।
इस शैली का जीवन काल अधिक समय तक नही रहा और ब्रिटिश काल के अंत के साथ ही लगभग यह शैली भी मृतप्राय ही हो गई। श्यामलनन्द और राधा मोहन प्रसाद इसी शैली के कलाकार थे ।राधा मोहन प्रसाद ने ही बाद में पटना आर्ट कालेज की नींव रखी थी जो कला गतिविधियों का एक प्रमुख केन्द्र है ।
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