मौर्यकालीन सामाजिक व्यवस्था:
* मेगास्थनीज ने भारतीय समाज मे सात वर्गों का उल्लेख किया है - दार्शनिक , कृषक , योद्वा, पशुपालक , कारीगर , निरीक्षक, मंत्री
* कोई भी व्यक्ति न तो अपनी जाति के बाहर विवाह कर सकता था और न उससे भिन्न पेशा ही अपना सकता था । परन्तु दार्शनिक अपवाद थे ।
* कृषक , कारीगर तथा व्यापारी सैनिक कर्तव्यों से मुक्त रहते थे ।
* अर्थशास्त्र से पता चलता है कि समाज में दासों की स्थिति संतोषजनक थी ।
* समाज में शूद्रों की स्थिति दयनीय थी ।
* लड़को एवं लड़कियों की वयस्यक आयु क्रमशः 16 और 12 वर्ष थी ।
* समाज में अन्तर्जातीय विवाह का भी प्रचलन था ।
* मनोविनोद के साधन - रथदौड़, घुड़दौड़, सांड़दौड, मदारी, गायक , नर्तक , आदि
* मेगास्थनीज ने भारतीय समाज मे सात वर्गों का उल्लेख किया है - दार्शनिक , कृषक , योद्वा, पशुपालक , कारीगर , निरीक्षक, मंत्री
* कोई भी व्यक्ति न तो अपनी जाति के बाहर विवाह कर सकता था और न उससे भिन्न पेशा ही अपना सकता था । परन्तु दार्शनिक अपवाद थे ।
* कृषक , कारीगर तथा व्यापारी सैनिक कर्तव्यों से मुक्त रहते थे ।
* अर्थशास्त्र से पता चलता है कि समाज में दासों की स्थिति संतोषजनक थी ।
* समाज में शूद्रों की स्थिति दयनीय थी ।
* लड़को एवं लड़कियों की वयस्यक आयु क्रमशः 16 और 12 वर्ष थी ।
* समाज में अन्तर्जातीय विवाह का भी प्रचलन था ।
* मनोविनोद के साधन - रथदौड़, घुड़दौड़, सांड़दौड, मदारी, गायक , नर्तक , आदि
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था:
कृषि :
* कृषि प्रधान जीविका एवं अर्थव्यवस्था के साधन थे ।
* प्रतिवर्ष दो फसले उगाई जा सकती थी।
* कृषि कार्य हेतु फाल, कुल्हाड़ी, हँसिये का प्रयोग होता था ।
* गेहूँ, जौ , चना , ईख , तिल, सरसों , मसूर , आदि प्रमुख फसल थी ।
* सिंचाई का उत्तम प्रबन्ध था ।
* पशुओं में बैल , गाय, बकरी, भेड़, गधे , भैंस, सुअर , कुत्ता आदि पाले जाते थे ।
व्यापार:
* आंतरिक एवं बाह्य व्यापार प्रचलित थे ।
* भारत का बाह्य व्यापार सीरिया, मिस्र , तथा अन्य पश्चिमी दर्शन से होता था ।
* बाह्य व्यापार पश्चिम में " भृगकच्छ" तथा पूर्वी भारत में " ताम्रलिप्ति" के बन्दरगाहों से होता था ।
* " बारबैरिकम" बन्दरगाह सिंधु के मुहाने पर स्थित था ।
* " नवाध्यक्ष" नामक पदाधिकारी व्यापारिक जहाजों का नियंत्रण करता था ।
* आंतरिक व्यापार सड़क और नदी मार्ग से होता था ।
* चम्पा, पाटलीपुत्रा, वैशाली, राजगृह, गया , काशी , प्रयाग , कौशाम्बी, कान्यकुब्ज, हस्तिनापुर, तक्षशिला प्रमुख नगर थे ।
* " पण्याध्यक्ष" बिक्री की वस्तुओं का निरीक्षण करता।
उधोग-धंधे :
* कपड़ा उद्योग प्रमुख उद्योग था ।
* अर्थशास्त्र में " दुकूल " ( स्वेत तथा चिकना वस्त्र ) और " क्षौम"( रेशमी वस्त्र ) का उल्लेख है ।
* मथुरा , कलिंग , बंग , वत्स वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्र थे ।
* इसके अलावा बढ़ईगीरी, चर्म उद्योग , धातु उद्योग भी प्रचलित थे ।
* उद्योग-धंधों की संस्थाओं को "श्रेणी" कहा जाता था ।
सिक्के :
* स्वर्ण सिक्कों को "निष्क" , चांदी के सिक्के को " कार्षापण" या "धारण" , तांबे के सिक्के को " माषक" , तथा छोटे- छोटे तांबे के सिक्के को " काकणि" कहा जाता था ।
कृषि :
* कृषि प्रधान जीविका एवं अर्थव्यवस्था के साधन थे ।
* प्रतिवर्ष दो फसले उगाई जा सकती थी।
