Tuesday, 19 May 2020

इतिहास - विचारक ,विश्वास और इमारतें : वर्ग 12 पाठ-4 भाग-2

  विचारक , विश्वास और इमारतें 
               सांस्कृतिक विकास 
(लगभग 600 ई.पू. से ईसा सम्वत 600 तक )

प्राचीन धर्मों का इतिहास :
                  वैदिक धर्म
वैदिक धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म है  और वेद भारतीय धर्म के प्राचीनतम ग्रन्थ है |
मनुस्मृति में कहा गया है - " धर्म जिज्ञासमानानां , प्रमाण परमं श्रुति: |अर्थात जो धर्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं , उनके लिए परम प्रमाण वेद ही है |

ऋग्वैदिक धर्म :  1500 ई. पू. से 1000 ई.पू. के बीच ऋग्वेद की रचना हुई |    यह काल ऋग्वैदिक काल कहलाता है |  इस काल में देवताओं की प्रधानता थी |  ये तीन श्रेणियों में विभाजित थे |

पृथ्वीवासी  देवता : पृथ्वी , अग्नि , सोम , वृहस्पति |

अंतरिक्षवासी  देवता - इंद्र , वायु , मरुत , रूद्र , पूषण |
आकाशवासी  देवता - वरुण , सूर्य |

* ऋग्वेद में इंद्र का 250 बार एवं अग्नि का 200 बार उल्लेख है |  इंद्र प्रमुख देवता है |

* इंद्र वर्षा का , मरुत तूफान का एवं  वरुण को शक्ति  का देवता और समुद्र का देवता  माना  जाता है |

* ऋग्वेद में कुल 1028 सूक्त  एवं 10,500 मन्त्र है |
* यह 10 मंडलों में विभक्त है |

* गायत्री मन्त्र  ऋग्वेद से लिया गया है |

     ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
               धियो यो न: प्रचोदयात्।

अर्थ - उस प्राणस्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे।


उत्तरवैदिक धर्म : 1000 ई. पू. से 600 ई.पू. के बीच यजुर्वेद ,सामवेद , अथर्ववेद आदि वैदिक साहित्य की रचना हुई | यह काल उत्तरवैदिक काल कहलाता है | इस काल में त्रिदेव ब्रह्मा , विष्णु , महेश की आराधना की गयी है |

यर्जुवेद :  यज्ञ एवं हवन सम्बन्धी मन्त्रों का संग्रह |

सामवेद : गाये जाने वाला मन्त्रों का संग्रह |

अथर्ववेद: तन्त्र-मन्त्र , जादू-टोना एवं आयुर्वेदिक् औषधियों का विवरण 

ब्राह्मण ग्रन्थ : ब्राह्मण ग्रन्थों में वेद मन्त्रों के अर्थ एवं सार की टीकाएँ मिलती है | प्रत्येक वेद के उपवेद एवं ब्राह्मण ग्रन्थ निम्न है |

 क्रम सं.                वेद                  उपवेद                       ब्राह्मण ग्रन्थ 
      1.                  ऋग्वेद               आयुर्वेद                           ऐतरेय, कौषीतकि
      2.                  यजुर्वेद               धनुर्वेद                            शतपथ, वाजनेय , तैतरीय 
      3.                 सामवेद               गंधर्ववेद                          तांडय , पंचविश ,जैमनीय 
      4.                 अथर्ववेद             शिल्पवेद                          गोपथ ब्रह्मण 

आरण्यक : इस ग्रन्थ में आध्यात्मिक रहस्यों का विवेचना किया गया है | इसकी रचना वन में की गयी थी |

उपनिषद् : वेदों के अंतिम भाग उपनिषद  है | जिस रहस्य विधा का ज्ञान गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता है उसे उपनिषद कहते थे |  उपनिषद 108 है | जैसे - मुण्डकोपनिषद |

वेदाग : वेदांग छः है |  शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छंद , और ज्योतिष  |

पुराण : पुराण 18 है |

*  पुराणों की रचियता - लोमहर्ष एवं उनके पुत्र उग्रश्रवा  माने जाते है |

*  सबसे प्राचीन और प्रमाणिक पुराण - मत्स्यपुराण |

*  विष्णुपुराण मौर्य वंश से, वायुपुराण गुप्त वंश से और मत्स्यपूराण आंध्र सातवाहन वंश से सम्बन्धित है |

