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Monday, 15 February 2021

महाराजा रणजीत सिंह और एक मुस्लिम लड़की की प्रेम कहानी

महाराजा रणजीत सिंह और एक मुस्लिम लड़की की प्रेम कहानी- इतिहास के पन्नों से 

                                            source-BBC



उनकी उम्र केवल अठारह वर्ष की थी और वह एक पेशेवर नर्तकी और गायिका थीं. लेकिन एक ही मुलाक़ात में, उनकी सुंदरता और आवाज़ के जादू ने महाराजा को उनका दीवाना बना दिया था. यहाँ तक कि वो उस लड़की से शादी करने के लिए कोड़े खाने के लिए भी तैयार हो गए.

उनकी उम्र केवल अठारह वर्ष की थी और वह एक पेशेवर नर्तकी और गायिका थीं. लेकिन एक ही मुलाक़ात में, उनकी सुंदरता और आवाज़ के जादू ने महाराजा को उनका दीवाना बना दिया था. यहाँ तक कि वो उस लड़की से शादी करने के लिए कोड़े खाने के लिए भी तैयार हो गए.

यह लड़की अमृतसर की गुल बहार थीं. पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें पहली बार एक शाही समारोह में गाते हुए सुना और देखा. उसी समय, महाराजा ने गुल बहार के क़रीब जाने की कोशिश की. वह उन्हें अपनी प्रेमिका बना कर रखना चाहते थे. लेकिन गुल बहार ने ऐसा करने से मना कर दिया.

पंजाब के इतिहास पर नज़र रखने वाले एक शोधकर्ता और लेखक इक़बाल क़ैसर के अनुसार, रणजीत सिंह उन पर इतने मोहित हो गए थे, कि वे अपना सब कुछ देने के लिए तैयार थे. "गुल बहार एक मुस्लिम परिवार से थीं, इसलिए उन्होंने महाराजा रंजीत सिंह से कहा, कि वह प्रेमिका बन कर नहीं रह सकतीं."

उस समय महाराजा की आयु 50 वर्ष से अधिक थी और यह वह दौर था, जब अंग्रेज़ों ने उपमहाद्वीप में पैर जमाने शुरू कर दिए थे. गुल बहार ने प्रस्ताव रखा कि अगर महाराजा चाहें तो वह उनसे शादी करने को तैयार हैं.

इक़बाल क़ैसर का कहना है कि "महाराजा रणजीत सिंह इतने जज़्बाती हुए, कि उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया."

पंजाब के महाराजा ने औपचारिक तौर पर गुल बहार के परिवार से उनका हाथ माँगा.

एक कथन के अनुसार, गुल बहार ने अपने विवाह प्रस्ताव के साथ यह शर्त रखी, कि रणजीत सिंह उनके घर वालों से रिश्ता मांगने के लिए, ख़ुद पैदल चल कर, लाहौर से अमृतसर आएंगे. हालाँकि, इक़बाल क़ैसर के अनुसार, प्रामाणिक इतिहास की पुस्तकें इसकी पुष्टि नहीं करती हैं.

हालांकि, पंजाब के महाराजा के लिए भी सिख धर्म के बाहर एक मुस्लिम लड़की से शादी करना इतना आसान नहीं था.



अकाल तख़्त ने रंजीत को कोड़ों की सज़ा सुनाई

सिख धर्म के धार्मिक लोगों ने रणजीत सिंह के इस फ़ैसले पर नाराज़गी जताई. महाराजा को अमृतसर के सिख तीर्थस्थल अकाल तख़्त में बुलाया गया. अकाल तख़्त को सिख धर्म में धरती पर खालसा का सबसे ऊँचा स्थान माना जाता है.

कुछ ऐतिहासिक संदर्भों के अनुसार, अकाल तख़्त ने रणजीत सिंह को गुल बहार से शादी करने की सजा के रूप में अपने हाथों से पूरे गुरुद्वारे के फ़र्श को धोने और साफ करने की सज़ा दी.

