Friday 4 December 2020

Mahatma Gandhi & National Movement (1) - history class 12

 Mahatma Gandhi & National Movement

परिचय 
* भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कारण :
* चंपारण सत्याग्रह 
* खिलाफत और असहयोग आन्दोलन 
* सविनय अवज्ञा आन्दोलन 
* भारत छोड़ो आन्दोलन 

राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ - राष्ट्रीय चेतना का उदय , राष्ट्र के प्रति लगाव का भाव 
राष्ट्र के प्रति लगाव पैदा करनेवाले कारक :
* नए प्रतीकों और चिन्हों ने 
* नए गीतों और विचारों ने नए सम्पर्क स्थापित किये 
* समुदायों की सीमाओं का विस्तार एवं अन्य समुदायों से सम्पर्क 

भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण :
1. अंगरेजी साम्राज्यवाद के विरूद्व असंतोष : अंगरेजी सरकार की नीतियों के शोषण के शिकार देशी राज-रजवाड़े, ताल्लुकदार, महाजन, कृषक,मजदूर, मध्यम वर्ग सभी बने | पूंजीपति वर्ग और व्यापारी वर्ग सरकार की भेदभावपूर्ण नीति से असंतुष्ट था| बुद्वीजीवी वर्ग बढ़ती बेरोजगारी  से, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता एवं विचार अभिव्यक्ति  तथा राजनीतिक अधिकारों पर पाबंदी से क्षुब्ध था |
2. आर्थिक कारण : सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण कृषि और कुटीर उद्योग- धंधे नष्ट हो गए | किसानों पर कर का बोझ बढ़ा दिया | कपड़ा उद्योग नष्ट हो गया | बुनकरों की रोजगार खत्म हो गयी | इंग्लैण्ड से सूती कपड़ों का आयत होने लगा | भारत से धन निष्कासन हुआ और बेकारी बढ़ी|
3. अंगरेजी शिक्षा का प्रसार : भारत में अंगरेजी शिक्षा के प्रसार से यूरोप एवं अमेरिका के क्रांतियों से परिचित हुए |रूसो, वाल्टेयर,मेजिनी, मांतेस्क्यु  जैसे दार्शनिक और क्रांतिकारियों के विचारों का प्रभाव पडा| वे भी स्वतन्त्रता, समानता और नागरिक अधिकारों के प्रति सचेत होने लगे |
4. मध्यम वर्ग का उदय: अंगरेजी शिक्षा के प्रसार से समाज में मध्यम वर्ग का उदय हुआ -जैसे  अध्यापक, वकील, डाक्टर, राजकीय कर्मचारी आदि | आरम्भ में अंगरेजी सरकार के हिमायती थे परन्तु धीरे धीरे इनके दृष्टिकोण में परिवर्तन होने लगा| 
5. साहित्य एवं समाचार पत्रों का योगदान : राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में साहित्य और समाचार पत्रों का महत्वपूर्ण योगदान था| अंगरेजी और स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों से भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत की | महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में  संवाद कौमुदी, हिन्दू, बाम्बे क्रोनिकल, आजाद, केशरी,मराठा, यंग इंडिया, अलहिलाल , पायनियर आदि | 
6. समाजिक -आर्थिक सुधार आन्दोलन :  भारतीय समाज में फैले अशिक्षा, जाति-पांति, उंच-नीच, छुआछूत, कुप्रथाओं , सतीप्रथा, बालविवाह  जैसे रूढ़ियों को दूर करने के लिए राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद के प्रयासों से नई चेतना आई| आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन आदि सामाजिक संगठनों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया |
7. प्राचीन संस्कृतियों का ज्ञान : प्राचीन इतिहास और संस्कृति को उजागर करने में अनेक यूरोपीय विद्वानों  जैसे, विलियम जोन्स,मैक्समूलर, चार्ल्स विलिक्न्सन और भारतीय विद्वानों में राजेन्द्रलाल मित्र , आर.जी.भंडारकर आदि का महत्वपूर्ण  योगदान रहा | जब प्राचीन लिपियों और ग्रन्थों का अंगरेजी और अन्य स्थानीय भाषाओं में अनुवाद हुआ तो अपने अतीत का गौरव महसूस हुआ |
8. भारत का राजनीतिक एकीकरण :  अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत का राजनीतिक एकीकरण कर दिया| रेल, सड़क, डाक-तार की व्यवस्था से यातायात और संचार की सुविधा बढ़ी | लोगों को आपसी विचारों को आदान-प्रदान करने में सहूलियते होने लगी |
9. सरकार की प्रतिगामी नीतियाँ:  सरकार के प्रतिगामी नीतियाँ राष्ट्रवाद को बढाने में योगदान दिया |
*1878 में लार्ड लिटन द्वारा वर्नाक्युलर एक्ट द्वारा प्रेस पर पाबंदी 
* भारत में आयतित कपडे पर आयात -शुल्क हटा दिया 
* अफगान युद्व का खर्च भारतीय राजस्व से वसूला 
* आर्म्स एक्ट (1879) द्वारा भारतीयों को हथियार रखने पर पाबंदी 
* सिविल सेवा में भातीयों के प्रवेश की आयु 21 से घटाकर 19 कर दिया 
* इल्बर्ट बिल द्वारा भारतीय जजों को यूरोपीय लोगों के मुकदमे सुनने का अधिकार दिया , जिसे वापस ले लिया 
* 1905 बंगाल का विभाजन कर दिया 
10. राजनीतिक संस्थानों का योगदान :  लैंडहोल्डर्स सोसाइटी , बंबई एसोसिएशन, इन्डियन एसोसिएशन, पूना सार्वजनिक सभा, ढक्कन सोसायटी  आदि की स्थापना हुई | 1885 में  स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में  राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम संचालित हुआ|