* कृषि कार्य हेतु फाल, कुल्हाड़ी, हँसिये का प्रयोग होता था ।
* गेहूँ, जौ , चना , ईख , तिल, सरसों , मसूर , आदि प्रमुख फसल थी ।
* सिंचाई का उत्तम प्रबन्ध था ।
* पशुओं में बैल , गाय, बकरी, भेड़, गधे , भैंस, सुअर , कुत्ता आदि पाले जाते थे ।
व्यापार:
* आंतरिक एवं बाह्य व्यापार प्रचलित थे ।
* भारत का बाह्य व्यापार सीरिया, मिस्र , तथा अन्य पश्चिमी दर्शन से होता था ।
* बाह्य व्यापार पश्चिम में " भृगकच्छ" तथा पूर्वी भारत में " ताम्रलिप्ति" के बन्दरगाहों से होता था ।
* " बारबैरिकम" बन्दरगाह सिंधु के मुहाने पर स्थित था ।
* " नवाध्यक्ष" नामक पदाधिकारी व्यापारिक जहाजों का नियंत्रण करता था ।
* आंतरिक व्यापार सड़क और नदी मार्ग से होता था ।
* चम्पा, पाटलीपुत्रा, वैशाली, राजगृह, गया , काशी , प्रयाग , कौशाम्बी, कान्यकुब्ज, हस्तिनापुर, तक्षशिला प्रमुख नगर थे ।
* " पण्याध्यक्ष" बिक्री की वस्तुओं का निरीक्षण करता।
उधोग-धंधे :
* कपड़ा उद्योग प्रमुख उद्योग था ।
* अर्थशास्त्र में " दुकूल " ( स्वेत तथा चिकना वस्त्र ) और " क्षौम"( रेशमी वस्त्र ) का उल्लेख है ।
* मथुरा , कलिंग , बंग , वत्स वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्र थे ।
* इसके अलावा बढ़ईगीरी, चर्म उद्योग , धातु उद्योग भी प्रचलित थे ।
* उद्योग-धंधों की संस्थाओं को "श्रेणी" कहा जाता था ।
सिक्के :
* स्वर्ण सिक्कों को "निष्क" , चांदी के सिक्के को " कार्षापण" या "धारण" , तांबे के सिक्के को " माषक" , तथा छोटे- छोटे तांबे के सिक्के को " काकणि" कहा जाता था ।
* अर्थशास्त्र में टकसाल का भी उल्लेख है जिसका अधीक्षक "लक्षणाध्यक्ष" होता था ।
* मुद्राओं का परीक्षण करने वाला अधिकारी " रूपदर्शक" कहा जाता था ।
* मौर्य शासन का वित्तिय वर्ष "अषाढ़(जूलाई)" माह से प्रारम्भ होता था ।
* अर्थशास्त्र के अनुसार ब्याज दर 15% वार्षिक होती थी ।
धार्मिक व्यवस्था :
* मौर्य काल में ब्राह्मण धर्म , आजीवक सम्प्रदाय, जैन धर्म और बौद्व धर्म प्रचलित था ।
* पशु बलि की प्रथा थी जिसे अशोक ने बंद करने के लिए आदेश जारी किया था जिसका उल्लेख उसके प्रथम शिलालेख से होती है ।
* बौद्व धर्म का राजकीय संरक्षण प्राप्त था ।
* अशोक ने 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराया था ।
भाषा तथा साहित्य :
* मौर्य काल में साधारण जनता की भाषा "पाली" थी ।
* सम्राट अशोक ने अपने अभिलेख "प्राकृत" भाषा में उत्कीर्ण करवाये तथा इसे राजभाषा बनवाया ।
* अशोक के अभिलेखों में दो प्रकार की लिपियों का प्रयोग मिलता है - " खरोष्ठी" लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी जबकि दूसरी लिपि " ब्राह्मी " थी जो बाईं से दाईं ओर लिखी जाती थी ।
* प्रमुख साहित्य कृति '-
चाणक्य- अर्थशास्त्र
मोगलीपुत्तीसस- कथावत्थु
भद्रबाहु- कल्पसूत्र
मेगास्थनीज- इंडिका
स्थापत्य कला :
* मथुरा जिले के परखम गांव से प्राप्त यक्ष मूर्ति 'मणिभद्र" एवं पटना के दीदारगंज से प्राप्त " चवरधारिणी " की यक्ष प्रतिमा महत्वपूर्ण है ।
* मथुरा जिले के परखम गांव से प्राप्त यक्ष मूर्ति 'मणिभद्र" एवं पटना के दीदारगंज से प्राप्त " चवरधारिणी " की यक्ष प्रतिमा महत्वपूर्ण है ।
* अशोक द्वारा स्थापित स्तम्भ अभिलेख महत्वपूर्ण है ।
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M. PRASAD
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