हालांकि, इक़बाल क़ैसर का कहना है, कि उनके शोध के अनुसार, ऐसा नहीं था. "अकाल तख़्त ने रणजीत सिंह को कोड़े मारने की सज़ा दी. रणजीत सिंह ने अपनी इस रानी के लिए इस सज़ा को भी स्वीकार कर लिया."





क्या वाक़ई रणजीत सिंह को कोड़े मारे गए थे?

रणजीत सिंह की उम्र उस समय 50 वर्ष से अधिक थी. लेकिन समस्या यह थी कि वह महाराजा थे, जिनके साम्राज्य की सीमा पंजाब से भी बाहर तक फैली हुई थी. ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति को कौन कोड़े मार सकता था? दूसरी ओर, अकाल तख़्त का आदेश भी था, जिसे रणजीत सिंह के लिए भी अस्वीकार करना मुमकिन नहीं था.

इक़बाल क़ैसर के अनुसार, "इसका समाधान यह निकला गया, कि एक रेशम का कोड़ा तैयार किया गया. और इसके साथ रणजीत सिंह को कोड़े मारे गए और सज़ा पूरी की गई थी." उनका कहना है कि इस तरह से महाराजा ने "कोड़े भी खा लिए और और गुल बहार को भी नहीं छोड़ा."

रणजीत सिंह और गुल बहार की इस शादी और उस पर होने वाले जश्न का वर्णन, कई इतिहासकारों ने विस्तार से किया है. वह लिखते हैं, कि जिन बड़े बुजुर्गों ने लाहौर और अमृतसर में इस शादी को देखा था, वो बाद में भी याद करते थे, कि यहाँ कभी ऐसी शादी भी हुई थी.




'रणजीत सिंह ने मेंहदी भी लगाई'

शोधकर्ता इक़बाल क़ैसर का कहना है, कि इस शादी का वर्णन, इतिहासकार सुजान राय ने अपनी पुस्तक 'इतिहास का सारांश' में लिखा है. वह लिखते हैं कि "महाराजा रणजीत सिंह ने औपचारिक तौर पर मेहंदी लगवाई, ख़ुद को सोने के गहनों से सुसज्जित किया, अपनी शाही पोशाक पहनी और हाथी पर सवार हुए."

अमृतसर के राम बाग़ में एक बंगला था, जहां यह शादी समारोह होना था. इस बंगले को कई दिनों पहले बंद कर दिया गया था और कई दिनों तक इसकी सजावट का काम किया गया था. इसे खाली करा दिया गया था और इसके बाद, जो पहला इंसान इसमें दाखिल हुआ, वह गुल बहार थी.

शादी समारोह से एक रात पहले, एक संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया था, मुजरे हुए और चराग़ां किया गया. उस कार्यक्रम में गाने वालों को पुरस्कार के रूप में सात हज़ार रुपये दिए गए. उस समय यह बहुत बड़ी धनराशि थी."

'गुल बहार के गुज़रने के लिए रावी नदी के नाले पर पुल बनाया गया'

शादी समारोह बड़ी धूमधाम से हुआ था. जिसके बाद शाही जोड़ा अमृतसर से लाहौर के लिए रवाना हुआ. लेकिन लाहौर में प्रवेश करने से पहले, रावी नदी का एक छोटा सा नाला उनके रास्ते में रुकावट बन गया.

अगर कोई और होता, तो वह उसे पैदल पार कर सकता था, लेकिन गुल बहार अब लाहौर की रानी थी. ये कैसे हो सकता था, कि रानी पालकी से उतर कर पैदल नाला पार करती? गुल बहार ने ऐसा करने से मना कर दिया.

इक़बाल क़ैसर के अनुसार, "कुछ लोग कहते हैं, कि इस नाले के ऊपर एक पुल बनाया गया था, जिस पर चल कर रानी ने नाले को पार किया था."