प्रथम विश्व युद्व, खिलाफत और असहयोग 
प्रथम विश्व युद्व के दौरान भारत की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति :
रक्षा व्यय में भारी इजाफा 
* इस युद्व के खर्च की भरपाई के लिए युद्व के नाम पर कर्जे लिए गए 
* सीमा शुल्क में वृदि और आयकर शुरू किया गया 
* मंहगाई में वृद्वि 
* लगान में वृद्वि की गयी 
* ग्रामीण युवकों को जबरन सिपाही में भर्ती किया जाने लगा 
* 1918-19 और 1920-21के दौरान अकाल से खाद्य पदार्थों की कमी 
* 1920-21 में फ़्लू की महामारी से 120-130 लाख लोग मारे गए 

सत्याग्रह का विचार :
गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से  जनवरी 1915 ई. में भारत लौटे |  भारत में सत्याग्रह का विचार महात्मा गांधी ने  प्रतिपादित किया था | इस अस्त्र का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में कर चुके थे |  
सत्याग्रह : 
* सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर देना |
* सत्याग्रह शुद्व आत्मबल है | सत्य ही आत्मा का आधार होता है| आत्मा ज्ञान से हमेशा लैस होती है | सत्याग्रह अहिंसक प्रतिकार है | अहिंसा सर्वोच्य धर्म है |
* प्रतिशोध की भावना का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे अपने संघर्ष में सफल हो सकता है |
* गांधी जी का विचार था की अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है |
चम्पारण सत्याग्रह :
19वीं सदी जे प्रारम्भ में गोरे बगान मालिकों ने चंपारण जिले के किसानों से एक अनुबंध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के 3/20वें भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य था| इसे "तिनकठिया पद्वति " कहा जाता था| किसान इस अनुबंध से मुक्त होना चाहते थे |
* 1916 ई. में राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर गांधीजी चम्पारण पहुंचे |
* चंपारण पहुंचकर गांधीजी ने समस्याओं को सूना व् सही पाया|
* गांधीजी के प्रयासों से सरकार ने चंपारण के किसानों की जांच हेतु एक आयोग नियुक्त हुआ |
* आयोग के सिफारिस पर  तिनकठिया पद्वति समाप्त कर दिया और अंग्रेजों को अवैध वसूली का 25% वापस करना पडा |
    गांधी जी का भारत में पहला सत्याग्रह आन्दोलन था जो सफल रहा |

