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Tuesday 10 November 2020

Colonialism and the Countryside (उपनिवेशवाद और देहात)-NCERT class 12 chapter 10 part 2

 उपनिवेशवाद और देहात (Colonialism and countryside) -सरकारी अभिलेखों का अध्ययन (Study of Official Reports)

परिचय 

1. उपनिवेशवाद का अर्थ 

2. देहातों में उपनिवेशवाद और उसके प्रभाव 

3. औपनिवेशिक राजस्व नीति  एवं उसके परिणाम 

4. देहात में विद्रोह : बंबई -ढक्कन विद्रोह 

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जमींदार द्वारा इस्तमरारी बंदोबस्त का  विरोध 

कंपनी द्वारा राजस्व की ऊँची मांग तथा भूमि की नीलामी से बचने के लिए जमीदारों द्वारा कुछ विशेष रणनीति अपनाई गई जो कंपनी के लिए कुछ हद तक हानिकारक सिद्व हुई | जमींदारों ने फर्जी बिक्री को इस समस्या के निदान हेतु अपनाया जिसे हम वर्द्वमान के राजा के उदाहरण से समझते है|

    1793 में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू हो गया| ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को अदा करनी होती थी| जो जमींदार निश्चित राशि नहीं चूका पाते थे उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी संपदाएं नीलाम कर दी जाती थी| चूँकि वर्द्ववान के राजा पर राजस्व की बड़ी भारी रकम बकाया थी, इसलिए उसकी सम्पदाएँ नीलाम की जाने वाली थी|

    कम्पनी के नियम के अनुसार स्त्रियों से सम्पति नही ली जाती थी| वर्द्वामान के राजा ने पहले तो अपनी जमींदारी का कुछ हिस्सा अपनी माता को दे दिया| फिर दूसरे कदम के तौर पर उसके एजेंटो ने नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया|  जमींदार के एजेंटों ने ऊंची बोली लगाकर जमीनें खरीद ली और बाद में कंपनी के अधिकारियों को राशि देने से इनकार कर दिया| विवश होकर अधिकारियों ने पुनः नीलामी की प्रक्रिया प्रारंभ की और जमींदार के आदमियों ने पुनः उपर्युक्त प्रक्रिया की पुनरावृति की | अंततः जब बोली लगाने वाले थक गए तो उस भूमि को कम कीमत पर वर्धमान के जमींदार को ही बेचनी पड़ी|

     इस प्रकार 1793 से 1801 के बीच बंगाल की 4 बड़ी जमींदारियों ने, जिनमें वर्धमान की जमींदारी भी एक थी, अनेक बेनामी खरीदारियां  की  जिनसे कुल मिलाकर 30 लाख  रूपए की प्राप्ति हुई | नीलामियों  में की गई कुल बिक्रीओं में से 15% सौदे  नकली थे| 

     यदि कोई बाहरी खरीददार जमींदारों की जमीन खरीद लेता था तो जमींदार के लठीयाल उन्हें मारपीट कर भगा देते थे या फिर पुराने रैयत नए जमीन के मालिकों को खेत में आने नहीं देते थे क्योंकि वे  पुराने जमींदार को अपना अन्नदाता समझ कर उनके प्रति वफादार रहते थे | इस प्रकार राजाओं की जमीनें बेची तो गई लेकिन नियंत्रण उन्हीं का बना रहा| परन्तु 1930 के दशक की घोर मंदी की हालत में अंतत: जमींदारों का भट्ठा बैठ गया और जोतदारों ने देहात में अपने पाँव मजबूत कर लिए |

जोतदारों का उदय 

    18वीं शताब्दी के अंत में जहाँ एक ओर अनेक जमींदार संकट की स्थिति से गुजर रहे थे , वही जोतदार अपनी स्थिति मजबूत कर ली| फ्रांसीसी बुकानन के उत्तरी बंगाल के दिनाजपुर जिले के सर्वेक्षण में हमें धनी किसानों के इस वर्ग का, जिन्हें "जोतदार" कहा जाता था, विशद विवरण देखने को मिलता है |

