काकोरी काण्ड : 9 अगस्त 1925
96 साल पहले हुए काकोरी कांड की कहानी;
4,601 रुपए की लूट से बौखलाए अंग्रेज ,
अंग्रेजों ने 4 क्रांतिकारियों को दे दी थी फांसी,
1920 में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। कुछ साल में ही ये आंदोलन चरम पर पहुंच गया। 6 फरवरी 1922 में गोरखपुर में चौरी-चौरा कांड हुआ। आंदोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को घेरकर आग लगा दी, जिसमें 20 से भी ज्यादा पुलिसवाले मारे गए।
इस हिंसक घटना से आहत गांधी जी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। गांधी जी के इस फैसले से देश में निराशा का माहौल छा गया। युवा क्रांतिकारी सबसे ज्यादा निराश हुए। आंदोलन से निराश युवाओं ने ये फैसला लिया कि वो एक पार्टी का गठन करेंगे।
शचीन्द्रनाश सान्याल के नेतृत्व में १९२५ में ही हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना हुई। योगेशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ बक्शी पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्यों में शामिल थे। बाद में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह भी पार्टी से जुड़ गए। पार्टी का मानना था कि भारत की आजादी के लिए हथियार उठाने ही पड़ेंगे।
हथियार खरीदने के लिए पैसों की जरूरत होती थी। इसलिए पार्टी के लोग शुरुआत में डकैती डालकर पैसों का प्रबंध किया करते थे, लेकिन डकैती में निर्दोष लोग मारे जाते थे और सरकार क्रांतिकारियों को चोर कहकर बदनाम करती थी इसलिए फैसला लिया गया कि डकैती के बजाय अब सरकारी खजाने को लूटा जाएगा।
क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लेकर जा रही ट्रेन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त 1925 को सहारनपुर से लखनऊ की ओर जा रही ट्रेन को 10 क्रांतिकारियों ने निशाना बनाया। इस ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर रोका गया और बंदूक की नोक पर गार्ड को बंधक बनाकर लूटा गया। क्रांतिकारियों के हाथ कुल 4,601 रुपए की रकम आई।
इस घटना से ब्रिटिश सरकार में भूचाल मच गया। आनन-फानन में गिरफ्तारियां की गईं। हालांकि घटना में केवल 10 ही लोग शामिल थे लेकिन सरकार ने एक महीने के अंदर करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया। 6 अप्रैल 1927 को फैसला सुनाया गया।
राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। कई लोगों को 14 साल तक की सजा दी गई। सरकारी गवाह बनने पर दो लोगों को रिहा कर दिया गया। चंद्रशेखर आजाद पुलिस की गिरफ्त से दूर ही रहे। हालांकि इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में वे शहीद हो गए।
फांसी का फैसला आने के बाद भारतीय आंदोलन पर उतर आए, लेकिन अंग्रेजों ने भारतीयों की एक न सुनी। सबसे पहले 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दी गई। इसके दो दिन बाद रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद में फांसी दी गई।
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