खेड़ा सत्याग्रह :
* खेड़ा (गुजरात) में वर्षा न होने से किसानों की फसल बर्बाद हो गयी 
* प्लेग और हैजा ने जनता को बेकार कर दिया 
* खेड़ा की जनता अंगरेजी हुकूमत से लगान में ढील देने की मांग कर रही थी 
* 1917 ई. में महात्मा गांधी , सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ गाँव का दौरा किया और खेड़ा के किसानों की मांग का समर्थन किया 
* गांधी जी के सत्याग्रह से अंग्रेजों ने लगान माफ कर दिया 

अहमदाबाद कपड़ा मिल आन्दोलन : 
* मार्च 1918 में अहमदाबाद कपड़ा मिल मालिक और मजदूरों के बीच "प्लेग बोनस " को लेकर विवाद हो गया |
* मिल मजदूर 35% बोनस की मांग कर रहे थे परन्तु मिल मालिक बोनस देने को तैयार नहीं थे |
* गांधीजी ने मिल मालिकों से बोनस देने का  आग्रह किया और अनशन पर बैठ गए |
* अंतत: मिल मालिकों ने 35% बोनस देने को तैयार हो गए |




रालेट एक्ट (1919):
* 1917 की रूसी क्रांति और भारतीय क्रांतिकारियों की राजनीतिक गतिविधियों से आशंकित अंगरेजी सरकार ने न्यायाधीश सिडनी रालेट की अध्यक्षता में एक राजद्रोह समिति (सेडीशन समिति) का गठन किया |
सेडीशन समिति के अनुशंसा पर 2 मार्च 1919 को रालेट कानून (क्रान्तिकारी एवं अराजकता अधिनियम ) बना |
* इसके अनुसार, संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था, और उसपर बिना मुकदमा चलाए दो वर्षों तक जेल में बंद किया जा सकता था |

रालेट एक्ट का विरोध :
* भारतीयों ने इस क़ानून को "काला क़ानून" कहा |
* इस क़ानून को "न वकील, न अपील और न दलील" का क़ानून कहा गया |
* गांधीजी ने इस क़ानून के विरोध में 6अप्रैल से सत्याग्रह करने का आह्वान किया |
* विभिन्न  शहरों में रैली निकाली गयी, रेलवे वर्कशाप के मजदूरों ने हड़ताल की, दूकाने बंद रखी गयी,  संचार सेवाएं बाधित की गयी |
* अंगरेजी सरकार ने भी आन्दोलन को दमन करने हेतु अमृतसर के  स्थानीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, गांधी जी को दिल्ली प्रवेश पर पाबंदी लगा दी 
* अमृतसर में 10 अप्रैल को  पुलिस ने शातिपूर्ण जुलूस पर गोलियां चलायी और  शहर में मार्शल लाँ लागू कर दिया | 

जालियावाला बाग़ हत्याकांड (1919):
कारण :
* रालेट एक्ट के विरूद्व लोगों में असंतोष 
* गांधीजी तथा कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबन्ध 
* पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डा.सतपाल और डा.सैफुदीन किचलू को गिरफ्तार कर जिलाबदर कर दिया गया |
* अमृतसर में 10अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण जुलूस पर पुलिस द्वारा गोलियां बरसाई गयी , परिणामत: स्थिति बिगड़ गयी और मार्शल लाँ लगा दिया गया |
घटना :
*13अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन अमृतसर  में लगभग शाम 4 बजे जलियावाला बागा में एक सभा का आयोजन किया गया और उस सभा में  लगभग 20000 व्यक्ति एकत्रीत हुए | 
* उस सभा में  प्रवेश के लिए एकमात्र संकीर्ण रास्ता था, चारो तरफ, मकान बने हुए थे और बीच में एक कुआं व् कुछ पेड़ थे | 
* जिस समय सभा चल रही थी, उसी वक्त संध्याकाल जनरल डायर सैनिकों और बख्तरबंद गाडी के साथ सभास्थल पर पहुंचा और बिना चेतावनी के उसने गोलियां चलवा दी |
* इस घटना में लगभग (सरकारी आंकड़ा)  379 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए |
घटना का प्रभाव :
* इस घटना की जाँच के लिए "हंटर कमीशन" का गठन किया गया जिसमें 5 अंग्रेज और 3 भारतीय सदस्य थे |
* रवीन्द्रनाथ टैगोर ने "सर"   और गांधीजी ने  "केशर-ए-हिन्द " की उपाधि लौटा दी |
* शंकरन नायर ने वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् से इस्तीफा दे दिया | 