षड्दर्शन:  छह दार्शनिक परम्पराएं निम्न है ।
1. कपिल का सांख्य दर्शन 
2. पतंजलि का योग दर्शन 
3. गौतम का न्याय दर्शन 
4. कणाद का वैशेषिक दर्शन
5. जैमिनी की पूर्व मीमांसा दर्शन 
6. व्यास की उत्तर मीमांसा दर्शन 

आश्रम व्यवस्था :
 ब्राह्मण ग्रँथों में चार आश्रम का वर्णन मिलता है ।
1. ब्रह्मचर्य आश्रम : 25 वर्ष तक की आयु तक । शिक्षा ग्रहण करना , अनुशासन में रहना ।

2. गृहस्थ आश्रम: 25 वर्ष से 50 वर्ष की आयु तक । विवाह करना , सन्तान उत्पन्न करना, धन कमाना ।

3. वानप्रस्थ आश्रम : 50 से 75 वर्ष की आयु तक वन में आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करना ।

4. सन्यास आश्रम : 75 से 100 वर्ष की आयु तक वन में तप करना ।

यज्ञ परम्परा :  
यज्ञ का उद्वेश्य पुत्र प्राप्ति , धन प्राप्ति, यश प्राप्ति , स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के लिए ।

1. वाजपेय यज्ञ : शक्ति प्राप्त करने के लिए , यह साल में 17 दिन यज्ञ होता था ।

2. राजसूय यज्ञ : राज्याभिषेक के समय , 2 वर्ष तक यज्ञ होता था ।

3. अश्वमेघ यज्ञ: चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए , तीन दिन तक चिकने वाला यज्ञ , इसमें राजा के घोड़े को खुला छोड़ दिया जाता था ।जितने क्षेत्र में वह विचरण करता , वह क्षेत्र राजा के अधीन हो जाता था ।

अन्य महत्वपूर्ण दर्शन 
चार्वाक दर्शन : " जब तक जियो, सुख से जियो और कर्ज लेकर घी पियों "। वैदिक कर्मकांड से त्रस्त जनता आगामी जन्म के फेर में पड़कर वर्तमान जन्म में चिंतित रहने लगी तो चार्वाक मुनि ने भौतिकवादी दर्शन दिया ।
        उनका कहना था कि न आत्मा है , न पुनर्जन्म है  और न ही कोई परलोक । परलोक की चिंता छोड़ वर्तमान का भोग करो। 

अजितकेश कम्बलिन  :  यह गौतम बद्व के समकालीन थे और लोकायत परम्परा के मानने वाले थे ।जिन्हें  भौतिकवादी भी कहते है ।
                 दर्शन - " हे राजन ! दान , यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई चीज नही होती .... इस दुनिया या दूसरी दुनिया जैसी कोई चीज नही होती ।
                  मनुष्य चार तत्वों से बना होता है ।  जब वह मरता है तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में ,  जल वाला हिस्सा जल में  , गर्मी वाला अंश आग में , सांस का अंश वायु में वापस मिल जाता है और उसकी इंद्रियां अंतरिक्ष का हिस्सा बन जाती है...... 
                     दान  देने की बात मूर्खों का सिद्धांत है,  खोखला झूठ है ...मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं ।  मृत्यु के बाद कोई नहीं बचता ।"

मक्खलि गोसाल : गौतम बद्व के समकालीन एवं आजीवक परम्परा के मानने वाले थे । ये भाग्यवादी थे । त्रिपिटक में इनका दर्शन मिलता है ।
                          " हालांकि बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि इस सद्गुण से ......... इस तपस्या से मैं कर्म प्राप्ति करूंगा............मूर्ख उन्हीं कार्यों को करके धीरे-धीरे कर्म मुक्ति की उम्मीद करेगा ।  दोनों में से कोई कुछ नहीं कर सकता ।  सुख और दुख मानो पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं । इसे संसार में बदला नहीं जा सकता ।  इसे बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता ।  जैसे धागे का गोला फेंक देने से लुढ़कते लुढ़कते अपनी पूरी लंबाई तक खुलता जाता है उसी तरह मुर्ख और विद्वान दोनों ही पूर्व निर्धारित रास्ते से होते हुए दुखों का निदान करेंगे ।" 
    




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