बाद में यह पुल 'पुल कंजरी' के नाम से मशहूर हुआ. इक़बाल क़ैसर के अनुसार, इसका हिस्सा आज भी मौजूद है और यह पुल 1971 में पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध के दौरान काफी चर्चा में था.

हालांकि, कुछ कथनों के अनुसार, यह पुल वह स्थान है, जहाँ रणजीत सिंह अपनी अमृतसर यात्रा के दौरान रुकते थे. इसके लिए बनाई गई इमारतें आज भी यहाँ मौजूद हैं.

इस कथन के अनुसार, इस पुल का नाम 'पुल कंजरी' रंजीत सिंह की प्रेमिका मोरा सरकार से जोड़ा जाता है, जिसने पैदल नाला पार करने पर नाराज़गी जताई थी.

क्या गुल बेगम ने अपने मक़बरे का निर्माण ख़ुद कराया?

गुल बेगम से शादी के आठ साल बाद रंजीत सिंह की मृत्यु हो गई. इसके कुछ ही समय बाद, अंग्रेज़ों ने पंजाब पर पूरा नियंत्रण कर लिया.

रंजीत सिंह की अंतिम पत्नी ज़िन्दां को देश निकला दिया गया क्योंकि उनके बेटे दिलीप सिंह को ही रंजीत का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया था. बहार बेगम की ख़ुद की कोई संतान नहीं थी. इसलिए उनसे ब्रिटिश सरकार को कोई ख़तरा नहीं था.

महाराजा की पत्नी होने के नाते, गुल बेगम के लिए मासिक वजीफा निर्धारित कर दिया गया था, जो प्रति माह लगभग बारह सौ रुपये था.

गुल बेगम ने एक मुस्लिम लड़के, सरदार ख़ान को गोद ले रखा था. सन 1851 में, गुल बेगम ने अपने लिए लाहौर के प्राचीन मियानी साहब क़ब्रिस्तान के बराबर में एक बाग़ का निर्माण कराया था. इक़बाल क़ैसर के अनुसार, इस बाग़ में उन्होंने अपना मक़बरा भी बनवाया था.

इसकी दीवारों पर की गई नक्काशी तो मिट चुकी है, लेकिन मकबरे के अंदर की छत और दीवारों पर बनी ख़ूबसूरत नक्काशी आज भी ऐसे ही मौजूद है, जैसा कि उन्हें कल ही बनाया हों.

इस बगीचे के निर्माण के लगभग दस साल बाद गुल बेगम की भी मृत्यु हो गई और उन्हें इसी मक़बरे में दफ़नाया गया.

इक़बाल क़ैसर कहते हैं, "इस मक़बरे के अंदर के भित्तिचित्र बहुत मूल्यवान हैं. पहले से ही मुग़लिया दौर चला आ रहा था. फिर सिख इसमें शामिल हुए और यह सभी इस मक़बरे में अपनी बुलंदी के रूप में मौजूद हैं."

बाग़ गुल बेगम आज भी उसी जगह पर मौजूद हैं, लेकिन इसकी हालत बहुत खस्ता हाल है. इक़बाल क़ैसर के अनुसार, "यह उजड़ा दियार, एक ऐसी महिला की क़ब्र है, जो कभी लाहौर की रानी थी."

इक़बाल क़ैसर का कहना है, कि गुल बेगम के पास इतनी बड़ी संपत्ति और जागीर थी, कि उन्होंने इसे संभालने के लिए अपना एक कोष बनाया हुआ था और वो ख़ुद इसका प्रबंध संभालती थी. उनकी मृत्यु के बाद, यह संपत्ति उनके पालक पुत्र सरदार ख़ान को दे दी गई.

सरदार ख़ान का परिवार आज भी उस जगह के आसपास रहता है जहां यह बाग़ है. बाग़ गुल बेगम भी उनकी ही संपत्ति है और इस क्षेत्र को मोहल्ला गुल बेगम कहा जाता है. बगीचे के बीच में ही एक परिसर में सरदार ख़ान की क़ब्र भी मौजूद है.





Source:BBC

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