खिलाफत आन्दोलन(1919-1924:
* प्रथम विश्व युद्व के बाद ब्रिटेन और तुर्की के बीच "सेवर्स की संधि" हुई जिसमें तुर्की का सुलतान (जो मुसलमानों का धर्मगुरु भी था ) खलीफा का 
पद छीन लिया | 
* भारतीय मुसलमानों में खलीफा का पद छिनने से नाराजगी थी |
खलीफा का पद बरक़रार रखने के लिए अली बंधुओं (शौकत अली और महम्मद अली)  के नेतृत्व में मार्च  1919 में बंबई में खिलाफत समिति का गठन किया गया |
* गांधीजी ने इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के रूप में देखा और खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया 
* सितम्बर 1920 में क्रांग्रेस के कलकाता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि खिलाफत आन्दोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन शुरू किया जाना चाहिए |

असहयोग आन्दोलन (1920-21) :
महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक "हिन्द स्वराज "(1909) में कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था| यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी 
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम :
* सरकार द्वारा दी गई  पदवियां लौटा देनी चाहिए |
* सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र और बहिष्कार करना 
* सेना,पुलिस और अदालतों का बहिष्कार 
* स्कूलों और कालेजों का बहिष्कार 
* विधायी परिषदों का बहिष्कार 
* विदेशी वस्तुओं का त्याग 
* शराब की पिकेटिंग 
दिसम्बर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौता हुआ और असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मोहर लग गयी| असहयोग-खिलाफत  आन्दोलन जनवरी 1921में शुरू हुआ| इस आन्दोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया लेकिन हरेक की अपनी-अपनी आकांक्षाएं थी| सभी के लिए स्वराज के मायने अलग-अलग थे |

शहरों में आन्दोलन:
* आन्दोलन की शुरुआत  शहरी मध्यम वर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई |
* हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज  छोड़ दिए |
* हेडमास्टरों और शिक्षकों ने इस्तीफे सौंप दिए |
* वकीलों ने मुकदमें लड़ना बंद कर दिया |
* मद्रास के अलावा ज्यादातर प्रान्तों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया |
* विदेशी सामानों का बहिष्कार किया गया
* शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई |
* विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी |
* व्यापारियों ने विदेशी सामानों का व्यापार करने और निवेश करने से इनकार कर दिया |
* लोग भारतीय कपडे पहनने लगे , भारतीय कपड़ा और हथकरघों का उत्पादन भी बढ़ने लगा|

आन्दोलन धीमा पड़ने के कारण:
* खादी का कपड़ा मिलों में बनने वाले कपड़ों के मुकाबले मंहगी होती थी और गरीब उसे खरीद नहीं सकते थे |
* आन्दोलन की कामयाबी के लिए वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना जरुरी था , जो उस समय नहीं थे |
* देशी शिक्षण संस्थान पर्याप्त नहीं होने के कारण  विद्यार्थी और शिक्षक सरकारी स्कूलों में लौटने लगे |
* वकील दोबारा सरकारी अदालतों में आने लगे |
नोट:
जस्टिस पार्टी : मद्रास में गैर-ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई जस्टिस पार्टी का मानना था कि काउंसिल में प्रवेश के जरिये उन्हें वे अधिकार मिल सकते है जो सामान्य रूप से केवल ब्राह्माणों को मिल पाते है इसलिए इस पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार नहीं किया |
पिकेटिंग : प्रदर्शन या विरोध का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोग किसी दूकान, फैक्ट्री या दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते है |

