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Tuesday 10 November 2020

Colonialism and countryside : permanent settlement class 12 part 3

 Colonialism and the Countryside  (उपनिवेशवाद और देहात)

Policies of Revenue System- राजस्व की नीतियाँ 

परिचय 

1. उपनिवेशवाद का अर्थ 

2. देहातों में उपनिवेशवाद और उसके प्रभाव 

3. औपनिवेशिक राजस्व नीति  एवं उसके परिणाम 

4. देहात में विद्रोह : बंबई -ढक्कन विद्रोह

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ब्रिटिश भारत ने औपनिवेशिक शासन के तहत भू-राजस्व की तीन नीतियाँ अलग-अलग प्रान्तों में स्थापित की थी|

1. इजारेदारी  व्यवस्था :सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल में 1772 में "इजारेदारी व्यवस्था " की प्रथा की शुरुआत की| यह एक पंचवर्षीय व्यवस्था थी, जिसमें सबसे ऊँची बोली लगाने वाले की भूमि ठेके पर दी जाती थी| 

2. स्थायी बन्दोबस्त : यह बंदोबस्ती 1793 में लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश तथा बनारस खंड के 19% भाग , उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया |

3. रैयतवाडी बंदोबस्त :   यह व्यवस्था 1820 में तत्कालीन मद्रास के गवर्नर लार्ड मुनरो ने बंबई, असम  तथा मद्रास के अन्य प्रान्तों में लागू की गई | इसके अंतर्गत औपनिवेशिक भारत के 51% भूमि थी |

4. महालवाडी बंदोबस्त :  लार्ड हेस्टिंग ने यह व्यवस्था उतर प्रदेश, मध्य प्रांत तथा पंजाब में लागू की | इस व्यवस्था के  अंतर्गत औपनिवेशिक भूमि का 30% था |

स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएं  (Features of Permanent Settlement):

1. सरकार ने जमींदारों से सिविल और दीवानी संबंधित मामले वापस ले लिए 

2. जमींदारों को लगान वसूली के साथ-साथ भूमि स्वामी के अधिकार भी प्राप्त हुए

3.  सरकार को दिए जाने वाले लगान की राशि को निश्चित कर दिया गया जिसे अब बढ़ाया नहीं जा सकता था.

4.  जमींदारों द्वारा किसानों से एकत्र किए हुए भूमि कर का 10/11 भाग सरकार को देना पड़ता था । शेष 1/11 भाग अपने पास रख सकते थे । 

5. सरकार द्वारा निश्चित भूमि कर की अदायगी में जमींदारों की असमर्थता होने पर सरकार द्वारा उसकी भूमि का कुछ भाग बेचकर यह राशि वसूल की जाती थी ।

स्थायी बन्दोबस्त के लाभ ( Merits of Permanent Settlement )

1. स्थाई बंदोबस्त होने से सरकार की आय निश्चित हो गयी। 

2.  बार-बार बंदोबस्त करने की परेशानी से सरकार को छुटकारा मिल गया। 

3.  स्थाई बंदोबस्त के होने से जमींदारों को लाभ हुआ । वह सरकार के स्वामी भक्त बन गए । 

4. स्थाई बंदोबस्त हो जाने से सरकारी कर्मचारी तथा अधिकारी अधिक समय मिलने के कारण लोक कल्याण के कार्य कर सकते थे । 

5. सरकार को निश्चित राशि मिलने से अन्य योजनाओं को बनाने में सहूलियत हुई ।


स्थायी बंदोबस्त  के दोष ( Demerits of Permanent Settlement )

1. भूमि कर की राशि बहुत अधिक निश्चित की गई थी जिसे ना चुका सकने पर जमींदारों की भूमि बेचकर यह राशि वसूल की गई |

2.  स्थाई बंदोबस्त किसानों के हित को ध्यान में रखकर नहीं किया गया था|

3.  सरकार ने कृषि सुधार हेतु कोई ध्यान नहीं दिया|

4.  स्थाई बंदोबस्त ने जमींदारों को आलसी और विलासी बना दिया|

5.  बंगाल में जमींदारों और किसानों में आपसी विरोध बढ़ने लगा था|

6.  जमींदार खुद शहर में जाकर बस गए और उसके प्रतिनिधियों ने किसानों पर अत्याचार किया|


रैयतवाडी बंदोबस्त (Raiyatwari System)

 यह व्यवस्था 1820 में तत्कालीन मद्रास के गवर्नर लार्ड मुनरो ने  मद्रास प्रांत में  लागू  की  | इसके अंतर्गत औपनिवेशिक भारत के 51% भूमि थी | इसे बंबई और असम में भी लागू किया गया |

रैयतवाडी बन्दोबस्त की विशेषताएं :

1. इस व्यवस्था के तहत कंपनी तथा रैयतों  (किसानों) के बीच सीधा समझौता था|

2.  राजस्व के निर्धारण तथा लगान वसूली में किसी जमींदार या बिचौलिए की भूमिका नहीं होती थी | 

3. टामस मुनरो ने प्रत्येक पंजीकृत किसानों को भूमि का स्वामी माना गया | 4. रैयत  राजस्व सीधे कंपनी को देगा और उसे अपनी भूमि के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता था| 

5. यदि किसान लगान न देने की स्थिति में उसे भूमि देनी पड़ती थी ।

6. यह व्यवस्था भी किसानों के लिए ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुई और कंपनी के अधिकारी रैयतों पर अत्याचार करते रहे|

7. मद्रास यातना  आयोग ने 1854 में इन अत्याचारों का विवरण दिया था|


 रैयत वाडी बन्दोबस्त का प्रभाव :(Impact of Raiyatwari System in Madras) 

    यह व्यवस्था कृषकों के लिए हानिकारक सिद्व हुई | कृषक गरीब तथा भूमिहीन हुए तथा ऋणग्रस्तता के शिकार हो गये|   किसान कम्पनी के अधिकारियों  और साहूकारों के शोषण से तंग आ गये थे | जिसके परिणामस्वरूप कृषकों ने 1875 में ढक्कन विद्रोह कर दिया|

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 महालवाडी बंदोबस्त  ( Mahalwari System):  

  1. स्थायी बंदोबस्त तथा रैय्यतवाड़ी व्यवस्था के बाद ब्रिटिश भारत में लागू कि जाने वाली यह भू-राजस्व की अगली व्यवस्था थी जो संपूर्ण भारत के 30 % भाग दक्कन के जिलों, मध्य प्रांत पंजाब तथा उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत) आगरा, अवध पर लागू थी।
  2. इस व्यवस्था के अंतर्गत भू-राजस्व का निर्धारण समूचे ग्राम के उत्पादन के आधार पर किया जाता था तथा महाल के समस्त कृषक भू-स्वामियों के भू-राजस्व का निर्धारण संयुक्त रूप से किया जाता था। इसमें गाँव के लोग अपने मुखिया या प्रतिनिधियों के द्वारा एक निर्धारित समय-सीमा के अंदर लगान की अदायगी की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते थे।
  3. इस पद्धति के अंतर्गत लगान का निर्धारण अनुमान पर आधारित था और इसकी विसंगतियों का लाभ उठाकर कंपनी के अधिकारी अपनी स्वार्थ सिद्धि में लग गए तथा कंपनी को लगान वसूली पर लगान से अधिक खर्च करना पड़ा। परिणामस्वरूप, यह व्यवस्था बुरी तरह विफल रही।

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