    19वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षो में जोतदार ने जमीन के बड़े-बड़े रकबे हासिल कर लिए थे| स्थानीय व्यापार  और साहूकार के कारोबार पर भी उनका नियंत्रण था | उनकी जमीन का बड़ा भाग बटाईदारों  के माध्यम से जोता जाता था, जो खुद अपने हल लाते थे, खेत में मेहनत करते थे और फसल के बाद उपज का आधा हिस्सा जोतदारों के दे देते थे|

    जोतदार गाँव में ही निवास करते थे और जमींदार की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थे| गरीब ग्रामवासियों  के बड़े वर्ग पर सीधे इनका नियंत्रण था| जमींदारों द्वारा गाँव की लगान को बढाने के लिए किये जाने प्रयत्नों का वे घोर विरोध करते थे तथा गाँव की रैयत को अपने पक्ष में एकजुट रखते थे और जमींदार को राजस्व के भुगतान में जान-बुझकर देरी करा देते थे|  इस कारण जमींदार तय  समय पर निश्चित राजस्व जमा नही कर पाते थे तो नीलामी के समय बेची जाने वाली जमीनों को अधिकतर ये ही "जोतदार " खरीद लेते थे|

    उत्तरी बंगाल में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे, हालांकि धनी किसान और गाँव के मुखिया लोग भी बंगाल के अन्य भागों के देहाती इलाकों में प्रभावशाली बनकर उभर रहे थे| कुछ जगह पर उन्हें "हवलदार" कहा जाता था और कुछ अन्य स्थानों पर वे "गांटीदार " या "मंडल" कहलाते थे |


पांचवीं रिपोर्ट :
भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई रिपोर्ट थी जो 1813 में ब्रिटिश संसद में पेश की गई थी | इस रिपोर्ट को "पांचवीं रिपोर्ट " के नाम से उल्लिखित है| इस रिपोर्ट में 1,002 पृष्ठ थी | इसके 800 से अधिक पृष्ठ परिशिष्टों के थे जिनमें जमींदारों और रैयतों की अर्जियां, भिन्न- भिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्टें, राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों द्वारा बंगाल और मद्रास के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखित टिप्पणियाँ शामिल की गई थी|
    ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1765 के बाद अपने आपको बंगाल में स्थापित किया| तभी से इंग्लैण्ड में उसके क्रियाकलापों पर नजर राखी जाने लगी|ब्रिटेन के अन्य व्यापरी भारत  के साथ व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार का विरोध करते थे| वे चाहते थे कि शाही फरमान रद्द कर दिया जाए जिसके तहत इस कंपनी को यह एकाधिकार दिया गया था| ब्रिटेन के राजनीतिक समूह भी कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का लाभ सिर्फ ईस्ट इंडिया  कम्पनी को मिल रहा है , समपूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं| 
    कम्पनी के कामकाज की जांच करने के लिए कई समितियां नियुक्त की गई | "पांचवी रिपोर्ट " एक ऐसी ही रिपोर्ट है जो एक प्रवर समिति द्वारा तैयार की गई थी| यह रिपोर्ट भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन के स्वरूप पर ब्रिटिश संसद में गंभीर वाद-विवाद का आधार बनी|
    पांचवी रिपोर्ट के शोधकर्ताओं ने ग्रामीण बंगाल में औपनिवेशिक शासन के बारे में लिखने के लिए बंगाल के अनेक अभिलेखागारों तथा जिलों के स्थानीय अभिलेखों की सावधानीपूर्वक जांच की| उनसे पता चलता है कि 5वीं रिपोर्ट लिखने वाले कम्पनी के कुप्रशासन की आलोचना करने पर तुले हुए थे इसलिए 5वीं रिपोर्ट में जमींदारी सत्ता के पत्तन का वर्णन अतिरंजित है |

लठियाल: लाठियाल का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास लाठी या डंडा हो| ये जमींदार के लठैत यानी डंडेबाज पक्षधर होते थे|

बेनामी : बेनामी का शब्दिक अर्थ " गुमनाम " है | इसका प्रयोग फर्जी या महत्वहीन व्यक्ति के लिए किये जाते है |
                अन्डूल राजमहल (जमींदार का महल ) 
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