ग्रामीण इलाकों में असहयोग आन्दोलन :
असहयोग आन्दोलन देश के ग्रामीण इलाकों में भी फैल गए | इस आन्दोलन में किसानों व आदिवासियों ने भी भाग लिया |
असहयोग आन्दोलन में  किसानों की भूमिका  -
* अवध में सन्यासी बाबा रामचन्द्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे | उनका आन्दोलन तालुक्क्दारों और जमींदारों के खिलाफ था जो किसानों से भारी- भरकम लगान और तरह-तरह के कर वसूल रहे थे |
* किसानों को बेगार करनी पड़ती थी| पट्टेदार के तौर पर उनके पट्टे निश्चित नहीं थे | उन्हें बार-बार पट्टे की समीन से हटा दिया जाता था ताकि जमीन पर उनका अधिकार स्थापित न हो सके |
* किसानों की मांग थी कि लगान कम किया जाय, बेगार खत्म हो और दमनकारी जमींदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाय|
* 1920 में जवाहर लाल नेहरु , बाबा रामचंद्र और कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में "अवध किसान सभा" का गठन कर लिया गया | असहयोग आन्दोलन आरम्भ होने पर तालुक्क्दारों , जमींदारों के मकानों पर हमला होने लगे,बाजारों में लूटपाट होने लगी, आनाज के गोदामों पर कब्जा कर लिया गया , लगान देना बंद कर दिया गया |

असहयोग आन्दोलन मे आदिवासियों की भूमिका  :
*आदिवासी किसानों ने गांधीजी की संदेश का और ही मतलब निकाला |
* आंध्रप्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में 1920 के दशक की शुरुआत में उग्र गुरिल्ला आन्दोलन फैल गया |
* अंगरेजी सरकार का आदिवासियों के जीवन में हस्तक्षेप से उनमें असंतोष पहले से भरा था | गांधीजी के आह्वान पर लोगों ने बगावत कर दिया| उनका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया |
* अल्लूरी ने खुद में विशेष शक्तियों का दावा किया| लोगों को खादी पहनने और शराब छोड़ने के लिए प्रेरित किया|
* गूडेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले किये, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने की कोशिश  की |
* अल्लूरी को 1924 में फांसी दे दी गई |
नोट: 
* बेगार :बिना किसी पारिश्रमिक के काम करवाना 
गिरमिटिया मजदूर : औपनिवेशिक शासन के दौरान बहुत सारे लोगों को काम करने के लिए फ़िज, गुयाना, वेस्टईंडीज आदि स्थानों पर ले जाया गया था जिन्हें बाद में गिरमिटिया कहा जाने लगा| उन्हें एक एग्रीमेंट(अनुबंध) के तहत ले जाया  जाता था| बाद में इसी एग्रीमेंट को ये मजदूर गिरमिट खाने लगे जिससे आगे चलकर इन मजदूरों को गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा| अंगरेजी में इन्हें Indentured Labour कहा जाता है | 

बागानों में स्वराज 
* 1859 के Inland Emigration Act के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत के बाहर जाने की छुट नहीं थी |
* जब बगान मजदूरों ने असहयोग आन्दोलन के बारे में सुना तो उन्होंने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे| उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए |
* रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रस्ते में ही फंस रह गए | उन्हें पुलिस ने पकड लिया और उनकी बुरी तह पिटाई हुई |

असहयोग आन्दोलन का अंत :
5 फरवरी 1922 को गोरखपुर स्थित चौरी-चौरा में बाजार से गुजर रहा एक शांतिपूर्ण जुलूस पुलिस के साथ हिंसक टकराव में बदल गया| जुलूस ने आक्रोशित होकर थाने में आग लगा दी जिसमें 22 पुलिसकर्मी ज़िंदा जल गए | जब यह घटना गांधी जी को पता चला तो उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आन्दोलन बंद करने का ऐलान कर दिया |

असहयोग आन्दोलन का महत्व और प्रभाव :
गांधीजी ने देश में पहली बार एक जन-आन्दोलन खड़ा किया और राष्ट्रवाद का उत्साह का संचार किया |
* इस आन्दोलन का प्रभाव उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक रहा |
* स्वदेशी आन्दोलन ने जनता में आत्म-विश्वास की भावना का विकास किया 
* ब्रिटिश सरकार का भय अब जनता के मन से निकल चुका था |
* पहली बार महिलाओं ने भी आन्दोलन में भाग लिया |
* राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना हुई |



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M. PRASAD
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