भक्ति परम्परा के अन्य संत
शंकरदेव:
15 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्व में असम में शंकरदेव वैष्णव धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में उभरे| उनके उपदेशों को " भगवती धर्म" कह कर सम्बोधित किया जाता है क्योंकि वे भगवद गीता और भागवत पुराण पर आधारित थे | ये उपदेश सर्वोच्य देवता विष्णु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव पर केन्द्रीत थे | शंकरदेव ने भक्ति के लिए नाम कीर्तन और श्रद्वावान भक्तों के सत्संग में ईश्वर के नाम उच्चारण पर बल दिया | उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार के लिए सत्र या मठ तथा नामघर जैसे प्रार्थनागृह की स्थापना को बढावा दिया| इस क्षेत्र में ये संस्थाएं और आचार आज भी पंप रहे हैं | शंकरदेव की प्रमुख काव्य रचनाओं में कीर्तनघोष भी है |
बल्लभाचार्य :
बल्लभाचार्य का जन्म 1479 ई. में बनारस में हुआ था | इनके पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट और माता का नाम यल्लमगरू था | उनकी महालक्ष्मी एवं दो पुत्र क्रमश: गोपीनाथ एवं विट्ठल दास थे |
बल्लभाचार्य ने मोक्ष के तीन साधन बताये | कर्म, ज्ञान, तथा भक्ति| वे कृष्ण के उपासक थे तथा कृष्ण भक्ति पर बल देते थे | इन्होने पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय चलाया| इनके दार्शनिक मत को शुद्व अद्वैतवाद कहा जाता है |
चैतन्य महाप्रभु :
चैतन्य महाप्रभु का जन्म 1486 ई. में बंगाल के नदिया जिले में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ | 20 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया और बंगाल में साम्प्रदायिक सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया | चैतन्य महाप्रभु भी कृष्ण के उपासक थे| उन्होंने कीर्तन, नृत्य और संगीत द्वारा कृष्ण भक्ति पर विशेष बल दिया| उनका दार्शनिक मत "अचिन्त्य भेदाभेदवाद" कहलाता है|
भक्ति आन्दोलन की विशेषताएं :
1. भक्ति आन्दोलन का उद्देश्य ईश्वर की एकता पर बल देना था |
2. संत कर्मकांड एवं बाह्य आडम्बर के विरोधी थे |
3. इन्होने जाति-पांति, उंच-नीच एवं अस्पृश्यता के भेदभाव को त्यागने पर बल दिया |
4. ईश्वर की भक्ति के लिए कीर्तन, गीत-संगीत और नृत्य को साधन बताया|
5. भक्ति संतो ने चरित्र की शुद्वता पर बल दिया |
6. इस आन्दोलन के द्वारा निम्न वर्ग को भी जोड़ने का प्रयास किया|
भक्ति आन्दोलन का प्रभाव :
1. भक्ति आन्दोलन के संतों ने संस्कृत के स्थान पर क्षेत्रीय भाषा में भजन गाये एवं पदों की रचना की |
2. भक्ति आन्दोलन से स्थानीय भाषा का विकास हुआ |
3. आन्दोलन ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया और समाज में भाईचारे एवं सहिष्णुता का विकास हुआ |
4. हिन्दू धर्म में फैली कुरीतियों, जाति-पाती, बाह्य आडम्बर, उंच-नीच एवं संकीर्ण मानसिकता पर प्रहार किया |
5. हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ |
6. मुग़ल बादशाह अकबर हिन्दू धर्म से प्रभावित होकर तिलक लगाना प्रारंभ किया|
धार्मिक परम्पराओं के इतिहासों का पुनर्निर्माण :
इतिहासकार धार्मिक परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए अनेक स्रोतों का उपयोग करते है - जैसे मूर्तिकला, स्थापत्य कला, धर्मगुरुओं से जुडी कहानियाँ, दैवीय स्वरूप को समझने को उत्सुक स्त्री और पुरुष द्वारा लिखी गयी काव्य रचनाएं आदि |
साहित्यिक परम्पराओं में वर्णित रचनाओं में काफी विविधता है, और कई भाषाओं व् शैलियों में लिखे गए है| कुछ रचनाएं काफी सरल और स्पष्ट है जैसे वासवन्ना के वचन जबकि कुछ काफी जटिल और अस्पष्ट है |
सूफी परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए विभिन्न स्रोत :
1.कश्फ़-उल-मह्जुब- सूफी विचारों और आचारों पर प्रबंध पुस्तिका की रचना अली बिन उस्मान हुजविरी ने किया था| इस पुस्तक से उपमहाद्वीप के बाहर की परम्पराओं ने भारत की सूफी चिंतन को किस तरह प्रभावित किया |
2.मुलफुजात (सूफ़ी संतों की बातचीत) : मुलफुजात पर आधारित प्रारम्भिक पुस्तक "फवाइद-अल-फुआद" है | यह निजामुद्दीन औलिया की बातचीत पर आधारित है |
3. मक्तुबात (लिखे हुए पत्रों का संकलन ) : ये वे पत्र थे जो सूफी संतों द्वारा अपने अनुयायियों और सहयोगियों को लिखे गए|
4. तजकिरा ( सूफी संतों की जीवनियों का स्मरण ) : भारत में लिखा पहला सूफी तजकिरा मीर खुर्द किरमानी का "सियार-उल-औलिया" है | दूसरा प्रमुख तजकिरा अब्दुल हक़ मुहादीश देहलवी का " अखबार-उल-अखयार" है | तजकिरा के लेखकों का मुख्य उद्देश्य अपने सिलसिले की प्रधानता स्थापित करना और आध्यात्मिक वंशावली की महिमा का बखान करना था |
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M. PRASAD
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